शुक्ल त्रयोदशी चैत्रमास की, आनंद-करतारी। राय-सिद्धारथ घर जन्मोत्सव, ठाठ रचे भारी॥ ॐ जय.
तीस वर्ष तक रहे गेह में, बाल-ब्रह्मचारी। राज त्यागकर भर-यौवन में, मुनि-दीक्षा धारी।। ॐ जय.
द्वादश-वर्ष किया तप-दुर्द्धर, विधि चकचूर किया। झलके लोकालोक ज्ञान में, सुख भरपूर लिया।। ॐ जय.
कार्तिक श्याम अमावस के दिन, जाकर मोक्ष बसे। पर्व दिवाली चला तभी से, घर-घर दीप जसे॥ ॐ जय.
वीतराग-सर्वज्ञ-हितैषी,शिवमग-परकाशी। हरि हर ब्रह्मा नाथ तुम्हीं हो, जय-जय अविनाशी।। ॐ जय.
दीनदयाला जग-प्रतिपाला, सुर-नरनाथ जजें। सुमिरत विघ्न टरे इक छिन में, पातक दूर भगें।। ॐ जय.
चोर-भील-चांडाल उबारे, भव-दुःखहरण तुही। पतित जान हमें आज उबारो, हे जिन! शरण गही।। ॐ जय.
इस विधि से पूजन सम्पन्न कर याचकों को दान, सज्जनों का सम्मान, सेवकों को मिष्टान्न वितरण आदि देशरीति अनुसार करना चाहिये और व्यवहारियों को उत्सव मनाने के समाचार पत्रों द्वारा भेजना चाहिये। (जिन्हें अन्तराय-कर्म प्रबल हो, वे रात्रि में ‘श्री जिनसहस्त्रनाम’ का पाठ अवश्य करें। नूतन वर्ष का प्रभात मंगलदायक हो, इसके लिये सभी को 108 बार णमोकार मंत्र का शुद्ध-भावों से जाप करना चाहिये।)