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(G) भोमभूमि का सोपान-आहार दान

  • साधु आहार के लिए निकल रहे हो अथवा आहार कर रहे हो, और शवयात्रा निकाल रही हो तो साधु में निवेदन करके कि आगे रास्ता शहबड है, उनसे दूसरी गली में मुडने के लिए निवेदन करें और यदि आहार चल रहे हैं, तो बाजे की आवाज या रोने की आवाज आ रही हो तो थाली बजाना या म्युजिक आदि प्रारंभ करवा सकते है, जिससे साधु का अंतराय या अलाभ नहीं होगा। बालक/बालिका आठ वर्ष के उपरांत आहार दे सकते हैं और विवेकशील समझदार नहीं है तो १६ वर्ष तक के होने पर भी नहीं दिलाना चाहिए।
  • विवेकी दाता अतिरिक्त सोला के कपड़े भी रखें क्योंकि पहने हुए वस्त्र यदि अशुद्ध हो गये हो उनका प्रयोग किया जा सकता है अथवा अन्य धावक जो आहार देते के इच्छुक हैं वे भी उन वस्त्रों का प्रयोग कर सकते हैं।
  • आहार देते समय जमीन पर यदि कोई वस्तु गिर जाती है तो विवेकी दाता उसे उठाकर एक और कर देता है व पुनः स्वच्छ प्रासुक जल से हाथ धोकर ही आहार देने में प्रवृत्त होता है।
  • चौके में चींटी आदि नहीं आये उसके लिये कर्पूर, हल्दी की चारों ओर बाउन्ड्री बना दें।
  • जिनका हरी का त्याग हो, वह गन्ने का रस नहीं ले सकता है। जिसके मीठे का त्याग हो, वह गन्ने का रस ले सकता है। वह रसों का त्यागी छाछ ले सकता है, क्योकि छाछ रस में नहीं है, रस की यदि चासनी बन जाती है, तो हरी में नहीं रहेगा।
  • कोई भी पदार्थ कोशिश भर हाथ से नहीं वे धम्मच से वे क्योंकि उस पदार्थ पर हाथ की ऊष्मा का प्रभाव पड़ता है।
  • कभी भी एक हाथ से अहार नहीं दें, दोनों हाथों से दें अथवा दायें हाथ में बायें हाथ को लगा कर दे।
  • चौके में पाटा आदि घसीटे या सरकायें नहीं उठाकर रखें क्योंकि घसीटने से जीव हिंसा हो सकती है।
  • वस्तु खात्म होने पर दूसरी वस्तु चलाना प्रारंभ कर दें यह नहीं कहे कि खत्म हो गई।
  • चौके में मारो, काटो, चीरो, चूरा- चूरा कर दो, टुकड़े टुकडे कर दूँ, पीस लो, गर्म कर लें, गुच्च दो, रगड़ दो, मसल दूँगा आदि हिंसात्मक एवं अशोभनीय शब्दों का भी प्रयोग न करें। ऐसा बोलने से साधु अंतराय कर सकते हैं।

वस्त्र कैसे होना चाहिए– एक वस्त्र पहनकर, फटा वरत्र, जीर्ण, बहुत पुराना, छेद सहित मलिन वस्त्र, काला, ऊन से बना हुआ, जल गया हो, चूहों के द्वारा कतरा गया, गाय-भैंस द्वारा खाया गया धुये के वर्ण वाला, अत्यन्त छोटा हो आदि इन वस्त्रों को पहिल कर आहार दान नहीं देना चाहिये धोती दुपट्टे अखण्ड वस्त्र माने जाते है उन्हें ही पहिन कर आहार दान दें। (नोट:- रेशम, टेरीकॉट, टेरीलीन, बूली, सिलकर, मखमल, जानी एवं कोरे वस्त्र (बिना धुले), जालीदार आदि वस्त्र नहीं पहनें और कलावा (धागा) आदि यदि पहने हो तो उन्हें गीला करके ही शुद्ध कपड़े पहने।) (उमा स्वामी श्रावकाचार ५५)

द्विदल क्या है– दो दल वाले अनाज/दाल (मूंग, उड़द, चना, मोंठ, अरहर, मसूर आदि अन्न) जिनकी दो दालें-फाई होती हैं, ऐसे अन्न वहीं, छाछ (कच्चा, पक्का) के साथ देने से जीभ की लार के माध्यम से प्रस जीव पैदा होते हैं, और नष्ट होते हैं। जिन दालों का आटा बनता है, वे द्विवल होते हैं, जिनका तेल निकलता है, जैसे मूंगफली, बादाम आदि के साथ द्विदल नहीं होता है।

आहार ही औषधि

  • आहार के बाद जब साधु अंजलि छोड़ने के बाद कुल्ला करें तो उन्हें लौंग, हल्दी, नमक, माजुफल, शुद्ध सरसों का तेल, शुद्ध मंजन, अमृतधारा, नीबू का रस आदि अवश्य दें।
  • गेहूँ और चना की बराबर मात्रा वाले आटे की रोटी में अच्छी मात्रा में घी मिलाकर देने से तथा सादा रोटी चोकर सहित देने से स्वास्थ्य के लिये लाभदायक होती है।
  • एक जग पानी में अजवाइन डालकर उबाला हुआ पानी जब साधु जल लेते हैं, उसकी जगह चलाने से गैस के रोगों में आराम मिलता है।
  • आहार के अंत में सौंफ, लौंग, अजवाईन और नमक, सौंठ, हल्दी तथा गुड़ की डली, नींबू का रस अवश्य चलायें। सभी वस्तुएँ मौसम, ऋतु के अनुसार मर्यादित भी होनी चाहिए। एवं मसाले पूर्ण रूप से पिसे हो, तथा इनमें सकरे हाथ न लगायें। जब ये वस्तुयें चलाये तो चम्मच से पहले खाली प्लेट में शोधन करके चलायें और यदि साधु नहीं लेते है तो वापिस उसी में डाल दें भूलकर भी सकरे हाथ न लगायें क्योंकि सकरे हाथ लगा देने से उस पदार्थ की मर्यादा खत्म हो जाती है।
  • मूंग की दाल छिलके वाली ही बनायें तथा दाल का पानी भी घी मिलाकर देने से लाभदायक होता है।
  • जल एवं दूध के आगे पीछे खट्टे पदार्थ, दही, रस आदि भी न चलायें।
  1. A पूजन एवं आहारदान संबंधी निर्देश

2. B. आहारदान की निम्न आवश्यक पात्रतायें एवं निर्देश

3. C निरन्तराय आहार हेतु सावधानियाँ एवं आवश्यक निर्देश

4. D फल, साग की सही प्रासुक विधि एवं सावधानियाँ

5. E आहार सामग्री की शुद्धि भी आवश्यक

6. F आहार दान में विज्ञान

7. G भोमभूमि का सोपान-आहार दान

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