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सामायिक-पाठ

Author: Acharya Amitgatiji
Language : Hindi (Pandit Yugalji)
Rhythm:

Type: Samayik Paath
Particulars: Paath
Created By: Shashank Shaha

सत्त्वेषु मैत्रीं गुणिषु प्रमोदं क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वं
माध्यस्थभावं विपरीतवृत्तौ, सदा ममात्मा विदधातु देव ॥१॥

मेरा आतम सब जीवों पर, मैत्री भाव करे
गुण-गण मंडित भव्य जनों पर, प्रमुदित भाव रहे ॥
दीन दुखी जीवों पर स्वामी, करुणा भाव करे
और विरोधी के ऊपर नित, समता भाव धरे ॥१॥

अन्वयार्थ : हे भगवन् ! मेरी आत्मा हमेशा संपूर्ण जीवों में मैत्रीभाव, गुणीजनों में हर्षभाव, दु:खी जीवों के प्रति दयाभाव और विपरीत व्यवहार करने वाले शत्रुओं के प्रति माध्यस्थभाव को धारण करे।

शरीरत: कर्तुमनंतशक्तिं विभिन्नमात्मानमपास्तदोषम्
जिनेंद्र कोषादिव खड्गयष्टिं, तव प्रसादेन ममास्तु शक्ति: ॥२॥

तुम प्रसाद से हो मुझमें वह, शक्ति नाथ जिससे
अपने शुद्ध अतुल बलशाली, चेतन को तन से ॥
पृथक कर सकूं पूर्णतया मैं, ज्यों योद्धा रण में
खींचे निज तलवार म्यान से, रिपु सन्मुख क्षण में ॥२॥

अन्वयार्थ : हे जिनेंद्रदेव ! म्यान से तलवार को निकालने के समान दोषों से रहित और अनंत शक्तिमान इस आत्मा को शरीर से पृथक् करने में आपके प्रसाद से मुझे शक्ति प्राप्त होवे।

लक्ष्मी बढ़ी अधिकार भी, पर बढ़ गया क्या बोलिए
परिवार और कुटुंब है क्या? वृद्धि नय पर तोलिए ॥३॥

संसार का बढ़ना अरे! नर देह की यह हार है
नहीं एक क्षण तुझको अरे! इसका विवेक विचार है ॥४॥

निर्दोष सुख निर्दोष आनंद, लो जहाँ भी प्राप्त हो
यह दिव्य अंतस्तत्त्व जिससे, बंधनों से मुक्त हो ॥५॥

पर वस्तु में मूर्छित न हो, इसकी रहे मुझको दया
वह सुख सदा ही त्याज्य रे! पश्चात जिसके दुःख भरा ॥६॥

मैं कौन हूँ आया कहाँ से! और मेरा रूप क्या?
संबंध दु:खमय कौन है? स्वीकृत करूँ परिहार क्या ॥७॥

इसका विचार विवेक पूर्वक, शांत होकर कीजिए
तो सर्व आत्मिक ज्ञान के, सिद्धांत का रस पीजिए ॥८॥

किसका वचन उस तत्त्व की, उपलब्धि में शिवभूत है
निर्दोष नर का वचन रे! वह स्वानुभूति प्रसूत है ॥९॥

तारो अरे तारो निजात्मा, शीघ्र अनुभव कीजिए
सर्वात्म में समदृष्टि दो, यह वच हृदय लख लीजिए ॥१०॥

Shashank Shaha added more details to update on 9 November 2024.

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