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Choubees Tirthankar Stavan

चौबीस-तीर्थंकर-स्तवन

Author:
Language : Hindi
Rhythm:

Type: Choubees Tirthankar Stavan
Particulars: Paath
Created By: Shashank Shaha

जो अनादि से व्यक्त नहीं था त्रैकालिक ध्रुव ज्ञायक भाव।
वह युगादि में किया प्रकाशित वन्दन ऋषभ जिनेश्वर राव॥१॥

जिसने जीत लिया त्रिभुवन को मोह शत्रुवह प्रबल महान।
उसे जीतकर शिवपद पाया वन्दन अजितनाथ भगवान॥२॥

काललब्धि बिन सदा असम्भव निज सन्मुखता का पुरुषार्थ।
निर्मल परिणति के स्वकाल में सम्भव जिनने पाया अर्थ॥३॥

त्रिभुवन जिनके चरणों का अभिनन्दन करता तीनों काल।
वे स्वभाव का अभिनन्दन कर पहुँचे शिवपुर में तत्काल॥४॥

निज आश्रय से ही सुख होता यही सुमति जिन बतलाते।
सुमतिनाथ प्रभु की पूजन कर भव्यजीव शिवसुख पाते॥५॥

पद्मप्रभु के पद पंकज की सौरभ से सुरभित त्रिभुवन।
गुण अनन्त के सुमनों से शोभित श्री जिनवर का उपवन॥६॥

श्री सुपार्श्व के शुभ-सु-पार्श्व में जिसकी परिणति करे विराम।
वे पाते हैं गुण अनन्त से भूषित सिद्ध सदन अभिराम॥७॥

चारु चन्द्रसम सदा सुशीतल चेतन-चन्द्रप्रभ जिनराज।
गुण अनन्त की कला विभूषित प्रभु ने पाया निजपद राज॥८॥

पुष्पदन्त सम गुण आवलि से सदा सुशोभित हैं भगवान।
मोक्षमार्गकी सुविधि बताकर भविजन का करते कल्याण॥९॥

चन्द्र किरण समशीतल वचनों से हरते जग का आताप।
स्याद्वादमय दिव्यध्वनि से मोक्षमार्ग बतलाते आप॥१०॥

त्रिभुवन के श्रेयस्कर हैं श्रेयांसनाथ जिनवर गुणखान।
निज स्वभाव से ही परम श्रेय का केन्द्रबिन्दु कहते भगवान॥११॥

शत इन्द्रों से पूजित जग में वासुपूज्य जिनराज महान।
स्वाश्रित परिणति द्वारा पूजित पञ्चमभाव गुणों की खान॥१२॥

निर्मल भावों से भूषित हैं जिनवर विमलनाथ भगवान।
राग-द्वेषमल का क्षय करके पाया सौख्य अनन्त महान॥१३॥

गुण अनन्तपति की महिमा से मोहित है यह त्रिभुवन आज।
जिन अनन्त को वन्दन करके पाऊँ शिवपुर का साम्राज्य॥१४॥

वस्तुस्वभाव धर्मधारक हैं धर्म धुरन्धर नाथ महान।
ध्रुव की धुनिमय धर्म प्रगट कर वंदित धर्मनाथ भगवान॥१५॥

रागरूप अङ्गारों द्वारा दहक रहा जग का परिणाम।
किन्तु शान्तिमय निज परिणति से शोभित शान्तिनाथ भगवान॥१६॥

कुन्थु आदि जीवों की भी रक्षा का देते जो उपदेश।
स्व-चतुष्टय से सदा सुरक्षित कुन्थुनाथ जिनवर परमेश॥१७॥

पञ्चेन्द्रिय विषयों से सुख की अभिलाषा है जिनकी अस्त।
धन्य-धन्य अरनाथ जिनेश्वर राग-द्वेष अरि किये परास्त॥१८॥

मोह-मल्ल पर विजय प्राप्त कर जो हैं त्रिभुवन में विख्यात।
मल्लिनाथ जिन समवसरण में सदा सुशोभित हैं दिन-रात॥१९॥

तीन कषाय चौकड़ी जयकर मुनि-सु-व्रत के धारी हैं,
वन्दन जिनवर मुनिसुव्रत जो भविजन को हितकारी हैं॥२०॥

नमि जिनेश्वर ने निज में नमकर पाया केवलज्ञान महान।
मन-वच-तन से करूं नमन सर्वज्ञ जिनेश्वर हैं गुणखान॥२१॥

धर्मधुरा के धारक जिनवर धर्मतीर्थ का रथ संचालक।
नेमिनाथ जिनराज वचन नित भव्यजनों के हैं पालक॥२२॥

जो शरणागत भव्यजनों को कर लेते हैं आप समान।
ऐसे अनुपम अद्वितीय पारस हैं पार्श्वनाथ भगवान॥२३॥

महावीर सन्मति के धारक वीर और अतिवीर महान।
चरण-कमल का अभिनन्दन है वन्दन वर्धमान भगवान॥२४॥

Shashank Shaha added more details to update on 14 November 2024.

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