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(E) आहार सामग्री की शुद्धि भी आवश्यक:

(क) जल शुद्धि

  1. कुएँ में जीवानी डालने के लिये कड़े वाली बाल्टी का ही प्रयोग करें, एवं जल जिस कुएँ आदि से भरा है, जीवाभी भी उसी कुएँ में धीरे-धीरे छोड़ें। कडे वाली बाल्टी जब पानी की सतह के करीब पहुँच जावे, तब धीरे से रस्सी को झटका दे। ताकि जलगत जीवों को पीडा न हो।
  2. जब भी चौके में जल छानें, तो एक बर्तन में जीवानी रख में और जब जान भरने जाएँ तो कुएँ में जीवानी छोड़ दें।
  3. पानी छानने का छन्ना ३६ इच लंबा और २४ इंच चौड़ा हो। तथा जिसमें सूर्य का प्रकाश न दिख सके और कपड़े का छन्ना सफेद हो तथा गंदा एवं फटा न हो।
  4. जीवानी डालने के बाद छन्ने को बाहर सूखी जगह में निचोड़ देवें, कभी बाल्टी में न निचोड़े क्योकि बाल्टी में निचोडने से जीवानी के सारे जीव मर आयेंगे।
  5. आहार के योग्य, जल के साधन- कुएँ का, बहती नदी का, झरने का व्यवस्थित कुण्ड/बावडी का, चौड़ी बोरिंग जिसमें जीवानी नीचे तक पहुँच जावे, छत पर वर्षा का जल, हौज में इक‌ट्ठा करके चूना आदि डालने पर भी चौके के लिये उपयोग कर सकते हैं।

(ख) दुग्ध शुद्धि:

स्वच्छ बर्तन में प्रासुक जल से गाय, भैंस के थनों को धोकर, पोंछकर दूध दुहना चाहिये। और दुहने के पश्चात् छन्ने से छानकर (प्लास्टिक की छन्नी से न छाने) उसे ४८ मिनिट में गर्म कर लेना चाहिये। अन्यथा जिस गाय, भैंस का दूध रहता है, उसी के आकार के संमूच्र्छन जीव उत्पन्न हो जाते हैं।

(ग) दही शुद्धि:

शुद्ध दूध को ठंडा करके बादाम, लाल मिर्च, मार्बल का टुकड़ा, मुनक्के, सिक्का या नारियल की नरेटी का एक छोटा टुकड़ा धोकर उसमें डाल दें, जिससे वहीं जम जाता है (यदि वही गाय के दूध का हो, तो साधु को सुपाच्य रहता है) छाँछ बनाते समय उसमें घी न रहे. ऐसी छाँछ अच्छी मानी जाती है।

(घ) घृत शुद्धि:

शुद्ध वहीं से निकले मक्खन को तत्काल अग्नि पर रखकर गर्म करके घृत तैयार करना चाहिये। इसमें से जलीय अंश पूर्ण निकल जाना चाहिये। यदि घी में जल का अंश रहा, तो चौबीस घंटे के बाद अमर्यादित हो जाता है। मक्खन को तत्काल गर्म कर लेना चाहिये जिससे जीवोत्पत्ति नहीं होती। इसी प्रकार मलाई को भी तुरंत गर्म करके घी निकालना चाहिये, कई लोग तीन-चार दिन की मलाई इक‌ट्ठी हो जाने पर गर्म करके घी निकालते हैं, वह घी अमर्यादित ही माना जावेगा। वह साधु को देने योग्य नहीं है। घी घर पर ही बनावे बाजार का शोध का घी कदापि उपयोग न करें।

(ड) गुड़ की शुद्धि:

आजकल चौकों में बाजार का गुड़ छानकर उपयोग में लाते हैं, वह अशुद्ध रहता है। इसलिये कई क्षेत्रों जैसे- म.प्र. के आहार जी, करेली, रहली-पटनागंज, इन्दौर में शुद्ध गुड़ बनता है। वह गुड़ मंगवाकर उपयोग में लाना चाहिये।

गुड़ बनाने में होने वाली अशुद्धियाँ- गन्ना उत्पादन में रासायनिक खाद का प्रयोग होता है और कीट मारने को कीटनाशक दवा डालते हैं। गन्ना काटते समय मजदूर झूठा गन्ना डालते हैं। गन्ना क्रेशर को बगैर फिल्टर के पानी से साफ करते हैं। कड़ाई में गुड़ बनाते समय कीड़े मक्खी आदि बड़े कीट गिरते हैं। कड़ाई में से लोग राद सीरा रोटी से भी निकाल लेते हैं। कड़ाई की सफाई अन्दर पैर रखकर करते है। गुड में रंग मिलाते है। गुड़ को साफ करने चूना डालते हैं। गुड़ बनाने में केमिकल्स का उपयोग करते हैं।

गुड बनाते समय रखने योग्य सावधानियां: (1) खाद गोबर का डालें (2) कीटनाशक नहीं डाले (3) आदमी को पहले गन्ना खाने दें (4) कडाई के ऊपर शेड बनायें और मच्छर जाली से कोटेड करें (5) शेड के अन्दर जूते नहीं पहनें (6) कड़ाई में लकड़ी डालकर उस पर बैठकर सफाई करें (7) रंग नहीं डालें (B) भिन्डी के जूस से साफ करें (9) केमिकल्स का उपयोग नहीं करें।

गुड़ बनाने की विधि- गन्नों को छने जल से धोकर और मशीन को प्रासुक जल से धोकर रस निकलवाकर एक पतीली या कढ़ाई में उबालने रखें उबालने पर एक चम्मच दूध डालकर, ऊपर से मैल निकालकर गुड़ को साफकर लें, इसके बाद उसमें दो चम्मच शुद्ध घी डाल दें। जब गुरु की चासनी खूब गादी हो जाये तब कढ़ाही नीचे उतारकर उसे ठण्डा होने तक चम्मच से चलाते रहें इस तरह शुद्ध गुड़ बन जायेगा।

  1. A पूजन एवं आहारदान संबंधी निर्देश

2. B. आहारदान की निम्न आवश्यक पात्रतायें एवं निर्देश

3. C निरन्तराय आहार हेतु सावधानियाँ एवं आवश्यक निर्देश

4. D फल, साग की सही प्रासुक विधि एवं सावधानियाँ

5. E आहार सामग्री की शुद्धि भी आवश्यक

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