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#VimalSagarJi1915(Ankalikar)MahaveerKirtiJi
Acharya shri was Born in Kosma Grama of Jalesar town under Etah district of Uttar Pradesh, India, in the year 1915 on the auspicious occassion of Ashwin Krishna Saptami.
Mr. Nemichandra's father Mr. Bihari Lal and mother Katareebai never thought that their son would one day become the Saint of India, Shiromani. The boy will brighten the caste Padavati Parwal and the fame of the dynasty brightly.
Acharya Shri was decorated with various auspicious signs. Padmachakra in right foot, Shrivatsa in heart, various mole in body, Kanchan Varna, etc. prove his greatness.
1.Aacharya Shri 108 Aadisagar Ji Maharaj 1809
2.Aacharya Shri 108 Mahaveer Kirti Ji Maharaj 1910
3.Aacharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj 1915
4.Aacharya Shri 108 Sanmati Sagar Ji Maharaj 1938
5.Aacharya Shri 108 Sunil Sagar Ji Ji Maharaj 1977
Acharya,Muni Dikshit by Acharya Shri Vimal Sagar Ji Maharaj
Acharya
1.Acharya Shri 108 Sanmati Sagar Ji (Ankalikar)
2.Acharya Shri 108 Virag Sagar Ji
3.Acharya Sri Bharata Sagar Ji Maharaj
4.Acharya Shri 108 ParshvSagar Ji
5.Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj
6.Acharya Shri 108 Nemi Sagar Ji Maharaj
7.Acharya Shri 108 Niranjan Sagar Ji Maharaj
8.Acharya Shri 108 Chidanand Sagar Ji Maharaj
9.Acharya Shri 108 Chaitya Sagar Ji Maharaj
Upadhyay
Upadhyay Shri 108 Urjayant Sagar J Maharaj 1977
जन्म तिथि: अश्विनी वदी ७
जन्म दिनांक: सन 1915
दिन : शुक्रवार
जन्म स्थान : कोसमा (उत्तरप्रदेश)
जन्म का नाम : नेमिचंद्र जैन
माता का नाम : जयमाला देवी
पिता का नाम : बिहारी लालजी जैन
शिक्षा : शास्त्री
क्षुल्लक दीक्षा तिथि: आषाढ़ वदी पंचमी सं. 2007
क्षुल्लक दीक्षा दिनांक: 28 जून सन 1950
क्षुल्लक दीक्षा स्थल : बावनगजा (मध्य प्रदेश)
क्षुल्लक नाम: क्षुल्लक श्री 105 ऋषभ सागर जी महाराज
मुनि दीक्षा तिथि: फाल्गुन सुदी १३ सं. 2009
मुनि दीक्षा दिनांक: 21 मार्च सन 1952
मुनि दीक्षा स्थल : सोनागिरि (मध्य प्रदेश)
मुनि दीक्षा गुरु : आचार्य श्री 108 महावीरकीर्ति महाराज
मुनि दीक्षा नाम: मुनि श्री 108 विमलसागरजी महाराज
आचार्य पद तिथि: सं. 2018
आचार्य पद दिनांक: सन 1960
आचार्य पद स्थल : टूंडला (उत्तरप्रदेश)
आचार्य पद प्रदाता : आचार्य श्री 108 महावीरकीर्ति महाराज
समाधी तिथि: पौष वदी 12
समाधी दिनांक: 29 दिसम्बर सन 1994
समाधी स्थल : सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र
