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The Jain Religion After Bhagwan Mahavir
The Jain Religion After Bhagwan Mahavir
श्रीत्रलोक्याधिपं नत्वा स्मृत्वा सद्गुरु-भारतीम् ।
वक्ष्ये पट्टावली रम्या मूलसंघगणाधिपाम् ।।१।।
श्रीमूलसंघप्रबरे नन्द्याम्नाये मनोहरे ।
बलात्कारगणोत्तसे गच्छे सारस्वतीयके ।।२।।
कुन्दकुन्दान्वये श्रेष्ठ उत्पन्न श्रीगणाधिपम् ।
तमेवात्र प्रवक्ष्यामि श्रूयतां सज्जना जनाः ।।३।।
मैं तीनों लोकके स्वामी श्रीजिनेन्द्र भगवानको नमस्कार कर तथा सद्गुरु की वाणीका स्मरण कर मूलसंघगणकी पट्टावलीको कहता हूँ। श्रीमूलसडके नन्दीतामक सुन्दर आम्नायमें बलात्कारगणके सरस्वतीगच्छके कुन्दकुन्दनामक वंशमें जो गणोंके अधिपति उत्पन्न हुए, उनका वर्णन करता हूँ, सज्जन लोग सुनें।
अन्तिम-जिण-णिव्वाणे केवलणाणी य गोयम-मुणिदो
बारह-वासे य गये सुधम्मसामी य संजादो ॥१॥
तह बारह-बासे पुण संजादो जम्बुसामि मुणिणाहो ।
ठगीस दाम हरियो केपलानी म उस्किट्ठो ||२||
बासठि केवल-बासे तिम्हि मुणी गोयम-सुधम्म-जम्बू य ।
बारह बारह दो जण तिय दुगहीणं च चालीसं ॥३॥
अन्तिम श्रीमहावीरस्वामौके निर्वाणके बाद गौतमस्वामी केवलज्ञानी हुए, जो बारह वर्ष तक रहे। इसके बाद बारह वर्ष तक सुधर्माचार्य केवलज्ञानी हुए। इसके बाद जम्बूस्वामी ३८ वर्षों तक केवली रहे। इस प्रकार ६२ वर्षों तक तीन केवली गौतम, सुधर्माचार्य और जम्बूस्वामी हुए।
सुयकेवाल पंच जणा बासठि-वासे गये सुसंजादा ।
परमं चउदह वासं विण्हुकुमार मुणयब्वं ॥४॥
नन्दिमित्त वास सोलह तिय अपराजिय वास वावीसं ।
इग-हीण-बीस वासं गोवद्धन मद्दबाहु गुणतीसं ||५||
सद सूयकेवलगाणी पंच जणा विण्ह नन्दिमित्तो य ।
अपराजिय गोवरण तह भद्दबाहु य संजादा ॥६॥
श्रीमहावीर स्वामीके ६२ वर्ष बाद पांच श्रुत्तकेवली हुए | प्रथम विष्णुकुमार चौदह वर्ष तक धुतकेवली रहे, इसके बाद सोलह वर्ष नन्दिमित्र, बाईस वर्ष अपराजित, उन्नीस वर्ष गोवर्द्धन और उनतीस वर्ष तक महात्मा भद्रबाहु श्रुत केवली हुए। इस प्रकार सौ वर्षों में पांच श्रुसकेवली हुए-विष्णुकुमार, नन्दि मित्र, अपराजित, गोबर्द्धन और भद्रबाहु । ।
सद-बाछि सुवासे गएसु उप्पण दह सुपुब्वधरा ।
सद-तिरासि वासाणि य एगादह मुणिबरा जादा ||७||
आरिय विशाख पोल खत्तिय जयसेण नागसेण मुणी ।
सिद्धत्य धित्ति विजयं बुहिलिङ्ग देव धमसेणं
टा दह जगणीस य सत्तर इकवीस अट्ठारह सत्तर ।
अट्ठारह तेरह बीस चउदह चोदय कमेणेयं ।।२।।
श्रीमहावीर स्वामीके १६२ वर्ष बाद १८३ वर्ष तक दस पूर्वके धारी ग्यारह मुनिवर हुए-१० वर्षों तक बिगाखाचार्य, १९ वर्षों तक प्रोष्टिलाचार्य, १७ वर्षों तक क्षत्रियाचार्य, २१ वर्षों तक जयसेनाचार्य, १८ वर्षों तक नागसेनाचार्य, १५ वर्षों तक सिद्धार्थाचार्य, १८ वर्षों तक तसेनाचार्य, १३ वर्षों तक विजया चार्य, २० वर्षों तक बुद्धिलिंगाचार्य, १४ वर्षों तक देवाचार्य और चौदह वर्षों सक धर्मसेनाचार्य हुए।
अन्तिम-जिण-णिब्वाणं तिय-सय-पण चाल-बास जादेसु ।
एमादहंगधारिय पंच जगा मुणिवरा जाना ॥१०॥
मक्खत्तो जयपालग पंसद दुसरोज मंस परिया।
अठारह बीस वासं गुणचाल चोद बत्तीसं ॥१॥
सद तेवीस बासे एमादह अङ्गघरा जादा ।
