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#DayaSagarJiMaharaj1954NemiSagarJi1907
Acharya Shri 108 Daya Sagar Ji Maharaj was born on 13 March 1954 in Village-Bandabelai,Dist-Sagar,Madhya Pradesh.His name was Devendra Kumar Jain(Deepchand) before Diksha.He received initiation from Acharya Shri 108 Nemi Sagar Ji Maharaj.
प.पू. 108 आचार्य दयासागर जी महाराज गृहस्थ नाम देवेन्द्र कुमार जैन/दीपचन्द्र जैन है| गृहस्त माता-पिता का नाम श्रीमती शान्तिदेवी-सिंघई दशरथलाल जैन हैं | उनका जन्म बण्डा (बेलई), जिला-सागर, म.प्र. में १३ मार्च 1954 में हुआ हैं|
भाई:
श्री प्रकाश चन्द (अग्रज), अनुज श्री प्रमेचन्द, स्व. श्री जयकुमार, श्री सनत कुमार
बेहेन:
श्रीमती कान्तिदेवी, श्रीमती कमलादेवी, श्रीमती चमेलीदेवी, श्रीमती प्रेमादेवी एवं, श्रीमती शशिदेवी शिक्षा
मेट्रिक व्रतधारण:
पदयात्रा :- लगभग 40 हजार किमी.
भारत के लगभग समस्त क्षेत्रों की बन्दना, सम्मेदशिखर पर्वत की लगभग 200 बन्दना जिसमें 111 बन्दना सन् 1988 में
रचनाऐ : दया के दो शब्द, ज्ञान का विद्यासागर, आत्मभावना प्रदीप, दशधर्म, बृहद् आत्मभावना प्रदीप, सरोज भजनावली. ज्ञानवर्पण, जैनधर्म की रहस्यमयी गुप्त विद्याएँ । (यन्त्रा सम्बन्धी), जैनधर्म की रहस्यमयी गुप्त विधाएँ (मन्त्र सम्बन्धी), श्रावक ज्ञानदर्पण, निज भावना संग्रह, चौबीस तीर्थकर परिचय
प्रेरणा : ऋषिमण्डल विधान (दो संस्करण), धर्मरत्नाकर भक्तामर विधान, शान्ति विधान, ऋषिमण्डल,विधान, कालसर्पयोगदोषनिवारक मण्डल विधान साश्चिय
सान्निध्य: 45 ऋषिमण्डल विधान, 13 सिद्धचक्र विधान, 20 पंचकल्याणक विधान, 20 बेदी प्रतिष्ठा,3 कल्पगुम विधान विशेष
विशेष प्रेरणा: नेमिगिरि तीर्थ क्षेत्रा, नेमीनगर, बण्डा (बेलई) जिला सागर (म.प्र)
विशेष : 16 मार्च सन् 2000 को पूर्वांचल के असम प्रान्त में प्रथम पदार्पण करने का गौरव।
संक्षिप्त जीवन परिचय
भारतवर्ष के मध्य प्रदेश जिला सागर में एक स्थान हा बंडा बेलाई नाम से प्रसिद्ध है इसी नगर के श्रीमन्त कुल में श्री दशरथलाल जी जैन एव मातेश्वरी शांति बाई के यहाँ १३ मार्च १९५४ को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र रत्न जिसे कहते हैं वास्तव में रत्न रहा जो कि अपनी चमक से जग को प्रकाशित कर संसार सागर से पार होने का मार्ग आज मुनि अवस्था धारण कर दर्श रहे हैं। आपका बाल्यकाल का नाम दीपू था जिसको युवाकाल में देवेन्द्र कुमार नाम दिया गया। आपको बाल्य काल से ही धर्म के प्रति विशेष प्रेम था औरश्रावक के कर्तव्यों का गृहस्थ में रहकर पालन कर रहे थे। आप युवावस्था में ही गहस्थ से उदासीन हो गये थे आप आचार्य १0८ श्री विद्यासागर जी के तप एवं विद्या से अत्यधिक प्रभावित हुए और वहांरहकर १६ नवम्बर वर्ष १९७७ में ब्रह्मचर्यव्रत सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर मे आचार्य विद्या सागर जी से ग्रहण किया । २८ जुलाई १९७८ को आपने घर त्याग कर १०८ आचार्य विद्या सागर जी महाराज के
