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#NirmalSagarJiMaharaj1946VimalSagarJi(Bhind)
Your former name was Mr. Rameshchandra. Your father name was Mr. Seth Bihari Lal And mother name was Shri Gomavati. Both were devout and faithful and spend their most of time in religious activities.They gave birth to five sons and three daughters.And you are the smallest among all of them.
Being the youngest, the parents had special affection for you,but this Love could not last long. Your parents are died at your young age . Your upbringing was done by your elder brother Mr. Gaurishankar, Your feeling towards renunciation being developed in childhood.
संक्षिप्त परिचय
1.)जन्म - मार्गशीर्ष कृष्णा २ विक्रम संवत २००३ सन 1946
2.)जन्म स्थान -पहाड़ीपुर, जिला -फिरोजाबाद(उ.प्र.)
3.)जन्म का नाम - श्री रमेश चन्द्र
4.)माता का नाम -श्रीमती गोमावती
5.)पिता का नाम - श्री सेठ बिहारीलाल
6.)क्षुल्लक दीक्षा - वैशाख शुक्ल १४ सन 1965
7.)दीक्षा का स्थान - गिरनार पर्वत की चोथी टोंक पर
8.)क्षुल्लक दीक्षा गुरु - आचार्य श्री १०८ सीमंधर सागर जी महाराज
9.)मुनि दीक्षा - आषाढ़ शुक्ल पंचमी रविवार सन1967
10.)मुनि दीक्षा का स्थान -आगरा
11.)मुनि दीक्षा गुरु - आचार्य श्री १०८ विमल सागर जी महाराज(भिंड वाले)
12.)आचार्य पद: सन 1973 विक्रम संवत २०३०
13.)आचार्य पद का स्थान
सांगोद (कोटा, राजस्थान)
14.)विशेष: गिरनार पर्वत सत्व संकट निवारक
आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज
आचार्य श्री का जन्म उत्तरप्रदेश, जिला एटा ग्राम पहाड़ीपुर में मगसिर वदी 2 विक्रम संवत् 2003 में पद्मावती परिवार में हुआ था, आपके पिताजी का नाम सेठ श्री बोहरेलाल जी एवं माता जी का नाम गोमावती जी था, दोनों ही धर्मात्मा एवं श्रद्धालु थे। देव, शास्त्र, गुरु के प्रति उनकी अनन्य भक्ति थी तथा अपना अधिक समय धार्मिक कार्यों में ही व्यतीत करते थे। उन्होंने पाँच पुत्र एवं तीन कन्याओं को जन्म दिया। उनमें से सबसे छोटे होने के कारण आप पर माता-पिता का अधिक प्रेम रहा लेकिन वह प्यार अधिक समय तक न चल सका तथा आपकी छोटी उम्र में ही आपके माता-पिता देवलोक सिधार गये थे। आपका बचपन का नाम श्री रमेशचन्द्र जी था। आपका लालन-पालन आपके बड़े भाई श्री गौरीशंकर जी द्वारा हुआ। आपकी वैराग्य भावना बचपन में ही बलवती हुई थी। आपके मन में घर के प्रति अति उदासीनता थी। आपके हृदय में आहारदान देने व निरग्रन्थ मुनि बनने की भावना ने अगाध घर बना लिया था। आप जब छहढाला आदि पढ़ते तो इस संसार के चक्र-परिवर्तन को देखकर आपका हृदय काँप उठता था एवं बारह-भावना पढ़ते ही आपके भावों का स्रोत बह उठता तथा वह धर्म चक्षुओं के द्वारा प्रवाहित होने लगता था।
आप सोचते थे कि इन दुःखों से बचकर अपने को कल्याणमार्ग की ओर लगाकर सच्चे सुख की प्राप्ति करूँ। इसी के अनन्तर शुभकर्म के योग से परम पूज्य श्री 108 महावीर कीर्ति जी का शुभागमन हुआ। उस समय आपकी उम्र 12 वर्ष की थी। महाराज श्री आपके घराने में से हैं। आपने उनके समक्ष जमीकन्द का त्याग किया और थोड़े दिन उनके साथ रहे। फिर भाई के आग्रह से घर आना पड़ा। अब आपको घर कैद सा मालूम होने लगा। आपके भाई ने शादी के बहुत यत्न किए लेकिन सब निकल हो गए। आप आचार्य श्री 108 शिवसागर जी के संघ में भी थोड़े दिन रहे। वहाँ से बड़वानी यात्रा के लिए कुछ लोगों के साथ चल दिये। बड़वानी में आचार्य श्री 108 विमलसागर जी का संघ विराजमान था। आपने वहाँ पर दूसरी प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये। उस समय आपकी उम्र 15 वर्ष की थी। फिर बाद में आप दिल्ली पहुंचे।
वहाँ पर परम पूज्य श्री 108 सीमन्धरजी का संघ विराजमान था। उनके साथ आप गिरनार जी गये। वहाँ पर आपने सं. 2022 मिति वैशाख वदी 14 को क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। उस समय आपकी उम्र 17 वर्ष की थी। वहाँ से विहार कर संघ का चातुर्मास अहमदाबाद में हुआ। उसके बाद आपने गुरु की आज्ञानुसार सम्मेदशिखर जी के लिए विहार किया। आप पैदल यात्रा करते हुए आगरा आये वहाँ पर श्री परम पूज्य 108 विमलसागर जी का संघ विराजमान था।
