आचार्य श्री १०८ सुधीन्द्र सागरजी महाराज जी को आज जन्मोत्सव के दिन ही मृत्यु काल का ग्रास बनाने के लिए आया कालिया नाग कोबरा ने डस लिया किंतु जाकों राखे पार्श्व प्रभु मार सके कोई आज सिद्ध हो गया हुआ यूं अभिषेक शांतिधारा पश्चात पास ही के बाड़े में लघुशंका के लिए आचार्य श्री गए वहां बैठा कोबरा काले नाग ने जपट कर पैर के अंगूठे पास में डस लिया आचार्य श्री ने पहले बताया नहीं चक्कर आने लगे तब ब्रह्मचारी मयंक भैया को बुलाया और आचार्य श्री ने पिच्छी हाथ में थमाते हुए बोले पिच्छी से उतार दे मयंक भैया ने विषाहार स्त्रोत्र बोलते हुए जहर को उतार दिया जिनेन्द्र देव के समक्ष जैन मंदिर में उतारा श्रावकों ने कहा आचार्य श्री से डॉक्टर को बुलाए या सर्प का जहर उतारने वाले को बुलाए किंतु आचार्य श्री ने मन कर दिया आयु कर्म शेष होगा बच जाएंगे नहीं होगा तो आज अंतिम समाधि हो जाएगी क्या फर्क पड़ेगा जोर जिनेन्द्र देव पार्श्वनाथ देव का स्मरण करते रहे मयंक को पिच्छी हाथ में देते हुए इसलिए कहा दूसरे का केस होता मैं उतार देता किंतु मेरा ही इलाज मै कैसे करु जब डॉक्टर बीमार हो जाता है तो कंपोडर भी इलाज कर के ठीक कर देता हे किन्तु डॉक्टर खुद का इलाज नहीं कर सकता हे इसलिए मयंक भैया को आशीर्वाद देते हुए हाथ में पिच्छी देते हुए कहा आशीर्वाद हे तुम उतार दो उतर जाएगा जिनेन्द्र देव ओर जैन स्त्रोत्र में इतनी शक्ति हे विष भी अमृत बन गया किंतु भरोसा ओर विश्वास होना चाहिए धीरे धीरे चक्कर आने बंद हो गए आचार्य श्री पूर्ण स्वस्थ हो गए इसके पश्चात उपवास चलते आचार्य श्री ने जल का आहार लिया।
On the auspicious occasion of his birthday, Acharya Shri 108 Sudhindra Sagarji Maharaj was bitten by a black cobra, Kaliya Nag, which came to claim his life. However, as the saying goes, "Whom the Lord protects, no one can harm," this truth was proven today. After completing the *abhishek* (ritual bathing) and *shanti dhara* (peaceful shower) ceremony, Acharya Shri went to a nearby enclosure for a small nature call. There, a black cobra was lying, and it suddenly struck, biting him on the toe. Initially, Acharya Shri did not inform anyone, but soon he began to feel dizzy. He called Brahmachari Mayank Bhaiya for help and handed him the *pichhi* (ritual broom), saying, "Use the pichhi to remove the venom." Mayank Bhaiya, chanting the *Vishahar Stotra* (poetry for neutralizing poison), began the ritual of removing the poison. The venom was removed in front of Lord Jinendra at the Jain temple. The disciples were confused and wondered whether a doctor should be called or someone skilled in treating snake venom. However, Acharya Shri calmly replied that if his life was meant to end, so be it, and if not, he would survive. He expressed that it made no difference either way because what matters is the will of Lord Jinendra and Parshvanath. Acharya Shri further shared a profound thought: "If it were someone else's case, I would have treated them, but how can I treat myself? When a doctor becomes ill, even a compounder can treat him, but a doctor cannot treat himself." With this understanding, Acharya Shri blessed Mayank Bhaiya, handing him the *pichhi* and saying, "You will succeed in removing the venom. The power of Lord Jinendra and the Jain scriptures is so great that even poison can turn into nectar, but one must have faith and trust." Gradually, Acharya Shri's dizziness stopped, and he was fully recovered. Afterward, as part of his fast, Acharya Shri took a sip of water as nourishment.