Atmjnana Vaibhav ke Jal -Chaubic Tirthankar Puja- Pandit dyaanataraay- – Krut

चौबीसतीर्थंकरपण्डित-द्यानतराय-आत्मज्ञान वैभव के जल

Author: Pandit-Dyanatray

Language : Hindi

Rhythm: –

Type: Pooja

Particulars: Chaubici Tirthankar-Pooja

भरत क्षेत्र की वर्तमान जिन चौबीसी को करूँ नमन ।
वृषभादिक श्री वीर जिनेश्वर के पद पंकज में वन्दन॥
भक्ति भाव से नमस्कार कर विनय सहित करता पूजन।
भव सागर से पार करो प्रभु यही प्रार्थना है भगवन॥

ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यन्त चतुर्विंशति जिनसमूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं
ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यन्त चतुर्विंशति जिनसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं
ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यन्त चतुर्विंशति जिनसमूह ! अत्र मम सभिहितो भव भव वषट् सन्निधि करणं

आत्मज्ञान वैभव के जल से यह भव तृषा बुझाऊँगा।
जन्मजरा हर चिदानन्द चिन्मयकी ज्योति जलाऊँगा॥
वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा।
पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा॥

ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा

आत्मज्ञान वैभव के चन्दन से भवताप नशाऊँगा।
भवबाधा हर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा॥
वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा।
पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा॥

ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा

आत्मज्ञान वैभव के अक्षत से अक्षय पद पाऊँगा।
भवसमुद्र तिर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा॥
वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा।
पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा॥

ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा

वर-कंज कदम्ब कुरण्ड, सुमन सुगन्ध भरे
जिन-अग्र धरों गुन-मण्ड, काम-कलंक हरे॥
चौबीसों श्री जिनचन्द, आनन्द-कन्द सही
पद जजत हरत भव-फन्द, पावत मोक्ष-मही॥

ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा

आत्मज्ञान वैभव के चरु ले क्षुधा व्याधि हर पाऊँगा।
पूर्ण तृप्ति पा चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा॥
वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा।
पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा॥

ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं निर्वपामीति स्वाहा

आत्मज्ञान वैभव दीपक से भेद ज्ञान प्रगटाऊँगा।
मोहतिमिर हर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा॥
वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा।
पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा॥

ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा

आत्मज्ञान वैभव को निज में शुचिमय धूप चढ़ाऊँगा।
अष्टकर्म हर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा॥
वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा।
पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा॥

ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा

आत्मज्ञान वैभव के फल से शुद्ध मोक्ष फल पाऊँगा।
राग-द्वेष हर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा॥
वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा।
पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा॥

ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो महामोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा

ज आत्मज्ञान वैभव का निर्मल अर्घ्य अपूर्व बनाऊँगा ।
पा अनर्घ्य पद चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा॥
वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा।
पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा॥

ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा

जयमाला

भव्य दिगम्बर जिन प्रतिमा नासाग्र दृष्टि निज ध्यानमयी।
जिन दर्शन पूजन अघ-नाशक भव-भव में कल्याणमयी॥
वृषभदेव के चरण पखारूं मिथ्या तिमिर विनाश करूँ।
अजितनाथ पद वन्दन करके पंच पाप मल नाश करूँ॥

सम्भव जिन का दर्शन करके सम्यक्दर्शन प्राप्त करूँ।
अभिनन्दन प्रभु पद अर्चन कर सम्यक्ज्ञान प्रकाश करूँ॥
सुमतिनाथ का सुमिरण करके सम्यकचारित हृदय धरूँ।
श्री पदम प्रभु का पूजन कर रत्नत्रय का वरण करूँ॥

श्री सुपार्श्व की स्तुति करके मैं मोह ममत्व अभाव करूँ।
चन्दाप्रभु के चरण चित्त धर चार कषाय अभाव करूँ॥
पुष्पदंत के पद कमलों में बारम्बार प्रणाम करूँ।
शीतल जिनका सुयशगान कर शाश्वत शीतल धाम वरूँ॥

प्रभु श्रेयांसनाथ को बन्दू श्रेयस पद की प्राप्ति करूँ।
वासुपूज्य के चरण पूज कर मैं अनादि की भ्रांति हरूँ॥
विमल जिनेश मोक्षपद दाता पंच महाव्रत ग्रहण करूँ।
श्री अनन्तप्रभु के पद बन्दू पर परणति का हरण करूँ॥

धर्मनाथ पद मस्तक धर कर निज स्वरूप का ध्यान करूँ।
शांतिनाथ की शांत मूर्ति लख परमशांत रस पान करूँ॥
कुंथनाथ को नमस्कार कर शुद्ध स्वरूप प्रकाश करूँ।
अरहनाथ प्रभु सर्वदोष हर अष्टकर्म अरि नाश करूँ॥

मल्लिनाथ की महिमा गाऊँ मोह मल्ल को चूर करूँ।
मुनिसुव्रत को नित प्रति ध्याऊं दोष अठारह दूर करूँ॥
नमि जिनेश को नमन करूँ मैं निजपरिणति में रमण करूँ।
नेमिनाथ का नित्य ध्यान धर भाव शुभा-शुभ शमन करूँ॥

पार्श्वनाथ प्रभु के चरणाम्बुज दर्शन कर भव भार हरूँ।
महावीर के पथ पर चलकर मैं भव सागर पार करूँ॥
चौबीसों तीर्थंकर प्रभु का भाव सहित गुणगान करूँ।
तुम समान निज पद पाने को शुद्धातम का ध्यान करूँ॥

ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा

श्री चौबीस जिनेश के चरण कमल उर धार।
मन, वच, तन, जो पूजते वे होते भव पार॥
(इत्याशिर्वादः॥ पुष्पांजलिं क्षिपेत॥)

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