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#AcharyaSriBharataSagarJiMaharaj1949Vimalasagarji
A part of Pawan Vasundhara Rajasthan Birthday Ramnavmi, Chaitra Sudi Navami. April 8, 1979 was the Thursday constellation Pushp. The name was Chhoti Lal, being the youngest of 4 sons and 3 daughters. Gradually little red grew up. When he was in the eighth grade, Sanskrit teacher Shri Jai Narayan asked all the students to put their palm forward to play the lesson. As soon as Lal came in front of him, the stick stopped suddenly. The teacher's eyes collided with the ridges of his palm. As soon as he saw it, he had read the text written in his hand. This little girl will become a great seeker of tomorrow.
The quality of leadership you had since childhood would have become a leader if you had not become a monk. More than your public education, you were more interested in country service and religious activities. You had built a temple in your house like Panchmishti and Mahavira God every day. In the evening, aarti was performed. Along with this, many classmates used to gather.
आचार्य श्री १०८ भरत सागर जी महाराज
पवन वसुंधरा का एक भाग राजस्थान ।उसके प्रभाग बाँसवाड़ा जिला ।उसमे एक गाँव लोहारिया ।वह पिता किशनलाल नरसिंह पूरा की कुटिया में माता गुलाबी देवी की कुक्षी से गुलाब के समान १ सुन्दर बालक ने जन्म लिया।वह शुभ दिन था मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म दिन रामनवमी ,चैत्र सुदी नवमी ।७ अप्रैल १९४९ वार था गुरूवार नक्षत्र पुष्प ।६ पुत्रो एवं ३ पुत्रियों में सबसे छोटे होने के कारण नाम पड़ा छोटे लाल । धीरे धीरे छोटे लाल बड़े होते गए ।जब वो आठवी कक्षा में थे तब कक्षा में गलती करने पर संस्कृत शिक्षक श्री जय नारायण ने सब विद्यार्थियों को सबक शिक्लाने के लिए हथेली आगे करने को कहा ।सबको बारी बारी से पड़ने लगा डंडा पर ये क्या छोटे लाल के सामने आते ही डंडा यकायक रुक गया।शिक्षक की नजर उनकी हथेली की लकीरों से टकरा गयी।नजर पड़ते ही उन्होंने उसके हाथ मी लिखी इबारत पढ़ ली थी।उनको भान हो गया कि ये फूल आपनी सुंगध से जन जनको महकाएगा ।आज का ये छोटेलाल कल का महँ साधक बन जायेगा।
नेतृत्व का गुण आपने बचपन से था अगर आप साधु न बनते तो फिर अवश्य नेता बन जाते ।आपकी लोकिक शिक्षा से ज्यादा रूचि देश सेवा एवं धार्मिक क्रियाकलापों में थी।आपने घर मे १ मंदिर सा बना रखा था वहा प्रतिदिन पञ्च परमेष्ठी व् महावीर भगवान् की संध्या समय आरती उतारते थे।साथ में अनेक सहपाठी भी जुट जाया करते थे
आपने अपनी बाल्यावस्था में ही आचार्य महावीर कीर्ति जी,मुनि देवेन्द्र सागर जी,आचार्य धर्म सागर जी एवं आर्यिका ज्ञान मति माता जी के दर्शन कर लिये थे।