भारतवर्ष की पुण्यधरा पर अवतरण के लिए व्याकुल भारत के उत्तर प्रदेश एटा जनपद के अंतर्गत जलेसर कस्बे के कोसमा ग्रमा में जनमे श्री नेमीचन्द्र के पिता श्री बिहारीलाल और माता कटोरीबाई ने कब सोचा था कि उनका पुत्र एक दिन भारत का संत शिरोमणि बनकर जन्म स्थान कोसमा, कुल, जाति पद्यावती परवाल और वंश की कीर्ति को उज्जवलता से निमज्जित करेगा। सं. 1973 के आश्विन कृष्णा सप्तमी का वह शुभ दिन था, बालक नेमीचन्द ने जन्म लिया। मां की ममता बालक को छह माह से अधिक अपना वात्सल्य न दे सकी मां के वियोग के बाद पिता एवं बूआ दुर्गादेवी ने पालन पोषण किया।
बालक नेमीचन्द ने प्रारम्भिक शिक्षा गांव की पाठशाला में पूर्ण की। तत्पश्चात गोपालदास वरैया दि. जैन सिद्धान्त विद्यालय, मोरेना से शास्त्री परीक्षा उतीर्ण की। उनकी इस रूलता का श्रेय था उस भक्ति को जो उनकी णमोकार मंत्र के प्रति थी। उत्तर लिखने से पूर्व कापी के शीर्ष पर ण्मोकार मंत्र लिखा जाता। शास्त्री परीक्षा उतीर्ण करने के बाद प्रधानाचार्य के रूप में पं. नेमीचन्द विद्यादान करने लगे।
सम्मेद शिखर जी की वन्दना - एक समय आप सिद्धभूमि श्री सम्मदेशिखर की वन्दनार्थ बिना ब्रेक की साईकिल पर दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर चल दिये और रास्ते की विभिन्न बाधाओं को झेलते हुए तीर्थ बन्दना सफलता पूर्वक कर महान पूण्य का संचय किया।
तीर्थवन्दना का साक्षात फल - तीर्थ वन्दना से वापिस लौटने पर साइकिल खराब हो गई। कोई दुकान दिखाई नहीं दी तो प्रमोकार मंत्र का जाप करते हुए जंगल में चले। अब तक उनहें एक दाढ़ी वाल बाबा और साईकिल की दुकान दिखी। पंडित जी के निवेदन पर उसने साइकिल सुधार दी। पंडित जी कुछ आगे बढ़े कि घ्यान आया कि पंप तो दुकान पर ही रह गया है तो वापस लौटे। परन्तु आश्चर्य! पंडित जी आश्चर्य चकित रह गये क्योंकि वहां कोई दुकान नहीं थी और न दाढ़ी वाला बाबा, केवल पंप यथा स्थान रखा था। आप ए बार श्री गिरनार जी की वन्दना को भी गये।
वैराग्य और दीक्षायें - आप जब जयपुर की 108 चन्द्रसागर जी महाराज के दर्शनार्थ गये तो वहां शूद्ध जल त्याग का ब्रत लिया और वहीं चार माह अध्ययन कार्य किया। कई संस्थाओं में अध्ययन कार्य करने के पश्चात् कुचामन रोड स्थित श्री नेमिनाथ विद्यालय के प्रधानाधयापक चुने गये। वहां 108 श्री वीरसागर जी का संघ पधारा और आपने द्वितीय प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये। ब्रतों में क्रमशः वृद्धि होती गई और आपने अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत लेकर सातवीं प्रतिमा धारण की।
सं. 2007 प्रथम आषाढ़ वदी पंचमी को बड़वानी सिद्धक्षेत्र पर श्री 108 आचार्य शांतिसागर जी की आज्ञा से आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी महाराज ने आपको क्षुल्लक दीक्षा दी और आप क्षुल्लक श्रषभसागर कहलाने लगे। माघ सुदी 13 सं. 2009 में धर्मपुरी (निवास) पहुंचकर ऐलक दीक्षा ली और सुधर्मसागर के नवीन नाम से संस्कारित हुए। पुनः सोनागिर क्षेत्र पर फागुन सुदी 13 सं. 2009 को निर्गन्थ दीक्षा ली और आपका नाम श्री विमलसागर रखा गया। मुनि दीक्षा के उपरान्त आपने 8 वर्ष कठोर तपस्या और गहन स्वाध्याय किया तथा उत्तर दक्षिण भारत का भ्रमण किया। कुछ समय उपरान्त आपने अपना निज का संघ बनाया तथा अगहर वदी 2 सं. 2018 को ढूंडला (आगरा) में पं.माणिकचंद जी धर्मरत्न एव विशाल जन समूह के बीच आपको आचार्यत्व पद दिया गया।
