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#NemisagarJiMaharajShantisagarJi
His father's name was Anna. The death of his 1 brother was born. The second brother died at the age of 6. At the time of his mother's death, he was 12 years old. The name of Neminath Tirthankar's mother was Shivadevi. , His mother also had the same name. Where his initiation was performed, there was a statue of Neminath Lord from which he was named Nemi Sagar.
Acharya Shri 108 Devendra Kirti Ji Maharaj | ||
1.Charitrachakravarti Acharya Shri Shanti Sagar Ji Maharaj 1872 | ||
2.Acharya Shri 108 Nemisagar Ji Maharaj | ||
संक्षिप्त परिचय
जन्म:
जन्म स्थान : कुडची बेलगाँव
नाम : नेमन्ना
माता का नाम : शिवादेवी
पिता का नाम : नेमराज
ऐलक दीक्षा : सन १९२३, गोकाक जैन मंदिर
मुनि दीक्षा गुरु : चा.च.आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज
मुनि दीक्षा तिथि: कार्तिक सुदी १५ संवत १९८१
मुनि दीक्षा स्थान : समडोल बेलगाँव
मुनि दीक्षा नाम : मुनि श्री १०८ नेमिसागर जी महाराज
समाधि :
आचार्य पद त्याग :
इनके पिता का नाम अन्ना था |इनके १ भाई की म्रत्यु पैदा होते ही हो गयी |दुसरे भाई की म्रत्यु ८ वर्ष की आयु में हो गयी |माता की म्रत्यु के समय इनकी आयु १२ वर्ष की थी |नेमिनाथ तीर्थंकर की माता का नाम शिवादेवी था ,इनकी माता जी का भी यही नाम था |जहा इनकी दीक्षा के संस्कार हुए वहां नेमिनाथ भगवान् की मूर्ति थी जिससे इनका नाम नेमी सागर रखा गया |
आचार्य श्री १०८ नेमि सागर जी महाराज बहुत ही सरल स्वाभाव के थे |इनके बचपन का नाम नेम्मना स्वामी था |जैन धर्म से पूर्ण विमुख व्यापारी के जीवन को आचार्य शांति सागर जी ने बदल के रख दिया |और नेम्मना स्वामी को आचार्य नेमी सागर बना दिया |उनका दीक्षा से १ उपवास और १ एकासन का व्रत का नियम था |इस प्रकार उनका जीवन उपवासों में बीता |उन्होंने तीस चौबीसी व्रत के ७२० उपवास किये |कर्म दहन के १५६ तथा चरित्र शुद्धि व्रत के १२३४ उपवास किये |दस लक्षण में ५ बार १० -१० उपवास किये |अष्टान्हिका में ३ बार ८ -८ उपवास किये |इस प्रकार २४ उपवास किये |सोलह कारण व्रत के १६ उपवास भी किये |२ ,३ ,४ उपवास तो जब चाए तब कर लेते थे |उन्हें उपवास में आनंद आता था |इनके दीक्षा लेने के भाव १८ वर्ष की आयु में हो गये थे | उनका उसके पूर्व के जीवन की कथा बड़ी अद्भुत है जो इस प्रकार है :- नेमिसागर जी महाराज का पूर्व का जीवन सच मुच में आचार्य पद था |उन्होंने यह बात बताई थी ”मैं अपने निवास स्थान कुड्ची ग्राम में मुसलमानों का बड़ा स्नेह पत्र था |मैं मुस्लिम दरगाह में जाकर पैर पड़ा करता था |१६ वर्ष की उम्र तक उनकी दरगाह पर जाकर अगरबत्ती जलाता था ,शक्कर चढ़ाता था |वहां योवानो की संख्या अधिक है |जब मुझे अपनी महिमा का बोध हुआ तब मैंने दरगाह आदि की तरफ जाना बंद कर दिया |मेरा परिवर्तन मुसलमानों को सहाय नहीं हुआ |वे लोग मेरे विरुद्ध हो गए और मुझे जान से मारने का विचार करने लगे |जहा मोका मिलता है यवन वर्ग बल प्रयोग करता आया है |ऐसी स्तिथि में अपनी धर्म प्रभावना के रक्षण निम्मित्त में कुड्ची से चार मील की दुरी पर स्थित एनापुर ग्राम में