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आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागरजी महाराज परिचय जारी…
सन् २००६ में सम्पन्न भगवान बाहुबली महामस्तकाभिषेक महोत्सव:-
सन् २००६ में सम्पन्न भगवान बाहुबली महामस्तकाभिषेक महोत्सव में सम्मिलित होने हेतु सन् २००४ में सलूम्बर (राज.) में आचार्यश्री से महोत्सव में सान्निध्य प्रदान करने हेतु प्रार्थना की गई। तदनुसार ४ दिसम्बर २००४ में आचार्य श्री ने ससंघ श्रवणबेलगोल की ओर मंगल बिहार किया। मार्ग में तीर्थो की वन्दना एवं गाँवों और नगरों में धर्मप्रभावना करता हुआ संघ मार्गस्थ अनेक प्रान्तों से गुजरता हुआ लगभग ७ माह के बिहार के पश्चात सन् २००५ के जुलाई माह में श्रवणबेलगोला पहुँचा। इस वर्ष के चातुर्मास के पश्चात सन् २००६ के फरवरी माह में सम्पन्न हुए भगवान बाहुबली के महामस्तकाभिषेक के आचार्यश्री एवं संघ के अतिरिक्त अन्य आचार्य संघ एवं लगभग २५० साधुवृन्द साक्षी बने। महोत्सव में तत्कालीन राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति तथा अनेकों प्रान्तीय राजनेताओं ने आचार्यश्री का मंगल आशीर्वादप्राप्त किया। महोत्सव की सम्पन्नता होने पर श्रवणबेलगोल से तमिलनाडू की ओर बिहार किया। मार्ग में बेंगलुरु महानगर में लगभग १ माह रुके और दो पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएँ आचार्य श्री के ससंघ सान्निध्य से सम्पन्न हुई। तमिलनाडू में स्थित श्री कुन्दकुन्दाचार्य देव की तपोभूमि पोन्नूरमलै में संघ ने सन् २००६ का चातुर्मास प्रवास बिताया। चातुर्मास के पश्चात् पाण्डीचेरी के लिए बिहार किया। पाण्डिचेरी में पंचकलायणक सम्पन्न कर वहाँ से धर्मस्थल कर्नाटक की ओर संघ का बिहार हुआ। वहाँ भगवान बाहुबली का १२ वर्षीय महामस्तकाभिषेक (द्वितीय बार) कराकर मुडबद्री तीर्थ की वन्दना करते हुए कनकगिरी तीर्थ पर आचार्य संघ के सान्निध्य में एक पंचकल्याणक हुआ। कनकगिरी से श्रवणबेलगोल आकर सन् २००७ का वर्षायोग किया। इस वर्षायोग में आचार्य देवीनन्दीजी महाराज भी ससंघ विद्यमान थे। चातुर्मास के अनन्तर आचार्यश्री ने तीर्थराज श्री सम्मेदशिखरजी की वन्दना हेतु श्रवणबेलगोल से मंगल बिहार किया। कर्नाटक और महाराष्ट्र प्रान्त के गाँव व नगरों में एक महती धर्मप्रभावना हई। इचलकरंजी के निकट ऐनापुर में चारित्र चक्रवर्ती आचार्यश्री शान्तिसागरजी के परम विद्वान शिष्य आचार्य कुन्थुसागरजीके स्मारक में चरण स्थापना कार्य सम्पन्न कर बीजापुर में संघ का पदार्पण हुआ। यहाँ सन् २००५ में प्राचीनतम भगवान महावीर की प्रतिमा के लिए विशाल नूतन जिनालय का शिलान्यास आचार्यश्री की उपस्थिति में हुआ था उसी जिनालय का पंचकल्याणक करवाकर संघ ने आगे बिहार किया।
• कुन्थलगिरी तीर्थ पर संघ सान्निध्य में पर्वत के नीचे क्षेत्र कमेटी ने आचार्यश्री ससंघ सान्निध्य में २० वीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती श्री शान्तिसागरजी महाराज की प्रतिमा स्थापना कराई।
• यह कुन्थलगिरी सिद्धक्षेत्र आचार्यश्री का सल्लेखना साधना का पावन स्थळ भी है जहाँ १९५५ ईस्वीमें आचार्यश्री शान्तिसागरजी की समाधि सल्लेखना पूर्ण हुई थी।
• महाराष्ट्र प्रान्त के अनेकों नगरों में धर्म प्रभावना करते हुए आचार्यश्री नागपुर महानगर ससंघ पधारे। यहाँ पर भी संघ सान्निध्य में विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। आगे रामटेक तीर्थ के दर्शन कर
• छत्तीसगढ़ प्रान्त में संघ का प्रवेश हुआ। राजनांदगाँव में संघ का प्रवास रहा और वहाँ छत्तीसगढ़ के मुख्यमन्त्री सपत्नीक संघ दर्शनार्थ आये एवं आशीर्वाद प्राप्त किया। अन्य भी राजनेताओं ने आचार्यश्री के दर्शन कर स्थान-स्थान पर आशीर्वाद प्राप्त किया। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर होते हुए झारखण्ड प्रान्त में सम्मेद शिखरजी की ओर संघ के कदम बढ़ चले। राँची हजारीबाग होते हुए आचार्यश्री ससंघ ईसरी पहुँचे ईसरी से चलकर ४ जुलाई २००७ के मंगल प्रभात में मधुवन पहुँचकर लक्ष्य प्राप्ति के साथ तीर्थराज की तलहटी में आकर संघ ने आनन्द की अनुभूति की। इस प्रकार श्रवणबेलगोल से सम्मेदशिखर तीर्थराज तक लगभग ३००० किमी. की सुदीर्घ यात्रा २२९ दिन में पूर्ण हुई।
• बिहार प्रान्त के तीर्थो की वन्दना और गया नगर के प्रवास के पश्चात् ३ मार्च २०१० को बंगाल प्रान्त के महानगर कोलकाता की ओर संघ का मंगल बिहार:-
• सन् २००८ का वर्षायोग तीर्थराज पर ही सम्पन्न हुआ। इस बीच अनेक कार्यक्रमों के साथ दीक्षा एवं सल्लेखना और तीर्थवन्दना भी संघ ने सम्पन्न की।
• तत्पश्चात् गिरीडीह होकर चम्पापर तीर्थ के लिए संघ का बिहार हुआ। मन्दारगिरी तीर्थ पर संघ सान्निध्य में वेदी प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। सन् २००९ की महावीर जयन्ती भागलपुर में करके चम्पापुर सिद्धक्षेत्र पर संघ का आगमन हुआ ओर इस वर्ष का चातुर्मास यहीं पर अत्यन्त प्रभावना के साथ सम्पन्न किया। अचार्यश्री की प्रेरणा से तेरहपन्थी एवं बीसपन्थी दोनों कोठियों में कुछ नूतन एवं जीर्णोद्धार के कार्य सम्पन्न हुए।
• चातुर्मास के पश्चात् राजगृही सिद्धक्षेत्र की वन्दना का लक्ष्य लेकर आचार्यश्री ने २ नवम्बर को ससंघ मंगल बिहार किया। मार्ग में गुणावा पावापुरी जी तीर्थ की वन्दना करते हुए कुण्डलपुर संघ पहुँचा।
• ५ दिवसीय प्रवास यहाँ के नद्यावर्त महल एवं जिनालय परिसर में हुआ। वहाँ से राजगृही सिद्धक्षेत्र की वन्दना करते हुए आचार्यश्री ससंघ गया नगर पहुँचे। यहाँ संघ ने शीतकालीन २ माह का प्रवास किया।
• संघ सान्निध्य में सर्वतोभद्र विधान एवं संघस्थ मुनि श्री देवेशसागरजी महाराज की संल्लेखना साधना महोत्सव सम्पन्न हुआ। इस प्रकार बिहार प्रान्त के तीर्थो की वन्दना और गया नगर के प्रवास के पश्चात् ३ मार्च २०१० को बंगाल प्रान्त के महानगर कोलकाता की ओर संघ का मंगल बिहार हुआ। लगभग ५०० कि.मी. की यात्रा करते हुए आचार्यश्री ससंघ का ५ अप्रैल २०१० को बेलगछिया में ऐतिहासिक शोभायात्रा के साथ मंगल प्रवेश हुआ।
• सन् २०१० का चातुर्मास कोलकाता के भव्य श्री आचार्य श्री वर्धमान सागर जीवन परिचय काशी बनारस, श्रेयान्सनाथ स्वामीकी सिंहपुरी व भगवान सुपार्श्वनाथ व पद्मप्रभ स्वामी की जन्म नगरी के पुण्य परमाणु का स्पर्श करते हुए वर्ष २०१२ की होली आदिनाथ स्वामी की तपोभूमि प्रयाग में भक्ति के रंग से खेली।
प्रयाग में परम विदुषी गणिनी आर्यिका सुपार्श्वमति माताजी के स्वास्थ्य गिरने के समाचार जान कर आचार्यश्री ने अयोध्यादि जन्म भूमि कि यात्रा को निरस्त कर दिया माताजी को लक्ष्य बनाकर जयपुर बड़के बालाजी की और जानेवाले मार्ग की ओर कदम बढ़ाये। विहार करते हुए संघ सोनागिर सिद्धक्षेत्र के समीप दतिया नगर में विराज रहा था। श्रेष्ठी हुलासजी सबलावत, कवरीलालजी काला आदिगुरुभक्त मण्डल आचार्यश्री के पूज्यपाद में पहुँचा। आर्यिका सुपार्श्वमति जी के रत्नत्रय व स्वास्थ्य की स्थिति गंभीर है जानकारी दी।
पार्श्वनाथ दिगंबर जैन उपवन मन्दिर बेलगछीयाँ जी में अभूतपूर्वधर्मप्रभावना के साथ सम्पन्न हुआ। कोलकाता के ऐतिहासिक चातुर्मास में शिक्षण शिविर एवं ९ दिगम्बर दीक्षाएँ, परमपूज्य मुनि श्री १०८ यशस्वीसागरजी महाराज के समाधिनिधन तथा हावड़ा मन्दिरजी के ऐतिहासिक पंचकल्याण महोत्सव से अभूतपूर्व धर्म प्रभावना के साथ आचार्य संघ ने कोलकाता वासियों के दिलों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। यहाँ से मंगल बिहार कर आचार्य संघ श्री सम्मेदशिकरजी पहुँचें जहाँ सर्वाधिक प्राचीन एवं यात्री सेवा में समर्पित संस्था श्री बंगाल बिहार उड़िसा दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा संचालित श्री दिगम्बर जैन तेरहपन्थी कोठी में संघ का चातुर्मास स्थापित हुआ।
सन् २०११ का यह चातुर्मास स्वर्ण अक्षरों से अंकित होगा:
क्योंकि आचार्य श्री १०८ वर्धमानसागरजी महाराज के मार्गदर्शन एवं सान्निध्य में ही पूज्य आचार्य श्री १०८ अभिनन्दनसागरजी महाराज के शिष्य पूज्य मुनि श्री १०८ अमूल्य सागरजी महाराज तथा पूज्य आचार्य श्री १०८ विरागसागरजी महाराज के शिष्य पूज्य श्री १०८ विनिश्चय सागरजी अपने तीन शिष्यों सहित तथा आर्यिका श्री १०५ विशाखाश्री माताजी ने भी अपना चातुर्मास यहाँ स्थापित किया। तीर्थराज सम्मेद शिखर वर्षायोग सानन्द सम्पन्न होने के पश्चात आचार्य श्री ने संघ सहित बुन्देलखण्ड की यात्रा के लिए प्रस्थान किया। अनेक ग्रामों – नगरों में जिनालयों के दर्शन करते हुए भव्य जीवों को मोक्षमार्ग की राह दिखलाते हुए लक्ष्य की और कदम बढ़ाते जा रहे थे। गुरुवरों का विहार तीर्थवन्दना, गुरुवन्दना अथवा धर्म प्रभावना के सदुदेश्य से होता है। विहार में संघ की व्यवस्था के लिए धनदान, श्रमदान की आवश्यकता होती है। कोलकाता, उदयपुर, निवाई, पारसोला धरियाबाद, भोज (कर्नाटक) भीण्डर, सेलम, जोबनेर, जयपुर, अहमदाबाद आदि अनेक नगरों के श्रावक जन उपरोक्त भूमिका को निभाने में संलग्न थे। तीर्थकरों की जन्मभूमि निर्वाणभूमि अथवा तपोभूमि के दर्शन, पूजन और भक्ति पुाजन करने में अहम् भूमिका निभाते है। संघ विहार करता हुआ २३ फरवरी २०१२ को चन्द्रप्रभ स्वामी की जन्म भूमि चन्द्रपुरी, पार्श्वनाथ स्वामी की कहते है इलेक्ट्रानिक मिडिया के दुरुपयोग है तो सदुपयोग भी हैं। कांन्फ्रेन्स… विडियों के माध्यम से आचार्य श्री ने माँ सुपार्श्वमति माताजी को सम्बोधन देकर चेतना को तेज कर दिया। स्थिति गिरती जा रही थी। आचार्य संघ कल्पना भी नहीं कर सकता था कि हमारे जयपुर पहुँचने के पहले ही माताजी स्वर्गस्थ हो जाएँगी। दतिया से विहार कर संघ सोनागिर क्षेत्र के मोड़ पर प्रातः ६.३० दि. १३ एप्रील २०१२ को पहुँचा ही होगा कि जयपुर से फोन द्वारा सूचना मिली कि माताजी का स्वास्थ्य बहुत ही नाजुक है लेकिन माताजी की समता बरकरार है। आचार्य श्री ने विडियो कान्फ्रेन्स के द्वारा णमोकार मंत्र आत्म सम्बोध देकर सावधान किया। संघ सोनागिरजी पहुँचा होगा कि प्रातः ९.३० को समाचार प्राप्त हुआ कि माँ सुपार्श्वमति जी ने अन्त समय तक समताभाव व पंच परमष्ठी में उपयोग लगाकर प्राणों का विसर्जन किया। सोनागिर क्षेत्र की वन्दना कर संघ चंदेरी खन्दारगिरि पहुँचा। आचार्य श्री १०८ विद्यासगरजी महाराज की ज्येष्ठ व श्रेष्ठ आर्यिका श्री गुरुमति जी ने संघ सहित आचार्य वंदना कर आगवानी की २-३ दिन तत्त्व चर्चा व पूर्वाचार्यों के पावन प्रसंगों की चर्चा कर सुखद अनुभूति का अनुभव किया।
