हैशटैग
#Bhaskarnandi16ThCentury
तत्त्वार्थ के टीकाकारोंमें भास्करनन्दिका अपना स्थान है । टीकाको अन्तिम प्रशस्तिमें बताया है
'तस्यासीत् सुविशुखदृष्टिविभवः सिवान्तपारङ्गतः,
शिष्यः श्रीजिनचन्द्रनामकलितश्चारित्रभषान्वितः ।
शिष्यो भास्करनन्दिनाम विमुधस्तस्याभवत् तत्ववित्,
तेनाकारि सुखादिबोधविष्या तत्त्वार्थवृत्तिः स्फुटम् ॥४॥
अर्थात् भास्करनन्दिके गुरुका नाम जिनचन्द्र है। ये जिनचन्द्रसिद्धान्तके पारगामी तथा चारित्रसे भूषित पे । ग्रन्यके पुष्पिकावाक्योंमें महासिद्धान्त जिन चन्द्रभट्टारक नाम दिया गया है । प्रशस्तिमें जिनचन्द्रभट्टारकके गुरुका नाम सर्वसाधु लिखा है। बताया गया है कि सर्व साधुने संन्यासपूर्वक मरण किया है । __ तत्वार्थवृत्तिके अध्ययनसे स्पष्ट है कि भास्करनन्दिके गुरुका नाम जिनचन्द्र और जिनचन्द्र के गरुका नाम सर्वसाधु था । यहाँ यह विचारणीय है कि जिनचन्द्र कौन हैं और इनका समय क्या है ? इतिहासके अवलोकनसे जिन चन्द्र नामके चार-पाँच आचार्यों का परिज्ञान प्राप्त होता है। एक जिनचन्द्र चन्द्रनन्दिके शिष्य थे, जिनका उल्लेख कन्नड़ कवि पोनने अपने 'शान्तिपुराण' में किया है । भास्करनन्दिके गुरु जिनचन्द्र सर्वसाधुके शिष्य है अत: पोन द्वारा उल्लिखित जिनचन्द्र भास्करनन्दिके गुरु नहीं हो सकते हैं। दूसरे जिनचन्द्र सिद्धान्तसारके रचयिता हैं। इनकी गुरुपरम्परा ज्ञात नहीं है। अत: इनका सम्बन्ध भी भास्करनन्दिके साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। तृतीय जिनचन्द्र धर्मसंग्रहश्रावकाचारके रचयिता मेघावीके गुरु और पाण्डवपुराणके रचयिता शुभचन्द्राचार्यके शिष्य थे । "तिलोयषणति को प्रशस्ति में इनका उल्लेख निम्न प्रकार बाया है
तत्पट्टाम्बुधिसच्चन्द्रः शुभचंद्रः सतां वरः ।
पंचायणदावाग्मिः
सपनि सारा तदीयपट्टाम्बरभानुमाली क्षमादिनानागुणरत्नशाली ।
भट्टारकः जिनचन्द्रनामा सैद्धान्तिकानां भुवि योऽस्ति सीमा ।।१७।।
स्थाद्वादामृतपानप्ततमनसो यस्यातमोत्सर्वतः,
कोतिभूमितले सशाधवला सुज्ञानदानात्सतः ।
चार्वाकादिमतप्रवादितिमिरोष्णांशोभुनीन्द्रप्रभोः,
सूरिश्रीजिनचन्द्रकस्य जयतात्संघो हि तस्यानघः' ॥१८॥
इस प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि जिनचन्द्र वि सं १९१५ में विद्यमान थे। अतएव शुभचन्द्र के शिष्य जिनचन्द्र भास्करनन्दिके गुरु सम्भव नहीं हैं |
चौथे जिनचन्द्र श्रवणबेलगोलके अभिलेखसंख्या ५५ में द्वितीय माघन्दिके आचार्यके पश्चात् उल्लिखित हैं । पण्डित ए७ शान्तिराज शास्त्रीने सुखवीध वत्तिको प्रस्तावनामें इन्हीं जिमचन्द्रको भास्करनन्दिके गुरु होनेको सम्भावना व्यक्त की है। बताया है कि माधनन्दि आचार्य संवत् १२५० में जीवित थे । अतः इनके उत्तरकालमें होनेवाले जिनचन्द्रका समय संवत् १२७५ सम्भव है।
श्रवणबेलगोलाके उक्त अभिलेखका सम्भावित समय शक संवत् १०२२ (वि० सं० ११५७) है। उसमें उल्लिखित माघनन्दिका समय संवत् १२५० कैसे हो सकता है। कर्नाटककविरितेके अनुसार एक माघनन्दिका समय ई० सन् १२६० है। वे माघनन्दिश्रावकाचारके कर्ता हैं और उन्होंने शास्त्रसारसमु च्चयपर कन्नड़में टीका लिखी है। पण्डित शान्तिराजजीका अभिप्राय सम्भवतः उक्त माघनन्दिसे ही है, पर अभिलेखमें प्रतिपादित माधन्दि इनसे भिन्न हैं। अत: जिनचन्द्रका समय पण्डित शान्तिराजजी द्वारा निर्धारित सम्भव नहीं है। पुष्ट प्रमाणके अभावमें श्रवणबेलगोलाके अभिलेखमें निर्दिष्ट जिन चन्द्रको भास्करनन्दिका गुरु नहीं माना जा सकता । मभिलेखमें जिनचंद्रको व्याकरणमें पूज्यपादके समान, तकमें अकलंकके समान और काश्यप्रतिभामें भारविक समान बसलाया है, पर भास्करनन्दिके गुरु महासैद्धान्तिक है । इनके पाण्डित्यको जानकारी सुखबोधवृत्तिसे ही प्राप्त की जा सकती है।