संघ में प्रवेश किया । संघ में रहकर जिनवाणी का अध्ययन करते रहे और १० जनवरो १९८० को सिद्ध क्षेत्र नैनागिरि पर युवा आचार्य १०८ श्री विद्या सागर जी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की ।
आचार्य महाराज श्री १०८ दयासगर जी उत्तरोत्तर मुनि दीक्षा ग्रहण करने के मार्ग पर चल रहे थे तथा बहुत शोघ्र मुनि धर्म अंगीकार करना चाहते थे । आपका क्षुल्लक अवस्था का नाम श्री १०५ क्षुल्लक सुगुप्ति सागर था। आपने आचार्य विद्यासागर जी महाराज से मुनि दीक्षा प्रदान करने हेतु कई बार निवेदन किया पर आचार्य महाराज ने आपको दीक्षा प्रदान करने के लिए कहा कि अभी रुको । महाराज श्री १०५ सुगुप्ति सागर जी महाराज क्षुल्लक अवस्था में आचार्य १०८ विद्या सागर जी महाराज का संघ छोडकर देहली आ गये। रास्ते में मथुरा चौरासी के दर्शन किए। देहलो आकर आप १०८ श्री नेमि सागर जी महाराज के दर्शनार्थ गए और महाराज श्री से मुनि दीक्षा ग्रहण करने के अपने भाव को प्रगट किया। महाराज श्री ने आपको अपने गुरू आचार्य श्री जय सागर जी महाराज के पास नौगांव जिला अलवर भेजा। वहाँ पर महाराज श्री ने आपको कहा कि हमारे पास नया पिच्छी कमण्डल नही है आप देहली में श्री १०८ नेमि सागर जी से दीक्षा ग्रहण कर लेना । सो आप को श्री नेमि सागर जी महाराज से गुरु आदेश से
क्षुल्लाक सगुप्ति सागर जी को२७जनवरी ८२ को प्रात: ७.३० बजे कूचा बुलाकी बेगम, कम्नोमल की धर्मशाला देहली में एलक दीक्षा प्रदान की तथा दया सागर जी नाम रखा ।
श्री दयासागर चालीसा दोहा- अरिहंतो को नमन कर, सिद्धों को शीश झुकाऊँ।
आचार्य श्री दयासागर जी, के में नित गुण गाऊँ।। परम पूज्य आचार्य श्री, ये धर्म कहै आगार।
ऐसे परम गुरुदेव को बंदू, बारम्बार।। चौपाई- जय हो गुरू दया के सागर, तुम हो गुरू जान की गागर।
नाम तुम्हारा जा कोई गावे, उसकी नैया पार हा जावे।।१ एम पी के सागर जिला के, जन्म लिया था बण्डा ग्राम।
तेरह मार्च की पावन तिथि को, जन्म लिया था गुरुवर आपने।।२ दशरथलाल के राजदुलारे, शान्ति देवि के हो सुकुमारे।
मात पिता हर्षित हो बोले, कैसा पाया चन्दा हमने।।३
दीपचन्द था नाम शिशु का, जिनसे प्रेरित सारा जग था। छोटी सी आयु में स्वामी, विषयों से मन अकुलाया था।।४
बाल्यावस्था में ही गुरुवर, समयसागर का ध्यान किया था।