आचार्य संघ ने ललितपुर, टीकमगढ़, पपौरा, आहार जी आदि बुन्देलखण्ड के क्षेत्रों की वंदना कर जैन संस्कृति का अवलोकन कर आनन्दानुभूति की। २०१२ का २३ वाँ आचार्य पदारोहण समारोह आहार जी अतिशय क्षेत्र पर शांतिनाथ-कुन्थुनाथ अरहनाथ के मस्तकाभिषेक के साथ क्षेत्र कमेटी ने भव्यता से सम्पन्न किया। आचार्य श्री शिवसागर महाराज ने सन् १९६४ वर्षायोग श्री क्षेत्र पपोराजी में सम्पन्न किया था। सुखद संयोग से २०१२ वर्ष का पावन वर्षा योग बुन्देलखण्ड की धरा पपौरा में नैतिक संस्कार, धार्मिक गोष्ठी, पूजा अनुष्ठान के माध्यम से सम्पन्न हुआ। वर्षायोग के पश्चात् संघ नवागढ़, फलहोड़ी, बड़ा गाँव, भगवा, द्रोणगिरि, शाहगढ़, नैनागिरि आदि क्षेत्रों की वंदना करता हुआ कुण्डलपुर बड़े बाबा के श्री चरणों में पहुँचा। भीषण गर्मी लेकिन वर्धमान सरोवर की शीतल वायु बड़े बाबा की भक्ति की ठंडक ने संघ को राहत दी। मुनि सौम्य सागर जी महाराज की १० जुलै २०१३ शाम ७.१३ को होनेवाली समाधि ने क्षेत्र के आसपास ग्राम नगर वासियों को लम्बे अर्से के बाद मुनिश्री की समाधि देखने का सुअवसर प्राप्त कराया। क्षेत्र के अतिशय ऊर्जावान होने से आचार्य श्री वर्धमान सागरजी महाराज के चरण पूज्य बड़े बाबा के श्री चरणों में २०१३ के वर्षायोग के लिए रुक गये। ‘वर्षायोग में समन्वय, सामंजस्य, सदाचार, नैतिकता, मैत्री, त्याग व अध्यात्म के सन्देशों से सम्पूर्ण क्षेत्र गूंज उठा। ‘इतिहास में प्रथम बार १००८ मदनगंज किशनगढ़ के गुरुभक्तो ने २०१४ का वर्षायोग करने की प्रार्थना की। वर्षायोग के बाद संघ सोनागिर, ग्वालियर, आगरा, मथुरा, तिजारा आदि अनेक क्षेत्रो की वन्दना एवं व अनेक गुरुजनों से मिलन करता हुआ दिल्ली पहुंचा।आचार्य श्री विद्यानंदजी महाराज ९० वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, आत्मानुभव के गहरे सन्त है, आचार्य श्री ससंच उनकी चरण वंदना करने के आचार्य श्री वर्धमान सागर जीवन परिचय लिए २०१४ को कुंदकुंद भारती दिल्ली में पहुँचे। आचार्य श्री विद्यानंद जी को बहुत अच्छा लगा। कुंदकुंद भारती दिल्ली में पूर्व इतिहास में कभी महावीर जयन्ती नही मनायी गई थी लेकिन प्रथम बार आचार्यश्री के साथ २०१४ की महावीर जयन्ति गौरव पूर्ण तरीके से सम्पन्न हुई। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने पूर्व स्मृति को ताजा करने के लिए पुरानी दिल्ली के प्राचीन मंदिर के दर्शनार्थ प्रस्थान किया। आचार्य श्री, मुनि अपूर्व सागर जी व हितेन्द्रसागर जी के साथ लाल मंदिर दिल्ली गेट, पहाड़ी धीरज, चाँदनी चौक दरियागंज के मंदिरों के दर्शन करते हुए राजपुर रोड मंदिर में पहुंचे। २ दिन के प्रवास में राजपुर रोड मंदिर सन्तमिलन के लिए जंक्शन बन गया लगभग २५ सन्तों ने आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के दर्शन चरण वन्दन कर अपने आप को धन्य महसूस किया। अष्टापद गुड़गाँव नवीन विकासोन्मुख क्षेत्र है। आचार्य श्री के सान्निध्य और अन्य संघों के साथ प्रतिष्ठा महोत्सव २० अप्रैल से २६ अप्रैल २०१४ तक सम्पन्न कर श्याम नगर जयपुर आदिनाथ मंदिर की पंचकल्याणक प्रतिष्ठिा के लिए २६ अप्रैल २०१४ को प्रयाण किया। १५ से १९ मई तक होनेवाले पंच कल्याणक के बाद मदनगंज किशनगढ़ में ८ जून २०१४ को मंगल प्रवेश किया। सन् २०१५ में ४ फरवरी को भावी (ग्राम) जोधपुर, राजस्थान में श्री बाहुबली भगवान की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा ५ से ११ फरवरी के लिए आचार्य संघ का मंगल प्रवेश हुआ। भावी से विहार कर संघ ने आ. गुणमती माताजी की समाधि स्थली निमाज (ग्राम) में १४ फरवरी को प्रवेश किया,यहाँ आचार्य श्री के कर कमलो से ५ दिक्षाएँ सम्पन्न हुई। २० फरवरी का बड़ा ही अलौकिक दृश्य था त्रिमूर्ति प्रतिमा के समक्ष खुले प्रागण में। अब संघ में साधुओं की संख्या हो गई ३३। निमाज से संघ प्रस्थान कर चारित्र चक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री शान्ति सागर जी एवं आचार्यश्री शांतिसागरजी (छाणी वाले) की संयुक्त चातुर्मास स्थली ब्यावर नगर में २४ फरवरी को पहुँचा। नसियां जी में अल्प प्रवास के दौरान वृहद भक्तामर महामण्डल विधान का आयोजन हुआ उसकेआचार्य श्री वर्धमान सागर जीवन परिचय बाद अजमेर नगर में २२ मार्च को प्रवेश हुआ, अल्प प्रवास में आचार्य संघ ने नगर के जिनालयों के दर्शन कि, एवं सोनी जीकीनसिया में आचार्य श्री के सान्निध्य में १० दिवसीय सहस्रनाम विधान की आराधना की गई एवं लघु पंचकल्याणक ५ अप्रैल को बड़े-घड़े की नसियाँ में सम्पन्न कराया, प्रतिदिन आचार्य संघ के प्रवचनों का लाभ समाज ने प्राप्त किया। महावीर जयंती का कार्यक्रम भी सानंद सम्पन्न हुआ। अजमेर से विहार कर संघ ने शिवाजी नगर, किशनगढ़ में १९ से २३ अप्रैल तक होने वाली पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के लिए प्रवेश किया। भगवान पार्श्वनाथ का पंचकलायणक हुआ एवं रत्नों की प्रतिमाओं से निर्मित सहस्रकूट जिनालय की स्थापना करवाई। किशनगढ़ की आदिनाथ कॉलोनी में एका एक दीक्षा महोत्सव का संयोग बैठा, दिनांक २९ अप्रैल को ७ दिक्षाएँ सम्पन्न हुई, संघ में वृद्धि होते हुए ४० साधु पूर्ण हुए। आर्यिका श्री १०५ विज्ञानमती माताजी के गृहस्थ अवस्था के पिताजी श्री बाबुलाल जी की इन ७ दिक्षाओं में मुनि दीक्षा हुई थी, जिनका नाम यश सागर जी रखा गया था। ७ दिनों में मुनि श्री १०८ यश सागरजी की समाधि आचार्य श्री के निर्यापकत्व में हुई। धर्मनगरी किशनगढ़ से ३ किलोमीटर दूरी पर स्थित आचार्य श्री की प्रेरणा से निर्मित आचार्य श्री शांतिसागर स्मारक में संघ का प्रवेश हुआ, अत्यन्त विशालता को लिए हुए स्मारक के कार्य ने प्रगति पकड़ी। ग्रीष्मकालीन प्रवास के दौरान भगवान शांतिनाथ का लघु पंचकल्याणक २० मई को सम्पन्न हुआ, अनेक ग्रन्थों का स्वाध्याय चला। पूर्वाचार्यों से दीक्षित साधुवृन्द के चित्र एवं आचार्य शांतिसागर जी महाराज के जीवन चरित्र के चित्र स्मृति स्वरूप लगाए गए एवं चरण छत्री में चरणों की स्थापना की गई। अब २०१५ के चातुर्मास हेतु संघ ने किशनगढ़ से निवाई की तरफ विहार दिया, चातुर्मास की स्वीकृति मिलते ही निवाई नगर में हर्ष की लहर दौड़ उठी, कई वर्षों से सूखे पड़े कुँओं में पानी आ गया। शुभ संकेतों के साथ चातुर्मास हेतु संघ का निवाई में १३ जुलाई को मंगल प्रवेश हुआ। १७ जुलाई को २६ वाँ आचार्य पदारोहण दिवस मनाया गया। धर्मनगरी निवाई में चातुर्मास के दौरान अभूतपूर्व धर्म प्रभावना हुई। इन्द्रध्वज विधान के समय २०१८ में सम्पन्न होने वाले भगवान बाहुबली के महामस्तकाभिषेक हेतु लगातार तीसरी बार आचार्य संघ को सान्निध्य प्रदान करने हेतु निमंत्रण आया। गणमान्य श्री अशोक जी पाटनी (आर. के. मार्बल) एवं एन. के. सेठी कार्याध्यक्ष जितेन्द्र जी, अशोक जी सेठी द्वारा स्वामी जी द्वारा प्रदत्त निमंत्रण पत्र आचार्य श्री को भेंट किया गया। सन् २००६ में संघपति के रूप में श्रीमान हुलास जी सबलावत एवं श्रीमान कंवरीलाल जी (जयपुर) ने २०१८ में होने वाले महामस्तकाभिषेक को सम्पन्न कराने के लिए भी आचार्य संघ को विहार कराने का संकल्प किया। चातुर्मास समाप्ति में पिच्छी परिवर्तन से पूर्व दिनांक २७ नवम्बर को एक आर्यिका दीक्षा सम्पन्न हुई इस तरह चातुर्मास सानन्द सम्पन्न होने के बाद निवाई के अग्रवाल दिगम्बर जैन मंदिर में प्रवेश हुआ जहाँ मुनि श्री प्रज्ञासागर जी ने आचार्य संघ के दर्शन किए। शीतकाल के प्रारंभ होते ही आचार्य संघ का अतिशय क्षेत्र पदमपुरा जी मे २५ दिसंबर २०१५ को तीसरी बार प्रवेश हुआ। लगभग डेढ़ महीने के प्रवास में कई इतिहास रच गए। मूलनायक पद्मप्रभ भगवान एवं सभी वेदियों में स्थित प्रतिमाएं कमलासन पर विराजमान करवाई गई। ज्ञान कल्याणक की संस्कार विधि संपन्न हुई। वर्ष में एक बार होनेवाले खड्गासन पद्मप्रभ भगवान का २६ जनवरी २०१६ को पंचामृत अभिषेक संपन्न हुआ। ३ से ५ जनवरी २०१६ को १११ रत्न निर्मित प्रतिमाओं की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा और नवीन वेदी की स्थापना हुई। कई वर्षों से विवादित प्राचीन मंदिर का मामला सुलझा और जिस स्थान से पद्मप्रभ प्रगट हुए थे वहां नवीन जिनालय निर्माण हेतु आचार्य संघ के सानिध्य में १० फरवरी को क्षेत्र पदाधिकारियों द्वारा शिलान्यास करवाया गया। यहीं पर आचार्य श्री विद्यासागर जी के शिष्य मुनिश्री प्रमाण सागरजी ससंघ आचार्यश्री के दर्शनार्थ पधारे। यहाँ सिद्धवरकुट क्षेत्र के अध्यक्ष प्रदीपजी कासलीवाल व निमाड़ की समाज ने चातुर्मास हेतू निवेदन किया। पदमपुरा से विहार कर १० फरवरी २०१६ को चंदलाई में आचार्य संघ ने प्रवेश किया। आचार्य श्री से दीक्षित मुनि श्री १०८ देवेशसागरजी के गृह नगर में समाधिस्थ मुनि श्री १०८ देवेश सागरजी की चरण स्थापना की गई। आगे चकवाड़ा की ओर आचार्य संघ का विहार हुआ। संघ ने मुनि श्री १०८ गुण सागरजी महाराज की समाधिस्थली गुणस्थली में नूतन मंदिर प्रतिष्ठा व भगवान शांतिनाथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में १९ से २५ फरवरी तक सान्निध्य प्रदान किया। साथ ही आचार्य श्री १०८ शिव सागरजी महाराज से दीक्षित