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#SumatiSagarJiMaharaj1917
परम पूज्य प्रातःस्मरणीय, धर्मदिवाकर,तपोनिधि, उपसर्गविजेता, योगीन्द्र चूडामणि, दिगम्बर जैनाचार्य श्री 108 सुमतिसागर जी महाराज जीवन-झांकी
सत्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम्।
माध्यस्थभा विपरतीवृत्ती, सदा ममात्मा विदधातु देव||
हर जीव के साथ जिन्हें मैत्रीभाव है, गुणीजनों के प्रति जिन्हें प्रेम है, दुःखी जीवों के प्रति जिनके हृदय में करुणा स्रोत बह रहा है, विपरीत वृत्ति वाले विरोधी जीवों के प्रति जिनकी माध्यस्थ भावना है|ऐसे माता जी का एवं पिताजी का परिचय
विक्रम संवत् 1974 आसोज के शुक्ल पक्ष का चौथा दिन। स्थान - श्यामपुरा, जिला मुरैना (म.प्र.)। वात्सल्यमूर्ति माँ चिरोंजादेवी एवं धर्मवत्सल पिता जी छिछूलाल जी के यहाँ अवतरित हुआ एक पुत्र-रत्न। वही रत्न आगे जाकर एक महान् मुनि आचार्य बनेगा, इसकी कल्पना उस समय क्या किसी ने की होगी?
आपके गृहस्थ जीवन का नाम नत्थीलाल जी। माँ चिरोंजीदेवी एवं पिताजी छिदूलाल जी ने आपके जीवन में उत्तमोत्तम संस्कारों की नींव डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। शील, संयम और सदाचार के पथ पर आरूढ़ आपको देखकर माँ-बाप मारे खुशी के झूम उठते थे।
आपके गृहस्थ जीवन की झलक आपकी शादी हुई थी, जब आप बारह साल की उम्र के थे। आपकी धर्म-पत्नी का नाम है रामश्रीदेवी। धर्मवत्सला रामश्रीदेवी वाकेय में भगवान की दुलारी ही हैं। संयम और त्याग की ओर उनका झुकाव शुरू से ही है। जिनकी होनहार अच्छी होती है, उन्हें ही संयम, त्याग, दया, करुणा आदि के भावों की जागृति रहती ही है।
आपके तीन भाई हैं : झून्नीलाल जी, बाबूलाल जी एवं रामस्वरूप जी। आपकी बहन है कलावती जी। इन चारों को भी जैनधर्म के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा है।
आपके भाई झुन्नीलाल जी भी वर्तमान युग के मुनिवर श्री 108 अजितसागर जी हैं। आपके दो पुत्र हैं, बारेलाल एवं भागचन्द जी । आपके दो पुत्रियाँ हैं, कपूरीबाई और शकुन्तलबाई। ये भी सुशील एवं गुणज्ञ है।
*आपके गृहस्थ जीवन की कुछ चिरस्मरणीय घटनाएँ:
आपकी शादी के पश्चात् की एक बात है।रामदुलारे नाम का डाकू था|वह आपको उठाकर ले गया, परन्तु आपमें उस समय भी भय का नामोनिशान तक नहीं था। आपकी आँखों में अश्रु की एक बूंद भी नहीं गिर पायी थी। चौदह दिनों के भीतर आप किसी न किसी तरह डाकुओं के गिरोह से अपने गाँव वापस आ पहुंचे थे।
प्रसंग दूसरा कुछ डाकू आये उन्होंने आपको पकड़ लिया। उन्होने आपकी छाती पर बंदूक की नोक रख दी। आपके गहने उतार दिये। उन डाकुओं ने भी माल बताने के लिए आपको मजबूर किया, परन्तु आपने निर्भीक होकर उत्तर दिया कि मैं कुछ नहीं जानता, पिताजी जानते होंगे। उस समय आपके पिताजी मकान की ऊपरी मंजिल पर सोये हुए थे। वे जाग उठे और परिस्थितिवश सोचकर ऊपर से नीचे कूदे । हल्ला हो गया। डाकू आपको छोड़कर भाग गये।प्रसंग तीसरा एक समय की बात है आप अपनी दुकान पर सो रहे थे। कोई एक विषैला जानवर आया। उसने आपको काटा। आप बेहोश अवश्य हो गये, परन्तु आपके प्राणों की कोई हानि नहीं हुई। सच है अगर पुण्य कर्म प्रबल है तो मुसीबत के समय भी एक बाल तक बांका नहीं होता।प्रसंग चौथा एक बार आप चोरों से घेरे गये। वे आपको मारने पर उतारू ही थे कि इतने में मिलिटरी के कुछ सिपाही आ पहुँचे। उन्होंने चोरों को पकड़ लिया, परन्तु आपने चोरों को कतई सजा न होने दी। धन्य है आपके हृदय की विशालता।
