Category: पूजा-pooja

Digambar Jain Poojas

Aug 12
Mangal Path मंगलपाठ

मंगलमूर्ति परमपद, पंच धरौं नित ध्यान। हरो अमंगल विश्व का, मंगलमय भगवान् ।१।

Aug 12
Pooja Vidhi Prarambh पूजा विधि प्रारम्भ

ॐ जय! जय!! जय!!! नमोऽस्तु! नमोऽस्तु!! नमोऽस्तु!!! णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं। ।

Aug 08
Vinay Path विनय पाठ

इह विधि ठाड़ो होय के, प्रथम पढ़े जो पाठ। धन्य जिनेश्वर देव तुम, नाशे कर्म जु आठ।१।

Jul 08
Kshirodadhi Unhar Ujjval Jal- Ratnatraya Puja- Pandit Dyaanataraay-Krut क्षीरोदधि उन्हर उज्जवल जल – रत्नत्रय पूजा – पंडित द्यानतराय कृत

चहुंगति-फनि-विष-हरन-मणि, दुख-पावक-जल-धार शिव-सुख-सुधा-सरोवरी, सम्यक्-त्रयी निहा॥

Jul 08
Gyaanaanubhooti Hee Paramaamrt hai-Shri-Vitarag-Pujan- Pandit-Ravindraji- Krut ज्ञानानुभूति ही परमामृत है – श्री वीतराग पूजन – पंडित रविन्द्रजी कृत

शुद्धातम में मगन हो, परमातम पद पाय। भविजन को शुद्धात्मा, उपादेय दरशाय॥

Jul 08
Ratnatray Roopee Samyak Jal Kee Dhaara- Anant Tirthankara Puja- Pandit-Raajamal-Pavaiya- Krut रत्नत्रय रूपी सम्यक् जल की धारा – अनंत तीर्थंकर पूजा – पंडित राजमल पवैया कृत

ढाई द्वीप के भूतकाल में हुए अनंतों तीर्थंकर। वर्तमान में भी होते हैं ढाई द्वीप में तीर्थंकर॥

Jul 08
Atmjnana Vaibhav ke Jal -Chaubic Tirthankar Puja- Pandit dyaanataraay- Krut आत्मज्ञान वैभव के जल – चौबीस तीर्थंकर पूजा – पंडित द्यानतराय कृत

भरत क्षेत्र की वर्तमान जिन चौबीसी को करूँ नमन । वृषभादिक श्री वीर जिनेश्वर के पद पंकज में वन्दन॥

Jul 03
Muni-mana-sam Ujjwal Nir-Chaubic Tirthankar Puja- Pandit-Vrindavandas- Krut मुनिमनसम उज्ज्वल निर – चौबीस तीर्थंकर पूजा – पंडित वृंदावनदास कृत

वृषभ अजित सम्भव अभिनन्दन, सुमति पदम सुपार्श्व जिनराय चन्द पुहुप शीतल श्रेयांस जिन, वासुपूज्य पूजित सुरराय॥

Jun 26
Sat Tattva Shraddha Ke Jal- Trikal-Chaubici-Poojan-Pandit-Dyantaray Krut सात तत्व श्रद्धा के जल – त्रिकाल चौबीसी पूजन – पंडित द्यानतराय कृत

श्री निर्वाण आदि तीर्थंकर भूतकाल के तुम्हें नमन। श्री वृषभादिक वीर जिनेश्वर वर्तमान के तुम्हें नमन॥

Jun 24
Himavan-Gata Ganga Adi Abhanga-Siddha Puja – Kavishree Hirachand Krut हिमावन-गत गंगा आदि अभंग – सिद्ध पूजा – कविश्री हिराचंद कृत

अष्ट-करम करि नष्ट अष्ट-गुण पाय के, अष्टम-वसुधा माँहिं विराजे जाय के ऐसे सिद्ध अनंत महंत मनाय के, संवौषट् आह्वान करूँ हरषाय के॥

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