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महाअर्घ्य

Author: Pandit Dyanatray
Language : Hindi
Rhythm: –

Type: Maha Arghya
Particulars: Arghya
Created By: Shashank Shaha

मैं देव श्री अरहंत पूजूँ, सिद्ध पूजूँ चाव सों ।
आचार्य श्री उवज्झाय पूजूँ, साधु पूजूँ भाव सों ॥
अरहन्त भाषित बैन पूजूँ, द्वादशांग रची गनी ।
पूजूँ दिगम्बर गुरुचरण, शिवहेत सब आशा हनी ॥
सर्वज्ञ भाषित धर्म दशविधि, दयामय पूजूँ सदा ।
जजि भावना षोडश रत्नत्रय, जा बिना शिव नहिं कदा ॥
त्रैलोक्य के कृत्रिम-अकृत्रिम, चैत्य-चैत्यालय जजूँ ।
पंचमेरु-नन्दीश्वर जिनालय, खचर सुर पूजित भजूँ ॥
कैलाश श्री सम्मेदगिरि, गिरनार मैं पूजूँ सदा ।
चम्पापुरी पावापुरी पुनि, और तीरथ शर्मदा ॥
चौबीस श्री जिनराज पूजूँ, बीस क्षेत्र विदेह के ।
नामावली इक सहस वसु जय, होय पति शिव गेह के ॥

जल गंधाक्षत पुष्प चरु, दीप धूप फल लाय ।
सर्व पूज्य पद पूजहूँ, बहु विधि भक्ति बढ़ाय ॥

ॐ ह्रीं भावपूजा भाववंदना त्रिकालपूजा, त्रिकालवन्दना करे करावे भावना भावे श्री अरिहन्त जी, सिद्धजी, आचार्य जी, उपाध्याय जी, सर्वसाधुजी, पंचपरमेष्ठिभ्यो नमः। प्रथमानुयोग-करणानुयोग-चरणानुयोग-द्रव्यानुयोगेभ्यो नमः। दर्शनविशुद्धयादि-षोडशकारणेभ्यो नमः| उत्तमक्षमादि दशधर्मेभ्यो नमः । सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यग्चारित्रेभ्यो नमः। जल के विषैं, थल के विषैं, आकाश के विषैं, गुफा के विषैं, पहाड़ के विषैं, नगर-नगरी के विषैं, ऊर्ध्वलोक-मध्यलोक-पाताललोक विषैं, विराजमान कृत्रिम-अकृत्रिम-जिनचैत्यालय-जिनबिम्बेभ्यो नमः। विदेह-क्षेत्र विद्यमान बीस तीर्थंकरेभ्यो नमः। पांच भरत पांच ऐरावत दस क्षेत्र सम्बंधी तीस चैबीसी के सात सौ बीस जिनराजेभ्योः नमः। नन्दीश्वर द्वीप सम्बंधी बावन जिन चैत्यालयेभ्यो नमः। पंचमेरू सम्बंधी अस्सी, जिनचैत्यालयेभ्यो नमः। सम्मेदशिखर, कैलाश, चम्पापुर, पावापुर, गिरनार, सोनागिर, मथुरा आदि सिद्धक्षेत्रेभ्यो नमः। जैनबद्री, मूडबद्री, देवगढ़, चँदेरी, पपौरा, हस्तिनापुर, अयोध्या, राजगृही, तारंगा, चमत्कार जी, श्री महावीर जी, पदमपुरी, तिजारा आदि अतिशयक्षेत्रेभ्यो नमः। श्री चारणऋद्धिधारी सप्तपरमर्षिभ्यो नमः। ऊँ ह्नीं श्रीमंतं भगवन्तं कृपावन्तं श्री वृषभादि महावीर पर्यंत चतुर्विंशति तीर्थंकर-परमदेवं आद्यानां आद्ये जम्बूद्वीपे भरत क्षेत्रे आर्यखण्डे……नाम्नि नगरे मासानामुत्तमे …..मासे शुभे….. पक्षे शुभ…….तिथौ…..वासरे मुनि-आर्यिकानां सकल कर्मक्षयार्थं (जल धारा) भाव पूजा-वन्दना-स्तव-समेतं अनर्घ्यपदप्राप्तये महाअर्घ्यं, सम्पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||

Shashank Shaha added more details to update on 4 November 2024.

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