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#TarunSagarJiMahraj1967PushpadantSagarJi
Muni Tarun sagar was a well-known Indian digamber monk. He was born On 26 june 1967 at Guhanchi, Madhya Pradesh. He very well known for his speeches known as”kadve pravchan” for he is critical common practice and view. He always encourage and address social and family issues.Later on, his speech had collected and published as a book named Kadve pravchan also his speech often published in newspapers as well. Because of his extraordinary thinking he is very well known in non-Jainism community.
मुनि श्री तरुण सागर जी महाराज
मुनि दीक्षा लेने की मात्र सात वर्षो की ही अवधि में धर्म और समाज में क्रांति का अलख जगाने वाले तरूण जैन संत तरूण सागरजी प्रखर चिंतक और आजस्वी वक्ता है । आचार्य प्रवर 108 श्री पुष्पदंत सागरजी महाराज ने मध्यप्रदेश के दमोह जिला में गंहची के पवन कुमार को पअने प्रािम शिष्य के रूप में दीक्षित करके उसका नामकरण मुनितरूण सागर किया ।
तरूण सागर जी के गृहस्थ जीवन पर नजर डालने से पता चलता है कि जैसे परमात्मा ने उन्हें मुनि दीक्षा लेकर धर्म और समाज में क्रांति लाने के लिए ही जन्म दिया । जेसी चमत्कृत करने वाली घटनाएँ उनके प्रारंभिक जीवन में घटित हुई वे इसका प्रमाण है ।
बालपन सेधर्म के प्रति उनकी इतनी घनिष्ठ रूची थी की 13 वर्ष की आयु में उन्होंने क्षुल्लक दीक्षा 18 फरवरी 1982 अकलतरा (म.प्र.) में और बागी दौरा 1984 में उन्होंने ऐलक दीक्षा ग्रहण की गोदिया (म.प्र.) में बागी दौरा राजस्थान में 20 जुलाई 1988 कोउन्हें मुनि के रूप में दीक्षित किया गया ।
मुनि जीवन में उनकी प्रतिभा कोहिनूर की भांति चमत्कृत होती गई । तत्व चिंतन होने से उनकी वाणी के ओज ने जैन धर्मवलंबीयों के साथ अन्य समुदाय के धर्म प्रेमी और सामान्य जनों को अपनी ओर आकर्षित किया । जहां भीउनका विहार हुआ उनके प्रवचन सुनने के लिए भीड़ उमड़ती गई ।
उनकी प्रभावी भाषण शैली के कारण महिला-पुरूषों की बढ़ती भीड़ केसाथ उनके विचारों में आई प्रौढ़ता भी ह्रदय से फूट निकलने को मचल उठी ।
वाणी के माध्यम से अपनेसमाज सुधारक क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करते हुए उन्होंने लेखनी भी उठा ली । परिणामस्वरूप वे कुशल लेखक और सफल व्यंगकार संपादक और सशक्त कवि बन गए ।
धर्म प्रचारक अन्य जैन मुनियों की तुलना में तरूण सागर जी के इस स्वरूप ने उनकी ऐसी अलग पहचान बना दी कि जो जनसाधारण के मन पर अमिट छाप छोड़ जाती हे ।
साधना शिविरों में उनके द्वारा कही गई बातों को प्रशिक्षणार्थी अंगीकार करते हैं, जिन विषयों की चर्चा वहां होती है वह लोगों को चिंतन के लिए बाध्य करती है और सभी आयु वर्ग के महिला-पुरूष उनके उपदेशों के अनुसार आचरण करने को अनिवार्यता मानते हैं ।
मुनि श्री की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जेसा वे अनुभव करते हे उनकास्वयं पर प्रयोग आजमा लेते है इस कारणसे उनकी प्रस्तुति ठोस और वजनदार हो गई । जन समुदाय को उनके हाथ में थमी मशाल से अपने मन के ज्ञानदीप को प्रज्वलित करने की अपार जिज्ञासा है जिसे वे उनके प्रवचन सुनकर और उनकी रचनाएं पढ़कर शांत करते हैं । इसीलिए उनके प्रवचन संग्रह बहुत लोकप्रिय हुए है ।
