1.Rishabhanath
2.Ajitanath
3.Sambhavanath
4.Abhinandananath
5.Sumatinath
6.Padmaprabhu
7.Suparshvanath
8.Chandraprabhu
9.Pushpadanta/Suvidhinatha
10.Shitalanath
11.Shreyansanath
12.Vasupujya
13.Vimalanath
14.Anantanath
15.Dharmanatha
16.Shantinath
17.Kunthunath
18.Aranatha
19.Mallinath
20.Munisuvrat
21.Naminath
22.Neminath
23.Parshvanath
24.Mahavira
Mahavira (Devanagari: महावीर, Mahāvīra), also known as Vardhamana (Devanagari: वर्धमान, Vardhamāna), was the 24th Tirthankara (supreme preacher) of Jainism. He was the spiritual successor of the 23rd Tirthankara Parshvanatha. Mahavira was born in the early 6th century BCE into a royal Jain family of ancient India. His mother’s name was Trishala and his father’s name was Siddhartha. They were lay devotees of Parshvanatha. Mahavira abandoned all worldly possessions at the age of about 30 and left home in pursuit of spiritual awakening, becoming an ascetic. Mahavira practiced intense meditation and severe austerities for twelve and a half years, after which he attained Kevala Jnana (omniscience). He preached for 30 years and attained moksha (liberation) in the 6th century BCE, although the year varies by sect.
Mahavira taught that observance of the vows of ahimsa (non-violence), satya (truth), asteya (non-stealing), brahmacharya (chastity), and aparigraha (non-attachment) are necessary for spiritual liberation. He taught the principles of Anekantavada (many-sided reality): syadvada and nayavada. Mahavira’s teachings were compiled by Indrabhuti Gautama (his chief disciple) as the Jain Agamas. The texts, transmitted orally by Jain monks, are believed to have been largely lost by about the 1st century CE.
Code : ‘#fae1a7’
Birth Place : Kundulpur, Bihar
Moksh : Pavapuri
Mahavira | |
24th Tirthankara | |
The idol of Tirthankara Mahavira at Ahinsa Sthal | |
चिन्ह Sign | |
अन्य नाम Other names
| वीर, अतिवीर, वर्धमान, सन्मति Vira, Ativira, Vardhamana, Sanmatinatha |
चिन्ह नाम Sign Name | Lion सिंह |
Predecessor | Parshvanatha |
Successor | Mahāpadma/Padmanābha (first Tirthankara of the ascending next half of time-cycle) |
Mantra | Śrī Mahāvīrāya Namaḥ |
Symbol | Lion[7] |
Age | 72 |
Tree | Shala |
Complexion | Golden |
Festivals | Mahavir Janma Kalyanak, Diwali |
Personal information | |
Born | ल॰ ५९९ – ५२७ ई॰पू॰ Vardhamāna c. 599 BCE Kundalpur, Nāya, Vajji (present-day Nalanda district, Bihar, India) |
Nirvan | c. 527 BCE or 525 BCE[8] Pawapuri, Magadha (present-day Nalanda district, Bihar, India) |
Parents |
|
Siblings | Nandivardhana Sudarśanā |
Dynasty | Ikshvaku dynasty |
Hindi Info
भगवान महावीर (Mahāvīra) जैन धर्म के चौंबीसवें (24वें) तीर्थंकर थे। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले (ईसा से 540 वर्ष पूर्व), वैशाली गणराज्य के कुण्डग्राम में अयोध्या इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुणिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।
जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले।[1] हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया।[2] उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) ,ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धान्त दिए। महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसन्द हो। यही महावीर का ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धान्त है।
भगवन महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के कुण्डग्राम में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था।[उद्धरण चाहिए] ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति होने से उनका नाम वर्धमान रखा गया था। जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे पांच नामों का उल्लेख है।[3] इन सब नामों के साथ कोई कथा जुडी है। जैन ग्रंथों के अनुसार, २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के 188 वर्ष बाद इनका जन्म हुआ था।[4]
दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर बाल ब्रह्मचारी थे। भगवान महावीर शादी नहीं करना चाहते थे क्योंकि ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था। भोगों में उनकी रूचि नहीं थी। परन्तु इनके माता-पिता शादी करवाना चाहते थे। दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था।
Code : ‘#fae1a7’
तीर्थंकर महावीर | |
विवरण | |
अन्य नाम | वीर, अतिवीर, वर्धमान, सन्मति |
एतिहासिक काल | ल॰ ५९९ – ५२७ ई॰पू॰ |
शिक्षाएं | अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्तवाद |
पूर्व तीर्थंकर | पार्श्वनाथ |
गृहस्थ जीवन | |
वंश | इक्ष्वाकु |
पिता | राजा सिद्धार्थ |
माता | त्रिशला |
पंच कल्याणक | |
जन्म कल्याणक | चैत्र शुक्ल त्रयोदशी |
जन्म स्थान | कुण्डग्राम, वैशाली के निकट |
मोक्ष | कार्तिक कृष्ण अमावस्या |
मोक्ष स्थान | पावापुरी, जिला नालंदा, बिहार |
लक्षण | |
रंग | स्वर्ण |
चिन्ह | सिंह |
आयु | 72 वर्ष |
शासक देव | |
यक्ष | मातंग |
यक्षिणी | सिद्धायिका |
गणधर | |
प्रथम गणधर | गौतम गणधर |
गणधरों की संख्य | ११ |
Data is being updated.