आर्यिका रत्न श्री १०५ आदिमति माताजी ससंघ ने आचार्य संघ की आगवानी की एवं वर्षोपरांत आचार्य श्री के दर्शन किये। इस तरह छोटे-छोटे गाँवों से विहार करते हुए जैन एवं जैनेतर लोगों को संघ ने अपनी देशना से धर्म लाभ प्रदान किया। चकवाड़ा प्रतिष्ठा के बाद वाटिका ग्राम (जयपुर) में स्थित नवग्रह जिनालय में स्थित प्राचीन स्वरूप में निर्मित की गई प्रतिमाओं का भव्य पञ्चामृत अभिषेक हुआ। तत्पश्चात् दिनांक २८ फरवरी को आचार्य संघ का जयपुर महानगर के बड़ के बालाजी में प्रवेश हुआ। इस बार अवसर था पाषाण से परमात्मा बनाने का। गणिनी आर्यिका श्री १०५ सुपार्श्वमती माताजी की समाधिस्थली बड़ के बालाजी में २९ फरवरी से १० मार्च तक नूतन भव्य मन्दिर प्रतिष्ठा एवं भगवान चन्द्रप्रभ की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई एवं माताजी के समाधिस्थल अंतर्विलय छत्री का लोकापर्ण हुआ। पंचकल्याणक में ७ मार्च को गणिनी आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी की अंतिम दीक्षित क्षुल्लिका जी की आर्यिका दीक्षा आचार्यश्री के कर कमलों से हुई। प्रतिष्ठा पश्चात् १२ मार्च को संघस्थ सल्लेखनारत आर्यिका श्री १०५ रिद्धिमती माताजी का समाधि मरण हुआ। जयपुर से विहार कर आचार्य संघ का राजस्थान के जोबनेर नगर में प्रवेश हुआ। इस नगर के आचार्य संघ में ४ साधु दीक्षित हैं यहाँ पर अल्पप्रवास के दौरान पूरी समाज ने धर्मलाभ लिया। इस प्रकार छोट-छोटे गाँवों में धर्म प्रभावना करते हुए संघ निवाई होते हुए धर्मनगरी टोंक में आचार्यश्री ने ४८ वर्ष पश्चात् ३१ मार्च को ससंघ मंगल प्रवेश किया।
आदिनाथ जयंती के अवसर:-
पर टोंक स्थित नसियां जी में मूलनायक आदिनाथ भगवान का पञ्चामृत अभिषेक हुआ एवं मानस्तम्भ में विराजित जिन प्रतिमाओं का भी अभिषेक सम्पन्न हुआ। आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज के नाम से संचालित पाठशाला को आचार्य श्री ने आशीर्वाद प्रदान किया, बच्चों में धार्मिक संस्कार देखकर आचार्य श्री अति प्रसन्न हुए। टोंक में अल्प प्रवास के बाद संघ टोंक जिले के छोटे से गाँव उनियारा में पहुँचा। गाँव के भाग्य जागे। यहीं से आचार्य संघ ने ११ अप्रैल २०१६ को श्री क्षेत्र श्रवणबेलगोला के लिए मंगल विहार किया। इस शुभ तिथि (चैत्र शु. पंचमी) के दिन ही भगवान बाहुबली की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। संघ अपनी गति से विहार आगे की ओर करता चला। ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो चुका था। गंभीरा और नैनवां की समाज ने सोचा कि इतना बड़ा संघ आ रहा है हम भी इसका लाभ उठा लें। और पंचकल्याण की योजनाएँ मस्तिष्क में स्थान पाने लगी। संघ के सभी साधुओं ने गंभीरा की रज को मस्तक पर लगाया क्योंकि वह भूमि परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री १०८ शांति सागरजी की अक्षुण्ण बालब्रह्मचारी आचार्य परम्परा के तृतिय पट्टाधीश भोले बाबा के नाम से प्रसिद्ध आचार्य श्री धर्म सागर जी की जन्मभूमि रही है। दिनांक १२ अप्रैल से १६ अप्रैल तक गंभीरा में श्री पार्श्वनाथ भगवान की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। पश्चात् नैनवा ग्राम में १७ से २२ अप्रैल तक भगवान महावीर की प्राण प्रतिष्ठा हुई और महावीर जयंती मनाई गई। इसके बाद २ मई को संघ अतिशय क्षेत्र केशवराय पाटन पहुँचा। मुनिसुव्रत नाथ भगवान के जन्म कल्याणक पर आचार्य संघ के सान्निध्य में अभिषेक, शांतिधारा सम्पन्न हुई। इस तरह विहार करते हुए संघ का प्रवेश ५ मई २०१६ को शैक्षणिक नगरी कोटा में हुआ। संघ का अल्प प्रवास दादावाड़ी में अभूतपूर्व प्रभावना के साथ हुआ। नवीन पीढ़ी ने इतने विशाल संघ (१७ मुनि, १८ आर्यिका, १ क्षुल्लकजी कुल ३६) के दर्शन किए और प्राचीन शास्त्रोक्त आहार चर्या का अवलोकन किया। वहाँ से विहार कर भीषण गर्मी में संघ अतिशय क्षेत्र चांदखेड़ी पहुँचा। क्षेत्र पर विराजित अतिशयकारी आदिनाथ भगवान के दर्शन कि वहाँ से विहार कर गोलाना ग्राम में २१ मई को आचार्य श्री अजित सागर जी का समाधि दिवस मनाया गया। जंगल में भीमंगल जैसा दृश्य था। इस तरह विहार करते हुए संघ २६ मई को झालरापाटन पहुँचा। भगवान शांतिनाथ की अतिशयकरी प्रतिमा के दर्शन कर भीषण गर्मी में शांति का अनुभव किया। झालरापाटन में स्थित श्री ऐलक पन्नालाल ग्रन्थालय का संघ द्वारा अवलोकन किया गया। वहाँ से संघ विाहर करते हुए पिड़ावा पहुँचा वहाँ पर ८५ वर्षीय वयोवृद्ध सल्लेखनाव्रत धारी मुनि श्री १०८ ब्रह्मानंद सागरजी द्वारा भव्य आगवानी की गई। ९ जून २०१६ को आचार्य संघ का प्रवेश मध्य प्रदेश के सालरिया ग्राम में हुआ। आगे संघ की सुसनेर में आचार्य श्री दर्शन सागर जी द्वारा भव्य आगवानी की गई। इस प्रकार संघ आगे विहार करते हुए २१ जून को प्रथम बार उज्जैन महानगर पहुँचा। उज्जैन में स्थित जिनालयों के दर्शन कर ऐलक पन्नालाल सरस्वती भण्डार का अवलोकन किया। उज्जैन के जयसिंहपुरा में स्थित भगवान श्री नेमीनथ जिनालय के संग्रहालय में साउण्ड एवं लाइट इफेक्ट द्वारा जैनदर्शन का अवलोकन किया।दिनांक २२ जून को संघ आगे चलकर भगवान महावीर स्वामी तपोभूमि क्षेत्र पहुँचा जहाँ मुनि श्री प्रज्ञासागर जी ने संघ की भव्य आगवानी की। चातुर्मास का समय नजदीक आ रहा था। २४ जून को संघ ने महानगरी इन्दौर के पंचबालयति आश्रम विजय नगर में मंगल प्रवेश किया। जहाँ आचार्य श्री उदार सागर जी ने संघ की आगवानी की। रात्रि विश्राम के बाद संघ ने महानगर में प्रवेश किया। प्रवेश के अवसर पर मुनि श्री १०८ प्रणाम सागरजी एवं आचार्यश्री विद्यासागर जी द्वारा दीक्षित आर्यिका आदर्शमती माताजी ससंघ (२९ पिच्छी) ने संघ की भव्य आगवानी कर प्रथम बार दर्शन का लाभ लिया। इस तरह आचार्य संघ ने २ दिवस के अतिअल्प प्रवास में नगर के लगभग २० जिनालयों के दर्शन करआगे मालवा से निमाड़ की ओर काफी वर्षो पश्चात् विहार किया। आचार्य श्री की जन्म भूमि में प्रवेश होना था। संघ के साधुओं में बहुत ही उत्साह खुशी थी कि हमे गुरुदेव की जन्मभूमि पर जाने का अवसर मिल रहा है। लेकिन थोड़ा इंतजार करना पड़ा क्योंकि २०१६ का चातुर्मास सिद्धवरकूट सिद्धक्षेत्र में निश्चित हो चुका था इसलिए बड़वाह से विहार कर आचार्य श्री की वैराग्य स्थली मोटक्का पहुँचे। अब वह घड़ी आ गई जब २ चक्रवर्ती १० कामकुमार सहित साढ़े तीन करोड़ मुनियों की नि स्थली सिद्धक्षेत्र सिद्धवरकुट में आचार्य संघ ने २ जुलाई को ३७ पिच्छियों सहित मंगल प्रवेश किया। आचार्य श्री विद्यासागरजी के शिष्य मुनि श्री १०८ समतासागर जी ससंघ आचार्यश्री के दर्शनार्थ पहुँचे। ६ जुलाई को आचार्य श्री का २७ वाँ आचार्य पदारोहण दिवस पूरे निमाड वासियों ने मिलकर अतिउत्साह से मनाया। यह प्रथम अवसर था दीक्षा के ४८ वर्षों बाद निमाड़ की भूमि पर चातुर्मास करने का। क्षेत्र पर चातुर्मास होने सेआसपास के सभी ग्रामवासियों को धर्मलाभ मिला। चातुर्मास कलश की स्थापना १८ जुलाई २०१६ को हुई। चातुर्मास कलश स्थापित करने का सौभाग्य श्री मान आर. के. मार्बल परिवार, किशनगढ को प्राप्त हुआ। चातुर्मास दौरान अष्टान्हिका में श्रीसिद्धचक्र विधान का आयोजन किया गया। श्री सिद्धक्षेत्र सिद्धवरकूट का मौसम बहुत ही सुहावना था वहाँ चारों ओर हरियाली थी। चातुर्मास काल में संघ के तपस्वी मुनिराज श्री १०८ नमितसागर जी ने सोलहकारण जी के ३२ उपवास किए एवं क्षुल्लक श्री विशाल सागर जी ने सिंहनिष्क्रीडित व्रत की साधना की एवं आचार्य श्री के आशीर्वाद से इन्दौर के श्री किशोर जी ने ६४ उपवास किए। पारणा इन्दौर से सिद्धवरकूट आकर संघ सान्निध्य में किया। इसी समय आचार्य श्री के कोलकाता निवासी अनन्य भक्त श्री ऋषभ जी पाटनी असाध्य रोग ग्रस्त होने से डॉक्टरों द्वारा निरुपचारित होने पर तथा आचार्य श्री के प्रति अटूट भक्ति श्रद्धा होने से परिवारजन उनकी इच्छा से समाधिपूर्वक मरण की चाह से इन्हें कोलकाता से सिद्धवर कूट ले आए। आचार्य श्री ने इन्हें आचार्य शांतिसागर जी की समाधि दिवस ३ सितम्बर २०१६ को सीधे मुनि दीक्षा प्रदान की। जो व्यक्ति बिस्तरसे नहीं उठ पा रहा था, उस व्यक्ति ने २ घण्टे बैठकर केशलोंच किए, उपवास किया। उनके शरीर की क्रांति बढ़ती चली गई, इन्होंने १५ दिनों तक मुनि चर्या का पालन करते हुए आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागर जीवन परिचय साधना की। अंत में उनकी आचार्य श्री के निर्यापकत्व में संघ के सानिध्य में १८ सितम्बर को समाधि हुई। चातुर्मास समाप्ति से कुछ पूर्व सिद्धवर कूट में आचार्य श्री के कर कमलों से निमाड़ प्रांत में ही निमाड़वासी १ मुनि ३ आर्यिका सहित कुल ७ दीक्षाएँ हुई।अब संघ मे कुल ४४ साधु हो गए थे। इस प्रकार चातुर्मास सानन्द सम्पन्न हुआ। अब समय आ गया था ११ वर्षों के लम्बे अन्तराल के बाद जन्मभूमि सनावद नगरी को स्पर्श करने का जहाँ से १,२, नहीं १५ त्यागियों ने जन्म लिया। समाज वालों का उत्साह देखने लायक था इतने विशाल संघ का प्रथम बार नगर प्रवेश हुआ। २ नवम्बर २०१६ की मंगल सुप्रभात बेला में विशाल जुलुस के साथसंघ का भव्य प्रवेश सनावदमें हुआ। पुरे निमाड़ वालों ने हिस्सा लिया, सभी जैन व जैनेत्तर लोगों ने स्वागत द्वार व रंगोलियों से नगर गौरव आचार्यश्री का स्वागत किया, जनता दर्शनार्थउमड़ पड़ी। सनावद में प्रवास के दौरान ६ नवम्बर से वृहद् सर्वतोभद्र मण्डल विधान का आयोजन हुआ। यहाँ अष्टान्हिका में संघस्थ मुनि श्री देवसागर जी ने ८ उपवास किए। आचार्य श्री के आशीर्वाद से निर्मित नगर से कुछ दूर स्थित श्री क्षेत्र पोदनपुरम में भगवान बाहुबली स्वामी की ११ फीट ऊँची प्रतिमा का प्रतिष्ठा के बाद प्रथम बार महामस्तकाभिषेक का अयोजन हुआ एवं णमोकार धाम में भी भगवान आदिनाथ का पंचामृत अभिषेक सम्पन्न करवाया। पुनः सनावद में दिनांक २१ नवम्बर से २४ नवम्बर तक त्रिदिवसीय रजत प्रतिमाओं की लघुपंचकल्याण प्रतिष्ठा पार्श्वनाथ दि. जैन बड़ा मन्दिर में हुई। प्रतिष्ठा सम्पन्न करवा कर सनावद से विहार कर मार्ग में संघस्थ समाधिस्थ मुनि श्री १०८ चारित्र सागर जी की चरण छत्री के दर्शन किए।