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#ajitmatimataji1906ShantiSagarjiMaharajCharitrachakravarthy
Ajitmati Mataji is a disciple of the twentieth century Prathamacharya, Charitrachakravarti, Samadhi Samrat Param Pujya Shree Shantisagarji Maharaj. She took sallkehna at Baramati (Maharashtra) on 29 April 1991
बीसवीं सदी के प्रशमाचार्य, चारित्रचक्रवर्ती, धर्मसाम्राज्यनायक , योगींद्रचूडामणि, समाधिसम्राट परमपूज्य श्रीशांतिसागरजी महाराज (भोज कर्नाटक) की शिष्या पूज्यश्री अजितमती माताजी का परिचय
गृहस्थावस्था का नाम - मरुदेवी,
पिता- नानासाहेब चौगुले
माता- कृष्णाबाई
जन्म भूमि- वलीवढ (गांधीनगर - कोल्हापूर महाराष्ट्र)
ननिहाल - हातकणंगले-कोल्हापूर
जन्म - इ.स. १९०४
दो भाई, एक बहन
पिता और भाई-बहनकी ताऊत से मौत
लौकिक पढाई- नहीं के बराबर
विवाह - ढाई साल की उम्र में और बारह साल की उम्र में बिजली गिरकर पूति आप्पासाहेब चपणे का देहांत।
देवर- नेमिनाथ
देवरानी- श्रीमती
ससूराल - दुधगाँव - सांगली महाराष्ट्र
तेरह साल की उम्र में बगीचे मे सहेली के मुंह से राजूलमती का गीत सुनकर मन में वैराग्य एवं दीक्षा के भाव उत्पन्न हुए।
पंदरह साल की उम्र में रात्री भोजन त्याग मतलब रात्री मे जल का भी त्याग एवं कंदमूल त्याग ऐसा व्रत ग्रहण किया।
बीस साल की उम्र में दो प्रतिमाओंका व्रत आचार्यश्री शातिसागरजी से ग्रहण।
फाल्गुम शूक्ल नवमी इ.स १९२८ सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेद शिखरजी मे आचार्य श्री शांतिसारजी से क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण। और नाम रखा गया अजितमती माताजी।
पंडित श्री जिनदास फडकुले, वर्धमानशास्त्री फूलचद शास्त्री, वासुदेव शास्त्री, शातिनाथ शास्त्री, पद्मराज शास्त्री इत्यादि से (जहाँ जिस गाँव में अनुकुलता मिल गई उस तरीके से) चारो अनयोगोंके अनेक ग्रंथाका अध्ययन किया । श्री बाबू बीडकर और दानी मास्तर नाम के अध्यापक ने भाडारकर संस्कृत व्याकरण (पूस्तक १/२) पढ़ाया।
स्वयं अध्ययन किए हुए कुछ ग्रंथ- पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, परमात्मप्रकाश, मूलाचार, लब्धिसार, तिलोयपण्णती, धवला सिद्धांत की ८ पुस्तके, इ. भगवती आराधना एवं समयसार मानो कंठस्थ गोम्मटसार, जीवकांड सर्वार्थसिद्धि राजवार्तिक एवं संस्कृत व्याकरण हाथ में पूस्तक लिए बिना दूसरोंको पढ़ा सकती थीं।
व्रत-
दशलक्षण | १० साल | एकांतर उपवास से |
सोलहकारण | १६ साल | एकांतर उपवास से |
श्रुतस्कंध | १२ साल | एकांतर उपवास से |
पूष्पांजलि | ५ साल | एकांतर उपवास से |
लब्धिव्रत | ५ साल | एकांतर उपवास से |
अष्टान्हिक | ८ साल | विधिपूर्वक |
कवलचांद्रायण | ||
कर्मदहन | १५६ उपवास | |
पंचमेरू | ५ उपवास | |
तीस चोबिसी व विद्यमान वीस तीर्थंकर | ७४० उपवास | |