भास्करनन्दि पूज्यपाद, अकलंक और विद्यानंदके पश्चात् हुए हैं। यह उनकी टीकाके मंगलश्लोक में आगत 'विद्यानन्दा:' पदसे स्पष्ट है | भास्करनन्दिने यशस्तिलक, गोम्मटसार, संस्कृतपञ्चसंग्रह, और बसुनन्दित्रावकाचारके
१. जैन सिद्धान्तभास्कर आरा, किरण २, भाग ११, पृ० १०९ ।
पद उद्धत किये हैं। बसनन्दिका समय विक्रमकी १२वीं शताब्दी है। अतएवं भास्करनन्दिका समय इसके पश्चात् होना चाहिये। हमारा अनुमान है कि इन भास्करनन्दिका समय १४वीं शताब्दीका अन्तिम पाद सम्भव हैं। भास्कर नन्दिने अपनी बृत्ति पूज्यपादकी सर्वार्थसिद्धिके अनुकरणपर लिखी है । इसमें विभिन्न आचार्योकं पद्य भी उद्धृत किये हैं और टोकाकी शैली १३ची, १४वीं शताब्दीको होने से इनके समयके सम्बन्धमें उक्त अनुमान यथार्थ प्रतीत होता है। थो पं० मिलापचन्द्र कटारियाने तृतीय प्रशस्तिपद्यमें आये हुए 'शुभगति' पाठके स्थानपर 'शुभमति' पाठ मानकर भास्करनन्दिके प्रगुरु शुभचन्द्र मुनिको माना है । इन शुभचन्द्रका समय वि० सं० १४५०-१५०७ है। इनके पट्टपर जिनचन्द्र आसीन हुए और उनका समय वि० सं० १५०७-१५७१ है। इन जिनचन्द्रने मड़ासामें जीवराज पापड़ीवालको वि० सं० १५४८ में प्रतिष्ठा करायी थी। थावकाचारके कर्ता मेधावी भी इनके शिष्य थे। अतः इस आधारपर भास्करनंदिका समय वि० सं०१६वीं शती है।
भास्करनन्दिकी एक रचना उपलब्ध है-'तत्वार्थसूत्रवृत्ति'-सुखसुबोधटीका । इसका प्रकाशन मैसूर विश्वविद्यालयने किया है । टीकाकारने पूज्यपादके साथ अकलंक और विद्यानन्द के ग्रंथोंसे भी प्रभाव अजित किया है। प्रथम सूत्रकी
त्ति लिखते हुए भास्करनन्दिने अन्य वादियों के द्वारा माने गये मोक्ष के उपायों का समालोचन करते हुए सोमदेवरचित 'यस्तिल कचम्पू के छठे आश्वाससे बहुत कुछ अंश ग्रहण किया है। तीसरे अध्यायके १०वें सत्रकी वृत्तिमें अकलंक देवके तत्वार्थबार्तिकसे विदेहक्षेत्रसम्बन्धी वर्णनको ग्रहण किया है। इस वृत्तिकी प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं
१. विषयस्पष्टीकरणके साथ नवीन सिद्धान्तोंकी स्थापना ।
२. पूर्वाचार्यों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तोंको आत्मसात् कर उनका अपने रूपमें प्रस्तुतीकरण ।
३. ग्रंथान्तरोंके उद्धरणोंका प्रस्तुतीकरण ।
४. मूल मान्यताओंका विस्तार
५. पूज्यपादकी शैलीका अनुसरण करनेपर भी मौलिकताका समावेश ।
इनको एक अन्य रचना ध्यानस्तव भी है, जो रामसेनके तत्त्वानुशासनके आधारपर रचित है।
गुरु | आचार्य श्री जिनचंद्र |
शिष्य | आचार्य श्री भास्करनन्दी |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#Bhaskarnandi16ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री भास्करनंदी 16वीं शताब्दी
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 21-May- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 21-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