संबोधन और लेखन में वे अत्यन्त सरल और सहज भाष का उपयोग करते हैं, सुत्रों के माध्यम से भगवान महावीर के आदर्श और सिध्दान्त समझाते हैं, जैन धर्म को आधार बनाकर उनके द्वारा दिए गए दृष्टांत मर्मस्पर्शी होते हैं क्योंकि उनमें अन्य सभी धर्मों का समन्वय होता हे । संत बनने की दिशा प्रवृत्त होने से आज तक उन्होंने महावीर को जिया है और अध्यात्म को पिया है । इस प्रकार उन्होंने ऐसी साधना की है जो किसी व्यक्ति को सम्पूर्ण आत्म साधक बना देती है और वे इस सम्पूर्णता की परिधि में पहुंच चुके हैं ।
वर्तमान समय दिन-प्रतिदिन नई-नई समस्याओं की उलझनों के जाल में जकड़ती जा रही है । इसका कारण क्या है? इनका निराकरण कैसे हो सकता है? इन प्रश्नों का उत्तर हमें तरूण सागर जी देने का ईमानदार प्रयास कर रहे हैं। हम असीम अहंकार को त्याग कर अपने को महावीर के विराट व्यक्तित्व के आगे समर्पित कर दें और उनके जीवन दर्शन तथा संस्कार के अनुरूप अपने को ढाल लें यही सरलसा उपाय तरूण सागर अपनी विधि से हमें बताते हैं ।
विषय आधुनिक जगत को अध्यात्म अमृत पान कराने का बीड़ा उन्होंने उठाया है।
इस मंजिल की ओरवे अकेले ही दृढ़ संकल्प होकर चल पड़े थे आज वे एक नहीं, अनेक हैं । लोग उनसे जुड़ते गए और सन्मार्गियों का बड़ा काफिला उनके आस-पास बन गया है ।
तरूण सागर जी जैसे संतों का सानिध्य पाने के बाद अब उनकमें कोई संशय नहीं रह जाता है संत समुदाय अब जक जिन आदर्श और सिध्दान्तों की चर्चा नगर-नगर में करते रहे हैं उसे साकार स्वरूप प्रदान करने में मुनि तरूण सागरजी महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं ।
अपनी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति से मुंह मोड़कर पाश्चात्य का आवरण ओढ़ने को आतुर आज के समाज को झकझोर कर जगाना चाहते हें । समाज को धर्म की ओर प्रवृत्त करने के लिए वे इतने आतुर हैं कि धार्मिक क्रांति की सीमा तक जाने से भीनहीं चुकेंगे ऐसा आभास होता है ।
आधुनिकता के दुष्चक्र से मुक्त होकर इस लोकमें सुख शांति के साथ आध्यात्मिक सार्थक जीवन जीने और माक्ष प्राप्ति की दिशा में अग्रसर हानेने के लिए मुनिश्री तरूणसागरजी का हमें अनुगामी होना चाहिए यही समय की पुकार हैं ।
संक्षिप्त परिचय | |
जन्म: | 26 जून, 1967 को ें |
जन्म नाम: | पवनकुमार जैन |
जन्म स्थान:: | दमोह जिले (म.प्र.) के गुहंची गांव म |
माता का नाम: | श्रीमती शांतिबाई जैन |
पिता का नाम: | श्री प्रतापचंद्र जैन |
क्षुल्लक दीक्षा : | 18 जनवरी, 1982 |
क्षुल्लक दीक्षा स्थान | अकलतरा (म.प्र.) |
क्षुल्लक दीक्षा गुरू: | परम पूज्य वात्सल्य दिवाकर आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज |
मुनि दीक्षा | 20 जुलाई , 1988 |
मुनि दीक्षा स्थान | बागीदौरा (राज.) |
मुनि दीक्षा गुरू: | परम पूज्य वात्सल्य दिवाकर आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज |
विशेष : | 13 वर्ष की उम्र में संन्यास, 20 वर्ष में दिगम्बर मुनि दीक्षा 33 वर्ष में लाल किले से राष्ट्र को संबोधन 35 वर्ष में ‘राष्ट्रसंत’ की पदवी से नवाजे गए 37 वर्ष में ‘गुरु मंत्र दीक्षा’ देने की नई परंपरा की शुरुआत |
ग्रन्थ लेखन : | 3 दर्जन से अधिक पुस्तके उपलब्ध और उनकी अब तक 10 लाख से अधिक प्रतियॉं बिक चुकी है. |
कीर्तिमान : | आचार्य कुन्दकुन्द के पश्चात् गत दो हजार वर्षों के इतिहास में मात्र 13 वर्ष की उम्र में जैन संन्यास धारण करनेवाले प्रथम योगी राष्ट्र के प्रथम मुनि जिन्होंने लाल किले (दिल्ली) से संबोधा जी. टीवी के माध्यम से भारत सहित 122 देशों में ‘ महावीर वाणी’ के विश्वव्यापी प्रसारण की ऐतिहासिक शुरुवात करने का प्रथम श्रेय भारतीय सेना को संबोधित करनेवाले देश के पहले संत आजादी के बाद प्रथम बार राजभवन (बैंगलोर)में अतिविशिष्ट लोगों को सम्बोधन एवं आहारचर्या. |
