(D) फल, साग की सही प्रासुक विधि एवं सावधानियाँ:

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  1. संयमी या व्रती किसी भी वनस्पति को या तो रस के रूप में, साग के रूप में, शेक (गाढा रस) के रूप में, चटनी के रूप में लेते हैं। फल के रूप में जैसे ग्रहस्थ लेते हैं, वैसे नहीं लेते।
  2. फलों को जैसे नाशपाती, सेव, केला, अंगूर, आलूबुखारा, अमरूद को ५० या १०० ग्राम जल (वस्तुमात्रानुसार) में फलों के टुकड़े बनाकर कढ़ाही में डालकर कटोरे आदि से ढंककर ५-१० मिनिट उबालने से भाप के द्वारा अंदर बाहर प्रासुक हो जायवेंगे।
  3. प्रासुक वस्तु का स्पर्श, रस, गंध, वर्ण बदलना चाहिये। एवं लौकी की सब्जी जैसे मुलायम हो जाये तभी सही प्रासुक मानी जाती है, क्योंकि साधु अधपका हुआ नहीं लेते हैं, कारण कि अंगुल के असंख्यातवें भाग के जीव रहते हैं।
  4. 4. लौकी, परवल, करेला, गिलकी, टिंडा आदि की साग बनायी जाती है, जो उबालने, तलने से प्रासुक होती है।
  5. बीज निकालकर चटनी बनाने से भी प्रासुक हो जाते हैं। लेकिन ज्यादा बड़े-बड़े टुकड़े नहीं करना चाहिये, यदि उबालकर चटनी बांटते हैं, तो टुकड़े भी प्रासुक रहेंगे। जैसे टमाटर, कैथा, अमरूद आदि बीज वाली साग।
  6. खरबूजा, पपीता, पका आम, चीकू इनको छिलका तथा बीज अलग करके शेक (मिक्सी से फेटकर) बना लें, लेकिन इसमे कोई टुकड़ा नहीं रहे। यह टुकड़ा अप्रासुक माना जाता है।
  7. नींबू, मौसम्मी के दानें अप्रासुक होते हैं, अतः उन्हें गर्म न करें। बल्कि रस निकालें वहीं प्रासुक हैं, अनार, मौसम्मी, संतरा, अनानास, नारियल, सेव, ककड़ी, लौकी आदि का रस प्रासुक हो ही जाता है। रस निकालते समय हाथ के घर्षण से प्रासुक हो जाता है। सभी रस कांच के बर्तन, शीशी आदि में रखें, नहीं तो करीब ३० मिनिट बाद से विकृत (खराब) होने की संभावना रहती है। नारियल पानी, काली मिर्च, नमक आदि डालकर चलाने से प्रासुक होता हैं।
  8. कच्ची मूंगफली, चना, मक्का, ज्वार, मटर आदि जल में उबालकर या सेककर प्रासुक करें तथा सूखी मूंगफली, उड़द, मूंग, चना आदि को साबुत नहीं बनायें। क्योंकि इनके बीच में त्रस जीव रह सकते हैं।
  9. किसी भी फल का बीज प्रासुक नहीं हो पाता है. इसीलिये आहार में बीज निकालकर ही सामग्री चलायें। चाहे सब्जी, फल, रस, चटनी आदि कुछ भी हो।
  10. आयुर्वेद शास्त्र का भी कहना है कि अग्नि पक्क, जल और साग-सब्जी अधिक जल्दी हजम हो जाती है। एवं वात, पित्त, कफ का प्रकोप न होने से शरीर निरोग रहता है।
  11. ड्राईफ्रूट जैसे- काजू, बादाम, पिस्ता, मूंगफली के दो भाग करके एवं मुनक्का के बीज रहित करके दें।
  12. किसमिस, मुनक्का को जल में गलाने से उनके तत्व निकल जाते हैं, या तो गलायें नहीं यदि गलायें तो उसका जल अवश्य चलायें। मुनक्का गलने के बाद साधु को देने में भी अच्छा महसूस नहीं होता है।
  13. घुनाअन्न जैसे- चना, बटरा (मटर), मूंग, उड़द आदि तथा बरसात में फफूंदी लगी वस्तु अभक्ष्य होती है।
  14. नमक बाँटकर जल में उबालने से ही सही प्रासुक होता है। लेकिन बाँटकर गरम कर लेने पर भी प्रासुक मान लेते हैं। साधुओ को दोनों तरह का नमक अलग-अलग कटोरी में दिखायें।
  15. कच्चे गीले नारियल को घिसकर बुरादा बनने के बाद गर्म करके बॉटकर चटनी बनाने से ही प्रासुक होता है।
  16. भोजन सामग्री को दूसरी बार गर्म करना, कम पकाना (कच्चा रह जाना) ज्यादा पकाना (जल जाना) यह द्विपक्काहार कहलाता है। यह साधु के लेने योग्य नहीं होता है तथा आयुर्वेद में भी ऐसे भोजन को विषवर्धक माना गया है। चौकों में रोटी कच्ची रहती है, तो उससे पेट में गैस बनती है, ध्यान रखें।
  17. सब्जी वगैरह में अधिक मात्रा में लाल मिर्च का प्रयोग नहीं करें, क्योंकि भोजन में अधिक मिर्च होने पर साधु को पेट में जलन हो सकती है।
  18. आहार सामग्री सूर्योदय से दो घड़ी पश्चात तथा सूर्योदय से दो घड़ी पूर्व के बीच दिन में बनायें, अंधेरे में या रात्रि में बनाने से अभक्ष्य हो जायेगी।
  19. जो साधु यदि बूरा या गुड़ नहीं लेते तो उनके लिये छुहारे का पाउडर या चटनी सामग्री में मिलाकर भी दे सकते हैं।
  20. जीरे आदि मसाले खड़े नहीं डालें अलग से पिसा, सिके ही डालें, साग में पहले से डालने से जल जाते हैं एवं सुपाच्य भी नहीं होते, एवं पेट में गैस बनाते हैं।

21. टमाटर के बीज प्रासुक नहीं होते है और शरीर को नुकसान पहुँचाते है इसलिये टमाटरों का साँस बनाकर आहार में दें।

  1. A पूजन एवं आहारदान संबंधी निर्देश

2. B. आहारदान की निम्न आवश्यक पात्रतायें एवं निर्देश

3. C निरन्तराय आहार हेतु सावधानियाँ एवं आवश्यक निर्देश

4. D फल, साग की सही प्रासुक विधि एवं सावधानियाँ

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