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साधुओं को अवश्य दें आहारदान - किंतु रहें सावधान ?

(A) पूजन एवं आहारदान संबंधी निर्देश :

1.

आहार नवधा भक्तिपूर्वक ही देवें, क्योंकि इस विधिपूर्वक दिया गया आहारदान ही पुण्य बंध का कारण होता है। नवधा भक्ति –

(1) पड़गाहन

(2) उच्चासन

(3) पादप्रक्षालन

(4) पूजन

(5) नमन

(6) मनशुद्धि

(7) वचनशुद्धि

(8) कायशुद्धि

(9) आहार एवं जलशुद्धि ।

नोट :- यदि साधु का नाम मालूम है तो नाम लेकर पूजन करें नहीं तो बिना नाम के भी पूजन कर सकते हैं। यदि साधु का स्वास्थ्य खराब है या समय नहीं है तो उदक चंदन आदि बोलकर अर्घ भी चढ़ा सकते हैं ।

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पूजन विधि –

पूज्य श्री जी के चरणों में हम, झुका रहे अपना माथा,

ॐ ह्रीं श्री

ॐ ह्रीं श्री

ॐ ह्रीं श्री

ॐ ह्रीं श्री

ॐ ह्रीं श्री

ॐ ह्रीं श्री

ॐ ह्रीं श्री ……..

ॐ ह्रीं श्री

ॐ ह्रीं श्री

ॐ ह्रीं श्री

ॐ ह्रीं श्री

जिनके जीवन की हर चर्या, बन पड़ी स्वयं ही नव गाथा । जैनागम का वह सुधा कलश, जो बिखराते हैं गली-गली,

जिनके दर्शन को पाकर के, खिलती मुरझाई हदय कली ॥

सागर जी मुनीन्द्र अत्र अवतर – अवतर संवोषट आह्वानन् ।

सागर जी मुनीन्द्र अत्र तिष्ठ – तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ।

‘सागर जी मुनीन्द्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् ।। सागर जी मुनीन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । सागर जी मुनीन्द्राय संसार ताप विनाशनाय चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा । सागर जी मुनीन्द्राय अक्षय पद प्राप्ताये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा । सागर जी मुनीन्द्राय काम वाण विध्वं सनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा । सागर जी मुनीन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । सागर जी मुनीन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । सागर जी मुनीन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । सागर जी मुनीन्द्राय मोक्ष फल प्राप्ये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।

उदक चंदन तदुल पुष्पकैश्चरू – सुदीप-सुधूप-फलार्घ्यकै : धवल – मंगल-गान -रवाकुले मम् गृहे मुनिराज महम् यजे ।। ॐ ह्रीं श्रीं

सोला – सोलह प्रकार की शुद्धि :

सागर जी मुनीन्द्राय अनर्घ पद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।

. द्रव्य शुद्धि – (अ) अन्न शुद्धि – खाद्य सामग्री सड़ी, गली, घुनी एवं अभक्ष्य न हो। (ब) जल शुद्धि – जल जीवानी किया हुआ हो, प्रासुक हो, नल का न हो। (स) अग्नि शुद्धि – ईंधन देखकर शोधकर उपयोग किया गया हो। (द) कर्त्ता शुद्धि – भोजन बनाने वाला स्वस्थ हो, तथा नहा धोकर साफ कपड़े पहनें हो, नाखून बड़े न हो, अंगूली वगैरह कट जाने पर खून का स्पर्श खाद्य वस्तु से न हो, गर्मी में पसीना का स्पर्श न हो, या पसीना खाद्य वस्तु में न गिरे।

क्षेत्र शुद्धि – (अ) प्रकाश शुद्धि – रसोई में समुचित सूर्य का प्रकाश रहता हो। (ब) वायु शुद्धि – रसोई में शुद्ध हवा का आना जाना हो। (स) स्थान शुद्धि – आवागमन का सार्वजनिक स्थान न हो एवं अधिक अंधेरे वाला स्थान न हो। (द) दुर्गंधता सं रहित – हिसादिक कार्य न होता हो गंदगी से दूर हो ।

  1. काल शुद्धि – (अ) ग्रहण काल – चन्द्र ग्रहण या सूर्यग्रहण का काल न हो। (ब) शोक काल – शोक, दुःख अथवा मरण

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