बीस विहरमान | २० उपवास | |
चारित्रशुद्धि | १२३४ उपवास | |
जिनगूणसंपत्ति | ६३ उपवास | |
पंच परमेष्ठी | १४३ उपवास | |
रत्नत्रय | २९ उपवास | |
मुक्तावली | ८१ उपवास | |
कनकावली | ७२ उपवास | |
सर्वदोष प्रायश्चित | ३७ उपवास | |
अनंत चतुष्टय (सल्लेखना काल में) | ४ उपवास |
भक्तामर | ४८ उपवास में से २० उपवास | |
यम सल्लेखना | ५ उपवास | |
उससे पहले सिर्फ जल लेकर | ७ दिन (अनुपवास) |
हर साल श्रुतपंचमी के दिन उपवास
जिस दिन खालका दीक्षा हुई उसी दिन तेल रस का आजीवन त्याग
जीवदया अष्टमी के दिन हर साल उपवास
दिक्षा के बाद ४ साल बीत गये। गिरनार सिद्धक्षेत्र पर इक्षुरस-गुड- शक्कर का आजीवन त्यागकर दिया।
धरती की क्षमाशीलता, चंद्रमा जैसा आल्हादकता , ज्ञानदान करनेवाला एवं सात्वन की जलधारा बरसाने वाला मेघराजा। प्रसंगोचित सलाह देकर समाज को सदाचार में स्थिर करनेवाला लोकमान्य गर्व्हनर जनरल। अपने चारित्र में कट्टर नियम सल्लेखना के अंतर्गत आर्यिका दीक्षा ग्रहण।
दीक्षा प्रदाता - आचार्य श्री बाहुबली महाराज
दीक्षा तिथि- माध कृष्णा सप्तमी
दिनांक - ७ जनवरी १९९१
स्थल - बारामती (जि. पुणे)
उम्र - अंदाजसे नब्बे साल
११२ दिन तक आर्यिका दीक्षा का निरातिचार पालन करते हुए अंतमें वस्त्रत्याग सहित छह दिन की यमसलेखनापूर्वक देहत्याग
तिथी- निज वैशाख कृष्ण प्रतिपदा दि. २९ अप्रैल १९९१
प्रात: (सूर्योदय पूर्व) ३:५५ से ४ के बीच
प. पू. माताजी की क्षुल्लिका दीक्षा शके १८४९, संवत २४५४, सन १९२८ मध्ये फाल्गुन शुक्ल नवमी को बुधवार को हुआ। यानी फाल्गुन शुक्ल नवमी सन १९९१ को त्रेसष्ठ साल पुरे और झाली व चौसष्ट वा साल लगा। इतने लंबे काल में से ज्ञात चातुर्मास:-
गाव के नाम | चातुर्मास की संख्या | उसका काल |
सोलापूर | ४ | १९२८, १९२९, १९३१, १९३२ |
दुधगांव | १ | १९३० |
अकलूज | ४ | १९३३, १९३६, १९७७,१९८३ |
बारामती | २ | १९३४, १९८९ |
इसके आगे की सूची क्रमसे ज्ञात न होणे के कारण क्रमसे नही।
वडगाव निंबाळकर | २ | १९८७ |
नीरा | २ | |
लोणंद | १ | |
तरडगाव | १ | |
किणी | ६ | १९४८, १९४९, १९८२ |
बाहुबली | २ | १९७५ |
म्हसवड | ३ | १९७८ |
रुकडी | ३ | १९७२, १९८६, १९९० |
कोरोची | १ | |
मांगूर | १ |
सांगली | ३ | १९४७ |
लासुर्णे | १ | |
करमाळा | १ | |
पंढरपूर | १ | १९८८ |
नातेपुते | ४ | १९७३, १९७६, १९८१, १९८५ |
फलटण | ५ | १९६९, १९७४, १९७९, १९८०, १९८४ |
४८ |
अजितमती माताजी कि ज्यादा उमर के कारण चातुर्मास ज्ञात नाही है। फिर भी १५ चातुर्मास नातेपुते और फलटण रहेगा क्योंकी माताजी ज्यादा वक़्त यही रहते थे।
१) भगवती आराधना- समग्र आँखोंके सामने थी,
२) समयसार- अमृतासमान प्रिय,
३) गोम्मटसार जीवकांड- बुद्धीका खुराक व प्रिय.
४) सर्वार्थसिद्धी- बुद्धीका खुराक व प्रिय.
५) राजवार्तिक- बुद्धीका खुराक व प्रिय.
