आचार्य मानतुंग कृत “भक्तामरस्तोत्रम” दिगंबर जैन विकी द्वारा प्रस्तुत << Previous 1. Stotra 1 to 8 2. Stotra 9 to 16 << 3. Stotra 17 to 24 4. Stotra 25 to 32 5. Stotra 33 to 40 >> 6. Stotra 41 to 48 Next >> 25. नजर (दृष्टी दोष) नाशक बुद्धस्त्वमेव विबुधाचितबुद्धबोधात्, त्वं शङ्करोऽसि भुवनत्रयशङ्करत्वात्। […]
Bhaktamar Stotra 9 to 16 with Audio and Translation for effective reciting. आचार्य मानतुंग कृत “भक्तामरस्तोत्रम” दिगंबर जैन विकी द्वारा प्रस्तुत > 09. सर्वभय निवारक आस्तां तव स्तवनमस्तसमस्तदोषं, त्वत्सङ्कथापि जगतां दुरितानि हन्ति। दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकासभाञ्जि ॥९॥ अन्वयार्थ – (तव) तुम्हारा ( अस्तसमस्तदोषम्) निर्दोष (स्तवनम्) स्तवन (आस्ताम्) दूर रहे, किन्तु (त्वत्सङ्कथा) तुम्हारी […]
आचार्य मानतुंग कृत “भक्तामरस्तोत्रम” दिगंबर जैन विकी द्वारा प्रस्तुत 01. सर्व विघ्न उपद्रवनाशक भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा-मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् । सम्यक्-प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा-वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम् ॥१॥ English Pronunciation Bhaktamar pranat maulimaniprabhanam muddyotakam dalita pap tamovitanam. Samyak pranamya jin pad yugam yugada- valambanam bhavajale patataam jananam. English Meaning Having duly bowed down at the feet of Bhagwan Adinath, the […]
Swadhyay LInks Looking for Jain Swadhaya here are some good sites for reference Swadhaya Information Sr.No Description Link Details 1. आपको जिनागम के किसी शब्द का अर्थ जानना हो या किसी विषय के संदर्भ (references) देखने हों या किसी पुराण-पुरुष के बारे में जानकारी लेनी हो या एक ही विषय को आगम में कहाँ-कहाँ […]
Panchakalynak Details Panchakalyank happened in the presence of Acharya Abhinandan Sagarji Maharaji
SANSMARAN 61. गुरुदेव की प्रेम-करुणा घटना है सन् 1984 की, जब मुनि श्री विराग सागर का प्रथम विहार गुरु आज्ञा-पूर्वक श्रुतपंचमी के दिन भीषण गर्मी में पालीताना से भावनगर चातुर्मास हेतु मुनि श्री सिद्धांत सागर जी के साथ हुआ। प. पू.आ. श्री विमल सागर जी ने देखा कि मुनिश्री के पुस्तक तथा चटाई का बस्ता […]
Sansmaran 51. मिली नि:स्वार्थ धर्मपरायणता की झलक दूसरे के मनोभावों को सहजता से समझने वाले विशाल हृदय क्षुल्लक पूर्ण सागर जी सन् 1982 में विहार करते हुऐ पहुँचे परभणी (महाराष्ट्र)। समय था आहार चर्या का, लोगों के मन में श्री श्रद्धा-भक्ति परंतु पड़गाहन आदि क्रियाओं से अनभिज्ञ थे। क्षुल्लक जी ने मन्दिर से मुद्रा धारण […]
SANSMARAN 41. सावन बरसा वात्सल्य का सन् 1980 दुर्ग चातुर्मास की बात है प.पू. आ. श्री के अष्टाहिका पर्व आठ उपवास चल रहे थे, तब मैना बाई वैयावृत्ति हेतु घी- कपूर मथकर लाती थी | एकबार पू. क्षु. जी का आहार के प्रारंभ में ही अंतराय हो गया, वे जैसे ही पू.आ. श्री के पास […]
SANSMARAN 31.परीक्षा की घड़ियां क्षुल्लक पूर्ण सागर जी जब 1980 में दीक्षोपरांत अपने गुरुवर की छत्रछाया में साधना अध्ययनरत थे, उनकी आगमिक चर्या, अध्ययनशीलता, गंभीरता, विरक्ति आदि गुणों से जैन श्रावक ही नहीं अपितु अजैन श्रावक भी प्रभावित होते थे। एक बार उनके पास एक अजैन विद्वान आने लगे,पर वे क्षुल्लक जी को कभी नमस्कार […]
You cannot copy content of this page