अब तक सिद्धक्षेत्र से दूसरे सिद्धक्षेत्र की यात्रा प्रारम्भ हुई। ऊन पावागिरि सिद्धक्षेत्र पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का समय नजदीक आया। ऊन में २ दिसम्बर को प्रवेश हुआ। पंचकल्याणक ४ दिसम्बर से ९ दिसम्बर आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागर जीवन परिचय तक हुआ। ऊन पावागिरि से निर्वाण पधारे स्वर्णभद्रादि चार मुनिराजों की नव निर्मित प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई और महामस्तकाभिषेक हुआ। ऊन से विहार कर संघ ने इन्द्रजीत और कुम्भकर्ण की निर्वाण स्थली सिद्धक्षेत्र बावनगजा में १५ दिसम्बर को प्रवेश किया। आचार्य श्री एवं अन्य मुनिराजों ने पर्वत वंदना कर यहाँ केशलोंचन किया। यहाँ पर उपाध्याय निर्भय सागर जी आचार्य संघ के दर्शनार्थ पधारे। ८४ फीट ऊँचे भगवान आदिनाथ के दर्शन के बाद संघ का विहार ५७ फीट ऊँचे श्री बाहुबली के मस्तकाभिषेक के लिए हुआ।न ठण्ड देखी न गर्मी संघ में वृद्ध साधुओं का समूह भी था और युवा साधुओं का भी कभी अन्तराय तो कभी कुछ, पर लक्ष्य बस एक ही था – श्रवणबेलगोला। आचार्य श्री सभी को विहार में अपने साथ लेकर चलते थे। इस प्रकार मध्यप्रदेश की सीमा समाप्त कर आचार्य संघ ने महाराष्ट्र की सीमा में २४ दिसम्बर को प्रवेश किया। वर्ष २०१७ का शुभारंभ चैतन्यवन (सोनगिर) स्थित भगवान बाहबली के चरणों मे किया। १ जनवरी को यहाँ भव्य पञ्चामत अभिषेक किया गया। यहाँ पर चौबीस तीर्थंकरों के कैवल्यज्ञान वृक्ष, ध्यान केन्द्र, हर्बल उद्यान, नक्षत्र उद्यान आदि ६० एकड़ में बने हुए प्राकृतिक वातावरण में संघ ने अल्प प्रवास किया। दिनांक ५ जनवरी २०१७ को विहार कर संघ ने धूलिया होते हुए १० जनवरी २०१७ को मालेगाँव में प्रवेश किया। यहाँ मुस्लिम बहुल बस्ती होने के बाद भी कई वर्षों बाद दिन में किसी जैन मुनि संघ ने यहाँ प्रवेश किया। संघ मालेगाँव से विहार करके कवलाना पहुँचा। इसी छोटे से ग्राम में प.पू. चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी ने २ चातुर्मास किए थे। यहाँ से विहार कर संघ नांदगाँव पहुँचा, वहाँ आर्यिका श्री १०५ सुभूषणमति माताजी ने आगवानी की। २४ जनवरी को संघ अतिशय क्षेत्र एलोरा पहुँचा वहाँ पर पहाड़ पर स्थित भव्य पार्श्वनाथ भगवान के दर्शन किए ओर प्राचीन गुफाओं का अवलोकन किया। एलोरा में गुरुकुल में अध्ययन रत छात्रों को आचार्य श्री द्वारा आशीर्वाद प्रदान किया गया। आचार्य श्री १०८ अनेकान्त सागरजी ससंघ ने भी आचार्य श्री के दर्शन किये। आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागर जीवन परिचय हुआ एवं संघ ने आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के चरणों की विशेष पूजन, अर्चना की। संघस्थ श्री निस्पृह सागर जी एवं श्री सहिष्णु सागर जी ने १२ वर्षीय सल्लेखना व्रत लिया। यहाँ से संघ भगवान बाहुबली के दर्शन की उत्सुकता को लिए श्रवणबेलगोला की ओर बढ़ा। २७ जनवरी को संघ एलोरा से विहार कर औरंगाबाद महानगर की आर्यनंदि कॉलोनी पहुँचा। राजा बाजार सहित आसपास के जिनालयों के दर्शन करते हुए आगे की ओर संघ ने अतिशय क्षेत्र कचनेर की ओर प्रस्थान किया। ३ फरवरी को संघ अतिशयकारी पार्श्वनाथ भगवान विराजित कचनेर पहुँचे। यहाँ पर संघ की आगवानी आर्यिका श्री १०५ विनम्रमति माताजी ने की। संघ ने यहाँ भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन कर पञ्चामृत अभिषेक देखा। वहाँ क्षेत्र द्वारा संचालित गुरुकुल के विद्यार्थियों को आशीर्वाद दिया। यहाँ पर संघस्थ कई साधुओं ने प्रथम बार दर्शन कर अतिहर्ष का अनुभव किया। वहाँ से विहार कर संघ ७ फरवरी को अतिशय क्षेत्र पैठण पहुँचा। यहाँ अतिशयकारी भगवान मुनिसुव्रत के दर्शन व पञ्चामृत अभिषेक का लाभ लिया। यहाँ अलौकिक भगवान मुनिसुव्रत के दर्शन करने के बाद किसी का भी यहाँ से जाने का मन नहीं कर रहा था परन्तु आगे विहार तो करना ही था। इसलिए फिर आगे संघ का विहारअतिशय क्षेत्र पंचालेश्वर होते हुए १२ फरवरी को श्री महावीर नगर गेवराई पहुँचा, यह स्थान भगवान बाहुबली के महामस्तकाभिषेक के लिए बनाई गई त्यागी समिति के अध्यक्ष श्रीमान श्रीपाल जी गंगवाल द्वारा बनाया गया है। वहाँ से आगे विहार करके संघ गेवराई नगर होते हुए सिद्ध क्षेत्र कुंथलगिरि की ओर बढा। गेवराई में आचार्य श्री गुप्तिनन्दी जी ससंघ का मिलन आचार्य संघ से हुआ। संघ आगे बीड़ होते हुए कुंथलगिरि २० फरवरी को पहुँचा जहाँ क्षेत्र पर विराजित प. पू. आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी के शिष्य मुनि श्री १०८ प्रबोध सागरजी आदि मुनिराज एवं आचार्य श्री १०८ शीतल सागरजी से दीक्षित आर्यिका श्री १०५ श्रुतमति माताजी ससंघ ने संघ की आगवानी की यह वही पवित्र भूमि थी यहाँ देशभूषण व कुलभूषण भगवान को निर्वाण हुआ था एवं बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य श्री १०८ शांतिसागरजी ने ३६ दिवसीय की सल्लेखना धारण कर देह त्याग किया था। क्षेत्र पर स्थित भगवान बाहुबली का भव्य पञ्चामृत अभिषेक कुंथलगिरि से विहार कर ५ मार्च को संघ सोलापुर पहुँचा। सोलापुर में स्थित सभी प्राचीन जिनालयों के दर्शन किए। यहाँ श्राविका संस्थान में संघ का अल्प प्रवास रहा जिसमें विविध आयोजनों के तहत जीवराज ग्रंथमाला द्वारा प्रकाशित धवला पुस्तक-१ व ४ का नवीन संस्करण, लब्धिसार हिन्दी अनुवाद एवं जिनसहस्र नाम स्तोत्र हिन्दी टीका का विमोचन हुआ। यहाँ से आगे की ओर प्रस्थान कर संघ ने कर्नाटक राज्य की सीमा घुलखेट में २० मार्च को प्रवेश किया। आचार्य संघ ने कर्नाटक में बीजापुर के अतिशयकारी सहस्रफणी पार्श्वनाथ भगवान के दर्शन २४ मार्च को कर आगे की ओर अथनी होते हुए अनेक छोटे-छोटे गाँवों मं धर्मप्रभावना कर कोनूर में प्रवेश किया। यहाँ समाधिस्थ आचार्य श्री गुणनन्दी जी की शिष्याओं ने संघ की आगवानी की। यहाँ पर प.पू. चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री १०८ शान्तिसागरजी का चातुर्मास हुआ था यहाँ ग्राम के पास स्थित गुफा में उन पर सर्प का उपसर्ग भी हुआ था। आचार्य संघ ने गुफाओं के दर्शन किए। इत तरह धर्म प्रभावना करते हुए संघ कर्नाटक के बेलगाँव में ८ अप्रैल को पहुँचा। बेलगाँव से ७ कि.मी.दूर स्थित अलारवाड में ९ से १५ अप्रैल तक होने वाली पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हेतु प्रवेश किया। जहाँ बालाचार्य श्री १०८ सिद्धसेनजी भी संघ सान्निध्य में रहे। जिसमें सभी श्रावकों ने अव आसपास के ग्रामवासियों ने हिस्सा लेकर स्वयं को धन्य महसूस किया। यहाँ पर आचार्य श्री द्वारा १०० बच्चों का मौजी बन्धन संस्कार भी हुआ, जिससे वहाँ के बच्चों में श्री जिनधर्म के प्रति संस्कारों के प्रति जागरूकता हुई। प्राण प्रतिष्ठा सानन्द सम्पन्न करवाकर संघ बस्तवाड़ १६ अप्रैल को पहुँचा। यही वह पावन भूमि है जहाँ पर संघ के ४ मुनिराज और १ आर्यिका का जन्म हुआ था, दीक्षोपरान्त प्रथम बार इनका अपनी जन्मभूमि पर मंगल भव्य आगमन हुआ था।यहीं पर ५ दिवसीय कार्यक्रमों का आयोजन हुआ, जिसने जन मानस पर अभूतपूर्व छाप छोड़ी, यहाँ कई लोगों ने श्रावकव्रत पालन के संकल्प लिए, रात्रि भोजन त्याग, देवदर्शन आदि नियम स्वीकार किए। २४ अप्रैल को बस्तवाड़ से विहार कर संघ कसमलगी आ पहुँचा। जहाँ पर अतिशयकारी भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन किए। वहाँ आर्यिका जिनवाणी माता जी ने संघ की आगवानी की। अब आगे बढ़कर ३ मई को स्वादि मठ के भट्टारक श्री भट्टाकलंक स्वामी जी ने आचार्य श्री की भव्य आगवानी सौंधा मठ मैं की। यहाँ पर संघ सान्निध्य मे. नवनिर्मित संत निवास का उदघाटन हआ। १७ मई को भद्रावती में प्रवेश किया। जहाँ संघ का अल्प प्रवास रहा जिसमें श्रवणबेलगोला मे भट्टारक श्री चारुकीर्ति जी स्वामी जी द्वारा भेजे गए महामस्तकाभिषेक कमेटी के सदस्यों द्वारा मस्तकाभिषेक सम्बन्धी गतिविधियों की जानकारी आचार्य श्री को दी गई पूज्य स्वामी जी को भी बेसब्री से इंतजार था कि आचार्य संघ जल्दी से-जल्दी श्रवणबेलगोला पहुँचे। अन्ततः वह पल आ ही गया जब आचार्य संघ का प्रवेश गोम्मटेश्वर बाहुबली की नगरी श्री क्षेत्र श्रवणबेलगोला में होना था। दिनांक ४ जून २०१७ को प्रातः काल के सूर्य के साथ ही सर्वक्रिया से निवृत्त हो आचार्य संघ ने आहार चर्या के बाद श्रवणबेलगोला की ओर प्रस्थान किया। सभी की नजरें ढूँढ़ रही हैं भगवान बाहुबली की प्रथम झलक को जो कि श्रवणबेलगोला की प्रवेश सीमा से कुछ दूरी पहले ही मिल जाती है और वहीं भगवान बाहुबली की प्रथम झलक पाकर वहीं से भगवान को सिर झुकाकर नमस्कार किया। इसी तरह जय-जयकार करते हुए आगे बढ़े। वहाँ स्वामी जी के साथ महोत्सव समिति के पदाधिकारीगण एवं शासकीय महामस्तकाभिषेक समिति के अध्यक्ष एवं कर्नाटक सरकार के मंत्री तथा पूरे भारतवर्षीय दिगम्बर जैन समाज के गणमान्य लोगों ने आचार्य संघ की श्रवणबेलगोला की सीमा पर भव्य आगवानी की। विशाल जनसमुदाय के साथ जुलुस प्रारम्भ हुआ। जगह जगह तोरणद्वार लगाए गए एवं पुष्पों से पूरा क्षेत्र भव्य रूप से सजाया गया था। जो साधु संघ पहले से ही क्षेत्र पर विराजमान थे, इनमें आ. श्री वसुपुज्य सागर जी आ. श्री चन्द्रप्रभ सागर जी एवं मुनि श्री अमित सागर जी सहित लगभग ५० साधुगण संघ की आगवानी में पहुँचे। विशाल धर्म सभा का आयोजन गोम्मटनगर में हुआ। वहाँ क्षेत्र की ओर से संघके विहार में सहयोग देने वालों का स्वागत सत्कार किया गया। ६ जून को प्रातः काल की बेला में आचार्य संघ ५७ फीट ऊँची भगवान बाहुबली की प्रतिमा को निहारते हुए भक्तिभाव में विंध्यगिरि पर्वत पर पहुँचा वहाँ पहुँचकर भगवान के चरणों में भक्तिभाव से वन्दन किया। लगभग २५०० कि.