इसके अलावा प्रथमानुयोगाके अनेक ग्रंथ, अनगार धर्मामृत इत्यादी विविध ग्रंथ पाढे है।
१) विदुषी रत्न- १९८० साल को फाल्गुन अष्टान्हिकात फलटण में इंद्रध्वज विधानात प. पू. आचार्यश्री सुबलसागर महाराज ने दिया।
२) चारित्रचंद्रिका- १९९० साल- भोज के प्रतिष्ठा में अम्मांके दीक्षेके बासष्टावे वर्धापनदिन को (फाल्गुन शु. ९-५ मार्च) प. पू. आचार्यश्री बाहुबली महाराज ने दिया।
३) समाधिसम्राज्ञी- (१९९१) २९ एप्रिल सोमवारके पहाटे (२८ एप्रिल रविवारके उत्तररात) ६ दीनोके यमसल्लेखने सहित माताजी का महानिर्वाण होने के बाद निर्यापकाचार्य प. पू. श्रीबाहुबली महाराजने जाहीर किया।
प. पू. माताजी ने आपने जीवन में साधे हुये सल्लेखना-
१) गृहस्थी अवस्था में सबसे पेहेले माता कृष्णाबाई, हातकणंगले - १९२७
२) पू. आर्यिका १०५ श्री विमलमती माताजी, सांगली - १९४७
३) प. पू. १०८ श्री आदिसागर महाराज (अंकलीकर), उदगाव. -
४) प. पू. १०८ श्री आदिसागर महाराज (बोरगावकर), उदगाव. -
५) प. पू. दीक्षागुरू १०८ आचार्य श्री शांतिसागर महाराज, कुंथलगिरी - १९५५
६) प. पू. श्री धर्मसागर महाराज, लासुर्णे - १९६५
७) पू. क्षु. १०५ श्री सुमतीसागर, फलटण - १९६६
८) पू. क्षु. १०५ श्री पार्श्वमती माताजी, बाहुबली - १९६९
९) पू.क्षु. १०५ श्री जिनमती माताजी, नातेपुते - १९७०
१०) प. पू. १०८ नेमिसागर महाराज, मुंबई - १९७२
११) पू. १०५ श्री ऐलक महाराज, मुंबई - १९७२
१२) प. पू. १०८ श्री सुधर्मसागर महाराज, गजपंथ - १९७३
१३) प. पू. १०८ श्री आदिसागर (शेडबाळकर), बार्शी. - १९७७
१४) पू. क्षु. १०५ श्री सिद्धमती माताजी, नातेपुते - १९७८
१५) पू. क्षु. १०५ श्री वैराग्यमती माताजी, नातेपुते - १९८२
१६) पू. आर्यिका १०५ श्री सुमतीमती माताजी, अकलूज - १९८३
१७) प. पू. १०८ श्री वृषभसागर महाराज, कुंथलगिरी - १९८३
१८) पू.क्ष. १०५ श्री श्रद्धामती माताजी, फलटण - १९८४
१९) पू. आर्यिका १०५ श्री विमलमती माताजी, हुपरी - १९८४
२०) पू. क्षु. १०५ श्री चंद्रमती माताजी, लासुर्णे - १९८८
२१) नातेपुते में श्री. रामचंद धनजी दावडा, मृत्युसमय क्षुल्लक दीक्षा लेके सल्लेखना - १९७३
२२) अकलूज में श्रीमती चंपाबाई तलकचंद दोशी व्रती श्राविका - १९७३
२३) फलटण में श्रीमती जतनबाई रूपचंद दोशी व्रती श्राविका - १९८१
२४) रुकडी में चंद्राबाई पाटील व्रती श्राविका - १९९०
इसके सिवा अनेक त्यागी, व्रती-अव्रती श्रावक के नाम और साल अज्ञात है। कुत्ते जैसे अनेक मूक पशुंको भी उन्होने अंतसमय में णमोकार मंत्र दिया है। जहा जा नं सके वहा सुंदर प्रेम भरे शब्दोंसे और चारही अनुयोग का सारांश भरा हुआ है, ऐसे उद्बोधक शब्दोंसे भरा हुआ खत भेजते थे। कोइ धर्मात्मा मृत हुआ तो, ऐसे समय में उनके रिश्तेदारोंको सांत्वनपर खत लिखते थे। सबका शोक दूर करनेवाला ये एक शांतिसागर। चाँद और चंदन से भी शीतल!
