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#DhrambhushanSagarji1940ShantiSagarJi(Hastinapur)
The land of civilization and culture, Karmastha of Kaurava Pandavas, Viharasthali of Lord Rishabhdev, the famous land of Dharmanagari Hastinapur famous as the welfare land of the Tirthankaras, is the holy birth place of Puranya Acharya Shri 108 Sri Dharmabhushan Maharaj Ji, the nearest witness to the natural beauty of Hastinapur. Mother Shrimati Hukama Devi ji and father Shri Dalchand Jain gave birth to a small child in the year 1980, Shravan Shukla Saptami Vikram Samvat 1962. 2 sons (Mr. Salek Chandra Jain and Mr. Roopchand Jain) and two daughters (Mrs. Kamala Devi and Mr. Jaymala Jain) along with son Premchand played, grew up and grew up. Father Ashish Chhaya lived with very little time.
आचार्य १०८ श्री धर्म भूषण जी महाराज
सभ्यता एवं संस्कृति की भूमि ,कौरव पांडवो की कर्मस्थली ,भगवान् ऋषभदेव की विहारस्थली ,तीर्थंकरों की कल्याणक भूमि के रूप में प्रसिद्ध धर्मनगरी हस्तिनापुर की प्राकृतिक सुषमा का निकटस्थ साक्षी ग्राम करनावल (मेरठ) पूज्य आचार्य श्री १०८ श्री धर्मभूषण महाराज जी की पवित्र जन्म स्थली है ।एक लघु शिशु को माता श्रीमती हुकमा देवी जी और पिता श्री डालचंद जैन ने सन १९४०, श्रवण शुक्ला सप्तमी विक्रम संवत १९९६ में जन्म दिया ।२ पुत्रों (श्री सलेक चन्द्र जैन एवं श्री रूपचंद जैन) तथा दो पुत्रियों (श्रीमती कमला देवी एवं श्री जयमाला जैन )के साथ ही पुत्र प्रेमचंद खेले,पले और बढे।पिता जी आशीष छाया बहुत कम समय साथ रही ।दोनों भाइयों ने ही प्रेमचंद को पिता तुल्य वात्सल्य प्रदान किया।किसे ज्ञात था की वह लघु शिशु एक तेजस्वी दिव्यात्मा है जो भविष्य में विश्व के कल्याण और सुरक्षा हेतु अपना सर्वस्व त्याग कर देगा ।बाल्यावस्था से ही आप धनी,अपूर्व साहस से संयुक्त और कुछ कर दिखाने की भावना से ओत प्रोत थे।युवावस्था में भी उनकी स्वतंत्र चिंतन धारा,निष्काम साधना की ओर अग्रसर थी,दिन रात यही चिंतन करते रहते थे कि इस अमूल्य मानव जीवन को किस प्रकार आत्म विकास के मार्ग पर अग्रसर किया जाये।माता पिता का दिया नाम प्रेम उनके अन्तरंग और रॊम रॊम में बसा हुआ था।युवा प्रेमचंद ने १५ वर्ष कि आयु में विवाह भी किया ।पत्नी शीलवती एवं धर्म परायण थी।दो संताने भी हुई पुत्र आदीश जैन और पुत्री अंजना जैन।अनमने मन से व्यापार भी किया लेकिन पूर्व जनित संस्कार इस मध्य में भी उनके साथ रहे।श्रावक के षटकर्मों का नियमित पालन करते हुए.साधुओं की सेवा करने में आपको विशेष आनंद की अनुभूति होती थी।पुत्री जब उनकी पत्नी के गर्भ में थी तब ही ब्रह्मचर्य व्रत लेकर गृहस्थ जीवन को सांकेतिक तिलांजलि दे दी तथा १७ बर्ष की आयु में ही आपने १०८ आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज से संयम ले लिया।कपडा व्यवसाय भी किया पर वणिक वृत्ति से नहीं,मात्र गृहस्थ का पालन करने हेतु पूर्ण इमानदारी से।गृहस्थ अवस्था में वे सदेव यही ध्यान रकते थेकि शाश्वत सुख के लिए राग से विराग की और बढ़ना है,अगारी से अंगारी बनना है।
संक्षिप्त परिचय
जन्म: सन १९४०, श्रवण शुक्ला सप्तमी विक्रम संवत १९९६
जन्म स्थान : ग्राम करनावल (मेरठ)
जन्म का नाम प्रेमचंद जैन
माता का नाम : श्रीमती हुकमा देवी
पिता का नाम : श्री डालचंद जैन
क्षुल्लक दीक्षा : फाल्गुन सुदी दशमी विक्रम संवत २०३७ में १५ मार्च १९८१
दीक्षा का स्थान : रामपुर मनीहरण
मुनि दीक्षा : चैत्र वदी १५ संवत २०५१ (१० अप्रैल १९९४ )
मुनि दीक्षा का स्थान : गंनोर मंडी जिला सोनी पत
मुनि दीक्षा गुरु : आचार्य श्री शांति सागर जी (हस्तिनापुर वाले )
आचार्य पद : ज्येष्ठ सुदी ३ संवत २०५४ (८ जून १९९७)
आचार्य पद का स्थान : मुजफ्फर नगर (उ.प्र.)