1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
संक्षिप्त परिचय | |
जन्म: | विक्रम संवत १९७४ (२० नवम्बर १९१७) असोज शुक्ल ४ |
जन्म स्थान : | ग्राम श्याम पुरा जिला मुरेना (म.प्र.) |
जन्म का नाम | श्री नत्थी लाल जैन |
माता का नाम : | श्रीमती चिरोंजादेवी जैन |
पिता का नाम : | श्री छिददु लाल जैन |
ऐलक दीक्षा : | विक्रम संवत २०२५ (सन १९६८) चैत्र शुक्ल १३ |
दीक्षा का स्थान : | रेवाड़ी, हरियाणा |
मुनि दीक्षा : | विक्रम संवत २०२५ अगहन वदी १२ सन १९६८ |
मुनि दीक्षा का स्थान : | गाजियाबाद (उ.प्र.) |
मुनि दीक्षा गुरु : | आचार्य श्री १०८ विमल सागर जी महाराज (भिंड वाले) |
आचार्य पद : | ज्येष्ठ सुदी ५ विक्रम संवत २०३० १३ -४-१९७३ |
आचार्य पद का स्थान : | मुरेना (म.प्र.) |
समाधि मरण : | क्वार वदी १३ संवत २०५१ (३-१०-१९९४ ) |
समाधी स्थल : | सोनागिर |
आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज (छणी) परंपरा के पांचवे आचार्य श्री सुमति सागर जी का जन्म विक्रम संवत १९७४ (सन १९१७) असोज शुक्ल ४ को ग्राम श्याम पुर जिला मुरेना (म.प्र.)में हुआ था ।आपने ऐलाक दीक्षा विक्रम संवत २०२५ (सन १९६८) चैत्र शुक्ल १३ रेवाड़ी हरियाणा में ली एवं मुनि दीक्षा विक्रम संवत २०२५ अगहन वदी १२ सन १९६८ में गाजियाबाद (उ.प्र.) में ग्रहण करी । आचार्य सुमति सागर जी कठोर तपस्वी और आर्षमार्गानुयायी थे।आप्नेअनेक कष्टों और आपदायों को सहने के बाद दिग. दीक्षा धारण करी।आपके जीवन में अनेक उपसर्ग और चमत्कार हुए। पं. मक्खन लाल जी मुरेना जैसे विद्वानों का संसर्ग आपको मिला ।आप मासोपवासी कहे जाते है।आपके उपदेश से अनेक आर्षमार्गानुयायी ग्रंथो का प्रकाशन हुआ।सोनागिर स्थित त्यागीव्रती आश्रम आपकी कीर्ति पताका फेहरा रहा है। आपने शताधिक दीक्षाए अब तक प्रदान की थी।
परम पूज्य प्रातःस्मरणीय, धर्मदिवाकर,तपोनिधि, उपसर्गविजेता, योगीन्द्र चूडामणि, दिगम्बर जैनाचार्य श्री 108 सुमतिसागर जी महाराज जीवन-झांकी
सत्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम्।
माध्यस्थभा विपरतीवृत्ती, सदा ममात्मा विदधातु देव||
हर जीव के साथ जिन्हें मैत्रीभाव है, गुणीजनों के प्रति जिन्हें प्रेम है, दुःखी जीवों के प्रति जिनके हृदय में करुणा स्रोत बह रहा है, विपरीत वृत्ति वाले विरोधी जीवों के प्रति जिनकी माध्यस्थ भावना है|ऐसे माता जी का एवं पिताजी का परिचय
विक्रम संवत् 1974 आसोज के शुक्ल पक्ष का चौथा दिन। स्थान - श्यामपुरा, जिला मुरैना (म.प्र.)। वात्सल्यमूर्ति माँ चिरोंजादेवी एवं धर्मवत्सल पिता जी छिछूलाल जी के यहाँ अवतरित हुआ एक पुत्र-रत्न। वही रत्न आगे जाकर एक महान् मुनि आचार्य बनेगा, इसकी कल्पना उस समय क्या किसी ने की होगी?