चीन के आक्रमण करने पर देश भक्ति उमड़ पड़ी और सीमा पर देश की रक्षा करने की मन में ठान ली।मनोयोग से रायफल चलन भी सीख लिया और अपनी माँ से इस बारे में बात की परन्तु माँ की आज्ञा न मिलने पर आपने सैनिक बनने का सपना त्याग दिया और सोचकि में साधु बन जाऊ ।आप वाही १ सेठ के यहाँ नोकरी करने लगे ,नोकरी करते करते भी उन्हें गुरु की खोज चालू रखी । विमल सागर जी संग सहित वह पधारे ।सेठ जी तीनो प्रहार दुकान छोटे लाल को सोपकर खुद आचार्य श्री के दर्शन करने चले जाते ।छोटे लाल ने १ दिन सेठ जी से बोल दिया आप अपनी दुकान समालिए और खुद आचार्य श्री के पास चले गए और उनके चरणों में जाकर बैठ गए ।आचार्य श्री ने उन्हें देख कर तह अनुमान लगा लिया यह छोटे लाल आगे जाकर बहुत बड़ा साधक बनेगा।३ दिन आचार्य श्री के चरणों में गुजार दिए।गुरु ने पुछा मेरे साथ चलोगे ।तो छोटे लाल ने हां कर दी ।आचार्य श्री ने लोगो के विरोध के बाद भी उन्हें अखंड ब्रह्मचर्य व्रत दे दिया।और देश में १ और बाल ब्रह्मचारी पैदा हो गया ।ब्रह्मचारी छोटे लाल। उसके बाद २५ मई १९६८ को अजमेर समाज के सामने क्षुल्लक दीक्षा देने का निर्णय आचार्य से ने सुना दिया।तब समाज ने निवेदन किया की अभी उम्र कम है जब परिपक्व हो जाये तब दीक्षा दे देना।विमल सागर जी ने कहा मेने २ महीने में ही इसकी परिपक्वता देख ली है ।१९ साल की उम्र में ब्रह्मचारी छोटे लाल बन गए क्षुल्लक शान्तिसागर।
उपसर्ग :परिषह और उपसर्ग तो जैन साधुओं के जीवन का श्रृंगार है।क्षुल्लक बनते ही शांति सागर जी की परीक्षा चालू हो गयी।अभी क्षुल्लक अवस्था लिये१५ दिन ही निकले थे क्षुल्लक जी विहार में शोच की बाधा के कारण पीछे रह गए और पूरा संघ आगे बढ गए।कुछ लुटेरों ने मोका देख कर उन पर हमला बोल दिया और बोल तुमरे पास जितने भी गहने है सब हमारे हवाले करदो।क्षुल्लक जी के बहुत समझाने के बाद भी वे नही माने और उन्हें पास के कुए में ले जाकर डाल दिया।जब संघ में देखाकि ब्रहमचारी वह नहीं है तो उन्हें देखनेके लिए लोगों ने अपने वाहन लेकर उनके तलाश चालू हो गयी।वही कुछ लोगो ने कहाकि भाग गया होगा जितने लोग उतनी बाते । तब लोगो ने आचार्य श्री से पुछा आपका ज्ञान क्या कहता है।तब आचार्य श्री ने कहा की -वह होनहार है कही नही जा सकता,किसी विपत्ति में पद गया है ।वह किसी जलमग्न स्थान कर सुरक्षित है परन्तु मिलने में समय लगेगा । इधर कुए में क्षुल्लक जी नमोकार मंत्र का जाप करते रहे ।तभी वहाँ १ महिला पानी भरने आई इंसान की आवाज सुन कर उसने चमड़े का चरस कुए में उन्हें निकलने के लिए डाला।परन्तु क्षुल्लक जी ने उस पर बेठने के लिए मन कर दिया। तब तक समाज के कुछ और लोग आ गए।उनकी मदद से उन्हें वह से बहार निकाला गया।७ घंटे तक पानी में रहकर भी आपने अपने धर्म को नहीं छोड़ा ।पानी के कारण पूरा शरीर सफेद पड़ गया था।आप मौत के मुह से बाख निकले ऐसा लगा मानो यमराज ने आपकी प्रतिभा के तीक्ष्ण तेज से हार मानकर आपको जीवन दान प्रदान किया हो।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा ६ नव. १९७२ को सम्मेद शिखर जी पर क्षुल्लक सुमति सागर और क्षुल्लक शांति सागर जी की दीक्षा दी गयी और नाम रखा गया मुनि बाहुबली सागर और मुनि भारत सागर ।जिस प्रकार छाया कभी किसी का साथ नहीं छोडती वैसे ही मुनि भरत सागर जी हमेशा अपने गुरु के साथ ही रहते ।उत्कृष्ट गुणों के धारी मुनि भरत सागर जी ने अपनी गुरुभक्ति ,सतत अध्यन्न से अपनी अलग ही छाप अपने गुरु पर छोड़ दी। ७ सितम्बर १९७९ को आचार्य श्री ने मुनि भरत सागर जी को बना दिया उपाध्याय भरत सागर ।
