Digambar Jain Poojas
शांतिनाथ मुख शशि उनहारी, शीलगुणव्रत संयमधारी लखन एक सौ आठ विराजे, निरखत नयन कमल दल लाजै ॥
क्षण-भर निज-रस को पी चेतन, मिथ्या-मल को धो देता है । काषायिक-भाव विनष्ट किये, निज आनन्द-अमृत पीता है ॥
पूजूँ मैं श्री पंच परमगुरु, उनमें प्रथम श्री अरहन्त । अविनाशी अविकारी सुखमय, दूजे पूजूँ सिद्ध महंत ॥
महावीर निर्वाण दिवस पर, महावीर पूजन कर लूँ वर्धमान अतिवीर वीर, सन्मति प्रभु को वन्दन कर लूँ ॥
प्रथम देव अरहंत, सुश्रुत सिद्धांत जू गुरु निर्ग्रन्थ महन्त, मुकतिपुर पन्थ जू ॥
देव-शास्त्र-गुरुवर अहो! मम स्वरूप दर्शाय। किया परम उपकार मैं, नमन करूँ हर्षाय॥
शुद्ध ब्रह्म परमात्मा, शब्दब्रह्म जिनवाणी। शुद्धातम साधक दशा, नमो जोड़ जुग पाणि।
वर्धमान अतिवीर वीर प्रभु सन्मति महावीर स्वामी वीतराग सर्वज्ञ जिनेश्वर अन्तिम तीर्थंकर नामी ॥
You cannot copy content of this page