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#SanmatiSagar(Ajmer)
Acharya Shri Sanmati Sagar (Ajmer) is the ultimate place among the sages. You were a very simple sage. He was born in Mithi Bhadrapad Shukla Saptami Vikram Samvat 1968 in the famous Khandelwal Jain Samaj's Bridge Gotri family in the famous Ajmer city of Rajasthan, from the wife of Shri Seth Phool Chand ji, Jodhi Bai, the religious wife.
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागर (अजमेर वाले )
संक्षिप्त परिचय
जन्म: भाद्रपद शुक्ल सप्तमी विक्रम संवत १९६८
जन्म स्थान : अजमेर,राजस्थान
नाम : भवरलाल
माता का नाम : जोधी बाई
पिता का नाम : श्रीमान सेठ फूलचंद जी
क्षुल्लक दीक्षा गुरु : : मुनि श्री १०८ निर्मल सागर जी
क्षुल्लक दीक्षा : विक्रम संवत २०११
मुनि दीक्षा गुरु :
मुनि दीक्षा तिथि: विक्रम संवत २०२५
मुनि दीक्षा स्थान : दिल्ली के पास खेकड़ा ग्राम
मुनि दीक्षा नाम : मुनि श्री १०८ सन्मति सागर
आचार्य पद : समाज और साधुओं ने आपको आचार्य पद से विभूषित किया
समाधि : संवत २०४३ फागुन सुदी ४ दिनांक ३ -३ - ८७
समाधि स्थान : झरला पाटन
मानव समाज का कल्याण करने वाले भव्यों को मोक्ष मार्ग पर लगाने वाले दिग . साधुओं में आचार्य श्री सन्मति सागर (अजमेर वालों )का परम स्थान है |आप अत्यंत सरल स्वभावी साधू थे | आपका जन्म राजस्थान के प्रसिद्द अजमेर नगर में खंडेलवाल जैन समाज के ब्रिज गोत्रीय परिवार में श्रीमान सेठ फूल चंद जी की धर्म पत्नी जोधी बाई की कुक्षी से मिति भाद्रपद शुक्ल सप्तमी विक्रम संवत १९६८ को हुआ | आपका बचपन का नाम भवरलाल था |छोटी सी उम्र में ही माता पिता का देहांत हो गया |आपका पालन पोषण एवं विद्याद्यान्न कार्य आपके चाचा जी श्री सेठ मानमल जी जैन तथा इनके पुत्र श्री भागचंद द्वारा हुआ | आपकी बहिन भावरी बाई है जिनका विवाह जोधपुर निवासी श्री सेठ धन्नालाल जी के साथ हुआ | आपके मामा श्री सेठ चैन सुख जी दोसी ,मल्हार गंज ,इंदौर निवासी है | आपकी धार्मिक शिक्षा सेठ भाग चंद सोनी के परिवार द्वारा संचालित जैन पाठशाला में हुई तथा लोकिक शिक्षा सरकारी स्कूल में हुई | बाद में आप किराना की दुकान पर संतोष मय जीवन बिताने लगे |श्रावक के योथोचित कर्म आदि नित्य क्रिया करने लगे |
संसार की विचित्रता का ध्यान रकते हुए उदासीन रूप में रहते थे |वैराग्य मय परिणाम होने के कारण आपने आजीवन ब्रह्मचारी रहना ही उचित समझा | एक समय अजमेर में १०८ मुनि श्री विमल सागर जी (भिंड वाले )संघ सहित पदारे |उस समय वह १ ब्रह्मचारी जी की दीक्षा हुई |जिनका नाम शांति सागर रखा गया था | उस समय वैराग्य मय द्रश्य देख कर आपकी भी वैराग्य में ब्रद्धि होने लगी | जिसके कारण व्यापार तथा गृह कार्य में अरुचि के भाव होने लगे |कुछ समय बाद आपने विमल सागर जी से २ प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये तथा अपना विशेष समय तत्व चर्चा में बिताने लगे |इसके बाद आप नसीराबाद आये |जहा पर श्री १०८ मुनि ज्ञान सागर जी विराजमान थे |उनके धर्मोपदेश से संयम तप की और आप की रूचि बढ़ने लगी |तब आपने सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये | विक्रम संवत २०११ में इसरी पञ्च कल्याणक के शुभ अवसर पर आपने मुनि श्री १०८ निर्मल सागर जी से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की और उसके १ वर्ष बाद आपने एलक दीक्षा ग्रहण की | संवत २०२५ में आपने समस्त परिग्रह का त्याग कर मुनि दीक्षा ग्रहण की और आपका नाम सन्मति सागर रखा गया | दीक्षा दिल्ली के पास खेकड़ा ग्राम में हुई |कोटा पञ्च कल्याणक के अवसर पर आपने कोटा वाले सूरजमल को दीक्षा देकर विजय सागर नाम दिया |ब्रह्मचारी अहिल्या बाई को आर्यिका दीक्षा देकर विजय मति नाम रखा |ब्रह्मचारी जयंती लाल को क्षुल्लक दीक्षा दी जिसका नाम शान्तिसागर रखा |हीरालाल जी का नाम क्षुल्लक वीरसागर रखा |शिखर जी की यात्रा के बाद ग्वालियर की और विहार किया | कुण्डलपुर में आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी के संघ के साथ विक्रम संवत २०३५ का चातुर्मास किया |वर्षा योग के बाद विहार करते हुए अनेक गाँव से कटनी आ गए |कटनी से १ मील दूर किसी सिरफिरे ने मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर मारा |मक्खियो ने महाराज जी के शारीर पर काटना शुरू कर दिया | अति पीड़ा के बावजूद आगे चलते रहे कुछ देर बाद चक्कर आ गया | पंडित जगन मोहन लाल जी तथा कुछ श्रावकों को सुचना मिलते ही वहां पर आये और महाराज जी को ले आये |डॉ. ने महाराज जी के कान से मक्खियाँ निकाली |श्री सम्मेद शिखर जी दिग . जैन समाज और साधुओं ने आपको आचार्यकल्प की पदवी प्रदान की |श्री गोम्मटेश्वर महा मस्तकाभिषेक के बाद दक्षिण की यात्रा करते हुए बडवानी पहुचे |बडवानी से विहार करते समय एक गाँव में मुनि ऋषभ सागर जी जो बाद में युवाचार्य योगीन्द्र सागर हुए ने आपके दर्शन का लाभ लिया और आपके संघ के साथ हो लिए |संघ रानीपुर आया |वहां के श्रावकों की भक्ति पर चातुर्मास की स्वीकृति प्रदान की |वह की समाज और साधुओं ने आपको आचार्य पद से विभूषित किया तथा मुनि ऋषभ सागर जी को उपाध्याय पद से विभूषित किया नाम रखा गया योगिचंद्र सागर | इस रानी पुर के शुभ अवसर पर संवत २०२९ का आसोज सुदी १० बुधवार दिनांक २९ -१० -८२ को ब्रह्मचारी मगनलाल जी को क्षुल्लक दीक्षा देकर शील सागर नाम दिया अब आपके संघ में ५ पिच्छीधारी साधू हो गये | आचार्य गुरु सन्मति सागर जी ने इस नश्वर शरीर से निर्मम्त्व भाव सहित सावधानी पूर्वक समाधि मरण संवत २०४३ फागुन सुदी ४ दिनांक ३ -३ - ८७ को प्रात: ५ :१५ बजे झरला पाटन में स्वर्गवास हो गया |
#SanmatiSagar(Ajmer)
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागरजी महाराज (अजमेर)
Aacharya Shri 108 Nirmal Sagar Ji Maharaj 1946
आचार्य श्री 108 निर्मल सागर जी महाराज Aacharya Shri 108 Nirmal Sagar Ji Maharaj
Dhaval Patil Pune-9623981049
Dhaval Patil Pune-9623981049
NirmalSagarJiMaharaj1946VimalSagarJi(Bhind)
Acharya Shri Sanmati Sagar (Ajmer) is the ultimate place among the sages. You were a very simple sage. He was born in Mithi Bhadrapad Shukla Saptami Vikram Samvat 1968 in the famous Khandelwal Jain Samaj's Bridge Gotri family in the famous Ajmer city of Rajasthan, from the wife of Shri Seth Phool Chand ji, Jodhi Bai, the religious wife.