आचार्य पद : ७९ वीं जयंती पर आचार्य श्री विमल सागर जी पूर्णतया स्वस्थ थे।परन्तु २३ दिसम्बर १९९४ को आपको बुखार आया और २७ दिसम्बर तक बुखार बढता चला गया।भरत सागर जी उनकी सेवा में लगे रहते थे उनको इशारा भी नहीं करना पड़ता था आप उनकी मनोभावना को समझकर उनकी सेवा में जूट जाया करते थे।१ पल भी आपने अपने गुरु का साथ नहीं छोड़ा ।और सच्चे शिष्य का परिचय दिया । २८ दिसम्बर १९९४ को आचार्य श्री की शक्ति क्षीण हो गयी और उन्होंने भरत सागर जी को पढने के लिए कहा ।विमलसागर जी ने १ घंटे बिना किसी सहारे के स्वद्याय सुना ।पश्चात जिनाभिषेक देखा और भरत सागर जी के मस्तक पर ३ बार गंदोधक ऐसे लगाया जैसे आचार्य पद के संस्कारकर रहे हो। दोप. में बुखार ने गति पकड़ी ।शिष्य समूह ने समाधि मरण का और नमोकार मंत्र का जाप चलता रहा। २९ दिसम्बर १९९४ को स्वास्थ थोडा सामान्य हुआ सबको उम्मीद थी की बाबा अब बोलेंगे।परन्तु आचार्य श्री तो यम सल्लेखना में ललना थे।भरत सागर जी ने उनके कानो में नमोकार मंत्र सुनाया और कहा की अब से आपके चारो प्रकार के आहार का त्याग है सुनते ही आपने भरत सागर जी की और देखा और मौन स्वीकृति प्रदान की।२९ दिसम्बर १९९४ को सायं ४:२७ को आचार्य श्री समाधि में लीन हो गए ।१० फरबरी १९९५ को समाज ने भरत सागर जी आचार्य पद प्रधान किया।
आचार्य वचन प्रमाणं :
1)कुछ साल पहले आचार्य श्री भरत सागर जी पावापुरी से कुण्डलपुर जा रहे थे।मार्ग में १ बुढ़िया रोटी हुई आई और कहने लगी मेरा बेटा ८ दिन से लापता है कोई उपाय बताइए ।तब आचार्य श्री ने कहा माजी आपका बेटा शीघ्र आजायेगा आप ॐ नम: की जाप कीजिये। ५ दिन के भीतर उसका बेटा वापस आ गया।
2)१ बार १ जैन बन्धु मंदार गिरी की वंदना करके आचार्य श्री के पास आकर रोने लगे और कहाकि मेरा परिवार दुखी है।पटना में कार्य चल ही नहीं रहा पटना छोड़ना पड़ेगा ।तब आचार्य भरत सागर जी ने कहा पटना छोड़ने की कोई जरुरत नहीं है।कुछ ही दिनों में लाभ होगा ।वह घर गया और चंद दिनों में ही उसे २५ लाख का फायदा हुआ। ऐसे ही कही उदारण है जिस से पताचलता है की आचार्य श्री जो १ बार बोल देते थे उनके वचन फलीभूत हो जाया करते थे। २१ अक्टूबर २००६ को उदयपुर (राज.)के निकट आचार्य श्री ने समाधि मरण कर इस नश्वर शरीर का त्याग कर दिया ।
संक्षिप्त परिचय | |
जन्म: | ७ अप्रैल १९४९ ,चैत्र सुदी नवमी |
जन्म स्थान : | लोहारिया , राजस्थान |
जन्म का नाम | छोटे लाल |
माता का नाम : | गुलाबी देवी |
पिता का नाम : | किशनलाल नरसिंह |
दीक्षा गुरु : | आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज |
मुनि दीक्षा तिथि: | ६ नव. १९७२ |
मुनि दीक्षा स्थल : | सम्मेद शिखरजी सिद्धक्षेत्र |
आचार्य पद तिथि: | १० फरबरी १९९५ |
आचार्य पद प्रदाता : | आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज |
समाधि स्थल : | उदयपुर (राज.)के निकट |
समाधि तिथि : | २१ अक्टूबर २००६ |
#AcharyaSriBharataSagarJiMaharaj1949Vimalasagarji
आचार्य श्री भरत सागरजी महाराज
Aacharya Shri 108 VimalSagar Ji 1915 (Ankalikar)
आचार्य श्री 108 विमलसागर जी (अंकलिकर) Acharya Shri 108 VimalSagar Ji (Ankalikar)
VimalSagarJi1915(Ankalikar)MahaveerKirtiJi
A part of Pawan Vasundhara Rajasthan Birthday Ramnavmi, Chaitra Sudi Navami. April 8, 1979 was the Thursday constellation Pushp. The name was Chhoti Lal, being the youngest of 4 sons and 3 daughters. Gradually little red grew up. When he was in the eighth grade, Sanskrit teacher Shri Jai Narayan asked all the students to put their palm forward to play the lesson. As soon as Lal came in front of him, the stick stopped suddenly. The teacher's eyes collided with the ridges of his palm. As soon as he saw it, he had read the text written in his hand. This little girl will become a great seeker of tomorrow.