गृहस्थ जीवन में रहते हुए वे कर्तव्यनिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता भी रहे। करनावल में एक बार सरकारी योजना बनी कि करनावल में स्थित तालाबों मे मछली पालन होगा ,यह प्राणिमात्र के प्रति करुणा भाव रखने वाले संवेदन शील प्रेमचंद जी को कैसे सहन होता कि उनकी मातृभूमि पर यह न्रशंस कार्य हो,उन्होंने पुरजोर विरोध किया और प्रशासन की इस योजना को निरस्त कराया ।देखने में भले ही कृशकाय थे पर रहे अतुल बलशाली।१ बार गाँव में डाकू आ गए प्रेमचंद ने अपूर्व सूझ बुझ और शक्ति का परिचय देकर डाकुओं को बहार निकल।ना जाने ऐसे कितने प्रसंग इनके जीवन के साथ संलग्न है।सच में जब व्यापार भी उत्कर्ष पर था और छोटी बेटी और बेटे किशोर भी नहीं हुए थे तभी आचार्य श्री विमल सागर जी से स्वीकृत आजीवन ब्रहमचर्य व्रत का वर्षों तक निर्तिचार शील व्रत का पालन करते हुए मिति फाल्गुन सुदी दशमी विक्रम संवत २०३७ में १५ मार्च १९८१ को रामपुर मनीहरण में सम्राट आचार्य प्रवर गुरु १०८ शांति सागर जी महाराज जी से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की और आप ब्रा. प्रेमचंद से पूज्य १०५ श्री क्षुल्लक कुलभूषण जी बन गए।संभवत: आचार्य श्री शांति सागर जी (हस्तिनापुर वाले )भी भली भांति जानते थे कि ऐसे तेजस्वी प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व का धनी शिष्य ही मेरे कुल का अलंकरण हो सकता है।जैसे शिष्य वैसे ही गुरु और जैसे गुरु वैसे ही शिष्य ।सुयोग्य गुरु का सुयोग्य शिष्य का मिलना सहज नहीं होता। प्रारंभ में हो सम्पूर्ण जैन समाज को प्रसन्न और सम्रद्ध देखने की ही आप की भावना रही और अब तो पूर्णतया समाज के ही मध्य है।महापुरुषों के साथ संघर्ष और उपसर्ग तो संभवत: अपनी उग्रता दिखाए बिना नहीं रहते ।ब्रह्मचारी अवस्था से ही उपसर्ग आपके साथ रहे ।एक बार चिलकाना में मधुमक्खियों ने भयंकर आक्रमण किया। सारा समाज दुःख में डूब गया पराप शांति से ,सहजता से उपसर्ग को सहा।शारीरिक ,वैचारिक किसी भी प्रकार की विपरीतता में आपने धैर्य नही छोड़ा।आप तो अर्ह्निश यही सोचते कि मानव मात्र के लिए कौन सी व्यवथा दी जाये जिससे वह भी शांति का सुकद वातावरण निर्मित किया जाये जिस से विषमता कि धू धू करती ज्वालाए शांत हो सकते।उनके अन्तरंग में एक संवेदन शील दिल धडकता है जिसमे करुणा का सागर हिलोरे लेता है।इसलिए क्षुल्लक बनकर भी वे संतुष्ट नहीं हुए और समपूर्णतया के लिए प्रयत्नशील रहे।लंगोटी और चादर भी परिग्रह है,बोझ है,भार है यह समझकर १०८ श्री शांति सागर जी (हस्तिनापुर वालों )से गंनोर मंदी जिला सोनी पत मे चैत्र वादी १५ संवत २०५१ (१० अप्रैल १९९४ )को लंगोटी के भार से निर्भार हो कर बन गए पूज्य मुनि श्री १०८ धर्म भूषण जी महाराज और सम्रद्ध कर दी वह पुनीत पावन परम्परा जो श्रमण रत्न संत शिरोमणि चरित्र रत्नाकर १०८ श्री शांति सागर जी "छाणी",आचार्य सूर्य सागर,आचार्य जय सागर ,आचार्य शान्तिसागर (हस्तिनापुर वाले ) महाराज जी है । इस परम्परा के आप पट्ट शिष्य आचार्य श्री १०८ धर्म भूषण जी है।पूज्य मुनि श्री कि साधना अनवरत चलती रही और मुजफ्फर नगर (उ.प्र.)में ज्येष्ठ सुदी ३ संवत २०५४ (८ जून १९९७)को उन्हें आचार्य पद प्रदान किया गया।पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गौरव प्रथम आचार्य श्री धर्म भूषण जी सम्पूर्ण भारत में आज आपनी कठोर साधना के कारन विख्यात है।
#DhrambhushanSagarji1940ShantiSagarJi(Hastinapur)
आचार्य श्री १०८ धर्मभूषण सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ शांतिसागरजी महाराज (हस्तिनापुर) Acharya Shri 108 Shantisagarji Maharaj (Hastinapur)
