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Acharya Shri 108 Vivek Sagarji Maharaj was born on Vikram Samvat 1970, Ashadh Krishna 10 and he took initiation from Acharya Shri 108 Gyan Sagar Ji Maharaj on Phalgun Krishna Panchami Vikram Samvat 2025 at Nasirabad.
आचार्य श्री १०८ विवेक सागर जी महाराज
संक्षिप्त परिचय
जन्म: विक्रम संवत १९७० ,आषाढ़ कृष्णा १०
जन्म स्थान : ग्राम -मरवा (राज.)
जन्म का नाम श्री लक्ष्मी नारायण जी छावडा
माता का नाम : श्रीमती राजमंती देवी
पिता का नाम : श्री सुगन चंद जी छावडा
मुनि दीक्षा : फाल्गुन कृष्णा पंचमी विक्रम संवत २०२५
मुनि दीक्षा का स्थान : नसीराबाद
आचार्य : आचार्य श्री १०८ ज्ञान सागर जी महाराज
समाधि मरण : फागुन कृष्णा ८ ,विक्रमसंवत २०४२
समाधी स्थल : सीकर (राज.)
भारतीय संस्कृति को पल्लवित करने में हमारे तीर्थंकरों ,मुनियों ने जो योगदान दिया है उसी श्रंखला में प्रथम तपस्वी आचार्य शांति सागर जी ,आचार्य वीर सागर जी ,आचार्य शिव सागर जी के प्रथम शिष्य आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज महान साधक हुए तथा मानो साक्षात सरस्वती के रूप में ही उनकी लेखनी अनुसरित हुई हो।आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के दो शिष्य हुए प्रथम विद्यासागर मुनिराज और दुसरे शिष्य हुए मुनि श्री १०८ विवेक सागर जी।मुनिश्री विवेक सागर जी महाराज ने आचार्यश्री शांति सागर जैसी सिंहवृत्ति चर्या का पालन किया ।आपकी चर्या ,तपस्या आगम के अनुकूल होते हुए भी कठोरतम उग्र तपस्वी के र्रोप में रही।राज. की मरुस्थली भूमि पर विहार करते समय जहा सूर्य अस्त हो जाता था,वाही पैर रूक जाते थे ,चाए भीषण ठण्ड हो या गर्मी ।कई ऐसे प्रसंग आये जब आप बालू रेट के समुद्र व् भूमि को अपना फलक आसन बनाया तथा अनंत आकाश को अम्बर ,जिसमे रात्रि की शीत तथा उष्ण वायु के थपेड़े को ध्यान आराधना करतेहुए सहन किया ।इसी तरह पूज्य महाराज श्री की आहार चर्या एकदम निर्दोष थी। सोनागिर और ग्वालियर में १९८० में जब आपके ३-४ उपवास हो जाने के बाद भी पारणा के समय दूरस्थ किसी बालक के रोने की आवाज सुनकर अन्तराय कर दी और आगम की आगया को विस्मृत नही किया।पूज्य आर्यिका विशालमती जीके अनुसार महीने में दस से पंद्रह दिन तक आहार लेते थे।कभी कभी ८-१० दिन बाद ही आहारचर्या का लाभ हो पता था फिर भी दैनिक उत्कृष्ट ध्यान सामायिक निरंतर ८-१० घंटे करना उनके सहज कार्य था।अंतिम समय भी सल्लेखना ऐसी धरण की जो आचार्य श्री शांति सागर जी की याद दिलाती है क्यों कि मुनि श्री विवेक सागर जी महाराज का सल्लेखना में शारीर जितना कृशकाय हो रहा था उनकी आत्मा का चिंतन कि धारा उतनी ही प्रगाड़ होती जा रही थी।इसको प्रत्यक्ष में देखा जा सकता था कि दस दिन तक तीव्र शारीरिक वेदना होने पर भी उनका चित्त आत्म वेदन की ओर रहा।अत: एक बार भी आह करह की ध्वनि सुनने को नहीं आई ऐसी सजगतापूर्वक समाधि हुई ।
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आचार्य श्री १०८ विवेक सागरजी महाराज
Acharya Shri 108 Gyansagarji Maharaj 1891
आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराज १८९१ Acharya Shri 108 Gyansagarji Maharaj 1891
Dhaval Patil Pune-9623981049
Dhaval Patil Pune-9623981049
GyansagarJiMaharaj-1891ShivSagarji
Acharya Shri 108 Vivek Sagarji Maharaj was born on Vikram Samvat 1970, Ashadh Krishna 10 and he took initiation from Acharya Shri 108 Gyan Sagar Ji Maharaj on Phalgun Krishna Panchami Vikram Samvat 2025 at Nasirabad.
Our Tirthankaras, sages have contributed to the flourishing of Indian culture, in the same series, the first ascetic Acharya Shanti Sagar ji, Acharya Veer Sagar ji, Acharya Shiva Sagar ji's first disciple Acharya Gyan Sagar ji Maharaj became a great seeker and as if Sakshat Saraswati As his writing has been followed. Acharya Gyanasagar Ji Maharaj had two disciples, the first Vidyasagar Muniraj and the second disciple was Muni Sri 108 Vivek Sagar Ji. In spite of the austerity, Agama remained in the harshest fierce ascetic's rage. That while the sun was setting on the desert land where the sun would set, the feet would stop, the cold would be cold or the heat. Many such incidents came when you made the sea and land of sand like your seat and amber the eternal sky, In which I tolerated the cold of the night and the heat of wind while meditating. Similarly, the food of Shri Shree Maharaj was absolutely flawless. Even after your 3–4 fast in Sonagir and Gwalior in 1980, at the time of Parana, when the remote heard the cry of a child crying, he did not forget the agam of Agam. According to Pujya Aryika Vishalmati G.K. He used to take food till day. Sometimes even after 8-10 days, the benefits of dieting were known, yet it was his effortless task to do daily excellent meditation daily for 7 - 10 hours. Even at the end of time, it was such a humiliation that Acharya Shri Shanti Sagar ji Reminds me of the reason why the body of Shri Vivek Sagar Ji Maharaj was becoming as agitated as the body was contemplating that the stream of his soul was getting intense. But his mind remained towards self-sacrifice, so even once he could not hear the sound of a groan.
Acharya Shri 108 Vivek Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराज १८९१ Acharya Shri 108 Gyansagarji Maharaj 1891
आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराज १८९१ Acharya Shri 108 Gyansagarji Maharaj 1891
Acharya Shri 108 Gyansagarji Maharaj 1891
Acharya Shri 108 Gyan Sagarji Maharaj
Dhaval Patil Pune-9623981049
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