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#BhattarakLalitkirti19ThCentury
भट्टारक ललितकीर्ति काष्ठासंघ माथुरगच्छ और पुष्करगणके भट्टारक जगतकीर्ति के शिष्य हैं। ये दिल्लीको भट्टारकीय गद्दीके पट्टधर थे। ये बड़े विद्वान और वक्ता थे । मन्त्र तंन्त्र आदि कार्यों में भी निपुण थे । भट्टारक ललित कीर्ति के समयमें वि सं० १८६१ में फतेहपुरमें दशलक्षणव्रतका उद्यापन हुआ था । इस अवसर पर निमित्त दशलक्षण यन्त्र पर अंकित अभिलेखसे इनका परिचय प्राप्त होता है । अभिलेख निम्नप्रकार है--
"सं० १८६१ शक १७२६ मिती वैशाख सुदी ३ शनिबार श्रीकाष्ठासंघे माथुरगच्छे ..." मा देवेन्द्रकीर्ति तत्पट्टे भ० जगतकीर्ति तत्पट्टे भ० ललितकीर्ति सदाम्नाये अग्रोतकान्वये गर्गगोत्रे साइजी जठमलजी तत् भार्या कृषा श्रीबृहत् दशलक्षणयन्त्र करापित उद्यापितं फतेहपुरमध्ये जतीहरजीमल श्रीरस्तु सेखावत लक्षमणसिंहजी राज्ये"।
वि०सं० १८८१में पमोसा में एक मन्दिरका निर्माण हुआ है । इन्होंने वि०सं० १८८५में महापुराणकी टीका भी लिखी है।
भट्टारक ललितकीर्ति अत्यन्त प्रभावक थे। इन्होंने दिल्लीके बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजीसे ३२ फरमान और फिरोजशाह तुगलकसे ३२ उपाधियाँ प्राप्त की थी । भट्टारक ललितकीर्ति दिल्लीसे कभी-कभी फतेहपुर जाया करते थे और वहाँ महीनों ठहरते थे | वहाँ उनके शिष्योंकी संख्या बहुत थी ।
ललितकीर्ति ने महापुराणकी टीका तीन खण्डों में समाप्त की है। प्रथम खण्डमें ४२ पर्व है और द्वितीय खण्डमें ४३से ४७वें पर्व तक की टीका है। इस
१. मट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ६१५ ॥
द्वितीय खण्डको उन्होंने वि०सं० १८८५में पूर्ण किया है। इसके पश्चात् ललित
कीर्ति ने तृतीयखण्डमें उत्तरपुराणकी टीका रची है।
ललितकीर्तिके नामसे अनेक रचनाएं उपलब्ध हैं। पर यह नहीं कहा जा सकता कि ये सभी रचनाएँ इन्हीं ललितकीर्ति की हैं या दूसरे ललितकीर्ति की।
इन ललितकीर्ति का समय वि० सं० की १९ वी शती निश्चित है। श्री पण्डित परमानन्दजी शास्त्रीने ललितकीतिके नामसे निम्नलिखित २४ रचनाओंका निर्देश किया है
१. सिद्धचक्रपाठ,
२. नन्दीश्वरव्रत कथा,
३. अनन्तव्रत कथा,
४. सुगन्वदशमी कथा,
५. षोडशकारण कथा,
६, रत्नत्रयव्रत कथा,
७. आकाशपञ्चमी कथा,
८. रोहिणीव्रत कथा।
९. धनकलश कथा,
१०. निर्दोषसप्तमी कथा,
११. लब्धिविधान कथा,
१२. पुरन्दरबिधान कथा,
१३. कर्मनिर्जरचतुर्दशीव्रत कथा,
१४. मुकुटसप्तमी कथा,
१५. दशलाक्षणीव्रत कथा,
१६. पुष्पान्जलिव्रत कथा,
१७. ज्येष्ठाजिनवर कथा,
१८. अक्षयनिधिदशमी व्रत कथा,
१९. निःशल्याष्टमी, विधान कथा,
२०. रक्षाविधान कथा,
२१. श्रुतस्कन्ध कथा,
२२. कञ्जिकाव्रत कथा,
२३. सप्तपरमस्थान कथा,
२४. षट्ररस कथा।
परम्परापोषक आचार्योंके अन्तर्गत भट्टारकोंकी गणना की जाती है।
इन्होंने मूर्ति-मन्दिरप्रतिष्ठा, पुराण, कथा, पूजा-पाठ, स्तोत्र आदि की रचना एवं मन्त्र-तन्त्रों का चमत्कार दिखलाकर जैन संस्कृति की रक्षा की है । भट्टारकों ने अपने कला-कौशल, काव्यप्रतिभा, आध्यात्मिकता आदिके कारण तत्कालीन शासकोको भी प्रभावित किया है। ये ई सन्की ९वी , १०वी शत्ती से ही जैन साहित्य और संस्कृति का प्रचार करते रहे हैं। हमने यहाँ प्रमुख साहित्यसेवी भट्टारकोंका ही परिचय प्रस्तुत किया है, क्योंकि इनके द्वारा तीर्थंकर महावीरकी परम्परा सुरक्षित रह सकी है।