आपके गृहस्थ जीवन का नाम नत्थीलाल जी। माँ चिरोंजीदेवी एवं पिताजी छिदूलाल जी ने आपके जीवन में उत्तमोत्तम संस्कारों की नींव डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। शील, संयम और सदाचार के पथ पर आरूढ़ आपको देखकर माँ-बाप मारे खुशी के झूम उठते थे।
आपके गृहस्थ जीवन की झलक आपकी शादी हुई थी, जब आप बारह साल की उम्र के थे। आपकी धर्म-पत्नी का नाम है रामश्रीदेवी। धर्मवत्सला रामश्रीदेवी वाकेय में भगवान की दुलारी ही हैं। संयम और त्याग की ओर उनका झुकाव शुरू से ही है। जिनकी होनहार अच्छी होती है, उन्हें ही संयम, त्याग, दया, करुणा आदि के भावों की जागृति रहती ही है।
आपके तीन भाई हैं : झून्नीलाल जी, बाबूलाल जी एवं रामस्वरूप जी। आपकी बहन है कलावती जी। इन चारों को भी जैनधर्म के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा है।
आपके भाई झुन्नीलाल जी भी वर्तमान युग के मुनिवर श्री 108 अजितसागर जी हैं। आपके दो पुत्र हैं, बारेलाल एवं भागचन्द जी । आपके दो पुत्रियाँ हैं, कपूरीबाई और शकुन्तलबाई। ये भी सुशील एवं गुणज्ञ है।
*आपके गृहस्थ जीवन की कुछ चिरस्मरणीय घटनाएँ:
आपकी शादी के पश्चात् की एक बात है।रामदुलारे नाम का डाकू था|वह आपको उठाकर ले गया, परन्तु आपमें उस समय भी भय का नामोनिशान तक नहीं था। आपकी आँखों में अश्रु की एक बूंद भी नहीं गिर पायी थी। चौदह दिनों के भीतर आप किसी न किसी तरह डाकुओं के गिरोह से अपने गाँव वापस आ पहुंचे थे।
प्रसंग दूसरा कुछ डाकू आये उन्होंने आपको पकड़ लिया। उन्होने आपकी छाती पर बंदूक की नोक रख दी। आपके गहने उतार दिये। उन डाकुओं ने भी माल बताने के लिए आपको मजबूर किया, परन्तु आपने निर्भीक होकर उत्तर दिया कि मैं कुछ नहीं जानता, पिताजी जानते होंगे। उस समय आपके पिताजी मकान की ऊपरी मंजिल पर सोये हुए थे। वे जाग उठे और परिस्थितिवश सोचकर ऊपर से नीचे कूदे । हल्ला हो गया। डाकू आपको छोड़कर भाग गये।प्रसंग तीसरा एक समय की बात है आप अपनी दुकान पर सो रहे थे। कोई एक विषैला जानवर आया। उसने आपको काटा। आप बेहोश अवश्य हो गये, परन्तु आपके प्राणों की कोई हानि नहीं हुई। सच है अगर पुण्य कर्म प्रबल है तो मुसीबत के समय भी एक बाल तक बांका नहीं होता।प्रसंग चौथा एक बार आप चोरों से घेरे गये। वे आपको मारने पर उतारू ही थे कि इतने में मिलिटरी के कुछ सिपाही आ पहुँचे। उन्होंने चोरों को पकड़ लिया, परन्तु आपने चोरों को कतई सजा न होने दी। धन्य है आपके हृदय की विशालता।