समाधि : | 1 सित॰ 2018 |
गुरु
आचार्य श्री १०८ पुष्पदंत सागर जी महाराज
28/06/2023
ब्रिटिश संसद भवन में तरुण सागर की प्रतिमा का लोकापर्ण हुआ
क्षुल्लक पर्व सागर के सानिघ्य मे यूके की संसद ने मनाया तरुणोत्सव
#TarunSagarJiMahraj1967PushpadantSagarJi
मुनि श्री १०८ तरुण सागर जी महाराज
आचार्य श्री १०८ पुष्पदंत सागर जी महाराज 1954 Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj 1954
Muni Tarun sagar was a well-known Indian digamber monk. He was born On 26 june 1967 at Guhanchi, Madhya Pradesh. He very well known for his speeches known as”kadve pravchan” for he is critical common practice and view. He always encourage and address social and family issues.Later on, his speech had collected and published as a book named Kadve pravchan also his speech often published in newspapers as well. Because of his extraordinary thinking he is very well known in non-Jainism community.
Muni Shri tarun sagarji having such a magical smile floating on the lips, that attract devotees whether on occasion of Anand yatra or any other programme. In the speech of Muni Shri having always balance in labourer dignity one side and ministers other side who having fate and following gurus order. There is such an attractive personality that Hindu Jagat Guru Shankracharya also got impressed. With irrespective of Cast and Religion, Muni Shri gave motivational & inspirational speech to his devotees without any bar of restrictions.
Muni shri speaks from such a depth that the listeners forget there personal life and unaware the outward world muni shri as a well known name a revolutionary saint whose speech does not come out from the throat but from the melodious heart. He talks and talks fluently for some valuable moments, the listeners listen there soul by forgetting their breath. Muni shri always having a mild smile on his face and freshness at every time. His nature is always delighted and cheerful. Muni shri speaks some mysterious things in their word to Loughs listeners but understand well they are attracting audience. He is creator of speech to give a life of dead bodies. Muni Shri decided to give speech on internal messages to ordinary and common people, which expressed to nectarine throat of bhagavan Mahavir that helps to take moksha marg.
Muni Shri always believed to spread the thoughts of Bhagavan Mahavir to all human beings. That is how he always organise his programs in mostly busiest places in the city. According to muni Shri’s philosophy he want to spread Bhagavan Mahavir’s thought for a common person so that could be visible to the world.
His claim is that Mahavir is not the only asset of Jains, but the trust of all human beings. Munishree Tarun Sagar ji is the name of that personality who through his revolutionary speeches and fire arrows,had struck the strings of innumerable heart guitars that were sleeping and awakened to the potential of the intellect. He is the awakening deity. He's a doctor of conduct. His vision and vision with a motto are not locked up in small units.
