(F) आहार दान में विज्ञान-

  1. धातु और नान स्टिक बर्तन भोजन को विषावत बनाते है इनमें टैफलान होता है जिसके गर्म होने पर ६ विषैली गैसे निकलती है और एल्यूमिनियम, धातु व प्लास्टिक की कुछ मात्रा वस्तुओं में घुल मिल जाती है, विशेषकर चटपटे भोजन टमाटर और ख‌ट्टे पदार्थ से सबसे अधिक एल्यूमिनियम धुलती इससे कभी-कभी वह मस्तिष्क के तंतुओं में जमा हो जाती है इसके अतिरिक्त यह गुर्दे, जिगर, पैराधाइराइड ग्रंथि और अस्थि मज्जा में जमा हो जाता है। (संस्कार सागर नवम्बर 2002)
  2. स्टील के बर्तन से पाचन शक्ति घटती है स्टील लोहे का मिश्र धातु है इसमें निकेल क्रोमियल मैग्नीज मिलाया जाता है। यह याद दास्त कमजोर होने वाली बीमारी एल्माइजर का रोगी बना सकता है। इसके आयन शरीर में पहुँचकर न्यूटोन पर असर डालते हैं।
  3. लोहे की कढ़ाई में खाना पकाने से लोहा आयन के रूप में हमारे शरीर में पहुँच जाता है जिससे एनीमिया रोग की संभावना कम रहती है।
  4. तांबे के बर्तन का उपयोग करने से भोजन एवं जल में ताँबे के तत्व आ जाते है जो कीटाणुओं को नष्ट करते हैं और पाचन क्रिया की दुरस्त रखते हैं।
  5. पीतल के बर्तन में पानी रखने से जीवाणु नहीं पनपते हैं क्योंकि पीतल में ताँबा रहता है जो पानी में घुलकर जैविक व्यवस्था को माट कर देता है ताँबे के कण जीवाणुओं की कोशिकाओं की दीवारों और उनके एजाइयों के काम में बाधा डालते हैं। (दिनकर संदेश)
  6. नीबू का सत (टाटरी) मांसाहारी है- नीबू का सत-फूल साइट्रिक एसिड नीबू सत, नीबू से नहीं बनता यह कई रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा प्राप्त होने वाला यह पदार्थ असंख्य जीवों की हिंसा से बनता है इसके विकल्प में नींबू के रस को धूप में सुखाकर दूसरे दिन उपयोग करे अथवा ताजा रस, टमाटर का सिरका, आँवले का रस, खट्टे फलों का रस, खट्टे शाक-सब्जी, जड़ी बूटी आदि उपयोग कर सकते हैं।

चलित रस की अवधारणा– इजराइल के वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान के माध्यम से यह पता लगाया है कि फलों को 55° सेल्सियस तापमान पर गर्म पानी में डुबकी लगाने से फलों की उम्र एक सप्ताह तक बढ़ जाती है वे फंफूद पेनीसिलम डिजिटेटम और पीटेलीकम के नष्ट हो जाने से सडते नहीं हैं, इन रोगाणु, विषाणु के नष्ट हो जाने के बाद फलों की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ जाती है तथा पालिमर लिगानिन का साव्र रिस करके रक्षा प्रणाली को मजबूत करता है। अब इस वैज्ञानिक अनुसंधान के बाद हमें चितंन इस बात का करना होगा कि फलों को गर्म करने से उनकी अभक्ष्यता मानना वैज्ञानिक आधार कितना उचित होगा, जबकि चलित रस अभक्ष्य उन दलहन तिलहन अन्न, फल आदि पर लागू होता है जो बहुत समय तक रखें रहने के कारण फफूंद पेनिसिलियम और अन्य वैक्टीरिया, विषाणु के पैदा हो जाने से अपना मूल रस/स्वाद बदल देते हैं और उन्हें अभक्ष्य की श्रेणी में अहिंसा की दृष्टि से गर्भित किया जाता है। फलों को गर्म करके अचित्त करना किसी भी प्रकार के रोगाणु, विषाणु फफूंद आदि को पैदा नहीं कर सकता है। यह धारणा गलत है कि फलों को ज्यादा गर्म करने से स्वाद बदल जायेगा। (संस्कार सागर दिसम्बर २००२)

  • जब गर्म पानी से धुले हुए वस्त्रों का सम्पर्क अन्य दूसरे संक्रमित वस्त्रों से होता है तो कुछ ही सेकेण्डों में रोगाणुओं का संक्रमण हो जाता है। यह संक्रमण बहुत तीव्र गति से होता है। (१ सेकेण्ड में करोडों जीवाणु की उत्पत्ति या संक्रमण होता है।) वस्त्र के रंधों एवं तुतुओं के बीच में जीवाणुओं का फैलाव तथा उनका गुण सूत्री उत्पादन संक्रमण की दर को बहुत अधिक विस्तार दे देता है। (संस्कार सागर नवम्बर २००७)
  • सोला की वैज्ञानिकता- वैक्टीरिया, वायरस, विवेक, सैवाल, फफूंद, खमीर, कृमी, लारवा जैसे रोगाणु के संक्रमणों को रोकने के लिए वस्त्र उपकरण, खाद्य सामग्री एवं भोजन शाला की पवित्रता बनाए रखने के लिए जिन विधियों या पद्धतियों का प्रयोग किया जाता हैं उसे सोला कहा जाता है।
  • स्पंज की स्लिपर पहनकर भोजन- पाक क्रिया को सम्पन्न करने वालों को नहीं मालूम है कि स्पंज एक ऐसा पदार्थ है जिसमे सदैव जीवाणु और रोगाणुओं के रहने का आवास मौजूद रहता है। जो एक सेकेण्ड में करोड़ों की संख्या में संक्रमण करते हैं।
  • उपकरणों में कई ऐसे रंग, छिद्र, कटे-फटे, खुर दुरापन होने से उपकरणों में बैक्टीरिया और वायरस अपने आप पैदा होने लगते हैं। बर्तनों को अग्नि या गर्म जल से धोने की प्रक्रिया नहीं की जाएगी तो बर्तन रोगाणु निरोधी नहीं हो सकेंगे।
  • सूखे खाद्य पदार्थों में गीले हाथ, बर्तन, वस्त्र आदि का प्रयोग नहीं करना जैसे आटा, बेसन, मसाले आदि कई निर्मित पदार्थों में नई का जो संस्कार आता है उस कारण से खमीर वैक्टीरिया खाद्य पदार्थों में उत्पन्न हो जाते हैं। (संस्कार सागर सितम्बर १९९९)
  1. A पूजन एवं आहारदान संबंधी निर्देश

2. B. आहारदान की निम्न आवश्यक पात्रतायें एवं निर्देश

3. C निरन्तराय आहार हेतु सावधानियाँ एवं आवश्यक निर्देश

4. D फल, साग की सही प्रासुक विधि एवं सावधानियाँ

5. E आहार सामग्री की शुद्धि भी आवश्यक

6. F आहार दान में विज्ञान

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