मी. के लम्बे विहार के बाद भगवान के दर्शन करते ही सबकी थकान मिट गई। पहाड़ पर स्थित अन्य जिनालयों के दर्शन भी किए। दोपहर में चन्द्रगिरि पहाड़ की वंदना की जहाँ पर स्थित १४ प्राचीन जिनालयों के दर्शन किए इसी पर्वत पर आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी सहित १२००० मुनिराज आए थे। यहाँ पर अंतिम श्रुत केवली आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी की चरण गुफा बनी हुई है, यह उनकी तपस्या स्थली है।दिनांक २५ जून २०१७ को श्रवणबेलगोला फूलमालाओं आदि सजावटों से सजाया गया, आयोजन था आचार्य श्री के २८वें आचार्य पदारोहण स्मृति दिवस का। आचार्य संघ वर्णी भवन में विराजमान था। वर्णी भवन से चामुंडराय सभा मंडप तक का सम्पूर्ण मार्ग तोरणद्वारों व फूलमालाओं आदिसे भव्य रूप से सजाया गया था। मार्ग में हर घर के बाहर आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन किए गए। इस तरह अन्य स्थानों से भी आए हुए आचार्य भक्तों ने भी बड़ी भक्ति भाव से यह उत्सव अति आनन्द से सम्पन्न कराया। दिनांक ७ जुलाई २०१७ को श्रवणबेलगोला में स्थित ४ आचार्य संघ सहित ८४ पिच्छी एवं भट्टारक श्री चारुकीर्ति स्वामी जी का एक ही मंच पर एकता के साथ जिनधर्म की प्रभावना को लक्ष्य करते हुए चातुर्मास की सामूहिक स्थापना हुई। यह आचार्य श्री का ४९ वीं चातुर्मास स्थापना थी। चातुर्मास काल दौरान क्षेत्र में कई आयोजन यथा विद्वत् सम्मेलन, महिला सम्मेलन, युवा सम्मेलन, सर्वधर्म सम्मेलन आदिजैसी धार्मिक गतिविधियाँ संघ सान्निध्य में सम्पन्न हुई, जिससे धर्म की महती प्रभावना हुई। संघ के साधुओं ने भी अपनी तपस्या, व्रत, उपवास आदि और पहाड़ की वन्दना इत्यादि धर्म साधना से सभी में धर्म की भावना जाग्रत की। यहाँ पर्युषण पर्व में क्षेत्र के भण्डार बसदी में स्थापित चौबीसी का भव्यातिभव्य पञ्चामृत अभिषेक एवं साधुवृन्द द्वारा तत्त्वार्थसूत्र वाचन आदि से धर्म का मर्म सभी ने जाना यहीं पर आचार्य श्री का ६८ वाँ जन्म दिवस महोत्सव भी बड़े धूमधाम से मनाया गया।चातुर्मास में प्रति रविवार आचार्य श्री द्वारा धर्मसभाको सम्बोधन होता था एवं प्रतिदिन दोपहर में क्षेत्र विराजित सभी साधुवृन्द का सामूहिक स्वाध्याय होता था। चातुर्मास उपरान्त अष्टान्हिका में दिनांक २१ अक्टूबर से ५ नवम्बर तक बहुत ही विशाल इन्द्रध्वज महामण्डल विधान का आयोजन हुआ जो कि अभूतपूर्व था। उसमें तीनों लोक में स्थित कृत्रिमाकृत्रिम जिनालयों में स्थित जिनबिम्ब स्थापित किए गए थे। दस दिवसीय इस मण्डल विधान में पूरे संघसान्निध्य में पूजा-अर्चना से जिनेन्द्र देव की भक्ति की गई।इन्हीं दिनों आचार्य संघ सानिध्य में भगवान बाहुबली के चरणों में विशेष पूजन, भव्य पञ्चामृत किये गए। ९ नवम्बर २०१७ को श्रवणबेलगोला में विराजित सभी 84 पिच्छी का एक साथ पिच्छी परिवर्तन समारोह हुआ। आचार्य श्री को नई पिच्छी संघस्थ सभी ब्रह्मचारी वर्ग ने भेंट की और आचार्य श्री की पुरानी पिच्छी को प्राप्त करने का सौभाग्य अनन्य गुरु भक्त श्रीमती तारा देवी सेठी कोलकाता परिवार को प्राप्त हुआ। धन्य है वह परिवार जिसे संयम की साधना का उपकरण पिच्छी को प्राप्त करने का अवसर मिला।इस तरह चातुर्मास समाप्त होने के साथ ही महामस्तकाभिषेक सान्निध्य प्रदान करने हेतु जगह-जगह से साधुओं का आगमन भी श्रवणबेलगोला में दिनांक २४ दिसम्बर २०१७ से १ जनवरी २०१८ तक यहाँ पर १०८ साधुओं के सान्निध्य में ८ दिवसीय वृहद् भक्तामर महामण्डल विधान की आराधना की गई। यह मण्डल विधान भी अद्वितीय था, जिसमें लगभग ३ करोड़ों मंत्र की जाप की गई महोत्सव के पूर्व यह मण्डल विधान सानन्द सम्पन्न हुआ। विधान के अंतिम दिन अजमेर से आए भव्य स्वर्ण रथ में श्री जी को विराजमान कर भव्य रथ यात्रा निकाली गई जिसमें सभी साधुगण भी शामिल हुए। क्षेत्र पर चातुर्मास दौरान सम्पन्न होने वाले सम्पूर्ण विधान आचार्य श्री के अनन्य भक्त अजमेर निवासी प्रतिष्ठाचार्यश्री कुमुदचन्द जी के नेतृत्व में सम्पन्न हुए।इसी बीच यहाँ पर धर्मस्थल क्षेत्र के धर्माधिकारी श्री वीरेन्द्र जी हेगड़े का ५० वाँ पट्टाभिषेक पूर्ण होने पर भव्य स्वागत अभिनन्दन समारोह आयोजित किया गया जिसमें उन्हें “धर्म महिमा विस्तारक रत्न” की उपाधि से सम्मानित किया गया।इस तरह श्रवणबेलगोला में आचार्य संघ के सानन्द में सात महीने पूर्ण हो चुके थे। यह आचार्य श्री का श्रवणबेलगोला में ५ वाँ चातुर्मास था। अब बस महामस्तकाभिषेक का इंतजतार हैं। नव वर्ष की शुरुआत आचार्य श्री के दीक्षा गुरु तृतीय पट्टाधीश आचार्य श्री धर्म सागर जी के १०४ वें जन्म दिवस के उपलक्ष्य में बहुत ही सुन्दर विधान के साथ हुई। आचार्य संघ अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी की ४८ दिन तक लगातार वंदना की।संघ का श्रवणबेलगोला में आगमन ४४ पिच्छीयों के साथ हुआ था लेकिन दिनांक ६ जनवरी को अचानक संघ के ७४ वर्षीय मुनि श्री १०८ देवसागरजी की समाधि हो जाने से संख्या ४३ रह गई। आचार्य संघ वर्णी भवन में विराजमान था सभी साधु क्षेत्र में प्रवेश करते ही वर्णी भवन में आचार्य श्री के दर्शनार्थ सर्वप्रथम आते थे, इतने दूर से विहार करके आने वाले सभी साधु संघ आचार्य श्री के वात्सल्य को पाकर हर्षित हो जाते थे। बहुत ही मनोरम दृश्य होता जब इतने साधु संत एक साथ बैठकर आपस में समाचार निधि कर कुशलता व्यक्त करते और, प्रति वन्दना करते थे। आचार्य श्री वर्धमान सागर जीवन परिचय इसी दौरान प्रबल पुण्य उदय स्वरूप आचार्य संघ की बाल ब्रह्मचारिणी बहन सिद्धा दीदी ने आचार्य श्री को जैनेश्वरी दीक्षा हेतु श्री फल भेंट किया| महामस्तकाभिषेक महोत्सव के निमित्त ही इतने संत समूहों का मिलन देखने को मिला सभी साधुओं के आवास के लिए कुछही दूरी पर त्यागी नगर बनाया गया, जहाँ एक अस्थाई जिनालय का निर्माण भी किया गया था। सभी साधु यहां विराजमान हुए दोपहर में प्रवचन और सभी की साथ में तत्त्व चर्चाएं भी चली।मस्तकाभिषेक महोत्सव आरंभ होने से पूर्व उससे सम्बन्धित कई क्रियाएं शुरु होने लगी। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण क्रिया थी जिसका शुभारंभ सैकड़ो वाद्य यंत्रों से सुशोभित विशाल शोभायात्रा से हुआ। अगले दिन गोम्मटेश्वर श्री बाहुबली स्वामी महामस्तकाभिषेक महामहोत्सव का उद्घाटन समारोह और पंचकल्याणक का ध्वजारोहण हुआ, कर्नाटक राज्य के कई नेता भी इसमें सम्मिलित हुए।पंचकल्याणक में भगवान के गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान और निर्वाण महोत्सव को दक्षिण की परंपरा में अति उत्साह से मनाया, विशेष कर समवशरण की चार दिन तक भव्य पूजन की गई। १७ फरवरी २०१८ को महामस्तकाभिषेक महोत्सव के आरम्भ का शुभ दिन आया, बाहुबली भगवान के २००६ के बाद १२ वर्षों के अंतराल पश्चात् १:४५ पर आज भगवान के मस्तक पर से कलशों की धारा देखने को मिली, प्रथम कलश किशनगढ़ (राजस्थान) के आर. के. मार्बल्स परिवार द्वारा किया गया। दूध, हलदी, केसर, चन्दन, पुष्प आदि से पूर्ण पंचामृत अभिषेक देखकर प्रत्येक भक्त भगवान को हर्ष से निहार रहा था और कलशों की धार के साथ-साथ अपने कर्मों की धार को छोड़ रहा था। लगभरक ३८० साधु एवं लाखों श्रावक जन साक्षात इस दृश्य के साक्षी बने। वहीं परम पूज्य वात्सल्य वारिधि आ. श्री वर्धमान सागर जी महाराज का १९९३ व २००६ के बाद पुनः २०१८ में तीसरी बार प्रमुख सान्निध्यऔर क्षेत्र के भट्टारक श्री चारुकीर्ति स्वामी जी का प्रमुख निर्देशन रहा|
“सौभाग्य आपको बुला रहा है” और “अन्न मुहिम योजना”:
प्रत्येक भारतवासी जैन अजैन भक्त इस महोत्सव से जुड़े। इस तरह महोत्सव में सभी श्रावक और संतो ने मस्तकाभिषेक करके और देख के अपना पुण्य संचित किया। सनावद की सिद्धा दीदी विगत 8 वर्षों से संघ में ही रहकर सभी साधुओं की सेवा में रत रही हैं। वैसे तो संघ मे तीन मुनि दीक्षा का कार्यक्रम पहले से निर्धारित था, उन्ही के साध अब एक आर्यिका दीक्षा होना भी तय हो गया।संघ में दीक्षार्थियों की बिन्दौरी, गोद भराई आदि कार्यक्रम होने लगे, क्षेत्र पर विराजित सभी अन्य संघों की ओर से भी दीक्षार्थियों की गोदभराई हुई। दीक्षार्थियों ने भगवान बाहुबली स्वामी का भव्य पंचामृत अभिषेक और चन्द्रगिरी पर्वत पर भद्रबाहु स्वामी के चरणों की विशेष पूजा-अर्चना की। २५ अप्रैल को संघ ने ब्र. सुभाष जी (गोटेगाँव), ब्र. राव साहब (डिग्रजः) व ब्र. नेमीचन्द जी (जबलपुर) और ब्र. बा .बहन सिद्धा दीदी (सनावद) इनकी दिक्षाएं सम्पन्न हुई। अब संघ में नव दीक्षित मुनि श्री मुक्तिसागर जी, मुनि श्री महित सागर जी, मुनि श्री मर्यादा सागर जी व आर्यिका महायशमती माता जी सहित ४ साधु और बढ़ गए कुल ४७ साधु हो गए।अगले दिन संघ में एक लघु पंच कल्याणक का आयोजन हुआ। जहाँ जहाँ आचार्य श्री का संघ सहित विहार हुआ है वहाँ की भूमि पवित्र हुई और जहाँ जहाँ चातुर्मास हुआ वहाँ की जनता ने सातिशय पुण्योदय स्वरूप ज्ञानका अमृत रस पान किया है। वहाँ जो धर्म जागृत हुआ है वह सेकड़ों वर्ष प्रयत्न करने पर भी उत्पन्न होना अशक्य है, इस प्रकार संघ को बढ़ते हुए देख समाज को आनंद हुआ। कहाँ है – सिद्धत्व शिखर है तो मुनित्व तलहटी। मुनित्व सुख और आनन्द प्राप्ति के लिए उर्जा और पुरुषार्थ का जलप्रपात है तो सिद्धत्व सुख की, आनन्द की अविरत बहती मंदाकिनी। मुनित्व झरना है तो सिद्धत्व प्रशांत महासागर। ३ मई २०१८ को श्रवणबेलगोला के श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी जी का जन्म दिवस था, वे आचार्य श्री के पास आशीर्वादलेने आए। संघस्थ ब्र. गज्जू भैय्या ने उन्हे एक स्फटिक की प्रतिमा और वस्त्र भेंट किए।