Dhaval Patil Pune-9623981049
Dhaval Patil Pune-9623981049
ShantiSagarji(Hastinapur)NirmalSagarji
The land of civilization and culture, Karmastha of Kaurava Pandavas, Viharasthali of Lord Rishabhdev, the famous land of Dharmanagari Hastinapur famous as the welfare land of the Tirthankaras, is the holy birth place of Puranya Acharya Shri 108 Sri Dharmabhushan Maharaj Ji, the nearest witness to the natural beauty of Hastinapur. Mother Shrimati Hukama Devi ji and father Shri Dalchand Jain gave birth to a small child in the year 1980, Shravan Shukla Saptami Vikram Samvat 1962. 2 sons (Mr. Salek Chandra Jain and Mr. Roopchand Jain) and two daughters (Mrs. Kamala Devi and Mr. Jaymala Jain) along with son Premchand played, grew up and grew up. Father Ashish Chhaya lived with very little time.
Acharya 108 Shri Dharma Bhushan Ji Maharaj
The land of civilization and culture, Karmastha of Kaurava Pandavas, Viharasthali of Lord Rishabhdev, the famous land of Dharmanagari Hastinapur famous as the welfare land of the Tirthankaras, is the holy birth place of Puranya Acharya Shri 108 Sri Dharmabhushan Maharaj Ji, the nearest witness to the natural beauty of Hastinapur. Mother Shrimati Hukama Devi ji and father Shri Dalchand Jain gave birth to a small child in the year 1940, Shravan Shukla Saptami Vikram Samvat 1996. 2 sons (Mr. Salek Chandra Jain and Mr. Roopchand Jain) and two daughters (Mrs. Kamala Devi and Mr. Jaymala Jain) along with son Premchand played, grew up and grew up. Father Ashish Chhaya lived with very little time. Both brothers gave Premchand Vatsalya as a father. Who knew that that little baby is a bright divine who in future You will sacrifice yourselves for the welfare and safety of the world. Right from childhood, you were rich, combined with courage and a sense of doing something. Even in youth, his free thinking stream was moving towards Nishkam Sadhana, day and night. Used to think that this invaluable human How to lead life on the path of self-development. Mother's father's name was Prem, settled in his intimate and romantic life. Yuva Premchand also married at the age of 15. The wife was Shilwati and Dharma Parayan. Two children. Also had son Adish Jain and daughter Anjana Jain. They also did business with their heart, but the pre-ordained rites remained with them even in the middle. By following the shaktarma of the cub regularly, you used to feel special pleasure in serving the materials. When the daughter was in the womb of his wife, only after taking Brahmacharya fast, she gave a symbolic thought to the life of the householder and at the age of 17 years, you took restraint from the 108 Acharya Shri Vimal Sagar Ji Maharaj. He also did the business of business but not with merciless Only with the utmost honesty to follow the householder. In the home state, he always used to keep in mind that for eternal happiness, to be mistaken by raga and to grow, to become agaris from agari.