1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
परम पूज्य प्रातःस्मरणीय, धर्मदिवाकर,तपोनिधि, उपसर्गविजेता, योगीन्द्र चूडामणि, दिगम्बर जैनाचार्य श्री 108 सुमतिसागर जी महाराज जीवन-झांकी
सत्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम्।
माध्यस्थभा विपरतीवृत्ती, सदा ममात्मा विदधातु देव||
हर जीव के साथ जिन्हें मैत्रीभाव है, गुणीजनों के प्रति जिन्हें प्रेम है, दुःखी जीवों के प्रति जिनके हृदय में करुणा स्रोत बह रहा है, विपरीत वृत्ति वाले विरोधी जीवों के प्रति जिनकी माध्यस्थ भावना है|ऐसे माता जी का एवं पिताजी का परिचय
विक्रम संवत् 1974 आसोज के शुक्ल पक्ष का चौथा दिन। स्थान - श्यामपुरा, जिला मुरैना (म.प्र.)। वात्सल्यमूर्ति माँ चिरोंजादेवी एवं धर्मवत्सल पिता जी छिछूलाल जी के यहाँ अवतरित हुआ एक पुत्र-रत्न। वही रत्न आगे जाकर एक महान् मुनि आचार्य बनेगा, इसकी कल्पना उस समय क्या किसी ने की होगी?
आपके गृहस्थ जीवन का नाम नत्थीलाल जी। माँ चिरोंजीदेवी एवं पिताजी छिदूलाल जी ने आपके जीवन में उत्तमोत्तम संस्कारों की नींव डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। शील, संयम और सदाचार के पथ पर आरूढ़ आपको देखकर माँ-बाप मारे खुशी के झूम उठते थे।
आपके गृहस्थ जीवन की झलक आपकी शादी हुई थी, जब आप बारह साल की उम्र के थे। आपकी धर्म-पत्नी का नाम है रामश्रीदेवी। धर्मवत्सला रामश्रीदेवी वाकेय में भगवान की दुलारी ही हैं। संयम और त्याग की ओर उनका झुकाव शुरू से ही है। जिनकी होनहार अच्छी होती है, उन्हें ही संयम, त्याग, दया, करुणा आदि के भावों की जागृति रहती ही है।
आपके तीन भाई हैं : झून्नीलाल जी, बाबूलाल जी एवं रामस्वरूप जी। आपकी बहन है कलावती जी। इन चारों को भी जैनधर्म के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा है।
आपके भाई झुन्नीलाल जी भी वर्तमान युग के मुनिवर श्री 108 अजितसागर जी हैं। आपके दो पुत्र हैं, बारेलाल एवं भागचन्द जी । आपके दो पुत्रियाँ हैं, कपूरीबाई और शकुन्तलबाई। ये भी सुशील एवं गुणज्ञ है।
*आपके गृहस्थ जीवन की कुछ चिरस्मरणीय घटनाएँ:
आपकी शादी के पश्चात् की एक बात है।रामदुलारे नाम का डाकू था|वह आपको उठाकर ले गया, परन्तु आपमें उस समय भी भय का नामोनिशान तक नहीं था। आपकी आँखों में अश्रु की एक बूंद भी नहीं गिर पायी थी। चौदह दिनों के भीतर आप किसी न किसी तरह डाकुओं के गिरोह से अपने गाँव वापस आ पहुंचे थे।