सन् उन्नीस सौ बहत्तर में, गुरु ने मैट्रिक पास किया था। सन् उन्नीस सौ सतत्तर में, भादव सुदी अष्टमी के दिन। कुण्डलपुरनगरी में गुरुवर, ब्रह्मचर्यव्रत धारण किया था।।६
जून मास की २८ तिथि को, छोड दिया सब घर परिवारा। मन में जब वैराग्य हुआ था, राग द्वेष को छोडा पारा।।७
सन् उन्नीस सौ अस्सी की, १० जनवरी की पावन तिथि को। नैनागिरि में क्षुल्लक दीक्षा, विद्यासागर जी से पाई।1८
निमित योग से पहंचे गुरूवर, आचार्य श्री जयसागर के पास। आचार्यश्री ने भेजा तुमको, अपने शिष्य नेमिसागर के पास।।९।
उनको अपना गुरू बनाकर, २७ जनवरी की पावन तिथि को। दिल्ली में ऐलक की दीक्षा, ने मीसागर जी से पाई।।१०
सन् उन्नीस सौ ब्यासी को, दिल्ली के शालीमार बाग में। २१ अप्रैल की पावन तिथि को, मुनि दीक्षा गुरू नेमि से पाई।११
एक सौ ग्यारा पावन बन्दना, सम्मेदशिखर की की थी तुमने। चारों धाम की यात्रा करके, धर्म प्रचार किया है तुमने।।१२
फरवरी अठासी २० तिथि का, वह पावन दिन आया था।
ऋषिमण्डल के नगर नगर विहा कई मंत्रों को सिर शान्तिनाथ विधानयासागर जी ने, आचार्य पद को प्राप्त किया। लके हो आराधक, राग द्वेष और मोहमदमक।विहार करते, भक्तों का मार्गदर्शन करते ।।१४
को सिद्ध किया है, उपसगों को जीत लिया है। विधान कराते, रोग शाक को दूर भगाते ।।१५
इन्दिरा नगर में जिनमन्दिरकार रसों का त्याग किया है, चतुर्मास अन तपस्वी गुरुवर तुम हो, आत्म ध्यान में लीन रहते हो। प्रान्त के लखनऊ नगर में चमत्कार दिखलाया तुमने।नगर में जिनमन्दिर का निर्माण कराया गुरुवर आपने।।
१७ जगर जिला का बण्डागाम, उसमें बनाया तीरथधाम। पीनगर नाम है जिसका, वर्णन जिसका कर नहीं सकता।।१८
पडा में जल कहीं नहीं पाया, सब जन इससे है अकुलाया। चमत्कार गुरू ने दिखलाया, परवत पर जल स्रोत बहाया।।१९
२८ नवम्बर ९९ को, ने मिगिरी से किया विहार। असम प्रान्त में व्याकुल हैं प्राणी, जिनका करना हमें उद्धार।।२०
१६ मार्च सन् २००० को, सुखद संयोग यह अवसर आया। पर्वांचल की पावन धरा पर, जैनधर्म का बिगुल बजाया।।२१
पुण्योदय गुवाहाटी का आया, चातुर्मास यहाँ थरपाया। पूर्वांचल में पहली बार, चतुर्मास से हर्ष अपार ।।२२
छत्तिस मूल गुणों के धारक, हम श्रावक तेरे आराधक। पंचेन्द्रियों को जीत लिया है, कामाग्नि को नष्ट किया है।।२३
साधक बनकर करें साधना, दयाधर्म का मूल है जाना। ये संसार असार जानकर, घार लिया दिगम्बर बाना।।२४
तेरे दर्शन को जो आता, जन्म सफल उनका हो जाता। तेरी जय जय कार कर श्रावक, तेरी महिमा को गाते हैं।।२५
हम गुरूवर हैं भक्त तुम्हारे, भक्ति में डूबे है सारे। बारम्बार में शीश नवाऊँ, गुरू आशीष सदा में चाहूँ।।२६
गुरू दयासागर का चालीसा, जो चालिस दिन तक पढते हैं। गुरु भक्ति में ध्यान लगाकर, जन्म सफल बो करते हैं।।२७.