तत्त्वार्थ के टीकाकारोंमें भास्करनन्दिका अपना स्थान है । टीकाको अन्तिम प्रशस्तिमें बताया है
'तस्यासीत् सुविशुखदृष्टिविभवः सिवान्तपारङ्गतः,
शिष्यः श्रीजिनचन्द्रनामकलितश्चारित्रभषान्वितः ।
शिष्यो भास्करनन्दिनाम विमुधस्तस्याभवत् तत्ववित्,
तेनाकारि सुखादिबोधविष्या तत्त्वार्थवृत्तिः स्फुटम् ॥४॥
अर्थात् भास्करनन्दिके गुरुका नाम जिनचन्द्र है। ये जिनचन्द्रसिद्धान्तके पारगामी तथा चारित्रसे भूषित पे । ग्रन्यके पुष्पिकावाक्योंमें महासिद्धान्त जिन चन्द्रभट्टारक नाम दिया गया है । प्रशस्तिमें जिनचन्द्रभट्टारकके गुरुका नाम सर्वसाधु लिखा है। बताया गया है कि सर्व साधुने संन्यासपूर्वक मरण किया है । __ तत्वार्थवृत्तिके अध्ययनसे स्पष्ट है कि भास्करनन्दिके गुरुका नाम जिनचन्द्र और जिनचन्द्र के गरुका नाम सर्वसाधु था । यहाँ यह विचारणीय है कि जिनचन्द्र कौन हैं और इनका समय क्या है ? इतिहासके अवलोकनसे जिन चन्द्र नामके चार-पाँच आचार्यों का परिज्ञान प्राप्त होता है। एक जिनचन्द्र चन्द्रनन्दिके शिष्य थे, जिनका उल्लेख कन्नड़ कवि पोनने अपने 'शान्तिपुराण' में किया है । भास्करनन्दिके गुरु जिनचन्द्र सर्वसाधुके शिष्य है अत: पोन द्वारा उल्लिखित जिनचन्द्र भास्करनन्दिके गुरु नहीं हो सकते हैं। दूसरे जिनचन्द्र सिद्धान्तसारके रचयिता हैं। इनकी गुरुपरम्परा ज्ञात नहीं है। अत: इनका सम्बन्ध भी भास्करनन्दिके साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। तृतीय जिनचन्द्र धर्मसंग्रहश्रावकाचारके रचयिता मेघावीके गुरु और पाण्डवपुराणके रचयिता शुभचन्द्राचार्यके शिष्य थे । "तिलोयषणति को प्रशस्ति में इनका उल्लेख निम्न प्रकार बाया है
तत्पट्टाम्बुधिसच्चन्द्रः शुभचंद्रः सतां वरः ।
पंचायणदावाग्मिः
सपनि सारा तदीयपट्टाम्बरभानुमाली क्षमादिनानागुणरत्नशाली ।
भट्टारकः जिनचन्द्रनामा सैद्धान्तिकानां भुवि योऽस्ति सीमा ।।१७।।
स्थाद्वादामृतपानप्ततमनसो यस्यातमोत्सर्वतः,
कोतिभूमितले सशाधवला सुज्ञानदानात्सतः ।
चार्वाकादिमतप्रवादितिमिरोष्णांशोभुनीन्द्रप्रभोः,
सूरिश्रीजिनचन्द्रकस्य जयतात्संघो हि तस्यानघः' ॥१८॥
इस प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि जिनचन्द्र वि सं १९१५ में विद्यमान थे। अतएव शुभचन्द्र के शिष्य जिनचन्द्र भास्करनन्दिके गुरु सम्भव नहीं हैं |
चौथे जिनचन्द्र श्रवणबेलगोलके अभिलेखसंख्या ५५ में द्वितीय माघन्दिके आचार्यके पश्चात् उल्लिखित हैं । पण्डित ए७ शान्तिराज शास्त्रीने सुखवीध वत्तिको प्रस्तावनामें इन्हीं जिमचन्द्रको भास्करनन्दिके गुरु होनेको सम्भावना व्यक्त की है। बताया है कि माधनन्दि आचार्य संवत् १२५० में जीवित थे । अतः इनके उत्तरकालमें होनेवाले जिनचन्द्रका समय संवत् १२७५ सम्भव है।
श्रवणबेलगोलाके उक्त अभिलेखका सम्भावित समय शक संवत् १०२२ (वि० सं० ११५७) है। उसमें उल्लिखित माघनन्दिका समय संवत् १२५० कैसे हो सकता है। कर्नाटककविरितेके अनुसार एक माघनन्दिका समय ई० सन् १२६० है। वे माघनन्दिश्रावकाचारके कर्ता हैं और उन्होंने शास्त्रसारसमु च्चयपर कन्नड़में टीका लिखी है। पण्डित शान्तिराजजीका अभिप्राय सम्भवतः उक्त माघनन्दिसे ही है, पर अभिलेखमें प्रतिपादित माधन्दि इनसे भिन्न हैं। अत: जिनचन्द्रका समय पण्डित शान्तिराजजी द्वारा निर्धारित सम्भव नहीं है। पुष्ट प्रमाणके अभावमें श्रवणबेलगोलाके अभिलेखमें निर्दिष्ट जिन चन्द्रको भास्करनन्दिका गुरु नहीं माना जा सकता । मभिलेखमें जिनचंद्रको व्याकरणमें पूज्यपादके समान, तकमें अकलंकके समान और काश्यप्रतिभामें भारविक समान बसलाया है, पर भास्करनन्दिके गुरु महासैद्धान्तिक है । इनके पाण्डित्यको जानकारी सुखबोधवृत्तिसे ही प्राप्त की जा सकती है।