प्रसंग दूसरा कुछ डाकू आये उन्होंने आपको पकड़ लिया। उन्होने आपकी छाती पर बंदूक की नोक रख दी। आपके गहने उतार दिये। उन डाकुओं ने भी माल बताने के लिए आपको मजबूर किया, परन्तु आपने निर्भीक होकर उत्तर दिया कि मैं कुछ नहीं जानता, पिताजी जानते होंगे। उस समय आपके पिताजी मकान की ऊपरी मंजिल पर सोये हुए थे। वे जाग उठे और परिस्थितिवश सोचकर ऊपर से नीचे कूदे । हल्ला हो गया। डाकू आपको छोड़कर भाग गये।प्रसंग तीसरा एक समय की बात है आप अपनी दुकान पर सो रहे थे। कोई एक विषैला जानवर आया। उसने आपको काटा। आप बेहोश अवश्य हो गये, परन्तु आपके प्राणों की कोई हानि नहीं हुई। सच है अगर पुण्य कर्म प्रबल है तो मुसीबत के समय भी एक बाल तक बांका नहीं होता।प्रसंग चौथा एक बार आप चोरों से घेरे गये। वे आपको मारने पर उतारू ही थे कि इतने में मिलिटरी के कुछ सिपाही आ पहुँचे। उन्होंने चोरों को पकड़ लिया, परन्तु आपने चोरों को कतई सजा न होने दी। धन्य है आपके हृदय की विशालता।
1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
Refrence by Smirti Granth
#SumatiSagarJiMaharaj1917
Refrence by Smirti Granth
आचार्य श्री १०८ सुमति सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ विमल सागर जी महाराज (भिण्ड) 1892 Aacharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj (Bhind) 1892
10.Munishri Kshamasagar ji
Nutan Chougule created Digjainwiki Hindi Page for Acharya on 30th June 2021
Manasi Shaha translated the content form Hindi to English on 4th-June-2022
SumatiSagarJiMaharaj1917
परम पूज्य प्रातःस्मरणीय, धर्मदिवाकर,तपोनिधि, उपसर्गविजेता, योगीन्द्र चूडामणि, दिगम्बर जैनाचार्य श्री 108 सुमतिसागर जी महाराज जीवन-झांकी
सत्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम्।
माध्यस्थभा विपरतीवृत्ती, सदा ममात्मा विदधातु देव||
हर जीव के साथ जिन्हें मैत्रीभाव है, गुणीजनों के प्रति जिन्हें प्रेम है, दुःखी जीवों के प्रति जिनके हृदय में करुणा स्रोत बह रहा है, विपरीत वृत्ति वाले विरोधी जीवों के प्रति जिनकी माध्यस्थ भावना है|ऐसे माता जी का एवं पिताजी का परिचय
विक्रम संवत् 1974 आसोज के शुक्ल पक्ष का चौथा दिन। स्थान - श्यामपुरा, जिला मुरैना (म.प्र.)। वात्सल्यमूर्ति माँ चिरोंजादेवी एवं धर्मवत्सल पिता जी छिछूलाल जी के यहाँ अवतरित हुआ एक पुत्र-रत्न। वही रत्न आगे जाकर एक महान् मुनि आचार्य बनेगा, इसकी कल्पना उस समय क्या किसी ने की होगी?
