(C) निरन्तराय आहार हेतु सावधानियाँ एवं आवश्यक निर्देश:
साधु के निरंतराय आहार होवे, यह दाता की सबसे बड़ी उपलब्ध है। क्योंकि साधु की संपूर्ण धर्म साधना, चिंतन, पठम मनन निर्वाध रूप से अविरल अर्हनिश होती रहे. इस हेतु निरंतराय आहार आवश्यक है। सावधानी रखना दाता का प्रमुख कर्तव्य है।
2. तरल पदार्थ (जल, दूध, रस आदि) जो भी चलाये, तुरंत छान कर देवे लेकिन प्लास्टिक की छन्नी का प्रयोग न करें और रोटी को पहले पूरी उजाले की ओर दोनों हाथों से पकड़कर धरि-धरि तोड़ने में यदि बाल वगैरह हो तो अटक जाता है।
पड़गाहन के पूर्व सभी सामग्री का शोधन कर लेवें। तथा चौके में जीव चीरह न हो, बारीकी से देखें।
4. यदि साधु को आहार लेते समय घबराहट हो रही है, तो नींबू, अमृतधारा या हाथ में थोड़ा सा गीला बेसन लगाकर सुंधा दें।
बाहर के लोगों को कोई सामग्री न पकड़ायें, उनसे चम्मच से (तरल पदार्थ गिलास से) चलवायें।
6. सामग्री का शोधन वृद्धों एवं बच्चों से न कराये। इनसे चम्मच से सामग्री दिलवायें।
कोई भी वस्तु जल्दबाजी में न दें, कम से कम तीन बार पलटकर देख लें।
मुनि, आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक जो भी साधु हैं, उनसे तीन बार तक आग्रह / निवेदन करें। जबरदस्ती सामग्री नहीं दे।
9. यदि पात्र में मक्खी गिर जाये, तो उसे उठाकर राख में रखने से मरने की संभावना नहीं रहती है।
ग्रास यदि एक व्यक्ति ही चलाये, तो उसका उपयोग स्थिर रहता है। जिससे शोधन अच्छे से होता है।
एक व्यक्ति एक ही वस्तु पकड़े एक साथ दो नहीं, जिससे शोधन अच्छी तरह हो सके।
आहार देते समय भावों में खूब विशुद्धि बढ़ाये, णमोकार मंत्र भी मन में पढ़ सकते हैं।
प्रतिदिन माला फेरें कि तीन कम नौ करोड़ मुनिराजों के आहार निरन्तराय हो।
14. शोधन खुली प्लेट में हीं करें। जिससे शोधन ठीक तरह से हो।
सूखी सामग्री का शोधन एक दिन पूर्व ही अच्छी तरह करना चाहिये, जिससे ककड़, जीव, मल, बीज आदि का शोधन ठीक से हो जाता है।
अधिक गर्म जल, दूध वगैरह भी न चलाये, यदि ज्यादा गर्म है, और साधु नहीं ले पा रहे हैं, तो साफ थाली के माध्यम से ठंडा करके देवें, यदि द्ध गाय का है, तो ऐसे ही दें। यदि भैंस का है, तो आधे गिलास दूध में आधा जल मिलाकर दें। यदि ऐसा ही लेते हैं, तो बिना जल मिलाये भी दे सकते हैं।
आहार देते समय पात्र के हाथ से ग्रास नहीं उठाना चाहिये, क्योंकि इससे अन्तराय हो जाता है।
सभी के साथ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावों की शुद्धि, इंधन शुद्धि, बर्तनों की शुद्धि भी आवश्यक है।
मुख्य रूप से साधु का लाभान्तराय कर्म एवं दाता का दानान्तराय कर्म का उदय होता है, लेकिन दाता की असावधानियों के कारण भी अधिकांश अंतराय आते हैं।
आहार देते समय दाता का हाथ साधु की अंजलि से स्पर्श नहीं होना चाहिये। यदि अंजलि के बाहर कोई बाल या जीव हटाना है, तो हटा सकते हैं। यदि मुनि, ऐलक, क्षुल्लक है तो पुरुष और आर्यिकाक, क्षुल्लिका है तो महिलायें आदि हटा सकती है।
सामग्री देते समय सामग्री गिरना नहीं चाहिये, कभी-कभी ज्यादा सामग्री गिरने के कारण साधु वह वस्तु लेना बंद भी कर सकते हैं।
गैस चूल्हा, लाईट आदि पड़गाहन के पूर्व ही बंद कर देवें क्योंकि चौकसे साधु लौट सकते हैं।
दाता को मंदिर के वस्त्र पहनकर आहार नहीं देना चाहिए तथा पुरुषों को वरत्र बदलते समय गीली तौलिया पहनकर वस्त्र बदलने चाहिये, क्योंकि अशुद्ध वस्त्रों के ऊपर शुद्ध वस्त्र पहन लेने से अशुद्धि बनी रहती है। महिलाओं एवं बच्चों को भी यहीं बातें ध्यान रखना चाहिये तथा फटे एवं गंदे वस्त्र भी नहीं पहने तथा चलते समय वस्त्र जमीन में नहीं लगने चाहिये।
शुद्धि के वस्त्र बाथरूम आदि से न बदलें। और न ही शुद्धि के वस्त्र पहनकर शौच अथवा बाथरूम का प्रयोग करें। और यदि करें तो वस्त्रों को पूर्ण रूप से बदल कर अन्य शुद्ध वस्त्र धारण करने के पूर्व शरीर का स्नान आवश्यक है। अन्यथा काय (शरीर) शुद्धि नहीं रहेगी।
चौके में कंघा, नेल पॉलिश, बेल्ट, स्वेटर आदि न रखें। एवं चौके में कंघी भी न करें क्योंकि बाल उड़ते रहते हैं।
यदि पात्र मुनि है, तो बगल में टेबिल पहले से रख लें। यदि आर्यिका, ऐलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिका हो तो बड़ी चौकी रख ले। जिस पर सामग्री रखने में सुविधा रहती है।
बर्तनों में वार्निंस एवं स्टीकर नहीं लगा होना चाहिए। वह सर्वथा अशुद्ध है।
जहाँ चौका लगा हो, उस कमरे में लेटरिन, बाथरूम नहीं होना चाहिए। वह अशुद्ध स्थान माना जाता है।
1. A पूजन एवं आहारदान संबंधी निर्देश
2. B. आहारदान की निम्न आवश्यक पात्रतायें एवं निर्देश
3. C निरन्तराय आहार हेतु सावधानियाँ एवं आवश्यक निर्देश