इसी दौरान अवसर आया आचार्य श्री के २९ वें आचार्य पदारोहण दिवस का अनेक आचार्य, मुनि एवं आर्यिकाओं की उपस्थिति में स्वामी जी के निर्देशन में इस उत्सव को अति उत्साह से मनाया और संघस्थ मुनि श्री हितेन्द्र सागर जी द्वारा रचित आचार्य श्री का विधान किया तदोपरान्त संघस्थ साधुओं द्वारा आचार्य श्री के प्रति विनयाञ्जलि समर्पित की गई। सभी अन्य संघस्थ साधुओं ने भी आचार्य श्री के प्रति अपनी अपनी विनयाञ्जली स्वरूप भावनाएँ प्रगट की।इसके पश्चात् श्रुत आराधना के रूप में श्रुत पंचमी महोत्सव भी मनाया गया, जिसमें, ग्रन्थराज धवल, जय-धवल, महा-धवल ग्रन्थ की शोभा यात्रा निकली एवं श्रुत पूजा की गई, उस उपलक्ष में विद्वत संगोष्ठी का आयोजन भी हुआ। कुछ साधु क्षेत्र से विहार कर गए, कुछ साधु जो जो आस-पास ही के क्षेत्र में थे वे श्रवणबेलगोला आ गए और वर्षाकाल शुरु होने से पूर्व वर्षायोग स्थापना के लिए क्षेत्र पर स्थित हो गए। वर्ष २०१८ के वर्षायोग की स्थापना सभी साधुओं ने एक साथ सामूहिक रूप से की। लगभग १६ संघ के साधुओं ने आपस में एकसाथ वात्सल्य भाव दर्शाया। संघ में हमेशा सामुहिक स्वाध्याय की परम्परा रही है, इस चातुर्मास में भी ऐसा ही देखने को मिला, खूब धर्म की चर्चा हुई, आचार्य श्री धवला ग्रन्थ की वाचना करते थे और क्षेत्र पर विराजित लगभग ६० साधु सम्मिलित होते थे, स्वाध्याय में सभी तरह के साधु आते कम उम्र, अधिक उम्र, अल्पज्ञानी, विशेष ज्ञानी, सभी कीशंकाओं का समाधान होता था। एक श्रावकने पुछा; आचार्य श्री! क्या पुण्य हेय है? आचार्य श्री ने बाताया – ‘देखों भाई, ध्यान से सुनो, पुण्य के सम्बन्ध में अनेकान्त है पुण्य आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागर जीवन परिचय हेय भी है, और कथंचित उपादेय भी है। पुण्य के फल की इच्छा हेय है, लेकिन मोक्षभूत साध्य का साधन होने से कंथचित उपादेय है।मुख्य रुप से आ. श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज के शिष्य क्षुल्लक श्री ध्यान सागर जी जिन्हे जिनवाणी पुत्र कहा जाता है, उनके माध्यम से सभी को स्वाध्याय में विशेष रुप से जानकारी प्राप्त होती थी। साथ ही सीकर के पंडित धर्मचन्द जी शास्त्री जो कि गुरुजी के नाम से सभी के द्वारा पुकारे जाते, उनके द्वारा संस्कृत व्याकरण की शिक्षा भी संघस्थ साधुओं को प्राप्त होती रही।इस तरह से चातुर्मास में सभी साधुजनों को ज्ञानार्जन का पूरा-पूरा लाभ मिला। इस वर्षायोग में श्रावकों ने अपनी गुरु भक्ति से और साधुओं ने तप, त्याग आदिसे कर्मों के नाश का प्रयास किया। चातुर्मास के अन्तर्गत ही उदयपुर की एक श्राविका आचार्य श्री की शरण में, आई स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण उन्होने अपने किसी पूर्व पुण्योदय से आचार्य श्री से अपने इस भव को सुधारने हेतु अपने अंत समय में समाधि मरण की इच्छा प्रगट की।आचार्य श्री ने उनके स्वास्थ्य को देखते हुए अगले दिन उन्हे पहले क्षुल्लिका वृत के संस्कार कर उन्हे क्षुल्लिका शान्तमती माताजी नाम प्रदान किया। थोड़ी ही देर में उनकी स्थिति गंभीर होने लगी तो आचार्य श्री ने उनसे पूछा कि अब आपका समय नजदीक आ गया है क्या अब आप आर्यिका दीक्षा लेंगी तब उनकी और परिवार सब की सहमति से उन्हे आर्यिका दीक्षा दी गई। पूरी रात स्थिरता बनी रही लगभग १५० साधुओं के सान्निध्य में उनकी सल्लेखना चली उन्होंने पूरे २४ घंटे अपने महाव्रतों का पालन कर रात में ॐ नमः सिद्धेभ्य; सुनते-सुनते समाधी मरण को प्राप्त किया।इन्ही दिनों क्षेत्र पर विराजित आचार्य श्री वासुपूज्य सागर जी महाराज का भी स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था, उन्हें भी असाध्य रोग हो गया था, कई अनुष्ठान सम्पन्न किए गए। अष्टान्हिका पर्व में सिद्ध परमेष्ठी की, श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान किया। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी एवं आचार्य सुविधि सागर जीके द्वारा सिद्ध भगवान के प्रत्येक गुणों पर विवेचन हुआ।चातुर्मास के दौरान क्षेत्र पर उपस्थित सभी साधुओं के द्वारा मूलाचार पर संगोष्ठी भी हुई। सभी ने साधुओं के आचरण सम्बन्धी तथ्य इस संगोष्ठी के माध्यम से प्रगट किए। कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे आचार्य वासुपूज्य सागर महाराज का स्वास्थ्य दिनों दिन और घटता चला गया सभी साधु आचार्य महाराज के पास जाते और उनका उपयोग शरीर की असाध्यता से हटवा कर तत्त्व चर्चा मे लगवाते। आचार्य महाराज भी अपने अंत समय तक धर्म की चर्चा पूरा मन लगाते। एक रात अचानक स्वास्थ्य गम्भीर होने से उनका समाधी पूर्वक देवलोक हो गया।
आचार्य श्री का ६८ वा जन्म दिवस भी क्षेत्र पर मनाया गया:
बृहद् भक्तामर मण्डल विधान, शांति विधान, चौसठ ऋद्धि विधान, त्रिलोक मण्डल विधान जैसे कई आयोजनों से श्रावकों नेभी स्वयं को भक्ति में जोड़े रखा। सभी विधान अजमेर निवासी पंडित कुमुद जी सोनी के निर्देशन में आयोजित हुए।अभी तक तो आचार्य श्री का कर्नाटक प्रान्त के केवल श्रवणबेलगोला में ही चातुर्मास हुआ था, लेकिन, प्रथम आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की दीक्षा शताब्दी महोत्सव के निमित्त आचार्य संघ का एक चातुर्मास और कर्नाटक प्रान्त में ही करने का निश्चय हुआ, जिससे कर्नाटक के गांवों कि समाज में हर्ष की लहर दौड़ी और इस हेतु कोथली एवं आस पास के गांवों के भक्त जन अगले चातुर्मास के लिए आचार्य संघ को श्री फल भेट करने आए।अब समय आ गया ६ महिनों से चल रहे महामस्तकाभिषेक महोत्सव के समापन का इस हेतु जय जय मंगल महोत्सव के रुप में अंत के ५ दिन विशेष अभिषेक हुआ और १४ सितंबर को अंतिम अभिषेक हुआ। यहीं पर सभी अलग-अलग परंपरा के साधुओं के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती १०८ शांतिसागर महाराज जी का समाधि दिवस हर्षोल्लास से सम्पन्न कराया।इसी दिन क्षेत्र पर स्थित स्मारक भवन में आ. शांतिसागर महाराज की मूर्ति, आचार्य संघ सानिध्य में स्थापित करवाई गई। और साथ ही चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज के जीवन सम्बन्धी चित्र लगवा कर स्मारक भवन को आ. शांतिसागर स्मारक का नया रूप दिया गया। वर्षायोग के काल में साधुओं ने ज्ञानार्जन के साथ-साथ तपश्चर्या में भी अपने पुरुषार्थ को प्रकट किया। संघस्थ मुनि नमितसागर जी एवं प्रशमसागर जी ने सोलहकारण जी और कई ने दसलक्षण जीवन किए। एवं क्षुल्लक विशाल सागर जी ने लघु सिंहनिस्क्रीडित व्रत की कठिन साधना की, जिसमें ८० दिनों ने ६० उपवास किए। प्रथमाचार्य शांतिसागर जी महाराज के बाद प्रथम बार परंपरा में किसी क्षुल्लक के द्वारा ऐसी सिंह निस्क्रिडीत व्रत की साधना की गई। इस तरह वर्ष २०१८ का वर्षायोग सानन्द सम्पन्न हुआ। भगवान महावीर के निर्वाण दिवस एवं गौतम स्वामी के केवलज्ञान दिवस के दिन ही वर्षायोग के समापन की क्रियाएं हुई और अगले दिन हिन्दी नव पर्व वीर निर्वाण संवत् २५४५ का शुभारंभ किया। इसके बाद अष्टान्हिका पर्व प्रारम्भ हुआ, इसमें बृहत् तीन लोक मण्डल विधान का आयोजन हुआ, इसमें क्षेत्रीय व बाहर से आए कई भक्त जनों ने पूजा, आराधना इत्यादि कर पुण्यार्जन किया। जैन साधु की पहचान दिगम्बरत्व एवं हाथ में पिच्छी कमण्डलु, ऐसे साधना के उपकरण से होती है, जीवों की रक्षा के लिए उपयोगी पिच्छी को साधु साथ रखते हैं, ऐसी कोमल मोर पंखकी पिच्छी, इसे साधु वर्ष में एक बार बदलते है, चातुर्मास पूर्ण होने के बाद पिच्छी परिवर्तन की जाती है।आचार्य संघ एवं क्षेत्र मे विराजित समस्त साधुओं का पिच्छी परिवर्तन कार्यक्रम एक साथ ही सम्पन्न हुआ। आचार्य श्री को नवीन पिच्छी संघस्त ब्रह्मचारी ब्रम्हचारीणी बहनों ने भेट की एवं आचार्य श्री ने अपनी पुरानी पिच्छी संघ के अनन्य भक्त श्रीमति शशी पाटनी परिवार (कोलकाता) को प्रदान कीइन्होंने पूरे वर्षायोग में संघ की बहुत सेवा भक्ति की।श्रवणबेलगोला में भगवान बाहुबली एवं अंतिम श्रुत केवली भद्रबाहू की चरण छाया में संघको लगभग डेढ़ वर्ष का लम्बा समय प्रवास के लिए मिला।अब समय था यहाँ से विहार का। जैसे नदी का पानी बहता हुआ शोभा देता है इसी तरह साधु भी कुछ समय के ठहराव के बाद विहार करते हैं। दिनांक १८ दिसम्बर को दोपहर आहार चर्या के उपरांत १२ बजकर २० मिनट पर आचार्य संघ का विहार हुआ। यह विहार बाहुबली से बाहुबली की ओर प्रारंभ हुआ। अतः श्री गोम्मटेश्वर बाहुबली के मस्तकाभिषेक को सानन्द सम्पन्न करवाकर अब धर्मस्थल विराजित श्री (हेगडेश्वर) बाहुबली के मस्तकाभिषेक को सम्पन्न करवाने के लिए प्रस्थान हुआ यहाँ पर श्रीमती रत्न अम्मा की प्रेरणा से उनके पुत्र धर्मस्थल के धर्माधिकारी पद्मभूषण श्री डॉ. डी. वीरेन्द्र हेगड़े जी द्वारा बाहुबली भगवान की ३९ फीट ऊँची प्रतिमा स्थापित करवाई गई है। इस प्रतिमा का भी प्रत्येक १२ वर्षो में मकास्तकाभिषेक होता है। लम्बे समय तक एक ही स्थान पर प्रवास के बाद विहार हुआ, संघ में सभी उम्र के साधु हैं, कुछ वृद्ध है, कुछ कम उम्र के भी है, पर आचार्य श्री सभी साधुओं को साथ लेकर विहार करते हैं। सभी साधु विहार में होने वाली सर्दी, गर्मी आदि परिषहों को सहते हुए, एक बार आहार ग्रहण करके, अंतराय, उपवास आदि तपश्चर्या को धारण करते हुए अनवरत विहार करते हैं। इस बार इतने समय के बाद विहार होने से आचार्य श्री के पैर में थोड़ी तकलीफ होने लगी, इसलिए दो साधु व आचार्य श्री शेष संघ से पीछे थोडा विहार कर गंतव्य पर पहुँचे। इस तरह संघ ने रास्ते में गाँव, गाँव चलते हुए, प्रचीन मन्दिरों के दर्शन करते हुए विहार किया। दक्षिण प्रान्त में छोट-छोटे गाँवो में कई घरों की जैन समाज और कई प्राचीन मन्दिरों के दर्शन करके सभीको बहुत ही आनन्द की अनुभूति होती थी। गाँव के लोग भी इतने बड़े संघ के दर्शन करके हर्ष से ओतप्रोत होकर साधुओं की भक्ति में लग जाते थे।