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#AastikyaSagarJiMaharaj1984VishuddhaSagarJi
Your twin brother is also Maharaj ji,His name is Muni Shri 108 Praneet Sagar Ji Maharaj ji and he is also initiated by Acharya Vishuddha Sagar ji. Both of you are currently in Gunnaur,Panna,Madhya Pradesh together.
श्री आस्तिक्य सागर जी महाराज
जहां युवा वर्ग नौकरियों की तलाश में लगा हुआ है वहां इंदौर जैसे शहर में जन्मे दो जुड़वे भाइयों ने 28 साल की उम्र में ही घर परिवार डिग्री नौकरी सब कुछ छोड़कर दिगम्बर मुनि दीक्षा को धारण किया ।
दोनों के जन्म में मात्र 30 मिनट का अंतर है।वर्तमान में उनका यमल मुनि के नाम से जाना जा रहा है।
उन दोनों का जन्म 6 मार्च 1984 को श्रीमती स्नेहलता जैन एवं डॉ. वी. के. जैन, - एम. वाय. अस्पताल, इंदौर, मध्य प्रदेश, भारत, में हुआ।
केतन ने एयरोनॉटिकल डिप्लोमा, बी.फार्मा, एम.बी.ए, करके चरक फार्मा अबोट जैसी बड़ी कंपनियों में जॉब छोड़ 8 नवंबर 2011 सागर मध्य प्रदेश भारत में दिगंबर मुनि श्री आस्तिक्य सागर जी महाराज का पद धारण किया।
दोनों के ही दीक्षा शिक्षा गुरु एक ही है परम पूजनीय दिगंबर जैन आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज जिन्होंने अभी तक करीब 60 दीक्षाएं दे दी है। दीक्षा के क्रम में परम पूजनीय श्री आस्तिक्य सागर जी महाराज का 13 नंबर आता है और परम पूजनीय श्री प्रणीत सागर जी महाराज का 16 नंबर आता है।
भाई
चेतन ने सी.ए. एम.बी.ए. एम.कॉम बी.कॉम किया व मैनेजमेंट कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी छोड़ 6 अक्टूबर 2013 नागपुर महाराष्ट्र भारत में दिगंबर मुनि श्री प्रणीत सागर जी महाराज का पद धारण किया ।
उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा ग्वालियर (कक्षा ४ तक) और रायपुर (५-१२) किडीज़ कॉर्नर और श्री बालाजी विद्या मंदिर से पूरी की। इसके बाद सी.ए. का चयन किया। नाहटा, वैष्णव कॉलेज और इंदौर से बीकॉम एमकॉम और एमबीए। इसके बाद, लगभग 2 वर्षों तक आदर्श इंस्टीट्यूट, धम्मोद में एसोसिएट प्रोफेसर और रेनेसां इंदिरा, भिलाई में प्रोफेसर और परीक्षा विभाग प्रमुख के रूप में काम किया।वर्ष 2012 में घर और परिवार छोड़ दिया और आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज जी के संघ में शामिल हो गए।
उन्होंने ६ अक्टूबर २०१३ को नागपुर (महाराष्ट्र) में मुनि दीक्षा ली। दीक्षा के बाद उन्होंने ५० से अधिक पुस्तकों का अनुवाद किया और मैनेजमेंट, सुसाइडर, सिनर, डोजर जैसी कई स्क्रिप्ट लिखीं। उन्होंने समयसार का अनुवाद किया। भक्तामर स्तोत्र, श्री सहस्त्रनाम और मंगलाष्टक को तीन भाषाओं - अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत में लिखा। वह एक अच्छे अंग्रेजी और हिंदी वक्ता भी हैं। मुनी श्री १०८ प्रणीत सागरजी महाराज लेखन में रुची रखते है। सण २०२३ तक उन्होने करीब ५० ग्रंथ हिंदी व अंग्रेजी लेखन मे महाराज जी विशेष पारगामी है। धार्मिक शास्त्र समयसारादि अनुवाद कर चुके है, साथ ही मॅनेजमेंट, सुसाइडर जैसीकिताबेभी स्व-रचित है।
वे अपने जुडवा भाई केतन के साथ ग्वालियर व रायपूर मे विद्यालय मे रहे और इंदौर मे महाविद्यालय मे थे।
बड़ा ही चिंतनीय विषय है कि कैसे ऐसे दोनों जुड़वे भाइयों ने इतना सब कुछ पाकर भी सब कुछ छोड़ दिया।
दोनों ही भाई हिंदी अंग्रेजी संस्कृत और प्राकृत भाषा में विद्वत्ता रखते हैं ।
आश्चर्य की बात
एक और आश्चर्य की बात है कि यमल मुनि के पिता डॉक्टर श्री वीरेन्द्र कुमार जी जैन डबल पीएचडी होल्डर थे, वह मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर की पोस्ट से रिटायर हुए और उन्होंने भी मोक्ष मार्ग पर पदार्पण कर लिया है, साथ ही साथ जो उनकी माताजी श्रीमती स्नेह लता जी जैन हैं उन्होंने भी मोक्ष मार्ग पर ही पदार्पण कर लिया है।
माता-पिता और चार पुत्रों में से माता-पिता और दो पुत्र संसार मार्ग का त्याग करके धर्म मार्ग पर साधना में लीन हैं ।
#AastikyaSagarJiMaharaj1984VishuddhaSagarJi
मुनि श्री १०८ आस्तिक्य सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागर महाराजजी १९७१ Acharya Shri 108 Vishuddha Sagar Maharaji 1971
Chaturmas 2020 Gunnaur,Dist-Panna,Madhya Pradesh
VishuddhaSagarMaharaji1971ViragSagarJi
Your twin brother is also Maharaj ji,His name is Muni Shri 108 Praneet Sagar Ji Maharaj ji and he is also initiated by Acharya Vishuddha Sagar ji. Both of you are currently in Gunnaur,Panna,Madhya Pradesh together.
