Article Summary
Ganaddharaadi Pattawali
Ganaddharaadi Pattawali
इन्द्र भूतिरग्निभूतिर्वायुभूति: सुधर्मक:
मौर्यमौड्यौ पुत्रमित्रावकम्पनसुनामधृक् ।।१।
अन्धवेल: प्रभासश्च रुद्रसंख्यान मुनीन् यो ।
गौत्तमं च सुधर्मञ्च जम्बूस्वामिनमूर्ध्वगम् ॥२॥
श्रोत्रनिला न विन्द रविवार ।
गोवर्धन भद्रबा९ दशपूर्शवरं यजे ॥शा
विशाखप्रौष्टिलनक्षत्रजयनरगपुरस्सरान ।
सिखार्थतिषणाह्रौ विजयं बुद्धिबलं तथा ॥४||
गंगदेवं धर्मसेनमेकादश तु सु सान् ।
नक्षत्र जयपालाख्यं पाण्डुच ध्रुवसेनकम् ।।५।।
कंसाचार्यपुरोऽगीयज्ञातार प्रयजेन्वहम् ।
सुभद्रं च यशोभद्र भद्रबाहुं मुनीश्वरम् ।।।।
लोहाचार्य पुरापूर्वज्ञान चक्रधरं नमः ।
अबलि भूतबलि माघनन्दिनमुत्तमम् ॥७॥
धरसेनं मुनीन्द्रच्च पुष्पदन्त-समाह्वयम् ।
जिनचन्द्रं कुन्दकुन्दमुमास्वामिनमर्चये ||८||
समन्तभद्रस्वाम्यायं शिवकोटि शिवायनम् ।
पूज्यपादं चैलाचार्य बोरसेनं श्रुतेक्षणम् ।।९।।
जिनसेनं नेमिचन्द्रं रामसेनं सुताकिकान् ।
अकलंकानन्त-विद्यानन्द-मणिक्यनन्दिनः ।।
प्रभाचन्द्रं रामचन्द्रं वासुवेन्दुमवासिनम् ।
गुणभद्रादिकानन्यानपि श्रुततपःपारगान् ।।
वीरांगदां तानार्थेश सर्वान् सम्भाक्याम्यहम् ॥'
इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, सुधर्मक, मौर्य, मौड्य, पुत्र, मित्र, अकंपन नामवाले तथा अन्धबेल, प्रभास इन ग्यारह गणधरोंकी में पूजा करता हूँ। मोक्षमार्गी गौतम, सुधर्म, जम्बूस्वामीको पूजा करता हूँ । विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु श्रुतकेवलियोंकी पूजा करता हैं । दशपूर्वधर श्रीविशाखाचार्य, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जयसेन, नागसेन, सिद्धार्थ, तिषण, विजय, बुद्धिल्ल, गंगदेव, धर्मसेनाचार्यको मैं पूजा करता हूँ | नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, ध्रुबसेन, कंसाचार्य, सुभद्र, यशोभद्र, भद्रबाह, लोहा चार्यमें ये पूर्वधर आचार्य हुए हैं । अहंबलि, भूतबलि, माघनन्दि, घरसेन, पुष्प दन्त, जिनचन्द्र-कुन्दकुन्द, उमास्वामी इन आचार्योंकी पूजा करता हूं। समन्त भद्र, शिवकोट्याचार्य, शिवायन, पूज्यपाद,ऐलाचार्य, वीरसेन, जिनसेन, नेमिचंद्र,इनके कालका प्रमाण पिण्डरूपसे दोसौ बीस वर्ष है। इनके स्वर्गस्थ होने पर फिर भरतक्षेत्रमें कोई ग्यारह अंगोंके घारक नहीं रहे ॥१४८९।।
सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु और लोहार्य ये चार आचारांगके धारक हुए ॥१४९०॥
उक्त चारों भाचार्य आचारांगके सिवाय शेष ग्यारह अंग और चौदह पूर्वोक एकदेशके घारक थे। इनके कालका प्रमाण एकसौ अठारह ११८ वर्ष है ।।१४५११॥
इनके स्वर्गस्थ होनेपर भरतक्षेत्रमें फिर कोई आचारांगके धारक नहीं हुए। गौतममुनि प्रभृतिके कालका प्रमाण छड्सो तेरासी वर्ष होता है ॥१४९२॥
Sanjul Jain Created Article On Date 12 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
You cannot copy content of this page