थीवीरस्वामीके निर्वाणके ३४५ वर्ष बाद १२३ वर्षों तक ग्यारह अंगके धारी पाँच मुनिवर हुए-१८ वर्षों तक नक्षत्राचार्य, बीस वर्षों तक जयपाल चार्य, ३९ वर्षों तक पाण्डवाचायं, १४ वर्षों तक ध्र बसेनाचार्य और ३२ वर्षों तक कंसाचार्य । इस प्रकार १२३ वर्षों में पाँच ग्यारह अंगके धारी हुए।
वासं सत्तावणदिय दसंग नव-अंग अट्ठन्धरा ॥
रसा सुभद्धं च जसोभई भद्दबाहु कमेण च ।
लोहाचम्य मुणीसं च कहियं च जिणागमे ॥१॥
छह अट्ठारहवासे तेवीस वावण (पणास) वास मुणिणाहं ।
दस-नव-अद्वैग-धरा वास दुसदबीस सधेसु ॥१४॥
इसके बाद ६५ वर्षों तक दस अंग, नव अंग तथा आठ अंगोंके धारी क्रमशः ६ वर्षों तक सुभद्राचार्य, १८ वर्षों तक यशोभद्राचार्य, २३ वर्षों तक भद्रबाहु और ५० वर्षों तक लोहाचार्य मुनि हुए। इसके बाद ११८ वर्षों तक एकाङ्गधारी रहे।
पंचसये पणसठे अन्तिम-जिण-समय-जादेसु ।
उप्पण्णा पंच जणा इयंगधारी मुणयव्या ||१५||
अहिबल्लि माघनन्दि य धरसेणं पुष्पयंत भूदबली ।
अडवीसं इगवीसं उगणीसं तीस वीस वास पुणो ॥१६॥
श्रीवीरनिर्वाणसे ५६५ वर्ष बाद एक अंगके धारी पाँच मुनि हुए। २८ वर्षों तक अहिबल्याचार्य, २१ वर्षों तक माधचन्द्याचार्य, उन्नोस वर्ष तक घरसेनाचार्य तीस वर्ष तक पुष्पदन्ताचार्य और २० वर्षों तक भूतबली आचार्य हुए।
इग-सय-अगरवासे इयंग-धारी य मुणिवरा जादा ।
छ सय-तिरासिय वासे णिब्बणा अंगद्दित्ति कहिम जिणे ॥१७॥
एक सौ अठारह वर्षों तक एक अंगके धारी मुनि हुए । इस प्रकार ६८३ वर्षों तक अंगके धारी मुनि हुए । अब मूलसंघका पाठ वर्णित होता है ।
श्रीमहावीरके निर्वाणके ४७० वर्ष बाद विक्रमादित्यका जन्म हुआ । विक्रम जन्मके दो वर्ष पूर्व सुभद्राचार्य और विक्रम राज्यके ४ वर्ष बाद भद्रबाहुस्वामी पट्टपर बैठे। 'भद्रबाहु स्वामीके शिष्य गुप्तिगुप्त हुए। इनके तीन नाम है-- गुप्तिगुप्त, अहंबली और विशाखाचार्य । इनके द्वारा निम्नलिखित चार संघ स्थापित हुए।
नन्दीवृक्षके मूलसे बर्षायोग धारण करनेसे नन्दिसच हुए। इनके नेता माधनन्दी हुए अर्थात् इन्होंने ही नन्दीसंघ स्थापित किया । जिनसेननामक तृणतल में वर्षायोग करनेसे एक ऋषिका नाम वृषम पड़ा । इन्होंने ही वृषभ संघ स्थापित किया । जिन्होंने सिंहको गफामें वर्षायोगको धारण क्रिया, उनने सिंहसंघ स्थापित किया और जिसने देवदत्तानामको वेश्याके नगरमें वर्षायोग धारण किया, उसने देवसंघ स्थापित किया।
इसी प्रकार नन्दीसंघ पारिजातगच्छ बलात्कारगणमें नन्दी, चन्द्रकोति और भूषण नामके मुनि हुए।
उनमें श्रीवीरसे ४५.२ वर्ष बाद, सुभद्राचार्य से २४ वर्ष बाद, विक्रम-जन्ममे बाईस वर्ष बाद और विक्रम-राज्यसे ४ वर्ष बाद द्वितीय भद्रबाहु हुए।
सत्तरि चउ-सद-युतो तिणकाला विक्कमो हबई जम्मो ।
अठ-वरस बाललीला मोडसम्बासेहि भम्मिए देसे ॥१८॥
पण रस-वासे रज्ज कुणन्ति मिच्छोबदेससंयुत्तो।
चालीस-बरस जिणवर-धम्म पालीय सुरपयं लहियं ॥११||
अर्थात् श्री बीरनिर्वाणके ४७० वर्ष बाद विक्रमका जन्म हुआ । आठ वर्षों तक इन्होंने बाललीला की, सोलह वर्षों तक देश भ्रमण किया और ५६ वर्षों तक अन्यान्न धर्मों से निवृत्त होकर जिनधर्मका पालन किया ।
Sanjul Jain Created Article On Date 10 June 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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