आपने सं. 2024 मिती आषाढ़ सुदी 5 रविवार के दिन महाव्रतों को धारणकर निर्ग्रन्थ मुनि दीक्षा धारण की तथा संघ का चातुर्मास वहीं पर हुआ। वहाँ से विहार करते हुए आप कुण्डलपुर आये। जहाँ पर आचार्य श्री से ब्र.निजात्माराम जी ने क्षुल्लक-दीक्षा ग्रहण की। वहाँ से विहार करते हुए आप श्री सम्मेदशिखर पधारे। वहाँ पर महाराज श्री की तीर्थराज वन्दना सकुशल हुई। बाद में आपका चातुर्मास हज़ारीबाग में हुआ। उसके बाद आप मधुवन आये। वहाँ पर क्षुल्लकजी ने आप से महाव्रत ग्रहण किये। बाद में आप ईसरी पंचकल्याणक में पधारे तथा वहाँ पर 5 दीक्षायें आपके द्वारा हुई।आप वहाँ से विहार करते हुए बाराबंकी पधारे। जहाँ पर आपका चातुर्मास हुआ। वहाँ से विहार करते हुए आप मेरठ आये। मेरठ से आप संघ सहित पांडव नगरी भगवान् शान्तिनाथ, अरहनाथ, कुन्थुनाथ, मल्लिनाथ की जन्मभूमि हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र पर जिस दिन भगवान आदिनाथ ने श्रेयान्स राजा से प्रथम आदि काल का आहार गन्ने के रस के रूप में ग्रहण किया था पधारे। संघ सहित विराजकर आपके सम्पूर्ण संघ ने गन्ने का रस लेकर उस दिन की याद को ताजा करा दिया मानो वो ही दृश्य सामने हो। मुनि श्री एक माह रहकर मीरापुर, जानसठ, मुजफ्फरनगर, खतौली, सरधना, वरनाबा, विनौली, बड़ागाँव, बड़ौत आदि इलाकों में होते हुए चातुर्मास के लिए दिल्ली कैलाशनगर में विराजे । आपने अनेकों स्थानों पर चातुर्मास किये।
वर्तमान में गिरनार क्षेत्र पर निर्मल ध्यान केन्द्र का निर्माण कार्य आपके | सदुपदेश.से हो रहा है। आप व्रतों में दृढ़ एवं साहसी हैं, सरलता अधिक है, क्रोध तो देखने में नहीं आता तथा प्रकृति शान्त एवं नम्र है, ऐसे वीतरागी साधुओं के प्रति अगाध श्रद्धा है।
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#NirmalSagarJiMaharaj1946VimalSagarJi(Bhind)
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आचार्य श्री १०८ निर्मल सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ विमल सागर जी महाराज (भिण्ड) 1892 Aacharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj (Bhind) 1892
अक्षत जैन
03-11-2020
VimalSagarJiMaharaj(Bhind)1892VijaySagar
Your former name was Mr. Rameshchandra. Your father name was Mr. Seth Bihari Lal And mother name was Shri Gomavati. Both were devout and faithful and spend their most of time in religious activities.They gave birth to five sons and three daughters.And you are the smallest among all of them.
Being the youngest, the parents had special affection for you,but this Love could not last long. Your parents are died at your young age . Your upbringing was done by your elder brother Mr. Gaurishankar, Your feeling towards renunciation being developed in childhood.
In your mind there was always apathy towards home.Feeling of giving food to Jain Monk from your heart and want to becoming a monk. When you used to read "Chhaddhala" ,the cycle change of this world and Circumambulation of the world will affect your heart.On Vaisakh Shukla 14 of 1965 from Acharya shree 108 Seemandhar Sagar ji Maharaj at Girnar region On the fourth Tonk, you took initiation. At that time, you were 17 years old. On Ashada Shukla Panchami of 1967 on Sunday, wearing Mahavrat,you took the Muni Diksha from Aacharya Shri 108 Vimal Sagar ji Maharaj and was addressed as Muni Shri Nirmalsagar. The Chaturmas of the Sangh took place in Agra. Your birth anniversary was celebrated in Barabanki. On the auspicious occasion of you birth anniversary the society impressed and honored you with the position of Acharya.
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Acharya Shri 108 Nirmal Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ विमल सागर जी महाराज (भिण्ड) 1892 Aacharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj (Bhind) 1892
आचार्य श्री १०८ विमल सागर जी महाराज (भिण्ड) 1892 Aacharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj (Bhind) 1892
Girnar wale baba
#NirmalSagarJiMaharaj1946VimalSagarJi(Bhind)
VimalSagarJiMaharaj(Bhind)1892VijaySagar
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NirmalSagarJiMaharaj1946VimalSagarJi(Bhind)
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