(B) आहारदान की निम्न आवश्यक पात्रतायें एवं निर्देशः
आहारदाता का प्रतिदिन देव दर्शन का नियम, रात्रि भोजन का त्याग, सप्त व्यसनों का त्याग तथा सच्चे देव, शास्त्र, गुरुको मानने का नियम होना चाहिये।
जिनका आय का श्रोत हिंसात्मक व अनुचित न हो। (शराब का ठेका, जुआ, सट्टा खिलाना, कीटनाशक दवायें, ब्यूर्त पार्लर, नशीली वस्तु का व्यापार)
जिनके परिवार में जैनोत्तरों से विवाह संबंध न हुआ हो अथवा जिनके परिवार में विधवा विवाह संबंध न हुआ हो।
जो अपराध, दिवालिया, पुलिस केस, सामाजिक प्रतिबंध आदि से परे हो (मूर्ख न हो, कंजूस, दरिद्र, निंद्य न हो)।
जो हिंसक प्रसाधनों (लिपिस्टिक, नेलपेंट, चमड़े से बनी बरतुएँ, लाख की चूड़ी, हाथी दाँत व चीनी के आभूषण) रेशम के वरओं, सेंट, पाउडर क्रीम, डियोडरेन्ट आदि का उपयोग न करते हो एवं नाखून बढ़ाये न हों।
जो किसी भी प्रकार के जूते, चप्पन आदि का निर्माण या व्यवसाय करते हैं। वे भी आहार देने के पात्र नहीं हैं।
जो भ्रूण हत्या, गर्भपात करते हैं, करवाते हैं, एवं उसमें प्रत्यक्ष/परोक्ष रूप से सहभागी होते हैं (संबंधित दवाई आदि बेचने के रूप में) वे भी आहार देने के पात्र नहीं हैं।
जो हिसक खाद्य पदार्थों जैसे कम्पनी पैक आइसक्रीम, नमकीन, चिप्र, बिस्कुिट, चॉकलेट, नूडल्स, स्नेक्स, कोल्ड, ड्रिंक्स, टूथ पेस्ट, दूध पाउडर, जैम, सोस, ब्रेड, च्युंगम आदि का प्रयोग नहीं करते हो।
यदि शरीर में धाव हो या खून निकल रहा हो एवं बुखार, सर्दी खाँसी, कैंसर, टी. बी., सफेद दाग आदि रोगों के होने पर आहार न.देवें।
रजस्वला स्त्री छटवें दिन साधु को आहार देने के योग्य शुद्ध होती है। अशुद्धि के दिलों में चौके से संबंधित कोई कार्य नहीं को और खाद्य सामग्री शोधन भी न करें। बर्तन भी जो स्वयं के प्रयोग में लिये हैं, उन्हें अग्नि के द्वारा शुद्ध करना चाहिए।
पाद प्रक्षालन के बाद गंधोदक की थाली में हाथ न धोयें तथा सभी लोग गंधोदक अवश्य ले।
चौके में पैर धोने के लिये प्रामुक जल ही रखें और सभी लोग पैर (एडी से) अच्छी तरह धोकर ही प्रवेश करें एवं अन्दर भी अच्छी तरह से हाथ धोवें। पड़गाहन के समय साफ-सुथरी जगह में खड़े होवे। जहाँ नाली का पानी बह रहा हो, मरे जीव जंतु पड़े हो, हरी थाँस हो, पशुओं
का मल हो, ऐसे स्थान से पड़गाहन न करें एवं साधुओं को चौके तक ले जाते समय भी इन सभी बातों का ध्यान रखें।
नीचे देखकर ही साधु की परिक्रमा करें एवं परिक्रमा करते समय साधु की परछाई पर पैर न पड़े, इसका ध्यान रखें।
साधु के पड़गाहन के बाद पूरे आहार करायें एवं आवश्यक कार्य से बाहर जाने के लिये साधु से अनुमति लेकर जायें।
जब दूसरे के चौके में प्रवेश करते हैं, तो श्रावक एवं साधु की अनुमति लेकर ही प्रवेश करें।
नीचे देखकर जीवों को बचाते हुए प्रवेश करें। यदि कोई जीव दिखे तो उसे सावधानी से अलग कर दें।
पूजन में द्रव्य एक ही व्यक्ति चढ़ायें, जिससे द्रव्य गिरे नहीं क्योकि उससे चीटियों आती हैं। उठते समय हाथ जमीन से म टेंके।
पाटा पड़गाहन के पूर्व ही व्यवस्थित करना चाहिये एवं ऐसे स्थान पर लगाना चाहिये, जहाँ पर पर्याप्त प्रकाश हो, ताकि साधु को शोधन में असुविधा न हो।
सामग्री एक ही व्यक्ति दिखाये जो चौके का हो, और जिसे सभी जानकारी हो। और एक खाली थाली भी हाथ में रहे।
महिलायें एवं पुरुष सिर अवश्य ढांककर रखें। जिससे बाल गिरने की संभावना न रहे।
शुद्धि बोलते समय हाथ जोड़कर शुद्धि बोलें। हाथ में आहार सामग्री लेकर शुद्धि न बोलें क्योंकि इससे थूक के कण सामग्री में गिर जाते हैं. आहार के दौरान मौन रहें। बहुत आवश्यक होने पर सामग्री ढंककर सीमित बोलें।
पात्र में जाली ही बांधे एवं पात्र गहरा, बड़ा रखें जिससे यदि जीव गिरे तो डूबे नहीं, डूबने से जीव की मृत्यु हो सकती है।
जो श्रावक आहार देने में असमर्थ है वह आहार दिलाता है जो आहार दान देने के लिए प्रेरणा देने में भी असमर्थ है वह अनुमोदना से पुण्यार्जन करता है, समर्थ श्रावक को अनुमोदना से विशेष पुण्यार्जन नहीं होता। अनुमोदना तो प्रायः परोक्ष में की जाती है किन्तु आहार दान में असमर्थ होने पर प्रत्यक्ष में की जाती है।
भोजन सामग्री गरम बनी रहे, इसके लिये कोपर में अधिक तेज जल में सामग्री रखें अथवा बनी हुई भोजन सामग्री को किसी बड़े डिब्बे से ढक देने से भोजन सामग्री गरम बनी रहती है।
साधु जब अंजली में जल लेते हैं तो अधिकांशतः जल ठंडा होता है, तभी साधु हाथ के अंगूठे से इशारा करते है, अर्थात् जल को गर्म देवें। यदि आपको दूध या जल गर्म लग रहा है तो पहले थोड़ा सा देवें।
1. A- पूजन एवं आहारदान संबंधी निर्देश
2. B. आहारदान की निम्न आवश्यक पात्रतायें एवं निर्देश