The quality of leadership you had since childhood would have become a leader if you had not become a monk. More than your public education, you were more interested in country service and religious activities. You had built a temple in your house like Panchmishti and Mahavira God every day. In the evening, aarti was performed. Along with this, many classmates used to gather.
You saw darshan of Acharya Mahavir Kirti ji, Muni Devendra Sagar ji, Acharya Dharma Sagar ji and Aryika Gyan Mati Mata ji in your childhood.
While doing the job, he kept searching for the Guru. Along with Vimal Sagar ji, he came to visit. Seth ji used to go to visit the Acharya Shree himself after tripling the shop Chhote Lal. Chhote Lal said to Seth ji for 1 day. After sitting at the feet, Acharya Shri looked at him and guessed that this little Lal would go ahead and become a very big seeker. 3 days Acharya passed at the feet of Shri. Guru asked with me. So Chhote Lal said yes. Acharya Sri gave him unbroken Brahmacharya fast even after the opposition of the people. And 1 more Baal Brahmachari was born in the country. Brahmachari Chhote Lal. After that, on 25 May 1949, the decision to give ablative initiation in front of Ajmer society was heard by Acharya. Then the society requested that when it is too young to give initiation when it is mature. Vimal Sagar Ji said that I was in only 2 months Has seen its maturity. 19
Prefix: Parishah and Prefix are the adornment of the life of Jain monks. As soon as Shalaklak was formed, the test of Shanti Sagar ji started. Now 15 days had left for the euphoric state. After seeing some Mokas, they attacked and attacked them and handed over all the jewels that you have. They did not believe even after giving a lot of persuasion to him and took them to a nearby well. In the Sangh saw that the Brahmachari is not that, then people started looking for him with their vehicles to see them. Some people said that there must have been as many people who had run away. Then people asked Acharya Shree what your knowledge says. Then Acharya Shree said - He is promising, cannot be said, He has got a position in a disaster. He is safe from a submerged place but it will take time to meet. Here in the well, Chhutalka ji kept chanting the Namokar Mantra. Then after listening to the voice of a woman who came to fill the water, she poured a leather charas in the well to get them out, but Chhulak ji decided to sit on it. By then some other people of the society came. With his help, they were taken out of it. You did not leave your religion even after being in water for 7 hours. The whole body was turned white due to water. It seemed as if Yamraj gave up his life by giving up with sharp sharpness of your talent.