रास्ते में विहार करते हुए एन. आर. पुर, हुमचा आदि क्षेत्रों पर संघ ने लघु प्रवास किया। अब संघ का प्रवेश श्री क्षेत्र धर्मस्थल में हुआ, श्री वीरेन्द्र जी हेगड़े स्वयं आचार्य संघ की आगवानी के लिए ३-४ कि.मी. पैदल आचार्य श्री के साथ-साथ चले फिर स्वयं के घर में चैत्यालय के दर्शन करवाए। श्री हेगड़ेश्वर बाहुबली स्वामी का मस्तकाभिषेक महोत्सव शुरु हुआ। इस बार महोत्सव में भगवान आदिनाथ एवं भगवान बाहुबली के पंच महावैभव को दिखलाया गया। तदुपरांत १६ फरवरी को महामस्तकाभिषेक प्रारंभ हुआ, यहाँ पर भी लगातार १९९४, २००७ के बाद २०१९ में तीसरी बार आचार्य श्री का प्रमुख सान्निध्य रहा। इस प्रकार ८ फरवरी से १९ फरवरी तक महोत्सव चला। इस महोत्सव में लगभग १०० पिच्छीधारी साधु उपस्थित हुए एवं कर्नाटक प्रान्त में स्थित सभी मठो के भट्टारक गण भी आए। महोत्सव समाप्ति के अगले दिन ही प्रातः ९ बजे संघस्य मुनि श्री निस्पृह सागर जी का यम सल्लेखना पूर्वक समाधि मरण हो गया। मुनि श्री पूरे संघ मे यथानाम निस्पृही थे, उनकी दीक्षा १० वर्ष पूर्व चंपापुर में हुई थी, इतने वर्ष संघ में रहकर आचार्य श्री की कीर्ति को फैलाने में आपने बहुत बड़ा योगदान दिया। गृहस्थ अवस्था में प्रेमचंद जी पापडीवाल के नाम से विख्यात किशनगढ़ के अनन्य गुरु भक्त थे आचार्य परंपरा के। कुछ दिन की अस्वस्थता के बाद असाता कर्म के तीव्र उदय से वे रोग ग्रस्त हो गए थे। वैसे वे श्रवणबेलगोला से ही साधना कर रहे थे, शरीर को क्रश करने की। अंततः बड़े ही शांत भाव के साथ उनका देवलोक गमन हुआ। धर्माधिकारी श्री हेगडे जी व परिवार ने पूरे भक्तिभाव के साथ आचार्य संघ एवं क्षेत्र पर विराजित सभी साधुओं की सेवा की। महोत्सव समाप्ति के बाद एक और महोत्सव सामने आया। पं. पू. आचार्य श्री १०८ धर्मसागर जी महाराज को आचार्य पद ग्रहण किये ३० वर्ष पूर्ण हो गए, इसी मंगल मय दिवस के दिन उन्होंने ११ भव्य प्राणियोंको श्री क्षेत्र महावीर जी में दीक्षा प्रदान की थी। जिसमें १८ वर्षीय नव युवक ब्र. यशवंत को सीधे मुनि दीक्षा प्रदान की गई और नाम रखा मुनि वर्धमान सागर। इस तरह प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री १०८ शांतिसागरजी महाराज की पट्ट परम्परा पर विराजमान वर्तमान में पञ्चम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के दीक्षा के ५० वर्ष पूर्ण हुए। इसलिए २४ फरवरी फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के शुभ दिन बेड़े ही उत्साह के साथ देश भर से आए हुए भक्तों ने ५० वां संयम दिक्षा दिवस मनाया।तदुपरांत धर्मस्थल से विहार करते हुए संघ वेणूर पहुंचा जहाँ बाहुबली भगवान की विशाल प्रतिमा एवं प्राचीन जिनालय है। यहाँ संघस्थ आर्यिका हीरकमती माताजी जो कि ८४ वर्षीय थी। दीक्षा के उपरान्त १२ वर्षों से कठिन तपश्चर्या रत भी। माता जी ने अपने जीवन में चा.च. आचार्य शांतिसागर जी महाराज के दर्शन किये थे। संघ में सबसे वृद्ध आर्यिका थी, पर आत्म बल बहुत मजबूत था भगवान बाहुबली के समक्ष उन्होंने समाधि मरण की इच्छा आचार्य श्री के सामने प्रगट की और गोधुली बेला ने यम सल्लेखना पूर्वक उनका समाधि मरण भगवान बाहुबली की वीतराग मुद्रा को निहारते हुये में ४ मार्च को सायंकाल में करवाया।समय-समय पर विहार में स्वाध्याय भी चलता है, और विहार भी, साथ में चल रहे श्रावको को भी मिलता है आनन्द के साथ धर्मलाभ। देश भर के कोने-कोने से श्रावक अपनी सुविधानुसार संघ में चौका लेकरआते और पुण्य को कमाते है। वेणूर से विहार कर मूडबद्री जिसे जैन काशी कहा जाता है, अनेक इतिहास जुड़े है इस क्षेत्र से, अनेक प्राचीन जिनमन्दिर है, यहा संघ का ४ दिन प्रवास रहा सभी मन्दिरो के साथ सिद्धान्त दर्शन का लाभ मिला। कारकल में संघ का प्रवेश हुआ यहा पर जैन बालिकाओं का होस्टल है, लगभग ६५ बालिकाएँ धर्म के संस्कार से परिपूर्ण थी। यहाँ पर भी १८ जिनालय तथा भ. बाहुबली की विशाल खड़ासन प्रतिमा पर्वत पर विराजित है, आचार्य श्री तो तीसरी बार आएपर संघ के बहुत से साधुओ ने दक्षिण प्रान्त के इन क्षेत्रों के दर्शन प्रथम बार किए। विहार के दौरान कई अनुभव देखने को मिलते है, संघ विशाल होने से आचार्य श्री सभी को अपने साथ लेकर चलते थे, किसी को कोई तकलीफ नहीं हो आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज वात्सल्य वारिधी के नाम से विश्व भर में प्रसिद्ध हैं, वो कष्ट सहिष्णु है, इसका उदाहरण देखने को मिला आचार्य श्री ने भीषण गर्मी में कारकल क्षेत्र पर सप्तमी के दिन केशलोंच किया, और उसी दिन तपती धूप में विहार कर गए। संघ के सभी साधुओं ने आग्रह किया कि एक दिन और रुकजाते है, पर आचार्य श्री ने विहार किया। अब संघ २ माह के उपरान्त पुनः श्री होम्बुज (पद्मावती) पर आया २० मार्च २०१९ को फाल्गुन सुदि पूर्णिमा इसी दिन आचार्य शांतिसागर जी महाराज की दीक्षा ९९ वर्ष पूर्व यरनाल में हुई थी। आ. शांतिसागर जी महाराज के मुनि दीक्षा शताब्दी महोत्सव का शुभारम्भ हुआ, देश भर के सभी भट्टारक गण प्रतिष्ठित विद्वान, समाज सेवक आए| और आचार्य संघ के सान्निध्य में भव्यातिभव्य इस महा महोत्सव को मनाने का संकल्प किया। यरनाल से पधारे श्रावक जनो ने आचार्य संघ को यरनाल चातुर्मास हेतु श्रीफल प्रदान किया। आचार्य श्री ने सहर्ष २०१९ चातुर्मास यरनाल में करने की घोषणा की। सन् २०१९ का यरनाल में सानंद चातुर्मास की स्थापना हुई उसमें हुमचा के भट्टारक श्री देवेंद्रकीर्तीजी पधारे। प्रति दिन रविवार को प्रवचन हुए एवं अनेक राष्ट्रीय स्तर पर समारोह संपन्न हुए। यरनाल ग्राम में १०० वर्ष से भी अधिक पुराना श्री चंद्रप्रभ जिनालय है इसवी सन् १९२० के पंचकल्याणक में ऐलक शांन्तिसागरजी की मुनि देवेंद्रकिर्ती जी के करकमलों से मुनीदीक्षा संपन्न हुई थी। प्रसंग है उनहीका मुनी दीक्षा शताब्दी महोत्सव मनाने का उन्ही की परंपरा के पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमानसागरजी संसघ के सान्निध्य में, कई लोगे ने आचार्य श्री से प्रश्न किया आप यरनाल जा रहे है वो तो गांव है। वहाँ कैसे व्यवस्था होगी लोग भी कैसे आयेंगे आदि अनेक प्रश्न उपस्थित हुए। तब आचार्य श्री ने सरलभाषा में उत्तर दिया हम दीक्षा स्थली तीर्थपर जा रहे है। ये सामान्य भूमी नहीं दीक्षा तीर्थ स्थल है। देखते हि देखते पूरे गांव के स्थिती बदल गई अनेक जन कल्याणक कार्य संपन्न हुये। गांव वाले आचार्य श्री के प्रवास से हर्षित हुए। उन लोगों ने प्रथम बार वात्सल्यमूर्ति गुरुदेव व विशाल संघ का दर्शन कर सान्निध्य प्राप्त किया। और सम्पूर्ण यरनाल प्रवास में उत्तर भारत के श्रावक श्रेष्ठियों ने चौका लगाकर अहार दान कर अतिशय पुण्यार्जन किया। और दीक्षा भूमी की रज को मस्तक पर लगा कर विशाल पुण्य प्राप्त किया। श्रावण के महिने मे वर्षा का जोर रहा। अचानक से नदी में आई बाढ से चातुर्मास स्थल में पानी आ गया। जिसके फल स्वरूप संघ चातुर्मास स्थल को छोड कर ३ किलो मीटर दूरी पर स्थित कॉलेज में ठहरा। संघ का वहाँ लगभग १५ दिन का प्रवास रहा। इसी दौरान एक और दुर्घटना हुई। संघ के अनन्य भक्त श्रीमान सोहनलाल जी (काकाजी) सेलम का हृदयविकार से निधन हो गया। १५ दिनों के पश्चात संघ पुनः चातुर्मास स्थल पर आया। आचार्यश्रीका हि पुण्य प्रताप था कि बाढ़ आने पर भी कोई जन धन हानी नही हुई। चातुर्मास के स्थल को पुनः व्यवस्थित करने मे बेलगाम के श्रावकों ने राजु दोड्डण्णवर, विनोद दोड्डण्णवर जी, राजु कटगेण्णवर, पुष्पक हणमण्णवर, अभिनंदन जाबण्णवर का बहुत सहयोग रहा। चातुर्मास के दौरान ही संघस्थ मुनि श्री नमितसागरजी का स्वास्थ बिगड़ गया उन्होंने आचार्यश्री से सल्लेखना हेतु निवेदन किया। ३ उपवास पूर्वक २० सितंबर को अहंत सिद्ध सुनते हुए देह का विसर्जन किया। समस्त ग्रामवासियों की अनुमोदन से मुनिश्री के निषधि स्थलपर चरण छतरी का निर्माण हुआ। चातुर्मास के दौरान अनेक धार्मिक अनुष्ठान संपन्न हुए। उसमे बृहत भक्तामर विधान का आयोजन किया गया। स्थानीय लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। आचार्य श्री शान्तिसांगर स्तंभ (शान्ति स्तंभ) का कार्य प्रारंभ हुआ। राजस्थान से मकराना सफेद मार्बल लाया गया। महोत्सव का ध्वजारोहण हो गया। साथ ही दो दिक्षाए भी संपन्न हुई। श्रीमद् जिनेंद्र चंद्रप्रभ भगवान पंचकल्याण प्रतिष्ठा ५ फरवरी से ९ फरवरी तक संपन्न हई। तप कल्याणक के दिन भारत वर्ष से विशेष गणमान्य अतिथी पधारे। श्रवणबेळगोळ से चारुकीर्ती भट्टारक स्वामी सहीत अनेक भट्टारक गण उपस्थित हुए प्रसंग था राष्ट्रीय स्तर पर निर्मीत मुनि दिक्षा शताब्दी महोत्सव के उपलक्ष मे भव्य शान्ति स्तंभ का लोकापर्ण का ७ फरवरी के मध्याह्न के शुभ मुहूर्त में आचार्य श्री शान्तिसागर के प्रतिमा शान्ति स्तंभ पर विराजमान स्थापीत हुई। इस स्तंभ पर चारो तरफ आचार्य श्री की जीवन चरित्र का निर्माण हुआ एवं चरण स्थापीत हुए। पुरे चातुर्मास मे विशेष कर आर. के. मार्बल किशनगढ़ एवं राजेंद्र जी कटारीया अहमदाबाद में अपनी धन लक्ष्मी का सदुपयोग किया। आयोजन की समाप्ती के पश्चात यरनाल चातुर्मास के काल में संघ की सेवा करनेवाले मुख्य पांच श्रावकोंने आचार्यश्री से बेलगांव कि ओर प्रस्थान करने का निवेदन किया। आचार्यश्री ने प्रदान की। संघ का विहार यरनाल से बेलगांव कि ओर हो गया। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन आचार्यश्री के चरण संघसहीत माणीकबाग दिगंबर जैन बोडींग बेलगाँवी मे पडे। आचार्यश्री विहार का विचार कर ही रहे थे की अचानक से पूरे भारत वर्ष में कोरोना महामारी का संकट आ गया। पूरे देश भर में लॉक डाऊन लगने से विहार स्थगीत करना पड़ा। बेलगांव के संपूर्ण समाज सहीत स्थानीय विधायकों के निर्देशन में आचार्य संघ को बेलगांव में ही चातुर्मास करने हेतु श्रीफल अर्पित किया। आचार्य श्री ने वस्तुस्थिती को जानकर वर्ष २०२० की चातुर्मास कि घोषणा बेलगांव में करने का घोषणा कि। इस चातुर्मास में विशेष कार्य होना था ३ साधुओं की १२ वर्षीय यम सल्लेखना पूरी होनी थी। स्थान के लिए चर्चा हुई तो बोर्डीग कमीटी ने बोडींग मे ही स्थान दे दिया। इस तरह एक ऐतिहासिक वर्षायोग संपन्न हो गया। जिस मे ७ समाधीयांहुई पहली बार संघ में एक दिन मे दो समाधी का प्रसंग भी आ गया।