Acharya Sri 108 Sanmati Sagar (Ajmer)
Diggers who put the blessings of human society on the path of salvation. Acharya Shri Sanmati Sagar (Ajmer) is the ultimate place among the sages. You were a very simple sage. He was born in Mithi Bhadrapad Shukla Saptami Vikram Samvat 1968 in the famous Khandelwal Jain Samaj's Bridge Gotri family in the famous Ajmer city of Rajasthan, from the wife of Shri Seth Phool Chand ji, Jodhi Bai, the religious wife. Your childhood name was Bhavarlal. The parents died at a young age. Your upbringing and education work was done by your uncle Mr. Seth Manmal Ji Jain and his son Mr. Bhagchand. Your sister is Bhawari Bai who was married to Shri Seth Dhannalal Ji, resident of Jodhpur. Your maternal uncle Mr. Seth Chan Sukh Ji Dosi, is resident of Malhar Ganj, Indore. Your religious education was done in Jain Pathshala run by the family of Seth Bhag Chand Soni and public education was done in a government school. Later, you started living in satisfaction at the grocery store.
He used to live indifferently while meditating on the strangeness of the world. Due to the result of disinterestedness, you thought it appropriate to remain a lifelong celibate At one time in Ajmer, 108 Muni Shri Vimal Sagar ji (Bhind Wale) with the Sangha office. At that time he was initiated by 1 Brahmachari Ji who was named Shanti Sagar. At that time, by looking at the scene of disinterestedness, you also started growing enlightened. Due to which there was a feeling of disinterest in business and home work. After some time, you took 2 idol fasts from Vimal Sagar ji and started spending your special time in discussion. After that you came to Nasirabad. He was seated. He meditated with his sermon and his interest started growing. Then you took the fast of the seventh statue. On Vikram Samvat 2011, on the auspicious occasion of Isri Panch Kalyanaka, you took the initiation from the sage Sri Nirmal Sagar ji, and after 1 year, you took elk initiation. In Samvat 2025, after sacrificing all the sanctions, you took the initiation and your name was called Sanmati Sagar. The initiation took place in the village Khekra near Delhi. On the occasion of Kota Panch Kalyanak, you gave the name of Kota Surajmal to Vijay Sagar. After giving Aryika initiation to Brahmachari Ahilya Bai, he was named Vijay Mati after the initiation of Brahmachari Jayanti Lal, named Shantasagar | Hiralal ji was named Chhullak Veerasagar. After Shikhar ji's visit, he visited Gwalior more. Chaturmas of Vikram Samvat 2035 in Kundalpur with the association of Acharya Sri 108 Vidyasagar ji. After coming to Varsha Yoga, Katni came from many villages, while visiting Vihara. 1 mile away from Katni, a Sirfire stoned a bee hive. Started cutting on Jee's body. In spite of extreme pain, he kept moving and after some time got dizzy. As soon as Pandit Jagan Mohan Lal ji and some Shravakas got information, they came there and brought Maharaj ji. Took out flies from the ear of Maharaj Ji. Shri Sammed Shikhar Ji Dig. Jain society and sages gave you the title of Acharyakalp Took and joined with your Sangh. Sangh came to Ranipur. On the devotion of the Shravakas there, they gave acceptance of Chaturmas. That society and sages honored you with the position of Acharya and named Muni Rishabh Sagar ji as Upadhyaya post. Gaya Yogichandra Sagar | On the auspicious occasion of this Rani Pur, Aosoj Sudi of Samvat 2029, on Wednesday, 29-10-82, gave the name of Sheel Sagar after giving a rude initiation to Brahmachari Maganlal ji, now in your union there have been 5 Pichidhari Sadhus Acharya Guru Sanmati Sagar ji died in this beautiful body with a sentiment of sentiment, with carelessness, on Samadhan Maran Samvat 2043 Phagun Sudi, dated 3-3 - 87 am at 5:15 am in Jhula Patan.
Acharya Sri 108 Sanmati Sagar (Ajmer)
Acharya Shri 108 Sanmati Sagarji Maharaj (Ajmer)
आचार्य श्री 108 निर्मल सागर जी महाराज Aacharya Shri 108 Nirmal Sagar Ji Maharaj
आचार्य श्री 108 निर्मल सागर जी महाराज Aacharya Shri 108 Nirmal Sagar Ji Maharaj
Aacharya Shri 108 Nirmal Sagar Ji Maharaj 1946
Acharya Shri 108 Nirmal Sagarji Maharaj
Dhaval Patil Pune-9623981049
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NirmalSagarJiMaharaj1946VimalSagarJi(Bhind)
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