भास्करनन्दि पूज्यपाद, अकलंक और विद्यानंदके पश्चात् हुए हैं। यह उनकी टीकाके मंगलश्लोक में आगत 'विद्यानन्दा:' पदसे स्पष्ट है | भास्करनन्दिने यशस्तिलक, गोम्मटसार, संस्कृतपञ्चसंग्रह, और बसुनन्दित्रावकाचारके
१. जैन सिद्धान्तभास्कर आरा, किरण २, भाग ११, पृ० १०९ ।
पद उद्धत किये हैं। बसनन्दिका समय विक्रमकी १२वीं शताब्दी है। अतएवं भास्करनन्दिका समय इसके पश्चात् होना चाहिये। हमारा अनुमान है कि इन भास्करनन्दिका समय १४वीं शताब्दीका अन्तिम पाद सम्भव हैं। भास्कर नन्दिने अपनी बृत्ति पूज्यपादकी सर्वार्थसिद्धिके अनुकरणपर लिखी है । इसमें विभिन्न आचार्योकं पद्य भी उद्धृत किये हैं और टोकाकी शैली १३ची, १४वीं शताब्दीको होने से इनके समयके सम्बन्धमें उक्त अनुमान यथार्थ प्रतीत होता है। थो पं० मिलापचन्द्र कटारियाने तृतीय प्रशस्तिपद्यमें आये हुए 'शुभगति' पाठके स्थानपर 'शुभमति' पाठ मानकर भास्करनन्दिके प्रगुरु शुभचन्द्र मुनिको माना है । इन शुभचन्द्रका समय वि० सं० १४५०-१५०७ है। इनके पट्टपर जिनचन्द्र आसीन हुए और उनका समय वि० सं० १५०७-१५७१ है। इन जिनचन्द्रने मड़ासामें जीवराज पापड़ीवालको वि० सं० १५४८ में प्रतिष्ठा करायी थी। थावकाचारके कर्ता मेधावी भी इनके शिष्य थे। अतः इस आधारपर भास्करनंदिका समय वि० सं०१६वीं शती है।
भास्करनन्दिकी एक रचना उपलब्ध है-'तत्वार्थसूत्रवृत्ति'-सुखसुबोधटीका । इसका प्रकाशन मैसूर विश्वविद्यालयने किया है । टीकाकारने पूज्यपादके साथ अकलंक और विद्यानन्द के ग्रंथोंसे भी प्रभाव अजित किया है। प्रथम सूत्रकी
त्ति लिखते हुए भास्करनन्दिने अन्य वादियों के द्वारा माने गये मोक्ष के उपायों का समालोचन करते हुए सोमदेवरचित 'यस्तिल कचम्पू के छठे आश्वाससे बहुत कुछ अंश ग्रहण किया है। तीसरे अध्यायके १०वें सत्रकी वृत्तिमें अकलंक देवके तत्वार्थबार्तिकसे विदेहक्षेत्रसम्बन्धी वर्णनको ग्रहण किया है। इस वृत्तिकी प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं
१. विषयस्पष्टीकरणके साथ नवीन सिद्धान्तोंकी स्थापना ।
२. पूर्वाचार्यों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तोंको आत्मसात् कर उनका अपने रूपमें प्रस्तुतीकरण ।
३. ग्रंथान्तरोंके उद्धरणोंका प्रस्तुतीकरण ।
४. मूल मान्यताओंका विस्तार
५. पूज्यपादकी शैलीका अनुसरण करनेपर भी मौलिकताका समावेश ।
इनको एक अन्य रचना ध्यानस्तव भी है, जो रामसेनके तत्त्वानुशासनके आधारपर रचित है।
गुरु | आचार्य श्री जिनचंद्र |
शिष्य | आचार्य श्री भास्करनन्दी |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Aacharya Shri Bhaskarnandi 16 Th Century
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 21-May- 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#Bhaskarnandi16ThCentury
15000
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