Acharya Shri 108 Sambhav Sagar Ji Maharaj was born on 3 May 1941 in Village-Byndoor,Dist-Udupi,Karnataka.His name was Manjunath Jain before Diksha.He received initiation from Acharya Shri 108 Mahavirkirti Ji Maharaj.
आचार्यश्री संभवसागरजी महाराज ने मुनि दीक्षा लेने के बाद 25 वर्षों से अधिक समय तक पूरे देश में विहार करने के बाद जैनों के महान तीर्थश्री सम्मेदशिखरजी में त्रियोग आश्रम की स्थापना की प्रेरणा दी। सन् 1994 से स्थापित इस प्रेरक त्रियोग आश्रम में आचार्यश्री द्वारा ध्यान शिविरों, योगासन शिविरों और धर्म शिक्षण शिविरों के माध्यम से त्रियोग-मनोयोग, वचनयोग और काययोग के बारे में आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है। अनेक भव्य जीव त्रियोग - निरोध की साधना आचार्यश्री के सान्निध्य में यहां पर करके जीवन को सार्थक बनाते हैं। त्रियोग आश्रम की प्रेरणा के पीछे आचार्यश्री का यही उद्देश्य है। त्रियोग आश्रम के कार्यक्रमों में जैन धर्म को विश्व धर्म की मान्यता प्रदान करते हुए यह व्यवस्था की गई है कि उनमें सभी पंथों, विचारों,जातिवाले श्रद्धालुओं को भाग लेने की अनुमति दी जाती है। संदेश : “जैन धर्म जैसा कोई धर्म नहीं है, पर जैन आपस में बंट गए हैं - तेरहपंथी, बीसपंथी, कानजीपंथी आदि, इसलिए धर्म का प्रभाव कम हुआ है। संगठित होकर धर्म को आगे बढ़ाइए। शास्त्र गलत नहीं हैं - समझ गलत है। उसे सुधारना चाहिए। लोगों के पास पाप करने के लिए समय है, पर शास्त्र पढ़ने के लिए समय नहीं है। पुण्य करने के लिए समय दीजिए - पाप से बचिए।"आजीवन षटरस एवं अन्न क भाषा ज्ञान : कन्नड, अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत आदि विशिष्ट उपाधियां : स्थविर, सिद्धांत विद्यावारिधि आदि।
Acharya Shri 108 Sambhav Sagar Ji Maharaj was born on 3 May 1941 in Village-Byndoor,Dist-Udupi,Karnataka.His name was Manjunath Jain before Diksha.He received initiation from Acharya Shri 108 Mahavirkirti Ji Maharaj.