राजस्थान एवं गुजरात प्रांत में देखा जाता है कि जहाँ कुएँ नहीं है, वहाँ श्रामक मंदिर में या अपने घरों में लगभग ८-१० फीट चौडा और २०-२५ फीट गहरा जमीन के अंदर एक कुआँ जैसा खोद लेते हैं, जिसे टाँका कहते हैं। उसे भरने से पहले अच्छे ढंग से साफ करके (धों पोछकर) एक दो बार वर्षा हो जाने पर छत को धोकर रात्रि के समय उस छत से वर्षा का पानी पाइप से टाँकी में उतार कर भर देते हैं। पानी भरने से पूर्व एक दो घड़े पूजा भरकर रख देते हैं। उस कुएँ (टाँकी) के उपर एक कमरा भी बना देते हैं। जिससे टाँका पर धूप न पड़े और उसे ऊपर से ढक भी देते हैं, ऐसा पानी कम से कम एक वर्ष तक खराब नहीं होता है। वह पानी सूर्योदय के समय या सूर्यास्त के समय निकालते हैं। पानी छानकर जिवाणी उसी टॉकी में डाल देते हैं। ऐसी व्यवस्था अन्य सभी जगह भी की जा सकती है। ऐसा पानी स्नान, अभिषेक, पूजन एवं आहार बनाने के कार्य में लाया जा सकता है। (साभार- पूजा विधि विज्ञान)
कुओं में पानी बढ़ता है सोकपिट से:
यदि आप वर्तमान में पानी की समस्या से बचना चाहते हैं तो अपने-अपने घरों में सोकपिट बनवाएँ।
नोट: सोकपिट को ऊपर से चीपों को अच्छे से पूरी तरह ढकवायें ताकि उसमें मच्छर न पनप सकें ।
अब इस गड्डे में छत या आँगन का बरसाती पानी बहाकर लायें। छत का पानी इस गड्डे में तीन या चार इंच की मोटी प्लास्टिक पाइप से उतारा जा सकता है। पाइप लाईन को गड्डे को पक्का किया जा सकता है।
इस कार्य में अधिकतम १,५०० रु. से लेकर ३००० रूपये तक का खर्च आता है।
१. प्लास्टिक पाईप लगभग २०/- या २५/- फुट मूल्य वाला उपयोग में लें।
२. दो ठिलिया रेत।
३. दो ठिलिया गिट्टी।
४. एक बोरी कोयला।
५. ईंट लगभग ४०० एवं मजदूरी।
१. इससे भू-जल स्तर बढ़ने लगता है।
२. आपकी बोरिंग वा आसपास खुदे हुए कुओं का जल स्तर अपने आप बढ़ने लगता है।
१. अपने घरों में सार्वजनिक स्थानों पर सोकपिट अवश्य बनवायें। यह कार्य बरसात के पहले करें।
२. जहाँ भी पानी को व्यर्थ बहता देखें तो उसे रोकें या रोकने के लिए प्रेरित करें।
(साभार- लाला रामस्वरूप रामनारायण एण्ड संस कलैण्डर २००८ जबलपुर म.प्र.)
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