(G) भोमभूमि का सोपान-आहार दान
वस्त्र कैसे होना चाहिए– एक वस्त्र पहनकर, फटा वरत्र, जीर्ण, बहुत पुराना, छेद सहित मलिन वस्त्र, काला, ऊन से बना हुआ, जल गया हो, चूहों के द्वारा कतरा गया, गाय-भैंस द्वारा खाया गया धुये के वर्ण वाला, अत्यन्त छोटा हो आदि इन वस्त्रों को पहिल कर आहार दान नहीं देना चाहिये धोती दुपट्टे अखण्ड वस्त्र माने जाते है उन्हें ही पहिन कर आहार दान दें। (नोट:- रेशम, टेरीकॉट, टेरीलीन, बूली, सिलकर, मखमल, जानी एवं कोरे वस्त्र (बिना धुले), जालीदार आदि वस्त्र नहीं पहनें और कलावा (धागा) आदि यदि पहने हो तो उन्हें गीला करके ही शुद्ध कपड़े पहने।) (उमा स्वामी श्रावकाचार ५५)
द्विदल क्या है– दो दल वाले अनाज/दाल (मूंग, उड़द, चना, मोंठ, अरहर, मसूर आदि अन्न) जिनकी दो दालें-फाई होती हैं, ऐसे अन्न वहीं, छाछ (कच्चा, पक्का) के साथ देने से जीभ की लार के माध्यम से प्रस जीव पैदा होते हैं, और नष्ट होते हैं। जिन दालों का आटा बनता है, वे द्विवल होते हैं, जिनका तेल निकलता है, जैसे मूंगफली, बादाम आदि के साथ द्विदल नहीं होता है।
आहार ही औषधि–
2. B. आहारदान की निम्न आवश्यक पात्रतायें एवं निर्देश
3. C निरन्तराय आहार हेतु सावधानियाँ एवं आवश्यक निर्देश
4. D फल, साग की सही प्रासुक विधि एवं सावधानियाँ
5. E आहार सामग्री की शुद्धि भी आवश्यक
6. F आहार दान में विज्ञान
7. G भोमभूमि का सोपान-आहार दान
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