चला गया |वह के पाटिल की धर्म में रूचि थी |वहा हम पर बहुत प्यार करता था |इससे एनापुर में रहना ठीक समझा |फिर वहां पर ठेके पर जमीन लेकर रामू (जो बाद में कुन्थु सागर महाराज के रूप में प्रसिद्द हुए )और मैंने काम चालू किया |आचार्य महाराज नस्लापुर में थे में उनके पास १ माह तक रहा | चातुर्मास एनापुर में हुआ |में हर समय उनके पास रहा |नेमी सागर और रामू ने शर्त राखी की ६ माह के भीतर अवश्य दीक्षा लेंगे |इसके बाद पाय सागर और मैंने एक साथ एलक दीक्षा ली |पहले मेरी दीक्षा के संस्कार हुए |एलक दीक्षा के १० महीने के बाद मुनि दीक्षा ली |
नेमि सागर जी का गुठनो के बल बैठ कर आसन लगाने में प्रसिद्द रहे है |उन्होंने बताया इस आसन के लिए विशेष एकाग्रता लगती है |इससे मन का निरोध होता है |बिना एकाग्रता के यह आसन नहीं बनता है |इसे गोड़ासन कहते है |गोड़ासन करने की प्रारंभ अवस्था में गुठने पर फफोले उठ आये थे परन्तु उनको दबाकर अपना आसन का कार्य जारी रक |(महाराज जी की आसन की फोटो सबसे ऊपर देखे )
आचार्य महाराज तपोमूति थे। उनके शिष्य नेमिसागर महाराज भी बहुत सरल थे तथा उनका जीवन तपः पुनीत समलंकृत था। प्राचार्य महाराज ने जिनेन्द्र शासन से पूर्ण विमुख नेमण्णा नामक कुडची के व्यापारी की जीवनी को बदल दिया। वे ही आज श्रद्धालु श्रेष्ठ तपस्वी अद्वितीय गुरुभक्त १०८ परमपूज्य नेमिसागर महाराज के रूप में मुमुक्षु वर्ग का कल्याण कर रहे हैं। उन्हें दीक्षा लिए हुए ४५ वर्ष से अधिक होगए।
एक उपवास एक आहार का क्रम चलता आ रहा है । बाईस वर्षों के ८०३० दिन होते हैं । तीस चौबीसो व्रत के ७२० उपवास किए । कर्मदहन के १५६ तथा चारित्र सिद्धिव्रत के १२३४ उपवास हुए । दशलक्षण में पांच बार दस दस उपवास किए अष्टाह्निका में तीन बार पाठ आठ उपवास किए । इसप्रकार २४ उपवास किए । लोणंद में नेमिसागर महाराज ने १६ उपवास किए । इसप्रकार उनकी तपस्या अद्भुत थी। चारित्र चूड़ामणि नेमिसागरजी को उपवास में आनन्द आता था।
प्राचार्य महाराज कोथर में विराजमान थे। मैंने उनके सत्संग का लाभ लिया वे "तुम शास्त्र पढ़ा करो। मैं उसका भाव लोगों को समझाऊंगा।" मैं कक्षा ५ तक पढ़ा था । मुझे शास्त्र पढ़ना नहीं पाता था। भाषण देना भी नहीं आता था, धीरे धीरे मेरा अभ्यास बढ़ गया। आचा महाराज के सम्पर्क से हृदय के कपाट खुल गए। उनके सत्संग से मेरे मन में मुनि बनने का भाव पैदा होगया।
नेमिसागरजी महाराज का गृहस्थ जीवन बड़ा विचित्र था। मुसलमानों के सम्पर्क के कारण मुस्लिम दरगाह में जाकर पैर पड़ा करते थे । सोलह वर्ष की अवस्था तक वे अगरबत्ती जलाते और शक्कर चढ़ाते थे। आचार्य महाराज के सम्पर्क के कारण जीवन में परिवर्तन हो गया । वे खेती करते थे।
दोनों जने नेमण्णा और रामू ( कुन्थुसागरजी ) साथ साथ खेती का कार्य करते थे। आचार्य महाराज से सम्पर्क के कारण वैराग्य का भाव जागृत हो गया।उन्हें नन्दिमित्र की कथा बड़ी प्रिय थी। जो पलासकूट ग्राम में देविल वैश्य के वर पुण्यहीन पुत्र नंदिमित्र ने जन्म धारण किया। माता पिता ने उसे घर से निकाल दिया। वहां से चलकर अवन्ति देश में विद्यमान वैदेश नगर में पहुंचा, उसने नगर के बाहर कालकूट नामके लकड़ी बेचने वाले को देखा। नन्दिमित्र ने कालकूट से कहा-तुम लकड़ी का जितना बोझा बाजार में ले जाते हो उससे चौगुना बोझा प्रतिदिन मैं लाकर दूगा। यदि तुम मेरे परिश्रम के बदले मुझे भोजन दिया करो तो मैं काम करने को तैयार हूं। कालकूट ने यह बात स्वीकार करली और उसे रूखा सूखा भोजन देने लगा। एक दिन उसकी स्त्री ने उसे भरपेट खीर का भोजन खिलाया वह उससे नाराज हुआ और नन्दिमित्र को घर से निकाल दिया।