Early Life:
While young people are in search of jobs, two twin brothers born in a city like Indore left behind everything — their home, family, degrees, and jobs — and took the Digambara monk initiation at the age of 28.There is only a 30-minute difference in the birth of the two brothers. Currently, they are known as Yamal Muni. The two were born on March 6, 1984, to Mrs. Snehlata Jain and Dr. V. K. Jain at M.Y. Hospital, Indore, Madhya Pradesh, India.
Schooling and Education:
Ketan pursued an aeronautical diploma, B.Pharma, and MBA, and left jobs in large companies such as Charak Pharma and Abbott to take the Digambara monk initiation on November 8, 2011, in Sagar, Madhya Pradesh, India, under the title Digambara Muni Shri Astikya Sagar Ji Maharaj.
The other brother
Chetan completed C.A., MBA, M.Com, and B.Com and resigned from his job as a professor at a management college. On October 6, 2013, in Nagpur, Maharashtra, India, he took the Digambara monk initiation under the guidance of Acharya Shri 108 Vishuddha Sagar Ji Maharaj who then became Muni Shri Praneet Sagar Ji Maharaj after diksha.
He completed his school education in Gwalior (up to class 4) and Raipur (from classes 5-12) from Kiddeez Corner and Shri Balaji Vidya Mandir. Afterward, he pursued C.A. and went on to pursue B.Com, M.Com, and MBA from Nahata, Vaishnav College, and Indore. He worked as an associate professor at Adarsh Institute, Dhammoud, for nearly 2 years, and as a professor and examination department head at Renaissance Indira, Bhilai. He lived with his twin brother Ketan in Gwalior and Raipur for school and in Indore for college.
In 2012, he left home and family and joined Acharya Shri 108 Vishuddha Sagar Ji Maharaj Ji's congregation. On October 6, 2013, he took the monk initiation in Nagpur, Maharashtra. Since the initiation, he has translated more than 50 books and written numerous scripts such as Management, Suicider, Sinner, and Dozer. He translated Samayasara and wrote Bhaktamar Stotra, Shri Sahasranam, and Mangalashtak in three languages: English, Hindi, and Sanskrit. He is a skilled speaker in both English and Hindi. Muni Shri 108 Praneet Sagar Ji Maharaj is interested in writing and, until 2023, he has written around 50 texts in Hindi and English. He has translated religious scriptures such as Samayasara, and has also authored books like Management and Suicider.
Leaving the worldly Pleasures:
Both brothers share the same initiation teacher, the highly respected Digambara Jain Acharya Shri Vishuddha Sagar Ji Maharaj, who has given around 60 initiations so far. In the initiation sequence, the highly respected Shri Astikya Sagar Ji Maharaj is ranked 13th, and the highly respected Shri Praneet Sagar Ji Maharaj is ranked 16th.It's a serious matter of reflection on how the two twin brothers, having achieved so much, left everything behind. Both brothers possess mastery in Hindi, English, Sanskrit, and Prakrit languages.
Father -Mother also took Diksha!
A surprising fact is that Yamal Muni's father, Dr. Virendra Kumar Jain, held two PhDs and retired from his position as a professor at a medical college. He, too, embarked on the path of Moksha (liberation), as did their mother, Mrs. Snehlata Jain.
Among the parents and four sons, the parents and two sons have renounced the worldly path and devoted themselves to spiritual practice.
http://www.shramansanskriti.com/
Muni Shri 108 Aastikya Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागर महाराजजी १९७१ Acharya Shri 108 Vishuddha Sagar Maharaji 1971
आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागर महाराजजी १९७१ Acharya Shri 108 Vishuddha Sagar Maharaji 1971
Chaturmas 2020 Gunnaur,Dist-Panna,Madhya Pradesh
#AastikyaSagarJiMaharaj1984VishuddhaSagarJi
VishuddhaSagarMaharaji1971ViragSagarJi
#AastikyaSagarJiMaharaj1984VishuddhaSagarJi
AastikyaSagarJiMaharaj1984VishuddhaSagarJi
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