उपसर्ग, अतिशय एवं धर्मप्रभावना - आपका सम्पूर्ण जीवन उपसर्गों और घटनाओं का रहा है। जब आप अतिशय क्षेत्र बन्धाजी (टीकमगढ़) पहुंचे तो वहां के सूखे पड़े पेड़ कुएं में शांतिधारा कराकर श्री आदि प्रभु का प्रक्षाल जल डलवा दिया और कुएं में जल ही जल हो गया। मिर्जापुर रास्ते में सिंह और विशालकाय अजगर का उपर्स हुआ। जौनपुर के रास्ते में एक रेलवे चौकी पर जहां रात्रि विश्राम करना पड़ा एक भयानक सर्प आपके सामने तीन घंटा पड़ा रहा।
शुभ चिन्ह - आचार्य श्री विभिन्न शुभ चिन्हों से विभूषित थे। दाहिने पैर में पदमचक्र, हृदय में श्रीवत्स, शरीर में विभिन्न तिल, कांचन वर्ण, आदि उनकी महानता सिद्ध करते हैं।
पूर्व नाम-श्री नेमीचंद जी
पिता-श्री बिहारी लाल जी
माता-श्रीमती कटोरी देवी जी
जन्म-आश्विन कृष्ण 7 सप्तमी 27 सितम्बर सन 1916
जन्म स्थान-कोसमा ऐटा उत्तर प्रदेश
शिक्षा-मुरैना mp शास्त्री हिंदी संस्कृत प्राकृत
यज्ञोपवीत संस्कार-प्रथमाचार्य चारित्र चक्र वति आचार्य श्री शांति सागर जी
शुद्ध जल का नियम-आचार्य कल्प श्री चंद्र सागर जी से
व्रत प्रतिमा-आचार्य श्री वीर सागर जी से 2 प्रतिमा और 7 प्रतिमा के नियम
क्षुल्लक दीक्षा-आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी से श्री बावनगजा जी सिद्ध क्षेत्र बड़वानी mp में28 जून 1950
क्षुल्लक नाम-श्री वृषभ सागर जी आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी से आषाढ़ सुदी 5 विक्रम संवत 2007 सन 1950
ऐलक दीक्षा-धर्मपुरी में आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी से नाम श्री सुधर्म सागर जी 23 फरवरी 1951 माध सुदी 12 विक्रम संवत 2008 सन 1951
मुनि दीक्षा-सिद्ध क्षेत्र श्री सोनागिर जी आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी ने दी दिनांक 21 मार्च 1952 फागुन सुदी 13 विक्रम संवत 2009 सन 1952
आचार्य पद-टूडला Uttar Pradesh सन 1960 विक्रम संवत 2017 चातुर्मास
जब आप माता के गर्भ में थे आ आपकी माताजी की श्री सोनागिर सिद्ध क्षेत्र दर्शन करने की भावना हुई
और परिवार के साथ दर्शन किये तथा बालक का प्रथम मुंडन भी श्री सोनागिर क्षेत्र पर कराया
यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि आपकी मुनि दीक्षा भी सोनागिर क्षेत्र में हुई तथा पुनः केशलोचन सोनागिर क्षेत्र में हुए परिवार का एक उल्लेखनीय प्रसंग है कि आचार्य श्री कि गृहस्थ अवस्था की दादी की जब शादी हुई तब परिवार कोसमा के पास तखावन ग्राम में रहते थे वहाँ जैन मंदिर नही था दादी का जिन दर्शन बगैर भोजन का नियम था 3 दिन हो गए नवीन दुल्हन ने भोजन नही किया सभी चिंतित थे क्या किया जावे दादी का पुण्य कहे या व्रत की महिमा एक आदमी बैलगाड़ी में 1008 श्री पार्श्व नाथ भगवान की प्रतिमा विक्रय के लिए लाया कीमत 11 ग्यारह रुपये उस जमाने मे 11 रुपये भी बड़ी कीमत रखते थे दादी ने 11 रुपये देकर प्रतिमा ली पूर्ण भक्ति भाव से पूजा आराधना कर 3 दिन बाद पारणा हुआ वह प्रतिमा आज भी उसी ग्राम तखावन में विराजित है