आपके गृहस्थ जीवन का नाम नत्थीलाल जी। माँ चिरोंजीदेवी एवं पिताजी छिदूलाल जी ने आपके जीवन में उत्तमोत्तम संस्कारों की नींव डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। शील, संयम और सदाचार के पथ पर आरूढ़ आपको देखकर माँ-बाप मारे खुशी के झूम उठते थे।
आपके गृहस्थ जीवन की झलक आपकी शादी हुई थी, जब आप बारह साल की उम्र के थे। आपकी धर्म-पत्नी का नाम है रामश्रीदेवी। धर्मवत्सला रामश्रीदेवी वाकेय में भगवान की दुलारी ही हैं। संयम और त्याग की ओर उनका झुकाव शुरू से ही है। जिनकी होनहार अच्छी होती है, उन्हें ही संयम, त्याग, दया, करुणा आदि के भावों की जागृति रहती ही है।
आपके तीन भाई हैं : झून्नीलाल जी, बाबूलाल जी एवं रामस्वरूप जी। आपकी बहन है कलावती जी। इन चारों को भी जैनधर्म के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा है।
आपके भाई झुन्नीलाल जी भी वर्तमान युग के मुनिवर श्री 108 अजितसागर जी हैं। आपके दो पुत्र हैं, बारेलाल एवं भागचन्द जी । आपके दो पुत्रियाँ हैं, कपूरीबाई और शकुन्तलबाई। ये भी सुशील एवं गुणज्ञ है।
*आपके गृहस्थ जीवन की कुछ चिरस्मरणीय घटनाएँ:
आपकी शादी के पश्चात् की एक बात है।रामदुलारे नाम का डाकू था|वह आपको उठाकर ले गया, परन्तु आपमें उस समय भी भय का नामोनिशान तक नहीं था। आपकी आँखों में अश्रु की एक बूंद भी नहीं गिर पायी थी। चौदह दिनों के भीतर आप किसी न किसी तरह डाकुओं के गिरोह से अपने गाँव वापस आ पहुंचे थे।
प्रसंग दूसरा कुछ डाकू आये उन्होंने आपको पकड़ लिया। उन्होने आपकी छाती पर बंदूक की नोक रख दी। आपके गहने उतार दिये। उन डाकुओं ने भी माल बताने के लिए आपको मजबूर किया, परन्तु आपने निर्भीक होकर उत्तर दिया कि मैं कुछ नहीं जानता, पिताजी जानते होंगे। उस समय आपके पिताजी मकान की ऊपरी मंजिल पर सोये हुए थे। वे जाग उठे और परिस्थितिवश सोचकर ऊपर से नीचे कूदे । हल्ला हो गया। डाकू आपको छोड़कर भाग गये।प्रसंग तीसरा एक समय की बात है आप अपनी दुकान पर सो रहे थे। कोई एक विषैला जानवर आया। उसने आपको काटा। आप बेहोश अवश्य हो गये, परन्तु आपके प्राणों की कोई हानि नहीं हुई। सच है अगर पुण्य कर्म प्रबल है तो मुसीबत के समय भी एक बाल तक बांका नहीं होता।प्रसंग चौथा एक बार आप चोरों से घेरे गये। वे आपको मारने पर उतारू ही थे कि इतने में मिलिटरी के कुछ सिपाही आ पहुँचे। उन्होंने चोरों को पकड़ लिया, परन्तु आपने चोरों को कतई सजा न होने दी। धन्य है आपके हृदय की विशालता।
1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
Brief Introduction | |
Birth : | Aasoj Shukl 4 Vikram Saamvat 1948(1-1-1974) (Sat. 20-11-1917) |
Birth Place: | Gram-Shayampur,District - Murena M.P. |
Birth Name : | Shri Natthi Laal Jain |
Mothers Name : | Shrimati Chironjaa Devi Jain |
Father’s Name : | Shri Chiddu laalJain |
Elak Diksha : | Chaitra Shukl 13Vikram Samvat 2025,(1968) |
Place of Elak Diksha : | Gram-Revadi ,Haryana |
Muni Diksha : | Aghan vadi 12 Vikram Samvat 2025,13 -4-1973 |
Place of Muni Diksha : | Gajiyabaad (UP) |
Diksha Guru : | Aacharya Vimalsagar ji Bhind |
Acharya Pada: | Vikram Samvat 2030(13-4-1973) |
Place of Acharya Pada: | Murena |
Samadhi : | Vikram Samvat 2051,(3 Oct 1994) |
Samadhi Place : | Sonagir,Mp |
The fifth Acharya of the Acharya Shri Shanti Sagar Ji Maharaj (Chhani) tradition, Shri Sumati Sagar ji was born in Vikram Samvat 1974 (A year 1917) Asoj Shukla 4 in village Shyampur district Morena (M.P.). He took Ailak Diksha on Vikram Samvat 2025 (A year 1968) in Chaitra Shukla 13 Rewari Haryana and received Muni Diksha on Vikram Samvat 2025 Aghan Vadi 12 in 1968 in Ghaziabad (U.P.). Acharya Sumati Sagar ji was a strict ascetic and a great guide. There have been many blessings and miracles in his life. He got the contact of scholars like Pt. Makhan Lal Ji Morena. He is called Masopvasi. Based on his teachings, many books were published. The Tyagivrati Ashram at Sonagir is hoisting his fame. He has given more than a hundred initiations so far.
