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#Vadhibsingh(Prachin)
वादिसिंह किसके द्वारा पूज्य नहीं हैं, जो कि कवि, प्रशस्त व्याख्यान देने वाले और गमकों-टीकाकारों में सबसे उत्तम थे।
पार्श्वनाथ चरित के प्रारम्भ में वादिराज ने वादिसिंह का स्मरण इस प्रकार किया है
"स्यावादगिरमाश्रित्य वादिसिंहस्य गर्जिते। दिङ्नागस्य मदध्वंसे कीर्तिमगो न दुर्घटः।।
इस श्लोक में बौद्धाचार्य दिङ्नाग और कीर्ति (धर्मकीर्ति) का ग्रहण | करके वादिसिंह को उनका समकालीन बतलाया है. नाथूराम प्रेमी का मत है कि वादीभसिंह और वादिसिंह एक ही व्यक्ति हैं। वादीभसिंह का जन्मस्थान-यद्यपि वादीभसिंह के जन्मस्थान का कोई उल्लेख नहीं मिलता तथापि आपके ओडयदेव नाम से श्री पं. के. भुजबली शास्त्री ने अनुमान लगाया है कि आप तमिल प्रदेश के निवासी थे। श्री बी. शेषगिरि राव ने कलिंग (तेलुगु) के गंजाम जिले के आसपास का निवासी होना अनुमित किया है। गंजाम जिला मद्रास के उत्तर में है और अब उड़ीसा में जोड़ दिया गया है। वहाँ राज्य के सरदारों की ओडेय और गोडेय नाम की दो जातियाँ हैं, जिनमें पारस्परिक सम्बन्ध भी है, अतः उनकी दृष्टि में वादीभसिंह जन्मतः - ओडेय या उड़िया सरदार होंगे।
श्री पं. के. भुजबली शास्त्री ने लिखा है कि यद्यपि आपका जन्म तमिल प्रदेश में हुआ था, तथापि इनके जीवन का बहुभाग मैसूर (कर्नाटक) प्रान्त में व्यतीत हुआ था। वर्तमान कर्नाटक के अन्तर्गत पोम्बुच्च आपके प्रचार का केन्द्र था। इसके लिये पोम्बुच्च एवं मैसूर राज्य के भिन्न-भिन्न स्थानों में उपलब्ध आपसे सम्बन्ध रखने वाले शिलालेख ही ज्वलन्त साक्षी हैं।
*वादीभसिंह की कृतियाँ-वादीभसिंह की सम्प्रति 3 कृतियाँ उपलब्ध हैं-
(1) 51 स्याद्वाद सिद्धि (2) गद्यचिन्तामणि और (3) छत्र चूड़ामणि।।
1. स्याद्वाद सिद्धि-इसमें 14 अधिकार हैं
(1) जीवसिद्धि (2) फल भोक्तृत्वाभावसिद्धि (3) युगपदनेकान्तसिद्धि (4) क्रमानेकान्त सिद्धि (5) भोक्तृत्वाभावसिद्धि (6) सर्वज्ञाभावसिद्धि (7) जगत्कर्तृत्वाभावसिद्धि (8) अर्हत्सर्वज्ञसिद्धि (9) अर्थापत्तिप्रामाण्यसिद्धि (10) वेदपौरुषेयत्वसिद्धि
11)परतः प्रामाण्य सिद्धि (12) अभावप्रमाणदूषणसिद्धि (13) तर्क प्रामाण्य सिद्धि 37 और (14) गुण-गुणी अभेद सिद्धि।
आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
वादिसिंह किसके द्वारा पूज्य नहीं हैं, जो कि कवि, प्रशस्त व्याख्यान देने वाले और गमकों-टीकाकारों में सबसे उत्तम थे।
पार्श्वनाथ चरित के प्रारम्भ में वादिराज ने वादिसिंह का स्मरण इस प्रकार किया है
"स्यावादगिरमाश्रित्य वादिसिंहस्य गर्जिते। दिङ्नागस्य मदध्वंसे कीर्तिमगो न दुर्घटः।।
इस श्लोक में बौद्धाचार्य दिङ्नाग और कीर्ति (धर्मकीर्ति) का ग्रहण | करके वादिसिंह को उनका समकालीन बतलाया है।
पं. नाथूराम प्रेमी का मत है कि वादीभसिंह और वादिसिंह एक ही व्यक्ति हैं। वादीभसिंह का जन्मस्थान-यद्यपि वादीभसिंह के जन्मस्थान का कोई उल्लेख नहीं मिलता तथापि आपके ओडयदेव नाम से श्री पं. के. भुजबली शास्त्री ने अनुमान लगाया है कि आप तमिल प्रदेश के निवासी थे। श्री बी. शेषगिरि राव ने कलिंग (तेलुगु) के गंजाम जिले के आसपास का निवासी होना अनुमित किया है। गंजाम जिला मद्रास के उत्तर में है और अब उड़ीसा में जोड़ दिया गया है। वहाँ राज्य के सरदारों की ओडेय और गोडेय नाम की दो जातियाँ हैं, जिनमें पारस्परिक सम्बन्ध भी है, अतः उनकी दृष्टि में वादीभसिंह जन्मतः - ओडेय या उड़िया सरदार होंगे।