उसने एक मुनिराज को देखा और उनके साथ हो लिया । श्रावकों ने नया शिष्य समझकर भोजन करा दिया । एक दिन महाराज ने उपवास किया, उसने महाराज के पास के कमंडलु और पीली लेकर चर्या को उठा और भोजन के लिए गया पर यह सोचकर मैं यदि आज भोजन नहीं करूगा तो श्रावक मेरा विशेष आदर करेंगे । उसने तीन दिन तक ऐसा ही किया। चौथे दिन अवधिज्ञानी ने कहा-नन्दिमित्र तेरी आयु अन्तमुहूर्त शेष रही है। इसलिये तू सन्यास धारण कर । उस मात्मा ने सन्यास धारण किया वह स्वर्ग में जाकर देव हुआ वहां से चयकर चन्द्रगुप्त के रूप में उत्पन्न हुआ।. .यह कथा उन्हें बड़ी प्रिय थी।
नेमिसागरजी ने ऐलक दीक्षा गोकाक के मन्दिर में ली थी और वहां मूलनायक नेमिनाथ भगवान की मूर्ति थी। इसलिए महाराज ने इनका नाम नेमिसागर रखा। पहले ऐलक दीक्षा ली और पश्चात् मुनिदीक्षा अंगीकार की। कटनी के चातुर्मास में महाराज ने सभी साधुओं के पठन पाठन की योजना बनाई और ललितपुर में पठन पाठन शुरु हुआ। नेमिसागर मुनिराज विविध प्रकार के आसन लगाकर ध्यान करते थे। उन्हें ध्यान में ही आनन्द आता था । संकल्प विकल्प त्यागने से शांति मिलती है। ऐसा वे कहा करते थे।
नेमिसागर महाराज कहा करते थे अनुभव शास्त्र तथा व्यवहार इन तीनों को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिये । जैनधर्म को प्रभावना के सम्बन्ध में आचार्य महाराज कहा करते थे
रुचिः प्रवर्तते यस्य, जैन शासन भासते। हस्ते तस्य स्थिता मुक्तिरिति सूत्रे निषद्यते ॥ जिसके मन में जिन शासन को प्रभावना की भावना है उसके हाथ में मुक्ति है। महाराज ने बम्बई के पास वोरीवकर में आचार्य शान्तिसागरजी महाराज की पावन स्मृति में स्थान बनाया मौर वहां उत्तुग भरत बाहुबलि तथा अन्य तीर्थंकरों की मनोज्ञ मूर्तियां स्थापित कराई । जो भव्य जीवों को वीतरागता की शिक्षा देती हैं और जिनसे जैन शासन की प्रभावना होती है।
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आचार्य श्री १०८ नेमी सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी महाराज १९२७ (दक्षिण) Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji Maharaj 1927 (Dakshin)
Dhaval Patil Pune-9623981049
https://www.facebook.com/dhaval.patil.9461/
Information and Book provided by Rajesh Ji Pancholiya
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Upadted by Sanjul Jain on 07-May-2021
VardhamanSagarJiMaharaj1951(Dakshin)SanmatiSagarJi1927
His father's name was Anna. The death of his 1 brother was born. The second brother died at the age of 6. At the time of his mother's death, he was 12 years old. The name of Neminath Tirthankar's mother was Shivadevi. , His mother also had the same name. Where his initiation was performed, there was a statue of Neminath Lord from which he was named Nemi Sagar.