He was also a dutiful social worker while living at home. Once in Karnaval, there was a government plan that fisheries would be done in the ponds located in Karnaval, how could the sensible Sheel Premchand ji, who was compassionate towards the Pranaval, tolerate this dastardly work on his motherland, he strongly protested and this administration The plan was aborted. Atul Balashali, even though the farmers were looking at him. Premchand, who came to the village 1 time, unknowingly extinguished and introduced Shakti out of the bandits. Know how many such incidents are attached with his life. In truth, when the business was also on the rise and the younger daughter and son were not even teenagers, then Acharya obeyed the life-long Brahmacharya fast approved by Acharya Shri Vimal Sagar ji for years, in Miti Phalgun Sudi Dashmi Vikram Samvat 2037 on 15 March 1981 On Rampur Maniharan received Emperor Acharya Pravar Guru 108 Shanti Sagar ji Maharaj ji, without any initiation and you bra. 105 became a worshiper of Premchand, Shri Chhotallak Kulbhushan ji. Probably Acharya Shri Shanti Sagar ji (also of Hastinapur) knew very well that only a rich disciple of such a brilliant talent-rich personality could be an adornment of my clan. And just like the Guru is a disciple. It is not easy for a well-qualified teacher to find a suitable disciple. Initially, you had the feeling of seeing the entire Jain society happy and prosperous and now it is completely in the middle of the society. Conflicts and prefixes with men may not be possible without showing their fierceness. Once, in Chilkana, the bees made a fierce attack. The whole society was drowned in sadness, peace, and suffering of the prefix, easily. You have not given up patience in any kind of physical, ideological contradiction. You would think that what arrangement should be made for the sake of human beings, that too of peace. Succulent environment should be created so that the flame of the asymmetrical flame can calm down. In their interior, a sensing effervescence hits the heart, in which the ocean of compassion is shaken. So even after being ejaculatory, they were not satisfied and strive for the whole. And the sheet is also a possession, a burden, a burden; realizing that from 108 Sri Shanti Sagar ji (Hastinapur people), in the Ganor Mandi district Soni Pat, Chaitra Wadi 15 Samvat 2051 (April 10, 1994) became venerable by being loaded from the weight of the loincloth. Muni Shri 108 Dharam Bhushan Ji Maharaj and have strengthened the tradition of Punit Pavan which is Shramana Ratna Saint Shiromani Charitra Ratnakar 108 Sri Shanti Sagar ji "Chhani", Acharya Surya Sagar, Acharya Jai Sagar, Acharya Shantisagar (Hastinapur) Maharaj. The disciple of this tradition, Acharya Shri 108 Dharam Bhushan Ji, worshiped Pujya Muni Sri, and continued the post of Acharya on Jyestha Sudi 3rd Samvat 2054 (8th June 1997) in Muzaffar Nagar (U.P.). Shri Dharma Bhushan, the first Acharya of Western Uttar Pradesh, is famous in India today due to his hard work.
Acharya Shri 108 Dhrambhushan Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ शांतिसागरजी महाराज (हस्तिनापुर) Acharya Shri 108 Shantisagarji Maharaj (Hastinapur)
आचार्य श्री १०८ शांतिसागरजी महाराज (हस्तिनापुर) Acharya Shri 108 Shantisagarji Maharaj (Hastinapur)
Aacharya Shri 108 Shanti Sagar Ji Maharaj(Hastinapur)
Dhaval Patil Pune-9623981049
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ShantiSagarji(Hastinapur)NirmalSagarji
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