He talks not only about Jainism and Mahavir, but also about the subject of his speech from Ramayan to Kabir, Patanjali, Gurunanak Budha, Vivekanand, Osho. That is the only explanation why all people listen to him with respect and pick from their souls.
Muni Shree Tarun Sagar ji is the first and foremost Digamber Jain Saint who attracts not only the Jains but also Vaishnava, Sikha, Sindhi, Arya Samaji and Mohemdans to his voice. He does not deliver his speech in Temples and Almshouses, leaving aside any exception but delivers to places where the conventions of leaders of national renown are accumulated or where Asaram Bapu, Morari Bapu, Ramesh Bhai Ojha and Narain Dutta, Shrimali, like the common saints, gather audiences.
There is a Crowd of five to twelve thousand to meet every day. Common citizens as well as IAS officers, and wonderful leaders can also be seen present at the sessions. Muni Shri Tarun Sagar ji does not strengthen magic or exorcism; he never distributes lockets and uses witchcraft and fascination and when people are chasing after him like crazy. In this reference, he states, I do not know about any witch or enchanting, I've subdued myself, and it's the biggest bewitch to subdue ourselves.
Muni Shree Tarun Sagar ji is the director or wire pillar of "Anand Yatra". "Anand Yatra" arranged by Muni Shree is nice in the real sense of the word. He can only recognize or enjoy the essence of the happiness of the "anand yatra" program that he's ever witnessed and experienced, lived and swallowed. Anand Yatra is a miraculous and unusual experiment of its own kind, in which Muni Shree lets listeners laugh at one side and hand over precious assets of information to others in these funny moments.
When the Muni Shree stops the journey of pleasure, it continues (Yatra of Anand Continues) and when it continues, there is a pleasure to travel (Anand of Yatra). He says I'm eating pleasure I'm drinking pleasure I'm wearing pleasure. I'm distributing pleasure and living in pleasure. Anand Yatra is a journey without a trip. Muni Shree Tarun Sagar ji has a profound insight into religious books. He had pierced the ocean of religious books forever. His writing could be a pot of nector in which valuable pearls of information are lying scattered.
His writing is being perused with extraordinary interest and numerous releases of each book are distributed. His writing is passed on in the entire nation appropriately distributed in lacks in year. The writing of Muni Shree is a reflection of feelings and encounters where the craft of altering the course of life and state of life is examined.
It is a record of pain story of life. It is quite a X beam which doesn't just uncover the inward infection yet in addition guides the best approach to demolish them. Life of Muni Shri is a Triveni of Moral and Knowledge that decimates sins and consuming from inconveniences. In the realm of capricious race of the battle for life Muni Shri is liberally giving the outrageous incredible calories of life to the suffocated humanly an incentive forever. The significant words producing from the meager single group of Muni Shri have so much weight that no whirlwind can move them away. Muni Shri is Mobile Ocean and stable note of unrest.
The writing of Muni Shri is definitely not a novel delivered inside a couple of evenings on the roads however a stone content of rising life, net of feelings, stirring of dedication, by experiencing a similar soul becomes distraught, inactive thirst rises, sense over streams and the feeling spurs. This writing happened to dedication of years together of Muni Shris' experience of inward most symbolism. The writing of Muni Shri is such a documentation, which will devastate each psychological concern. It is a raga or sythesis vibrating from the notes of life where "Veet Rag" is blended. During his long commitment, Muni Shri has enhanced the no man's land of writing with some philosophical blossoms. A blossom from those blossoms Mrityu Bodh" (Perception of death, an equation of unrest throughout everyday life) is being introduced before you is an impression of the heavenly excursion of Muni Shri and the sacred water pot of the Importance of life for the individuals.
As the sun sparkles consistently and need no presentation, also Muni Shri Tarun Sagar ji Maharaj doesn't need any presentation. He is a sparkling star in the skyline. It is incredible privilage that Muni Shri is with us and we are living in his age.
आचार्य श्री १०८ पुष्पदंत सागर जी महाराज 1954 Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj 1954
आचार्य श्री १०८ पुष्पदंत सागर जी महाराज 1954 Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj 1954
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TarunSagarJiMahraj1967PushpadantSagarJi
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