A पूजन एवं आहारदान संबंधी निर्देश
B. आहारदान की निम्न आवश्यक पात्रतायें एवं निर्देश
C निरन्तराय आहार हेतु सावधानियाँ एवं आवश्यक निर्देश
D. फल, साग की सही प्रासुक विधि एवं सावधानियाँ
E. आहार सामग्री की शुद्धि भी आवश्यक
F. आहार दान में विज्ञान
G भोमभूमि का सोपान-आहार दान
H आहारदान की महिमा
I कुएँ बन सकते हैं प्रत्येक घर में
J आहार दान ऐसे करें
K आहार दान की विसंगतियों
L मौसम के अनुसार स्वास्थ्य वर्धक आहार सामग्री
M आहार सामग्री के भक्ष्य, अभक्ष्य की जानकारी एवं आवश्यक निर्देश
सभी ऋतुओं में एक समान मर्यादा वाले पदार्थ:
अमृतधारा बनाने की विधि:
एक काँच की धुली शीशी में कपूर, पिपरमेंट, अजवायन का फूल तीनों को बराबर मात्रा में शीशी में कुछ देर रखने के बाद पानी बन जाता है। यहीं अमृतधारा कहलाती है। इसे दो से पाँच बूंद देने से कालरा, दस्त, मंदाग्नि, पेट का दर्द, वमन तथा इसमें रूई भिगोकर दाँत, दाढ के दर्द की जगह रखने से आराम होता है। पेट दर्द, गैस व अपच में ५-७ बूंदे सौफ के अर्क अथवा जल के साथ के (उल्टी) व मतली में अनार के रस के साथ दस्त (हैजा) एवं पेचिस में ५-७ बूंदे जल के साथ।
निर्देश:
१. कमण्डल में जल २४ घंटे की मर्यादा (उबला हुआ) वाला ही भरें ठंडा या कम मर्यादा वाला नहीं।
२. जल को तीन बर्तनों में तीन जगह रखना चाहिये, जिसकी गर्माहट में थोड़ा-थोड़ा अंतर हो, जिससे श्रावक साधु की अनुकूलता के अनुसार दे सके।
३. आहार दान यदि दूसरे के चौके में देवें, तो अपनी आहार सामग्री हाथ में अवश्य ले जायें।
४. चक्की से जब भी पीसें या पिसवाये तो वह साफ होना चाहिये, क्योकि उसमें कोई जीव-जन्तु भी हो सकते हैं तथा उसमें अमर्यादित आटा भी लगा रहता है। अत्तः शीत, ग्रीष्म, वर्षा ऋतु में क्रमश: ७, ५, 3 दिन में चक्की अवश्य साफ करें।
५. हाथ में कोई आहार सामग्री लगी हो तो उन हाथों से आहार सामग्री न दें।
६. हरी क्या है? जो फल, साग आदि वनस्पति जो अभी गीली है, हरी कहलाती है तथा धूप में पूर्णतः सूख जाने पर हरी नहीं रहती। जैसे सौंठ, हल्दी आदि।
७. अतिधि संविभाग व्रत वैया वृत्त के समान फलदायी है। पड़गाहन के लिये द्वार पर प्रतीक्षा/अपेक्षा करने से ही सपूर्ण आहार का फल मिलता है। साधु नहीं आने पर संक्लेश नहीं करना चाहिए। निरंतराय आहार हो ऐसी भावना भानी चाहिये।
८. परिवार में सूतक- पातक होने पर तथा शवदाह में सम्मिलित होने पर भी आहार दान नहीं देवे।
नोट: यह लेख अनेक पुस्तकों से पढ़कर, साधुओं के उपदेशों को सुनकर एवं वैयावृत्ति को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। प्रासुक विधि की अधिक जानकारी के लिये सचित्त विवेचन, सचित्त विचार पुस्तक से देख सकते हैं। यह लेख उसी के आधार पर लिखा गया है। इस प्रासुक विधि का उपयोग आप स्वयं करें। एवं दूसरे लोगों को बताकर करवायें। इस लेख की तभी पूर्ण सार्थकता हो सकती है। लेख की अशुद्धियों पर ध्यान न दें। कमियों को सूचित करें, जिससे और सुधार किया जा सके।
विशेष नीट – कृपया इसे पढ़कर इसकी फोटोकॉपी अथवा प्रिंट करवाकर वितरण करके आहार दान की अनुमोदना करें।
A पूजन एवं आहारदान संबंधी निर्देश
B. आहारदान की निम्न आवश्यक पात्रतायें एवं निर्देश
C निरन्तराय आहार हेतु सावधानियाँ एवं आवश्यक निर्देश
D. फल, साग की सही प्रासुक विधि एवं सावधानियाँ
E. आहार सामग्री की शुद्धि भी आवश्यक
F. आहार दान में विज्ञान
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