इस पंचमकाल में भी चतुर्थ काल की चर्या निभाने वाले सबसे पुराने मुनि पद पर विराजमान 46 वर्ष पुराने मुनिराज संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य श्री 108 भूतवली सागर जी महाराज - आचार्य श्री विद्यासागर जी के प्रथम ऐलक का गौरव भी था
मुनि श्री के बचपन का नाम ब्रह्मचर्य भीमसेन भैया जी था एवं कर्नाटक के बेलगांव जिले में ही आपका जन्म हुआ था। आप क्षुल्लक मणिभद्र महाराज के साथ अध्ययन के लिए आचार्य श्री विद्यासागर जी के पास राजस्थान आए व आचार्य श्री के कर कमलों से प्रथम ब्रह्मचारी व्रत लिया । आपकी क्षुल्लक व ऐलक दीक्षा आचार्य श्री विद्यासागर जी के कर कमलों से हुई , आप आचार्य श्री से दीक्षित प्रथम ऐलक भी थे , उस समय आपका नाम ऐलक दर्शन सागर जी रहा । तात्कालिक कारणों से 31 जनवरी 1980 में आचार्य श्री विमल सागर जी से मुनि दीक्षा ली और दीक्षा गुरु के संकेत पर आचार्य श्री विद्यासागर जी को ही अपना गुरु माना ।
दीक्षा के बाद आपने उत्तर से दक्षिण भारत तक जैन धर्म का प्रचार प्रचार किया । हजारों लोगों को सम्यक्त्व मार्ग की राह दिखाई ।
वर्तमान में आपके तीन मुनि शिष्य मुनि श्री मुक्ति सागर जी, मुनि श्री मौन सागर जी , मुनि श्री मुनिसागर जी महाराज तथा बाल ब्रह्मचारिणी मंजू दीदी जी हैं।
अपने 46 वर्ष पुराने मुनि होकर भी कहीं पद आदि के लोभ में अन्य स्थान पर नहीं गए और ना ही किसी तरीके से मिथ्यात्व का पोषण किया । आप आडम्बरों सदैव दूर रहें, जहां-जहां भी आपका प्रवास आदि रहा , वहां अपने सम्यक मार्ग का प्रचार ही किया ।
पूज्य मुनिश्री की जन्मभूमि कर्नाटक प्रांत भले ही हो परन्तु उनकी भी आचार्यश्री की भांति कर्मभूमि मध्यप्रदेश बुंदेलखंड में ही रही है , उनका छतरपुर जिले के बड़ामलहरा में वर्ष 2013 तथा वर्ष 2014 तथा वर्ष 2015 में बकस्वाहा में मंगल चातुर्मास का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ था|
आष्टा (M.P) में आपकी असाध्य रोग के कारण 27 मार्च 2024 बुधवार को 2.35 बजे मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के आष्टा नगर में सल्लेखना समाधि सम्पन्न हुई है।