Article Summary
Shrutghar Pattawali Prakrit
Shrutghar Pattawali Prakrit
By saluting Vardhaman Jinendra, who is captive from the suras and asuras and devoid of fascination, I say with respect to the tradition of the masters who hold the best Shrut.
On the elevated summit of Vipulachal mountain, Jinendra Bhagwan Vardhaman Swami preached Gautam Muniko of Pramana and Nayse combined meaning. He (Gautam Gandharne) preached to Loharya, and Loharya Aparnaam Sudharmaganadharne preached to Jambuswami.2-3||
With the four pure intellects (Koshtabuddhi, Beejabuddhi, Sambhishrotrabuddhi, and Padavarini Wisdom), full of virtues, combined with the transcendental island of knowledge in the form of Kevaljnana, I salute these three Ganagrams 4.
Nandi, Nandinitra, the great undefeated Munindra, Mahatma Govardhan and Bhadrabahu with great virtues, these five virtuous men were the holders of the fourteen Purvos i.e. Shruta Kevali, it should be known as such. Dhir Jinendrake (Tirth. He should be known as the holder of the twelve limbs..5-6||
And Vishakhacharya, Proshtil, Kshatriya, Jai, Nag, Siddhartha, Dhutishena, Vijay, Buddilla, Gangadev and Antiga Dharmasen are said to be the holders of the ten Puroka by tradition 117-8||
Nakshatra, Prashpal, Panda, Dhruvasena and Kansacharya these five people have been designated the holders of eleven organs.
Subhadra Muni, Yashobhadra, Yashobahu and the last Lohacharya, these four teachers should know the holders of Acharang.
According to Anupurvi, I say in brief all the attainments of the ocean-islands received from the Acharyaparampara.
मिळण बढमाणं ससुरासुरवंदिदं विगयमोहं ।
' वरसुदपपरिवाहि वोच्छामि 'जहाणुपुब्बीए ॥१॥
विसलगिरितुगसिहरे विणिदईदेण वङ्माण ।
गोदमभुणिस्स कहिदं पमाणणयसंजुदं अत्थं ।।२।।
तेण वि लोहज्जस्स य लोहज्जेण य सुधम्मणामेण ।
गणधरसुधम्मणा खलु जंबूणामस्स णिटि शा
चदुरमलतिसहिदे तिष्णदे गणधरे गुणसमग्गे ।
केवलणाणपईवे सिद्धि पत्ते णमंसामि |
गंदी य दिमित्तो अवराजिदणिवरो महातेओ ।
गोवढणो महाप्पा महागुणो भद्दबाहू य ||५||
पंचेदे पुरिसबरा चउदसपुची हवंति पायचा ।
बारसगधरा खल वीरजिणिदस्स गायब्धा ।
क्षा १. अंबूनीवपणती १।८-१७॥
तह य विसाखारिओ पोदिल्ली वत्तियो यजयणामी।
जागो सिद्धत्यो विय धिदिसेणो विजियणामो घ ||७||
बुद्धिल्ल गंगदेवो धम्मस्सेणो य होई पच्छिमओ ।
पारंपरेण एदे दसपुटवघरा समक्खादा णवत्तो जसपालो पंडू धुवसेण कंसारिओ।
एयारसंगधारी पंच जणा होति णिद्दिा ॥९॥
णामेण सुभद्द जसभद्दो तह य होइ जसबाहू ।
आयारधरा णेया अपच्छिमो लोपामो व ॥१०॥
आइरियपरंपरया सायर दीवाण तह य पण्णत्ती ।
संखवेण समत्थं बोच्छामि जहाणुपुब्बीए ।११।।
सुर एवं असुरोंसे बंदित और मोहसे रहित वर्धमान जिनेन्द्रको नमस्कार करके उत्तम श्रुतके धारक गुरुओंकी परंपराको अनुकमसे कहता हूँ ॥शा
विपुलाचल पर्वतके उन्नत शिखरपर जिनेन्द्र भगवान वर्धमान स्वामीने प्रमाण और नयसे संयुक्त अर्थका गौतममुनिको उपदेश दिया । उन्होंने (गौतम गणधरने ) लोहार्यको, और लोहार्य अपरनाम सुधर्मगणधरने जम्बूस्वामीको उपदेश दिया ।।२-३||
चार निर्मल बुद्धियों ( कोष्टबुद्धि, बीजबुद्धि, संभिन्नश्रोत्रबुद्धि, और पदानुसारिणी बुद्धि ) से सहित, गुणोंसे परिपूर्ण, केवलज्ञानरूप उत्कृष्ट द्वीपकसे संयुक्त और सिद्धिको प्राप्त इन तीनों गणघरोंको नमस्कार करता हूँ ॥४||
नन्दि, नन्दिनित्र, महातेजस्वी अपराजित मुनीन्द्र, महात्मा गोवर्धन और महागुणोंसे युक्त भद्रबाहु, ये पाँच शंष्ट पुरुष चौदह पूर्वोके धारक अर्थात् श्रुत केवली थे, ऐसा जानना चाहिये। धीर जिनेन्द्रके ( तीर्थ । इन्हें बारह अंगोंके धारक जानना चाहिये ।।५-६||
तथा विशाखाचार्य, प्रोष्टिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, धुतिषेण, विजय, बुद्धिल्ल, गंगदेव और अन्तिग धर्मसेन ये परम्परासे दस पूर्वोके धारक कहे गये हैं 11७-८||
नक्षत्र, प्रशपाल, पाण्ड, ध्रुवषेण और कंसाचार्य ये पांच जन ग्यारह अंगों के धारक निर्दिष्ट किये गये हैं ॥९||
सुभद्र मुनी, यशोभद्र, यशोबाहु और अन्तिम लोहाचार्य ये चार आचार्य आचारांगके धारी जानना चाहिये ॥१०॥
आनुपूर्वीके अनुसार आचार्यपरम्परासे प्राप्त सागर-द्वीपोंकी समस्त प्राप्ति को संक्षेपमें कहता हूँ ॥१॥
Sanjul Jain Created Article On Date 14 June 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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