Karthik Shukla Pratipada 4th On the Sammed Shikhar ji in 1982, initiation of Chhutlak Sumati Sagar and Chhulalak Shanti Sagar ji were given and named Muni Bahubali Sagar and Muni Bharat Sagar. Just as Shade never leaves anyone, likewise Muni Bharat Sagar ji always with his Guru Bharat Sagar, a sage with excellent qualities, left his own impression on his Guru with his devotion, continuous study. On 9th September 1979, Acharya Shri made Muni Bharat Sagar ji Upadhyay Bharat Sagar.
Acharya post: Acharya Shri Vimal Sagar ji was perfectly healthy on the 9th birth anniversary. But on 23 December 1949, you got fever and by December 27, the fever kept increasing. Bharat Sagar ji was engaged in his service, he did not even have to indicate you. They used to understand their feelings and used to jute in their service. Not even 1 moment did you leave your teacher. On 24th December 1949, Acharya Shri's power waned and he asked Bharat Sagar ji to read. Vimalsagar ji listened to Swadhyaya for 1 hour without any support. After that, he saw Janabhisheka and 3 times he put dirt on the forehead of Bharat Sagar ji. You are performing the rituals of the post of Acharya. Two In the fever, the momentum gained momentum. The disciple group kept chanting the Samadhi and the chanting of Namokar Mantra. On 29th December 1979, the health became normal, everyone expected Baba to speak now, but Acharya Shri Yama was to enter into the Sallekhna. Bharata Sagar ji said the Namokar Mantra in his ears and said that from now on, all four types of food are sacrificed. Only you saw Bharat Sagar ji and gave silent approval. On December 29, 1979, at 8:27 pm, Acharya got absorbed in Shri Samadhi. On February 10, 1956, the society took the position of Bharat Sagar Ji Acharya.
Acharya promise proof:
1) A few years ago Acharya Shri Bharat Sagar ji was going from Pavapuri to Kundalpur. 1 old lady came to the road and started saying that my son has been missing since 4 days. Then Acharya Shri said, Maji your son Soon you will chant 'Om Namah'. His son returned within 5 days.
2) After worshiping Mandar Giri, 1 Jain Bandhu 1 times, he came to Acharya Shri and started crying and said that my family is unhappy. Work is not going on in Patna, Patna will have to leave. Then Acharya Bharat Sagar ji said that there is no need to leave Patna He will be benefited in a few days. He went home and in a few days he got a profit of 25 lakhs. There is a similar example whereby it is known that Acharya Shri who used to speak 1 times, his words used to fructify. On 21 October 2007, near Udaipur (Raj), Acharya Shree sacrificed this mortal body after dying a tomb.
Acharya Sri Bharat Sagarji Maharaj
आचार्य श्री 108 विमलसागर जी (अंकलिकर) Acharya Shri 108 VimalSagar Ji (Ankalikar)
आचार्य श्री 108 विमलसागर जी (अंकलिकर) Acharya Shri 108 VimalSagar Ji (Ankalikar)
Aacharya Shri 108 VimalSagar Ji 1915 (Ankalikar)
Acharya Sri Bharata Sagarji Maharaj
#AcharyaSriBharataSagarJiMaharaj1949Vimalasagarji
VimalSagarJi1915(Ankalikar)MahaveerKirtiJi
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AcharyaSriBharataSagarJiMaharaj1949Vimalasagarji
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