निर्यापक आचार्य श्री, यम सल्लेखनाधारी सांधुओंको संबोधन करते थे की आप धन्य है हमे गौरव करना चाहिए के हमे आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज जी के कुल मे जन्म लिया है और उनके पद चिन्हो पर चल रहे है।बस्तवाड की कस्तूरी अम्मा ने साथ ही आचार्यश्री के परम भक्त कोलकत्ता निवासी श्री कैलाश जी सेठी ने भी दिक्षा हेतु श्रीफल चढ़ाया। दीक्षा तीर्थ पर बसंत पंचमी के शुभ दिन ३१ जनवरी २०२० को पंचकल्याण प्रतिष्ठ श्री के आशिर्वाद और प्रेरणा से समस्त समाधीस्थ साधुओंकी स्मृति में दिव्य निषधी स्थल के निर्माण कि योजना बनी। एवं १०० वर्ष पुरानी इमारत का जिर्णोद्धार कर आचार्य शान्तिसागर स्मारक बनाने का निश्चय किया। संघ माणीकबाग से विहार करके हिंदवाडी में आया। कुडची ग्राम निवासी श्रीमती ज्वालामालीनीदेवी कि आर्यिका दिक्षा संपन्न हुई। २१ विं सदी का प्रथम मस्तकाभिषेक श्री अतिशय क्षेत्र महावीरजी में संपन्न होने जा रहा है। वहाँ मूलनायक श्री अतिशयकारी भगवान महावीर का २५० वर्ष बाद अभिषेक होगा। कमेटी के पदाधिकारी गण आचार्य श्री से सान्निध्य प्रदान करने हेतु निवेदन करने आये आचार्य श्री ने निवेदन पर स्विकृती प्रदान की। समय बीता और ननिर्माण आचार्य शानिन्तसागर स्मारक का लोकार्पण ५ मार्च २०२१ को आचार्यश्री के सन्निध्य में संपन्न हुआ और आचार्यश्री ने उसी दिन श्रीक्षेत्र महावीरजी राजस्थान के लिये विहार किया। अभी तक पुरे भारत वर्ष में आचार्य श्री ने अपने ५२ वर्षीय दीक्षित जीवन में लगभग ३५००० किलो मीटर की पदयात्रा की है। इस तरह आचार्य श्री के कुल ५२ चातुर्मास, ३२ आचार्य पदारोहण दिवस सम्पन्न हुये एवं आचार्य श्री के कर कमलों से अभी तक ८७ जैनेश्वरी दीक्षाएँ प्रदान की गई जिसमें ३० मुनि, ३३ आर्यिका, १३ क्षुल्लक, १० क्षुल्लिका एवं १ ऐलक दीक्षा प्रदान की गई। आचार्य श्री के निर्यापकत्व में ५२ समाधि सम्पन्न हुई एवं ५४ पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएँ सम्पन्न हुई। चारित्र चक्रवती आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की समाज संगठन की भावना और निर्भयता, आचार्य श्री वीरसागरजी की निर्मलता, आचार्य श्री १०८ शिवसागरजी का अनुशासन, आचार्य श्री १०८ धर्मसागरजी की बालसहज निर्दोषता, सहजता और निस्पृहता, आचार्यश्री अजितसागरजी की अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगिता, संयतवाणी और चिन्तनशक्ति ये सभी एक व्यक्तित्व में समायोजित होकर वृद्धिंगत हुई हैं, ऐसा व्यक्तित्व है वात्सल्यवारिधि आचार्यश्री वर्धमानसागरजी का। उनके शतायु होने की मंगल कामना के साथ उनके पाद-पद्म में कोटि-कोटि नमोस्तु।
प्रेरक प्रसंग:
हमारी छोड़ेंगे नहीं आपकी बिगाड़ेंगे नहीं :आपने सम्पूर्ण भारत वर्ष में उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम, पश्चिम बंगाल से पाण्डिचेरी तमिलनाडू तक विहार कर अपनी चर्या व गुरु परम्परा से जो संघ की आहार-विहार व चल चैत्यालय की परम्परा या विधि है उसमें परिवर्तन नहीं किया उनकी एक ही बात थी कि हमारी छोड़ेंगे नहीं, आपकी बिगाड़ेंगे नहीं। संघ की आहार चर्या हो या अभिषेक विधि कहीं भी समझौता नहीं। संघ कि विधि से जो आहार देता है उससे ही लेते हैं। चैत्यालय संघ में है उसमें प्रतिदिन शुद्ध सामग्री मिलने पर पंचामृत अभिषेक होता है। जब रातोंरात कुए में आया पानी गिरनार की यात्रा हेतु संघ आगे बढ़ रहा था। आगे का रास्ता गुजरात के चन्दुकाका देखते थे। आज के आहार के बाद कल का आहार किसी बगीचे में होना था, संगमें करीब १०० लोग थे इतने बड़े संघ को देखकर वहाँ के माली ने कहा इतना पानी कुएँ में नहीं है लेकिन चन्दकाका ने कहा भैय्या हमें आपके कुएँ का पानी सिर्फ साधुओं के आहार के लिए चाहिये अन्य लोगों के लिए नहीं हम और लोगों के लिये नल का पानी काम में लेंगे। इतनी बात बताने के बाद उसने वहाँ रुकने दिया। फिर रातों रात कुएँ में पानी इतना आया कि सुबह पुरे संघ का आहार हुआ और पहले से करीब एक हाथ पानी बढ़ गया। तब बगीचे का माली बोलने लगा महाराज मुझे क्षमा कर दो मैंने संघ को ज्यादा पानी लेने के लिए मना किया था। आप तो दो-तीन दिन और यहीं रुक जाओ। यह है संतों की तपस्या का फल। ये तो गुरुओं के आशीर्वाद का फल है: आचार्य महाराज से लोगों ने प्रश्न किया कि महाराज! आपका तो बहुत बड़ा पुण्य है कि आपके सान्निध्य में दो-दो बार भगवान श्री बाहुबली क महामस्तकाभिषेक हुआ। और भी आपके सान्निध्य में बहुत बड़े-बड़े आयोजन हुए। आचार्य महाराज ने कहा कि यह हमारा पुण्य नहीं है यह तो गुरुओं के आशीर्वाद का फल है कि ऐसे आयोजन हमारे सान्निध्य में हो रहे हैं। गुरुओं के आर्शीर्वाद बिना कुछ भी नहीं होता, उनके कारण ही सब कुछ है। इतनी लघुता उनमें है कि कभी भी उन्होंने अपने नाम को नही चाहा। आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागर जीवन परिचय भी श्रेष्ठ होता है उसका श्रेय अपने गुरुओं को दे देते हैं।
मैं हूँ ना:
चम्पापुर २००९ चातुर्मास की बात है मुनि श्री १०८ हितेन्द्र सागरजी को निरन्तर अन्तराय चल रहा था। आहार काफी दिनों से ठीक नहीं हो रहा था और जिस कारण शरीर निर्बल होता जा रहा था। मुनि श्री १०८ हितेन्द्र सागरजी इन्हीं अन्तरायों की श्रृंखला में बगीचे के मन्दिर में बैठे थे, अचानक उन्हे घबराहट हुई और वे वही भगवान की प्रतिमा के पास लेट गये। इधर आचार्य महाराज देख रहे हैं कि हितेन्द्र सागर अभी तक नहीं आये रोज तो बगीचे मन्दिर से इस समय तक आ जाते थे। शंका हई तो आचार्य महाराज बगीचे के मन्दिर में पहुँचे। देखा कि मुनि हितेन्द्रसागर जी लेटे हुए हैं, महाराज ने हिलाया लेकिन शरीर में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, आचार्य महाराज ने कमण्डल से पानी लिया चेहरे पर डाला तो हितेन्द्रसागर जी को चेतना आयी, हितेन्द्र सागर जी देखते हैं कि मेरा शरीर धीरे-धीरे ठण्डा होता जा रहा है तो मुनि श्री ने आचार्य श्री से कहा कि अगर आपको मेरे बारे में कुछ लगता है तो मुझे त्याग करा दो और मेरी सल्लेखना करा दो तब आचार्य श्री ने कहा “मैं हूँ ना” इतना वात्सल्य देखकर मानो उनमें नई चेतना आ गयी और उन्हें इससे बहुत हिम्मत मिली।
कमण्डलु के पानी से मिला जीवन:
राजस्थान महुआ की घटना एक ७-८ वर्ष का बालक जो अचानक बीमार हो गया और बेहोशी छा गई कई डॉक्टरों ने उसका इलाज किया लेकिन सब हार गये। अन्ततः डॉक्टरों ने मना कर दिया कि इलाज मुश्किल है, परिवार के लोग घबड़ा गये क्या करें क्या न करें? बच्चे के पिता ने उसे उठाया ओर आचार्य महाराज के श्री चरणों में रख दिया और कहा इस बच्चे का जो करना हो सो करो? आचार्य श्री ने कमण्डलु का पानी उस बच्चे पर दो चार बार डाला और पता नहीं क्या चमत्कार हुआ कि बच्चा बोलने लगा, उठा और महाराज को नमोस्तु किया।
जिनकी देवता भी व्यवस्था करते हैं:
२००६ भगवान बाहुबली का महामस्तकाभिषेक होना था। संघ राजस्थान से श्रवणबेलगोला की ओर विहार कर रहा था। एक दिन पानी की समस्या आ गइ। कुआ नहीं मिल रहा था संघ संचालक हुलास जी सबलावत सहित अन्य साथियों को चिन्ता होने लगी। कल आहार कैसे होगा, पानी नहीं मिल रहा है रात के ग्यारह बज चुकी है, क्या करें! अचानक एक व्यक्ति आया और बोला भाई साहब कुआ तो यहीं आपके पास में ही है, कहाँ है? अपने साथ जाकर कुँआ दिखाया। सवेरे संघस्थ लोगों ने सोचा चलो उस व्यक्ति को धन्यवाद देना चाहिए। देखा तो ग्राम में इस प्रकार का व्यक्ती ही नही था। सच में वह व्यक्ति नहीं अपितु कोई देवता था कि रात में ११ बजे कुआ दिखाकर अदृश्य हो गया। यह था व्रतों के प्रति अहोभाव का प्रभाव जिसे निभाने के लिए देवता भी आकर सहयोग देते है।
गुरुदर्शन से खुला अवरुद्ध कण्ठ:
आचार्य श्री १०८ धर्मसागरजी का अभिनन्दन ग्रंथ पूज्य मुनि श्री १०८ वर्धमान सागरजी के सत्प्रयास से निकला जिसके विमोचन का कार्य भीण्डर (राजस्थान) में विशाल जनसभा के बीच राष्ट्रीय स्तर पर सम्पन्न हुआ कार्यक्रम की अति व्यस्तता-अतिपरिश्रम की वजह से या आसाता वेदनीय कर्मोदय से कण्ठ अवरुद्ध हो गया मुँह से वाणी निकलना बन्द हो गयी। सभी साधु चिन्तित हो गये कि वर्धमान सागर जीका दुर्दैव ने पीछा नहीं छोड़ा। कर्म कितनी परीक्षा लेगा। फिर भी धैर्य के साथ बिहार किया और पहुँचे आचार्य श्री १०८ धर्मसागरजी के पास धरियावद नगर में। मुनि श्री ने जैसे ही गुरु चरणों को स्पर्श किया कि उनकी अवरुद्ध वाणी खुल गई और अपने गुरुवर को सबसे पहले नमोऽस्तु बोले तो संघ में खुशी की लहर दौड़ गई। निर्ग्रन्थ के ग्रन्थी कैसे? आचार्य श्री १०८ वर्धमानसागरजी के जीवन को सुक्ष्मता से देखते हैं तो जीवन इतना सहज, सरल, सौम्य दिखाई देता है। आपके जीवन में कई संघर्ष आये लेकिन आपने हँसते-हँसते सहन किये। जिस किसी श्रावक-श्राविका मुनि आर्यिका ने परोक्ष रूप से आपकी निन्दा की, आपकी अप्रभावना के लिए कई पुरुषार्थ किये तथापि आपने समता भाव को नही छोडा और जब भी वे आकर मिले तो आपने पुरानी भूलों को भूलकर उन्हें हृदय से लगाया।
निमाड़ के लाल हुए आचार्य शिरोमणि की उपाधि से विभूषित दिनांक २६ अप्रैल २०२३ को: महावीर स्वामी के जन्मोत्सव पर बालब्रह्मचारी परम परंपरा के पंचम पट्टाधीश वर्धमान सागर को आचार्य शिरोमणि उपाधि से विभूषित किया गया।
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