Param Pujya Prathamsmarniya, Dharmadivakar, Taponidhi, Upsargvijeta, Yogindra Chudamani, Digambar Jainacharya Shri 108 Sumatisagar Ji Maharaj’s life table
satveshu maitree gunishu pramodan, klishteshu jeeveshu krpaaparatvam.
maadhyasthabha viparateevrttee, sada mamaatma vidadhaatu dev
With every living being who has friendship, towards the virtuous, who has love, towards the sad souls in whose heart the source of compassion is flowing, towards the opposing beings with opposite attitudes who have a mediation feeling he used to be compassionate.
Vikram Samvat 1974 Fourth day of Shukla Paksha of Asoj. Location - Shyampura, District Morena (M.P.). Vatsalyamurti mother Chironjadevi and father Chichulal ji, a son-ratna incarnated at Dharmavatsal. The same gem would go ahead and become a great sage Acharya, would anyone have imagined it at that time?
The name of his householder's life was Nathilal ji. Mother Chironjidevi and father Chhidulal ji had left no stone unturned to lay the foundation of the best values in his life. Seeing him mounted on the path of modesty, restraint and virtue, his parents used to get very happy.
Glimpses of his household life - He was married when he was twelve years old. HIs wife's name is Rama Sridevi. Dharmavatsala Ramsridevi is the only caress of God in the matter. His inclination towards restraint and sacrifice is from the very beginning. Those who have good talent, only they are awakened to the feelings of restraint, sacrifice, kindness, compassion.
He had three brothers: Jhunilal ji, Babulal ji and Ramswaroop ji. HIs sister is Kalavati ji. All four also had strong faith in Jainism. HIs brother Jhunilal ji is also the Munivar of the present era, Shri 108 Ajitsagar ji. He has two sons, Barelal and Bhagchand ji.
Some memorable incidents from your household life:
There is one thing after his marriage. There was a dacoit named Ramdulare. He took him away, but even at that time there was not even a trace of fear in him. Not even a drop of tear could fall in his eyes. Within fourteen days he had somehow come back to his village from a gang of bandits.
Context Another few robbers came, they caught him. They put the point of the gun on his chest. Take off your jewellery. Those bandits also forced him to tell the goods, but he boldly replied that - I do not know anything, father must have known. At that time his father was sleeping on the top floor of the house. He woke up and jumped from above thinking of the circumstance. There was an outcry. The robbers ran away leaving you. Context Third, once upon a time, he was sleeping in your shop. Some venomous animal bit him, but there was no loss of life. It is true that if virtuous deeds are strong, then even in times of trouble, not a single hair would be held back. Context Fourth, once he was surrounded by thieves. They were just about to kill him when some military soldiers arrived. They caught the thieves, but he never allowed the thieves to be punished. Blessed is the vastness of your heart.
1 Prasamamurti Acharya Shantisagar Chhani Memorial Book
10.Munishri Kshamasagar ji
Acharya Shri 108 Sumati Sagar Ji Maharaj
आचार्य श्री १०८ विमल सागर जी महाराज (भिण्ड) 1892 Aacharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj (Bhind) 1892
आचार्य श्री १०८ विमल सागर जी महाराज (भिण्ड) 1892 Aacharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj (Bhind) 1892
Manasi Shaha translated the content form Hindi to English on 4th-June-2022
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