- अजितमती माताजी शिष्य बा ब्र रेवती दोशी अकलूज
#ajitmatimataji1906ShantiSagarjiMaharajCharitrachakravarthy
आर्यिका श्री १०५ अजितमती माताजी
Charitrachakravarti Acharya Shri Shanti Sagar Ji Maharaj 1872
आचार्य श्री १०८ शांति सागरजी महाराज १८७२ (चरित्रचक्रवर्ती) Acharya Shri 108 Shanti Sagarji Maharaj 1872 (Charitrachakravarti)
गाव के नाम | चातुर्मास की संख्या | उसका काल |
सोलापूर | ४ | १९२८, १९२९, १९३१, १९३२ |
दुधगांव | १ | १९३० |
अकलूज | ४ | १९३३, १९३६, १९७७,१९८३ |
बारामती | २ | १९३४, १९८९ |
इसके आगे की सूची क्रमसे ज्ञात न होणे के कारण क्रमसे नही।
१९४८, १९४९, १९८२ | ||
बाहुबली | २ | १९७५ |
म्हसवड | ३ | १९७८ |
रुकडी | ३ | १९७२, १९८६, १९९० |
कोरोची | १ | |
मांगूर | १ |
सांगली | ३ | १९४७ |
लासुर्णे | १ | |
करमाळा | १ | |
पंढरपूर | १ | १९८८ |
नातेपुते | ४ | १९७३, १९७६, १९८१, १९८५ |
फलटण | ५ | १९६९, १९७४, १९७९, १९८०, १९८४ |
४८ |
AcharyaShriShantiSagarJiMaharaj1872DevendraKirtiJi
Ajitmati Mataji is a disciple of the twentieth century Prathamacharya, Charitrachakravarti, Samadhi Samrat Param Pujya Shree Shantisagarji Maharaj. She took sallkehna at Baramati (Maharashtra) on 29 April 1991
Introduction of Pujyashri Ajitmati Mataji
Ajitmati Mataji is a disciple of the twentieth century Prathamacharya, Charitrachakravarti, Samadhi Samrat Param Pujya Shree Shantisagarji Maharaj. She took sallkehna at Baramati (Maharashtra) on 29 April 1991
At the age of thirteen, after listening to the song of Rajulmati from her friend in the garden, feelings of detachment and initiation arose in the mind.
At the age of fifteen, she renounced her dinner meal, which meant renouncing water in the night and taking such a fast to relinquish to have food with roots (Kandamool).
At the age of twenty, she took two ‘Pratimas’ from Acharyashree Shatisagarji.
On Phalgum Shukla Navami, in 1928, at Shri Sammed Shikharji she received Kshullika from Acharya Shri Shantisarji Maharaj and the got the name Ajitmati Mataji.
Aryika Shri 105 Ajitmati Mataji
आचार्य श्री १०८ शांति सागरजी महाराज १८७२ (चरित्रचक्रवर्ती) Acharya Shri 108 Shanti Sagarji Maharaj 1872 (Charitrachakravarti)
आचार्य श्री १०८ शांति सागरजी महाराज १८७२ (चरित्रचक्रवर्ती) Acharya Shri 108 Shanti Sagarji Maharaj 1872 (Charitrachakravarti)
Charitrachakravarti Acharya Shri Shanti Sagar Ji Maharaj 1872
गाव के नाम | चातुर्मास की संख्या | उसका काल |
सोलापूर | ४ | १९२८, १९२९, १९३१, १९३२ |
दुधगांव | १ | १९३० |
अकलूज | ४ | १९३३, १९३६, १९७७,१९८३ |
बारामती | २ | १९३४, १९८९ |
इसके आगे की सूची क्रमसे ज्ञात न होणे के कारण क्रमसे नही।
१९४८, १९४९, १९८२ | ||
बाहुबली | २ | १९७५ |
म्हसवड | ३ | १९७८ |
रुकडी | ३ | १९७२, १९८६, १९९० |
कोरोची | १ | |
मांगूर | १ |
सांगली | ३ | १९४७ |
लासुर्णे | १ | |
करमाळा | १ | |
पंढरपूर | १ | १९८८ |
नातेपुते | ४ | १९७३, १९७६, १९८१, १९८५ |
फलटण | ५ | १९६९, १९७४, १९७९, १९८०, १९८४ |
४८ |
Aryika Shri 105 Ajitmati Mataji
#ajitmatimataji1906ShantiSagarjiMaharajCharitrachakravarthy
AcharyaShriShantiSagarJiMaharaj1872DevendraKirtiJi
AcharyaShriShantiSagarJiMaharaj1872DevendraKirtiJi
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ajitmatimataji1906ShantiSagarjiMaharajCharitrachakravarthy
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