देव-मनुष्य “सिद्धप्पा ४ , मुनि का आशीर्वाद लेकर चिन्नव्वा बालक के साथ घर लौटी | बालक चलने लगा, यह देख सब अचम्भे में पड़ गये। चिन्नव्वा ने वस्तुस्थिति कह सुनायी। ‘श्रीसिद्ध’ महाराज के आशीर्वाद से बालक का पंगुत्व चला गया, इससे सब उसे ‘सिद्धप्पा’ नाम से पुकारने लगे।
श्रीगुरु के कथनानुसार यह ge अपने घर में जन्मा है, ऐसा समझ सब उससे विशेष लाड़-प्यार करने लगे | सिद्धप्पा बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे।
माँ के साथ नित्य जिन-दर्शन के लिए वे जाते थे | गाँव के चौधरी अत्यंत धार्मिक थे | उनके घर प्रतिदिन शास्त्र-प्रवचन होता था। सिद्धप्पा उसे सुना करते थे। शास्त्रों की कथा आदि सुन कर सिद्धप्पा उन्हें अपनी माँ को बड़ी श्रद्धापूर्वक सुनाते थे। शास्त्र-स्वाध्याय का, सिद्धप्पा के बाल-हृदय पर अच्छा प्रभाव हुआ। धर्म के प्रति श्रद्धा और-अधिक दृढ़ हो गयी। पानी छान कर पीना चाहिये, रात्रि-भोजन नहीं करना चाहिये, इत्यादि बातें तो वह स्वयं अपनी प्रेरणा से ही करने लगा था |