आचार्य श्री विमल सागर जी एवम आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी सन 1964 में आचार्य श्री विमल सागर जी श्री बावनगजा जी विराजित थे साथ ही दीक्षा गुरु आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी भी विराजित थे तब गृहस्थ अवस्था के 14 वर्षीय श्री यशवंत जी ने आचार्य श्री विमल सागर जी के दर्शन किये तब निमित्त ज्ञानी आचार्य श्री विमल सागर जी ने आशीर्वाद दिया धर्म मार्ग पर आगे बढ़ो तथा आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी ने आशीर्वाद दिया कि वैराग्य मार्ग ही हितकर है किसे पता था कि 14 वर्षीय श्री यशवंत जी आगे चलकर वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी बनेंगे यही नही 18 वर्षीय श्री यशवंत जी ने आचार्य श्री विमल सागर जी से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत भी अंगीकार किया
दीक्षा मुनि। 42 | उपवास 1234 चारित्र शुद्वि 1234 चारित्र शुद्वि |
#VimalSagarJi1915(Ankalikar)MahaveerKirtiJi
आचार्य श्री १०८ विमलसागरजी महाराज (अंकलिकर)
Acharya Shri 108 Mahaveerkirtiji 1910
आचार्य श्री १०८ महावीरकीर्तिजी १९१० Acharya Shri 108 Mahaveerkirtiji 1910
चातुर्मास क्र सन स्थान
1 1950 बड़वानी क्षु
2 1951 इंदौर ऐलक
3 1952 भोपाल
4 1953 गुनोर मुनि
5 1954 ईसरी
6 1955 पावापुरी
7 1956 मिर्जापुर
8 1957 इंदौर
9 1958 फलटण
10 1959 पन्ना
आचार्य पद 1960
11 1960 टूंडला
12 1961 मेरठ
13 1962 ईसरी
14 1963 बाराबंकी
15 1964 बावनगजा जी
16 1965 कोल्हापुर
17 1966 सोलापुर
18 1967 ईडर
19 1968 सुजानगढ़
20 1969 देहली
21 1970 सम्मेद शिखर जी
22 1971 राजगृही
23 1972 शिखर जी
24 1973 शिखर जी
25 1974 शिखर जी
26 1975 राजगृही
27 1976 सम्मेद शिखर जी
28 1977 टिकैत नगर
29 1978 सोनागिर
30 1979 सोनागिर
31 1980 नीरा
32 1981 श्रवण बेलगोला
33 1982 मुम्बई
34 1983 औरंगाबाद
35 1984 गिरनार जी
36 1985 लोहारिया
37 1986 फिरोजाबाद
38 1987 जयपुर
39 1988 सोनागिर
40 1989 सोनागिर
41 1990 सोनागिर
42 1991 सोनागिर
43 1992 सम्मेद शिखर जी
44 1993 सम्मेद शिखर जी
45 1994 सम्मेद शिखरजी
Acharya
1.Acharya Shri 108 Sanmati Sagar Ji (Ankalikar)
2.Acharya Shri 108 Virag Sagar Ji
3.Acharya Sri Bharata Sagar Ji Maharaj
4.Acharya Shri 108 ParshvSagar Ji
5.Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj
6.Acharya Shri 108 Nemi Sagar Ji Maharaj
7.Acharya Shri 108 Niranjan Sagar Ji Maharaj
8.Acharya Shri 108 Chidanand Sagar Ji Maharaj
9.Acharya Shri 108 Chaitya Sagar Ji Maharaj
English updated by Aditi Jain 2-December 2020
MahaveerkirtiJi1910AadisagarjiAnklikar
Acharya shri was Born in Kosma Grama of Jalesar town under Etah district of Uttar Pradesh, India, in the year 1915 on the auspicious occassion of Ashwin Krishna Saptami.