गुरूवर हमारे दया के सागर, सब दुखियों का दुख हरते हैं।
म सब उनके चरण कमल पर, जीवन अर्पित करते हैं।।२८
दोहा- ज्येष्ठ सुदी दसवीं दिवस, अर्द्धमाला बीस।
बाराबंकी में लिखा दयासागर चालीस।।२९ |
हम सब की ये भावना, गुरू चरण में हो शीश।
गुरू भक्ति में लीन रहे, मेटो जग के क्लेश।।३०
ह्रीं आचार्य श्री १०८ दयासागर गुरुवे नमः।
अनुवादक की प्रशस्ति भारत भूमि पर कामदेश में नागालैपट इतर III
3 नवम्बर 2024 को प्रातः 5:00 बड़ी दुखद घटना
बड़ी दुखद घटना परम पूज्य आचार्य श्री 108 दया सागर जी गुरुदेव आज दिनांक 3 नवम्बर को प्रातः 5:00 बजे सागर के लिए मंगल विहार हुआ एवं बापसी सागर से तीर्थ क्षेत्र नेमिनगर के लिए दोपहर 2:00 बजे मंगल विहार हुआ कुछ दूर पहुचते ही परम पूज्य गुरुदेव जिस व्हीलचेयर पर विहार कर रहे थे वह अचानक पलट गई और गुरुदेव गिर गये जिसकी बजह से *गुरुदेव के सीधे हांथ में फेक्चर हो गया एवं बहुत चोट आई है*
श्री भक्तामर महामंडल विधान, दया आत्म भावना एवं भक्तिसंग्रह, अमृत कलश, क्षण-क्षण का
सार, अनेक अन्य विधान और प्रवचन संग्रह आदि
#DayaSagarJiMaharaj1954NemiSagarJi1907
आचार्य श्री १०८ दया सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ नेमि सागरजी महाराज १९०७ Acharya Shri 108 Nemi Sagarji Maharaj 1907
Baranbanki(1990),Lucknow,Pune,Surat,Pawagarh,Kundalpur,Nainagiri,
Thubounji, Muktagiri, Secunderabad, Samamedashthaji, Ranchi, Dhanbad,
Jangipur, Jiaganj, Isri, Varanasi, Barabanki, Hyderabad, Nemigiri (Banda),
Guwahati, Tinsukia, Dibrugarh, Dimapur, Dhubri, Kanki, Kolkata,
Bali (Howrah), Noida, Secunderabad (Uttar Pradesh) ),
Bina, Gwalior, Ahmedabad, Surat (2017)
Dipika Hiralal Padliya,Kandivali east , Mumbai
Sanjul Jain created wiki page for Maharaj ji on 16-Feb-2021
DayaSagarJiMaharaj1954NemiSagarJi1907
Acharya Shri 108 Daya Sagar Ji Maharaj was born on 13 March 1954 in Village-Bandabelai,Dist-Sagar,Madhya Pradesh.His name was Devendra Kumar Jain(Deepchand) before Diksha.He received initiation from Acharya Shri 108 Nemi Sagar Ji Maharaj.
Acharya Shri Dayasagar Ji Maharaj's name before he took diksha was Devendra Kumar Jain / Deepchandra Jain. He was born to Mrs. Shantidevi-Singhai and Mr Dashrathalal Jain. He was born in Banda (Belai), District-Sagar, M.P. on 13 March 1954.
He has 3 brothers, Shri Prakash Chand (Former), Anuj Shri Pramechand, Late. Mr. Jayakumar, Mr. Sanath Kumar and had 3 sisters Smt. Kantidevi, Smt. Kamaladevi, Smt. Chamelidevi, Smt. Premadevi and, Smt. Shashidevi
He is educated till 10th std called as Metric during those times.
He has travelled 40,000 kms in India by feet, and did Shikharji vandana/darshan 200 times out of which 111 times in 1998.
श्री भक्तामर महामंडल विधान, दया आत्म भावना एवं भक्तिसंग्रह, अमृत कलश, क्षण-क्षण का
सार, अनेक अन्य विधान और प्रवचन संग्रह आदि
Acharya Shri 108 Daya Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ नेमि सागरजी महाराज १९०७ Acharya Shri 108 Nemi Sagarji Maharaj 1907
आचार्य श्री १०८ नेमि सागरजी महाराज १९०७ Acharya Shri 108 Nemi Sagarji Maharaj 1907
Baranbanki(1990),Lucknow,Pune,Surat,Pawagarh,Kundalpur,Nainagiri,
Thubounji, Muktagiri, Secunderabad, Samamedashthaji, Ranchi, Dhanbad,
Jangipur, Jiaganj, Isri, Varanasi, Barabanki, Hyderabad, Nemigiri (Banda),
Guwahati, Tinsukia, Dibrugarh, Dimapur, Dhubri, Kanki, Kolkata,
Bali (Howrah), Noida, Secunderabad (Uttar Pradesh) ),
Bina, Gwalior, Ahmedabad, Surat (2017)
Dipika Hiralal Padliya,Kandivali east , Mumbai
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