Digambar Jain Poojas
निज वज्र पौरुष से प्रभो ! अन्तर-कलुष सब हर लिये प्रांजल प्रदेश-प्रदेश में, पीयूष निर्झर झर गये॥
चिदानंद स्वातम रसी, सत शिव सुंदर जान। ज्ञाता दृष्टा लोक के, परम सिद्ध भगवान॥
हे सिद्ध तुम्हारे वंदन से उर में निर्मलता आती है। भव-भव के पातक कटते हैं पुण्यावलि शीश झुकाती है॥
भव्य जिवांनो! भावे ऐका, महती दशविध धर्माची सुखमय मंगलकारक विजयी, वाणी वीर जिनेशाची । वंदे श्रीजिनम् । वंदे श्रीजिनम् ॥ घृ. ॥
अक्षय तृतीया पर्व है मंगलमय अविकार। ऋषभदेव मुनिराज का हुआ प्रथम आहार ।।
अरिहंत सिद्धाचार्य पाठक साधु त्रिभुवनवन्द्य हैं जिनधर्म जिनागम जिनेश्वर मूर्ति जिनग्रह वन्द्य हैं॥
श्री अरहंत सिद्ध, आचार्योपाध्याय, मुनि साधु महान। जिनवाणी, जिनमंदिर, जिनप्रतिमा, जिनधर्मदेव नव जान॥
अरहन्त सिद्ध आचार्य नमन, हे उपाध्याय हे साधु नमन जय पंच परम परमेष्ठी जय, भवसागर तारणहार नमन॥
देव-शास्त्र-गुरु नमन करि, बीस तीर्थंकर ध्याय I सिद्ध शुद्ध राजत सदा, नमूँ चित्त हुलसाय॥
वीतराग अरिहंत देव के पावन चरणों में वन्दन। द्वादशांग श्रुत श्री जिनवाणी जग कल्याणी का अर्चन॥
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