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#BhattarakChandrakirtiPrachin
ये काष्ठासंघ नन्दितटगच्छके भट्टारक विद्याभूषणके प्रशिष्य और भट्टा रक श्रीभूषणके शिष्य एवं पट्टधर थे। ये ईद्धरकी गद्दीके भट्टारक थे और ईडरकी गद्दीके पट्टस्थान उस समय सूरत, डूंगरपुर, सोजित्रा, झेर और कल्लोल आदि प्रधान नगर थे। पार्श्वनाथपुराणकी प्रशस्तिमें चन्द्रकीर्तिने अपना परिचय अंकित किया है। यों तो नन्दीश्वरपूजा, ज्येष्ठन्जिनबरपूजा और सरस्वतीपूजामें भी इनका परिचय उपलब्ध होता है। यहाँ पाश्वनाथ पुराणको प्रशस्ति उपस्थित की जाती है
काष्ठासंघे गन्छनंदीतटीयः श्रीमद्विद्याभूषणास्यश्च सूरिः ।
आसीलपटे तस्य कामांतकारी विद्यापात्रं दिव्यचारित्रधारी ।।
पदग्रतो नैति गुरुगुरुत्वं श्लाघ्यं न गच्छत्युशनोपि बुद्धया ।
मारत्यपि नैति माहात्म्यमुग्रं श्रीभूषण: सुरिवरः स पायात् ।।
१. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ६८७ ।
२. जैन साहित्य और इतिहासके अन्तर्गत साम्प्रदायिक विद्वेषका एक उदाहरण, प्रथम
संस्करण, पृ. ३४१, ३४४ ।
भट टारक चन्द्रकीर्ति किस स्थानके पट्टधर थे, इसका निर्णय करना कठिन है । पर इतना निश्चित है कि ये ईडर शाखाके भट्टारक थे।
श्रीभुषणके पश्चात् चन्द्रकीर्तिभट्टारक हए। इन्होंने संवत् १६५४ में देव गिरि पर पाश्वनाथ'पुराणकी रचना की। वि० सं० १६८१ में इन्होंने एक पद्मावतीकी मूर्ति स्थापित की थी। चन्द्रकीर्तिने दक्षिणकी यात्रा करते समय कावेरीके तीर पर नरसिंह पट्टनमें कृष्णभट्टको बाद में पराजित किया । इस समय चारकोर्ति भट्टारक भी उपस्थित थे । चिनिने चन्द्रकीर्तिकी पर्याप्त प्रशंसा की है । इस प्रशंसासे अवगत होता है कि १७वीं शतीमें चन्द्रकोर्ति बहुत ही लब्धप्रतिष्ठ और यशस्वी भट्टारक थे। लिखा है
दक्षिणमें राजत वादिवांकुश चंद्रसुकीर्ति ये चिद्घनरौ । __
दिगंबरमें यह सोभित वादिजु मानत पंडित चिद्घन री ॥
चन्द्रकीर्तिने पाश्वनाथपुराण, वृषभदेवपुराण, पाश्वनाथपूजा, नन्दीश्वर पूजा, ज्येजिन वसूजा, दोशफारमपूजा, सरस्वतीपूजा, जिनचौबीसी, पाण्डवपुराण और गुरुपूजा ये रचनाएँ लिखी हैं। पार्षपुराण १५ सोंमें विभक्त है। इसकी श्लोक संख्या २७१५ है । वृषभदेवपुराणमें तीर्थकर वृषभ देवकी कथा २१ सर्गों में वर्णित है। अन्य रचनाएँ भाषा, भाव और विचारकी दृष्टि से साधारण है।
गुरु | आचार्य श्री भट्टारक श्रीभूषण |
शिष्य | आचार्य श्री भट्टारक चन्द्रकीर्ति |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#BhattarakChandrakirtiPrachin
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री भट्टारक चन्द्रकीर्ति (प्राचीन)
आचार्य श्री भट्टारक श्रीभूषण Aacharya Shri Bhattarak Shribhushan
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 11-June- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 11-June- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
