Pooja Vidhi Prarambh पूजा विधि प्रारम्भ

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Language : Hindi

ॐ जय! जय!! जय!!! नमोऽस्तु! नमोऽस्तु!! नमोऽस्तु!!!
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं ।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं। ।

ॐ ह्रीं अनादिमूलमंत्रेभ्यो नमः । (पुष्पांजलि क्षेपण करें)

चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं,
साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं।
चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा,
साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णतो धम्मो लोगुत्तमो।
चत्तारि सरणं पव्वज्जामि ,अरिहंते सरणं पव्वज्जामि,
सिद्धे सरणं पव्वज्जामि, साहू सरणं पव्वज्जामि।
केवलिपण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि।।

ॐ नमोऽर्हते स्वाहा । (पुष्पांजलि क्षेपण करें)

अपवित्रः पवित्रो वा, सुस्थितो दुःस्थितोऽपि वा। ध्यायेत्पंच-नमस्कारं,सर्वपापैःप्रमुच्यते । १|

अन्वयार्थ:
पवित्र हो या अपवित्र, अच्छी स्थिति में हो या बुरी स्थिति में,
पंच-नमस्कार मंत्र का ध्यान करने से सब पाप छूट जाते हैं। १।

अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्परमात्मानं, स बाह्याभ्यंतरे शुचिः । २॥

अन्वयार्थ:
चाहे (स्नानादिक से) पवित्र हो अथवा अपवित्र हो, (सोती, जागती, उठती, बैठती, चलती) किसी भी दशा में हो, जो (पंच-परमेष्ठी) परमात्मा का स्मरण करता है, वह (उस समय) बाह्य (शरीर) और अभ्यंतर (मन) से पवित्र होता है।२।

अपराजित-मंत्रोऽयं,सर्व-विघ्न विनाशनः ।
मंगलेषु च सर्वेषु, प्रथमं मंगलं मतः ।३।

अन्वयार्थ:
यह नमस्कार-मंत्र (किसी मंत्र से पराजित नहीं हो सकता, इसलिए) अपराजित मंत्र है। यह सभी विघ्नों को नष्ट करनेवाला है एवं सर्व मंगलों में यह पहला मंगल है | ३ |

एसो पंच-णमोयारो, सव्व पावप्पणासणो ।
मंगलाणंच सव्वेसिं, पढमं होइ मंगलं । ४ ।

अन्वयार्थ:
यह पंच-नमस्कार मंत्र सब पापों का नाश करनेवाला है। यह सब मंगलों में पहला मंगल है | ४ |

अर्हमित्यक्षरं ब्रह्म-वाचकं परमेष्ठिनः। सिद्धचक्रस्य सद् बीजं, सर्वतः प्रणमाम्यहम्। ५।

अन्वयार्थ:
‘अर्हं’ ये अक्षर परमब्रह्म-परमेष्ठी के वाचक हैं। सिद्ध-समूह के इन सुन्दर बीजाक्षरों को मैं मन-वचन-काया से नमस्कार करता हूँ । ५।

कर्माष्टक-विनिर्मुक्तं मोक्ष-लक्ष्मी-निकेतनम्।
सम्यक्त्वादि-गुणोपेतं सिद्धचक्रं नमाम्यहम्।।६।।

अन्वयार्थ:
आठ कर्मों से रहित, मोक्षरूपी लक्ष्मी के मंदिर, सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान, अगुरुलघुत्व, अवगाहनत्व, सूक्ष्मत्व, अव्याबाधत्व, वीर्यत्व- इन आठ गुणों से युक्त सिद्ध-समूह को मैं नमस्कार करता हूँ । ६ ।

विघ्नौघा: प्रलयं यान्ति, शाकिनी-भूत-पन्नगाः।
विषं निर्विषतां याति स्तूयमाने जिनेश्वरे।।७।।

अन्वयार्थ:
अरिहंतादि (पंच-परमेष्ठी) भगवानों का स्तवन करने से विघ्नों के समूह नष्ट हो जाते हैं, एवं शाकिनी, डाकिनी, भूत, पिशाच, सर्प आदि का भय नहीं रहता और भयंकर हलाहल विष भी अपना असर त्याग देते हैं । ७ ।

(पुष्पांजलि क्षेपण करें)

पंचकल्याणक अर्घ्य

उदक-चंदन-तंदुल-पुष्पकैश्चरु-सुदीप-सुधूप-फलार्घ्यकैः |
धवल-मंगल-गान-रवाकुले जिनगृहे कल्याणमहं यजे ||

अन्वयार्थ:
जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल व अर्घ्य से धवल-मंगल गीतों की ध्वनि से पूरित मंदिर जी में (भगवान् के) कल्याणकों की पूजा करता हूँ।

ॐ ह्रीं श्री भगवतो गर्भजन्मतपज्ञान निर्वाण पंचकल्याणकेभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।।

पंच-परमेष्ठी का अर्घ्य

उदक-चंदन-तंदुल-पुष्पकैश्चरु-सुदीप-सुधूप-फलार्घ्यकैः |
धवल-मंगल-गान-रवाकुले जिनगृहे जिननाथमहं यजे ||

ॐ ह्रीं श्रीअर्हंत-सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुभ्योऽर्घ्यंनिर्वपामीति स्वाहा |2|

श्री जिनसहस्रनाम अर्घ्य

उदक-चंदन-तंदुल-पुष्पकैश्चरु-सुदीप-सुधूप-फलार्घ्यकैः |
धवल-मंगल-गान-रवाकुले जिनगृहे जिननाममहं यजे ||

ॐ ह्रीं श्रीभगवज्जिन अष्टाधिक सहस्रनामेभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |3|

‘श्रीजिनसहस्रनाम स्तोत्र’ पढ़नेवाले प्रत्येक शतक के अन्त में यही श्लोक पढ़ें एवं शतक के नाम से अर्घ्य चढ़ायें।

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Updated By : Sou Tejashri Wadkar And Shri Shashank Shaha

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