Mr. Nemichandra's father Mr. Bihari Lal and mother Katareebai never thought that their son would one day become the Saint of India, Shiromani. The boy will brighten the caste Padavati Parwal and the fame of the dynasty brightly.
Acharya Shri was decorated with various auspicious signs. Padmachakra in right foot, Shrivatsa in heart, various mole in body, Kanchan Varna, etc. prove his greatness.
1.Aacharya Shri 108 Aadisagar Ji Maharaj 1809
2.Aacharya Shri 108 Mahaveer Kirti Ji Maharaj 1910
3.Aacharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj 1915
4.Aacharya Shri 108 Sanmati Sagar Ji Maharaj 1938
5.Aacharya Shri 108 Sunil Sagar Ji Ji Maharaj 1977
Acharya,Muni Dikshit by Acharya Shri Vimal Sagar Ji Maharaj
Acharya
1.Acharya Shri 108 Sanmati Sagar Ji (Ankalikar)
2.Acharya Shri 108 Virag Sagar Ji
3.Acharya Sri Bharata Sagar Ji Maharaj
4.Acharya Shri 108 ParshvSagar Ji
5.Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj
6.Acharya Shri 108 Nemi Sagar Ji Maharaj
7.Acharya Shri 108 Niranjan Sagar Ji Maharaj
8.Acharya Shri 108 Chidanand Sagar Ji Maharaj
9.Acharya Shri 108 Chaitya Sagar Ji Maharaj
Upadhyay
Upadhyay Shri 108 Urjayant Sagar J Maharaj 1977
Acharya shri was born in 1915 Kosma Grama of Jalesar town under Etah district of Uttar Pradesh, India.It was the auspicious day of Ashwin Krishna Saptami of 1915, the child Nemichand was born. His mother passed away within 6 months of his birth, after the mother's separation, father and aunt Durgadevi nurtured
Mr. Nemichandra's father Mr. Bihari Lal and mother Katareebai never thought that their son would one day become the Saint of India, Shiromani. The boy will brighten the caste Padavati Parwal and the fame of the dynasty brightly.
The boy Nemichand completed his primary education in the village school. After that he gave Gopaldas Varaiya . Also Passed Shastri examination from Jain Siddhanta Vidyalaya, Morena. He had a great devotion to Namokar Mantra. Before writing the answer, Namokar Mantra would be written on the top of the copy. After passing the Shastri examination, Pt Nemichand started teaching as Principal.
Vandana of Sammed Shikhar ji - Once upon a time he walked on the cycle of Siddhbhumi Shri Sammed shikharji without any break, on the strength of strong will and, after facing various obstacles along the way, he was successful in making a pilgrimage and accumulated great wealth.
Incident of Teerthvandana - Returning from Teertha Vandana, the cycle broke.He could’nt see any shops , he went into the forest chanting the mantra. Until he saw a bearded baba and bicycle shop. On the request of Pandit ji, the man improved the cycle. Pandit ji went ahead and then he went back to check that if the pump is left at the shop . But surprise! Pandit ji was surprised because there was no shop and no bearded baba, only pump was kept in place.
He also went to Mr. Girnar's Vandana once.
Vairagya and Deeksha - When he went to see 108 Chandrasagar Ji Maharaj of Jaipur, he took the sacrifice of pure water and worked there for four months. After doing study work in many institutions, he was elected Principal of Shri Neminath Vidyalaya situated at Kuchaman Road. There 108 union of Shri Veerasagar passed and he took the second statue fast. Braats continued to grow and he took the seventh statue by taking Akhand Brahmacharya fast.
