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Jain Aamnaye- Sangh Details
Jain Aamnaye- Sangh Details
जैन आमनाय में देश कालानुसार कई संघ प्रचलित हुए। किन्तु भिन्न-भिन्न पट्टावलियों, धर्मग्रन्थ संडान्तियन्य, और पुराणोंका मंगलाचरण तथा प्रशस्ति देखनेसे यह निश्चित होता है कि सब संघोंका आदि संघ "मूल संघ" ही है। सायद इसी संकेतसे इस संघके आदिमें "मुल" शब्द जोड़ दिया गया है । हमारे इस कपनकी पुष्टि इन्द्रनन्दि सिद्धान्तीकृत "नीतिसार अन्यके निम्नलिखित बलोकोसे भी होती है।
"पूर्व श्रीमूलसंघस्तदनु सितपट: काष्ठसंघस्ततो हि
तावाभूद्भाविगच्छाः पुनरनि ततो यापुनीसंघ एक: ।
तस्मिन् श्रीमूलसंधे मुनिजनविभले सेन-नन्दी च संघी
स्थासां सिंहास्यसंघोऽभवदुरुमहिमा देवसंघश्चतुर्थः ।।
अर्थात् पहले मूलसंघमें श्वेतपट गच्छ हुआ, पीछे कष्ठासंघ हुआ। इसके कुछ ही समयके बाद यापनीय गच्छ हया। तत्पश्चात् क्रमशः सेनसंघ, नन्दीसंघ, सिंहसंघ और देवसंघ हुआ। अर्थात् मूलसंघसे ही काष्ठासंघ, सेनसंघ, सिंहसंघ और देवसंघ हुए।
"अहंबलीगुरुश्चक्र संघसंघटनं परम् ।
सिंहसंघो नन्दिसंघः सेनसंघस्तयापरः ।।
देवसंघ इति स्पष्ट स्थान-स्थितिविशेषत: ।
अर्थात् अहंदबल्याचार्यने देशकालानुसार सिंह, नन्दी, सेन और देवसंघको स्थापना की।
इससे यह स्पष्टतया ज्ञात होता है कि मूलसंघ पूर्वोक्त संघोंका स्थापक है। पीछे लोहाचार्यजीने काष्ठासंघकी स्थापना की । यह काष्ठासंघ खास करके 'अग्रोहे नगरके अग्नबालोंके ही सम्बोधार्थ स्थापित किया गया ।
इसके कई लेख दिल्लीको भट्टारक-गद्दियों में अब तक मौजूद हैं। उन्हींके आधारपर यह संक्षिप्त परिचय लिखा जाता है।
दिगम्बराचार्य लोहाचार्यजी पदिय देश भद्दापुर विमानसे . बिहार करते करते अग्रोहेके निकटवर्ती हिसारमें पहुंचे। वहां उन्हें कोई असाध्य रोग हुआ था, जिससे वे मूच्छित हो गये। वहाँके श्रावकोंने उन्हें संन्यास-मरण स्वीकार कराया। इसके बाद कम्मसे स्वतः लंघन होनेके कारण त्रिदोष पाक होनेसे अपने आप निरोगी हो गये। निरोगी होनेपर जब इन्हें होश हुआ, तो इन्होंने भ्रामरी वृत्ति (भिक्षावृत्ति )से आहार करना विचारा । पीछे "श्रीसंघ" ने उनसे कहा कि महाराज ! हम लोगोंने आपको रूणावस्था तथा मूच्छिता वस्थामें यावजीवन आपसे संन्यास-मरणकी प्रतिज्ञा करवाई है और आहारका भी परित्याग करवाया है। अतः यह संघ आपको आहार नहीं दे सकता है । यदि आप नवीन संघ स्थापित कर कुछ जैनी बनावें, तो आप वहाँ आहार कर सकते हैं तथा वे दान दे सकते हैं। तत्पश्चात् प्रायश्चित्तादि शास्त्रोंके प्रमाणसे उक्त वृत्तान्त सत्य जान लोहाचार्यजी वहाँसे बिहार कर अग्रोहे नगरके बाह्य स्थानमें पहुंचे । बहा एक बड़ा पुराना ऊंचा इंटका पयाजा था। उसीके ऊपर बैठकर ध्यान-निमग्न हुए | अनभिज्ञ लोग अद्वितीय साधुको वहाँ आये हुए देखकर दूरसे ही बड़े आदरके साथ प्रणाम करने लगे ! मुनि महाराजके आने की धूम सारे नगरमें फैल गयी । हजारों स्त्री पुरुष इकट्ठहो गये । कारण-विशेष से एक बद्धा श्राविका भी किसी दूसरे नगरसे आई थी । यह भी नगर में महात्मा आये हुए सुन उनके दर्शनोंके लिए वहाँ आई ! यह बुढ़िया दिगम्बराचार्यके वृत्तान्तको जानती थी, इसलिए ज्यों ही इसने महात्माको देखा, त्यों ही समझ गई कि ये तो हमारे श्री दिगम्बर गुरु हैं। बस, अब देर क्या थी। धीरे-धीरे वह पयाजेपर चढ़ गई और मुनि महाराजके निकट जाकर बड़ी विनयके साथ "नमोस्तु नमोस्तु' कहकर यथास्थान बैठ गई। मुनिराज लोहाचार्यजीने भी 'धर्मवृद्धि' कहकर धर्मोपदेश दिया । यह घटना देख सबोंको बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि अहोभाग्य इस बुढ़ियाका कि ऐसे महात्मा इससे बोले । अब सब मुनि महाराजके निकट उपस्थित हुए। मुनि महाराजने सबोंको श्रावकधर्मका उपदेश दिया। व्याख्यान सुननेके साथ ही सबका चित्त व्रत ग्रहण करनेके लिए उत्तारू हो गया। पहले अग्नवंशीय राजा दिवाकरने अपने कुटुम्बियों के साथ श्रावकधर्मको स्वीकार किया और पीछे इनकी देखा-देखी सवालाख भन वालोंके घर जैनी हो गये।
पहले छानकर पानी पीना, रात्रि भोजन नहीं करना और देवदर्शन कर भोजन करना, ये तीन मुख्न बत जैनियोंके बतलाये गये । उसी समय सवालाख अमवालोके घरोंमें छान्ने रखे गये, रात्रिभोजनका त्याग कराया गया और दर्शनके लिए एक काष्ठकी प्रतिमा बनाकर स्थापित की गई। उसी समयसे अग्रोहके अग्नवालश्रावकोंकी संज्ञा काष्ठासङ्घी पड़ी। इनका काष्ठासङ्घ, माथुरगच्छ, पुष्करगण, हिसारपट्ट और लोहाचार्याम्नाय प्रचलित हुई। यह नवीन काष्ठासङ्घ जब स्थापित किया गया, तो इस सङ्घसे लोहाचार्यजीके आहारका लाभ हुआ और जैनधर्मकी वृद्धि हुई। इस संघकी पट्टावली अन्यत्र प्रकाशित है। इस सपके पट्टपर उस समयसे लेकर आज तक बराबर अग्रवाल जातिके ही भट्टारक अभिषिक्त होते आते हैं।
Sanjul Jain Created Article On Date 12 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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