श्री पं. के. भुजबली शास्त्री ने लिखा है कि यद्यपि आपका जन्म तमिल प्रदेश में हुआ था, तथापि इनके जीवन का बहुभाग मैसूर (कर्नाटक) प्रान्त में व्यतीत हुआ था। वर्तमान कर्नाटक के अन्तर्गत पोम्बुच्च आपके प्रचार का केन्द्र था। इसके लिये पोम्बुच्च एवं मैसूर राज्य के भिन्न-भिन्न स्थानों में उपलब्ध आपसे सम्बन्ध रखने वाले शिलालेख ही ज्वलन्त साक्षी हैं।
वादीभसिंह की कृतियाँ-वादीभसिंह की सम्प्रति 3 कृतियाँ उपलब्ध हैं
(1) 51 स्याद्वाद सिद्धि (2) गद्यचिन्तामणि और (3) छत्र चूड़ामणि।।
1. स्याद्वाद सिद्धि-इसमें 14 अधिकार हैं-
(1) जीवसिद्धि (2) फल भोक्तृत्वाभावसिद्धि (3) युगपदनेकान्तसिद्धि (4) क्रमानेकान्त सिद्धि (5) भोक्तृत्वाभावसिद्धि (6) सर्वज्ञाभावसिद्धि (7) जगत्कर्तृत्वाभावसिद्धि (8) अर्हत्सर्वज्ञसिद्धि (9)अर्थापत्तिप्रामाण्यसिद्धि (10) वेदपौरुषेयत्वसिद्धि
(11)परतः प्रामाण्य सिद्धि (12) अभावप्रमाणदूषणसिद्धि (13) तर्क प्रामाण्य सिद्धि 37 और (14) गुण-गुणी अभेद सिद्धि।
आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
Smriti Granth -Kapur Chand Ji
#Vadhibsingh(Prachin)
Smriti Granth -Kapur Chand Ji
आचार्य श्री १०८ वधिबसिंह (प्राचीन)
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वादिसिंह किसके द्वारा पूज्य नहीं हैं, जो कि कवि, प्रशस्त व्याख्यान देने वाले और गमकों-टीकाकारों में सबसे उत्तम थे।
पार्श्वनाथ चरित के प्रारम्भ में वादिराज ने वादिसिंह का स्मरण इस प्रकार किया है
"स्यावादगिरमाश्रित्य वादिसिंहस्य गर्जिते। दिङ्नागस्य मदध्वंसे कीर्तिमगो न दुर्घटः।।
इस श्लोक में बौद्धाचार्य दिङ्नाग और कीर्ति (धर्मकीर्ति) का ग्रहण | करके वादिसिंह को उनका समकालीन बतलाया है. नाथूराम प्रेमी का मत है कि वादीभसिंह और वादिसिंह एक ही व्यक्ति हैं। वादीभसिंह का जन्मस्थान-यद्यपि वादीभसिंह के जन्मस्थान का कोई उल्लेख नहीं मिलता तथापि आपके ओडयदेव नाम से श्री पं. के. भुजबली शास्त्री ने अनुमान लगाया है कि आप तमिल प्रदेश के निवासी थे। श्री बी. शेषगिरि राव ने कलिंग (तेलुगु) के गंजाम जिले के आसपास का निवासी होना अनुमित किया है। गंजाम जिला मद्रास के उत्तर में है और अब उड़ीसा में जोड़ दिया गया है। वहाँ राज्य के सरदारों की ओडेय और गोडेय नाम की दो जातियाँ हैं, जिनमें पारस्परिक सम्बन्ध भी है, अतः उनकी दृष्टि में वादीभसिंह जन्मतः - ओडेय या उड़िया सरदार होंगे।
श्री पं. के. भुजबली शास्त्री ने लिखा है कि यद्यपि आपका जन्म तमिल प्रदेश में हुआ था, तथापि इनके जीवन का बहुभाग मैसूर (कर्नाटक) प्रान्त में व्यतीत हुआ था। वर्तमान कर्नाटक के अन्तर्गत पोम्बुच्च आपके प्रचार का केन्द्र था। इसके लिये पोम्बुच्च एवं मैसूर राज्य के भिन्न-भिन्न स्थानों में उपलब्ध आपसे सम्बन्ध रखने वाले शिलालेख ही ज्वलन्त साक्षी हैं।
*वादीभसिंह की कृतियाँ-वादीभसिंह की सम्प्रति 3 कृतियाँ उपलब्ध हैं-
(1) 51 स्याद्वाद सिद्धि (2) गद्यचिन्तामणि और (3) छत्र चूड़ामणि।।
1. स्याद्वाद सिद्धि-इसमें 14 अधिकार हैं
(1) जीवसिद्धि (2) फल भोक्तृत्वाभावसिद्धि (3) युगपदनेकान्तसिद्धि (4) क्रमानेकान्त सिद्धि (5) भोक्तृत्वाभावसिद्धि (6) सर्वज्ञाभावसिद्धि (7) जगत्कर्तृत्वाभावसिद्धि (8) अर्हत्सर्वज्ञसिद्धि (9) अर्थापत्तिप्रामाण्यसिद्धि (10) वेदपौरुषेयत्वसिद्धि
11)परतः प्रामाण्य सिद्धि (12) अभावप्रमाणदूषणसिद्धि (13) तर्क प्रामाण्य सिद्धि 37 और (14) गुण-गुणी अभेद सिद्धि।
आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
Acharya Shri 108 Vadhibsingh (Prachin)
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