Acharya Shri 108 Devendra Kirti Ji Maharaj | ||
1.Charitrachakravarti Acharya Shri Shanti Sagar Ji Maharaj 1872 | ||
2.Acharya Shri 108 Nemisagar Ji Maharaj | ||
His father's name was Anna. The death of his 1 brother was born. The second brother died at the age of 6. At the time of his mother's death, he was 12 years old. The name of Neminath Tirthankar's mother was Shivadevi. , His mother also had the same name. Where his initiation was performed, there was a statue of Neminath Lord from which he was named Nemi Sagar.
Acharya Sri 108 Nemi Sagar Ji Maharaj was of a very simple nature. His childhood name was Nemmana Swami. The life of a businessman completely alienated from Jainism was changed by Acharya Shanti Sagar Ji and made Nemmana Swami as Acharya Nemi Sagar. | He had a fast of 1 fast and 1 Ekasana fast from initiation. Thus his life was spent in fasts. He fasted 620 fasts of thirty four four fasts. He did 157 fasts of Karma Dahan and 1237 fasts of Charitra Shuddhi. 5 times in ten signs 10 - 10 fasted. Fasted 8 to 7 times in the Ashtanhika. Thus fasted 24. Sixteen reasons also fasted for 16 fasts. They fasted 2, 3, 4 when they wanted. They enjoyed fasting. At the age of 14, the initiation of his initiation was done. The story of his former life is very amazing which is as follows: - Nemisagar Ji Maharaj's former life was truly an Acharya's post in the true world. He had said that "I was a big affection letter of Muslims in Kudchi village, my residence." I used to go to the Muslim dargah and used to step in. By the age of 14, they used to go to their dargah, burn incense sticks, offer sugar. There is more number of people there. When I realized my glory, I stopped going towards the dargah etc. Gave. My change did not help the Muslims. They turned against me and started thinking of killing me. Where Mokka is found, the youth has been using class force. In such a situation, to protect their religious influence from the kudchi. Went to Annapur village situated four miles away. He was interested in Patil's religion. He loved us very much. It made sense to live in Annapur. Then Ramu (who later Kunthu Sagar) took land on contract there. Famous as Maharaj) and I started work. Acharya Maharaj was in Naslapur and stayed with him for 1 month. Chaturmas happened in Anapur. I stayed with him all the time. Nemi Sagar and Ramu made bet Rakhi within 4 months. Will take initiation. After this Paya Sagar and I took Elk Diksha together. First my initiation was done. Muni initiation after 10 months.
Nemi Sagar has been famous for sitting postures on the strength of the people. He said that special concentration is required for this posture. This prevents the mind. This posture is not made without concentration. It is called Godasana. In the initial stage of the blisters, the blisters had arisen, but pressing them, continue the work of your posture.
Acharya Shri 108 Nemi Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी महाराज १९२७ (दक्षिण) Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji Maharaj 1927 (Dakshin)
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी महाराज १९२७ (दक्षिण) Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji Maharaj 1927 (Dakshin)
Acharya Shri 108 Shanti Sagar Ji Maharaj (Charitra Chakraborty)
Dhaval Patil Pune-9623981049
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Information and Book provided by Rajesh Ji Pancholiya
Upadted by Sanjul Jain on 07-May-2021
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VardhamanSagarJiMaharaj1951(Dakshin)SanmatiSagarJi1927
VardhamanSagarJiMaharaj1951(Dakshin)SanmatiSagarJi1927
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