ये काष्ठासंघ नन्दितटगच्छके भट्टारक विद्याभूषणके प्रशिष्य और भट्टा रक श्रीभूषणके शिष्य एवं पट्टधर थे। ये ईद्धरकी गद्दीके भट्टारक थे और ईडरकी गद्दीके पट्टस्थान उस समय सूरत, डूंगरपुर, सोजित्रा, झेर और कल्लोल आदि प्रधान नगर थे। पार्श्वनाथपुराणकी प्रशस्तिमें चन्द्रकीर्तिने अपना परिचय अंकित किया है। यों तो नन्दीश्वरपूजा, ज्येष्ठन्जिनबरपूजा और सरस्वतीपूजामें भी इनका परिचय उपलब्ध होता है। यहाँ पाश्वनाथ पुराणको प्रशस्ति उपस्थित की जाती है
काष्ठासंघे गन्छनंदीतटीयः श्रीमद्विद्याभूषणास्यश्च सूरिः ।
आसीलपटे तस्य कामांतकारी विद्यापात्रं दिव्यचारित्रधारी ।।
पदग्रतो नैति गुरुगुरुत्वं श्लाघ्यं न गच्छत्युशनोपि बुद्धया ।
मारत्यपि नैति माहात्म्यमुग्रं श्रीभूषण: सुरिवरः स पायात् ।।
१. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ६८७ ।
२. जैन साहित्य और इतिहासके अन्तर्गत साम्प्रदायिक विद्वेषका एक उदाहरण, प्रथम
संस्करण, पृ. ३४१, ३४४ ।
भट टारक चन्द्रकीर्ति किस स्थानके पट्टधर थे, इसका निर्णय करना कठिन है । पर इतना निश्चित है कि ये ईडर शाखाके भट्टारक थे।
श्रीभुषणके पश्चात् चन्द्रकीर्तिभट्टारक हए। इन्होंने संवत् १६५४ में देव गिरि पर पाश्वनाथ'पुराणकी रचना की। वि० सं० १६८१ में इन्होंने एक पद्मावतीकी मूर्ति स्थापित की थी। चन्द्रकीर्तिने दक्षिणकी यात्रा करते समय कावेरीके तीर पर नरसिंह पट्टनमें कृष्णभट्टको बाद में पराजित किया । इस समय चारकोर्ति भट्टारक भी उपस्थित थे । चिनिने चन्द्रकीर्तिकी पर्याप्त प्रशंसा की है । इस प्रशंसासे अवगत होता है कि १७वीं शतीमें चन्द्रकोर्ति बहुत ही लब्धप्रतिष्ठ और यशस्वी भट्टारक थे। लिखा है
दक्षिणमें राजत वादिवांकुश चंद्रसुकीर्ति ये चिद्घनरौ । __
दिगंबरमें यह सोभित वादिजु मानत पंडित चिद्घन री ॥
चन्द्रकीर्तिने पाश्वनाथपुराण, वृषभदेवपुराण, पाश्वनाथपूजा, नन्दीश्वर पूजा, ज्येजिन वसूजा, दोशफारमपूजा, सरस्वतीपूजा, जिनचौबीसी, पाण्डवपुराण और गुरुपूजा ये रचनाएँ लिखी हैं। पार्षपुराण १५ सोंमें विभक्त है। इसकी श्लोक संख्या २७१५ है । वृषभदेवपुराणमें तीर्थकर वृषभ देवकी कथा २१ सर्गों में वर्णित है। अन्य रचनाएँ भाषा, भाव और विचारकी दृष्टि से साधारण है।
गुरु | आचार्य श्री भट्टारक श्रीभूषण |
शिष्य | आचार्य श्री भट्टारक चन्द्रकीर्ति |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Aacharya Shri Bhattarak Chandrakirti (Prachin)
आचार्य श्री भट्टारक श्रीभूषण Aacharya Shri Bhattarak Shribhushan
आचार्य श्री भट्टारक श्रीभूषण Aacharya Shri Bhattarak Shribhushan
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 11-June- 2022
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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