In the year 2007 , On the first Ashadi Vadi Panchami at Barwani Siddhakshetra, by the order of Shri 108 Acharya Shanti Sagar ji, Acharya Shri Mahavir Kirti Ji Maharaj he was given ablative initiation and came to be known as “Eklaskh Shrashabasagar”. In 2009 Dharmapuri (Niwas) reached Elak Diksha and was cremated with the new name of Sudharmasagar. In Sonagir area again Nirganth took initiation on 2009 and was named Shri Vimalasagar. After sage initiation, he did 8 years of rigorous penance and deep self-study and toured North South India. After some time he formed his own union . In 2018,he was given the position of Acharyaatva in Dhundla (Agra) among Pt. Manikchand ji Dharmaratna and the huge masses.
Challenges - His entire life has been about prefixes and events. When he reached the extreme area of Bandhaji (Tikamgarh), there was a dry well at a place and when Shri Adi Prabhu put his bleached water then the dry water in the well became water . On the way to Mirzapur, there was a lion and a giant dragon. A terrible snake lay three hours in front of him at a railway checkpoint en route to Jaunpur, where he had to rest for the night.
Auspicious sign - Acharya Shri was decorated with various auspicious signs. Padmachakra in right foot, Shrivatsa in heart, various mole in body, Kanchan Varna, etc. prove his greatness.
Acharya
1.Acharya Shri 108 Sanmati Sagar Ji (Ankalikar)
2.Acharya Shri 108 Virag Sagar Ji
3.Acharya Sri Bharata Sagar Ji Maharaj
4.Acharya Shri 108 ParshvSagar Ji
5.Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj
6.Acharya Shri 108 Nemi Sagar Ji Maharaj
7.Acharya Shri 108 Niranjan Sagar Ji Maharaj
8.Acharya Shri 108 Chidanand Sagar Ji Maharaj
9.Acharya Shri 108 Chaitya Sagar Ji Maharaj
Acharya Shri 108 VimalSagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ महावीरकीर्तिजी १९१० Acharya Shri 108 Mahaveerkirtiji 1910
आचार्य श्री १०८ महावीरकीर्तिजी १९१० Acharya Shri 108 Mahaveerkirtiji 1910
Acharya Shri 108 Mahaveerkirtiji 1910
चातुर्मास क्र सन स्थान
1 1950 बड़वानी क्षु
2 1951 इंदौर ऐलक
3 1952 भोपाल
4 1953 गुनोर मुनि
5 1954 ईसरी
6 1955 पावापुरी
7 1956 मिर्जापुर
8 1957 इंदौर
9 1958 फलटण
10 1959 पन्ना
आचार्य पद 1960
11 1960 टूंडला
12 1961 मेरठ
13 1962 ईसरी
14 1963 बाराबंकी
15 1964 बावनगजा जी
16 1965 कोल्हापुर
17 1966 सोलापुर
18 1967 ईडर
19 1968 सुजानगढ़
20 1969 देहली
21 1970 सम्मेद शिखर जी
22 1971 राजगृही
23 1972 शिखर जी
24 1973 शिखर जी
25 1974 शिखर जी
26 1975 राजगृही
27 1976 सम्मेद शिखर जी
28 1977 टिकैत नगर
29 1978 सोनागिर
30 1979 सोनागिर
31 1980 नीरा
32 1981 श्रवण बेलगोला
33 1982 मुम्बई
34 1983 औरंगाबाद
35 1984 गिरनार जी
36 1985 लोहारिया
37 1986 फिरोजाबाद
38 1987 जयपुर
39 1988 सोनागिर
40 1989 सोनागिर
41 1990 सोनागिर
42 1991 सोनागिर
43 1992 सम्मेद शिखर जी
44 1993 सम्मेद शिखर जी
45 1994 सम्मेद शिखरजी
Ankalikar Lineage
English updated by Aditi Jain 2-December 2020
#VimalSagarJi1915(Ankalikar)MahaveerKirtiJi
MahaveerkirtiJi1910AadisagarjiAnklikar
MahaveerkirtiJi1910AadisagarjiAnklikar
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VimalSagarJi1915(Ankalikar)MahaveerKirtiJi
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