गुरु | आचार्य श्री भट्टारक जगतकीर्ति |
शिष्य | आचार्य श्री भट्टारक ललितकीर्ति |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#BhattarakLalitkirti19ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री भट्टारक ललितकीर्ति 19वीं शताब्दी
आचार्य श्री भट्टारक जगतकीर्ति Aacharya Shri Bhattarak Jagatkirti
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 15-June- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 15-June- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
भट्टारक ललितकीर्ति काष्ठासंघ माथुरगच्छ और पुष्करगणके भट्टारक जगतकीर्ति के शिष्य हैं। ये दिल्लीको भट्टारकीय गद्दीके पट्टधर थे। ये बड़े विद्वान और वक्ता थे । मन्त्र तंन्त्र आदि कार्यों में भी निपुण थे । भट्टारक ललित कीर्ति के समयमें वि सं० १८६१ में फतेहपुरमें दशलक्षणव्रतका उद्यापन हुआ था । इस अवसर पर निमित्त दशलक्षण यन्त्र पर अंकित अभिलेखसे इनका परिचय प्राप्त होता है । अभिलेख निम्नप्रकार है--
"सं० १८६१ शक १७२६ मिती वैशाख सुदी ३ शनिबार श्रीकाष्ठासंघे माथुरगच्छे ..." मा देवेन्द्रकीर्ति तत्पट्टे भ० जगतकीर्ति तत्पट्टे भ० ललितकीर्ति सदाम्नाये अग्रोतकान्वये गर्गगोत्रे साइजी जठमलजी तत् भार्या कृषा श्रीबृहत् दशलक्षणयन्त्र करापित उद्यापितं फतेहपुरमध्ये जतीहरजीमल श्रीरस्तु सेखावत लक्षमणसिंहजी राज्ये"।
वि०सं० १८८१में पमोसा में एक मन्दिरका निर्माण हुआ है । इन्होंने वि०सं० १८८५में महापुराणकी टीका भी लिखी है।
भट्टारक ललितकीर्ति अत्यन्त प्रभावक थे। इन्होंने दिल्लीके बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजीसे ३२ फरमान और फिरोजशाह तुगलकसे ३२ उपाधियाँ प्राप्त की थी । भट्टारक ललितकीर्ति दिल्लीसे कभी-कभी फतेहपुर जाया करते थे और वहाँ महीनों ठहरते थे | वहाँ उनके शिष्योंकी संख्या बहुत थी ।
ललितकीर्ति ने महापुराणकी टीका तीन खण्डों में समाप्त की है। प्रथम खण्डमें ४२ पर्व है और द्वितीय खण्डमें ४३से ४७वें पर्व तक की टीका है। इस
१. मट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ६१५ ॥
द्वितीय खण्डको उन्होंने वि०सं० १८८५में पूर्ण किया है। इसके पश्चात् ललित
कीर्ति ने तृतीयखण्डमें उत्तरपुराणकी टीका रची है।
ललितकीर्तिके नामसे अनेक रचनाएं उपलब्ध हैं। पर यह नहीं कहा जा सकता कि ये सभी रचनाएँ इन्हीं ललितकीर्ति की हैं या दूसरे ललितकीर्ति की।
इन ललितकीर्ति का समय वि० सं० की १९ वी शती निश्चित है। श्री पण्डित परमानन्दजी शास्त्रीने ललितकीतिके नामसे निम्नलिखित २४ रचनाओंका निर्देश किया है
१. सिद्धचक्रपाठ,
२. नन्दीश्वरव्रत कथा,
३. अनन्तव्रत कथा,
४. सुगन्वदशमी कथा,
५. षोडशकारण कथा,
६, रत्नत्रयव्रत कथा,
७. आकाशपञ्चमी कथा,
८. रोहिणीव्रत कथा।
९. धनकलश कथा,
१०. निर्दोषसप्तमी कथा,
११. लब्धिविधान कथा,
१२. पुरन्दरबिधान कथा,
१३. कर्मनिर्जरचतुर्दशीव्रत कथा,
१४. मुकुटसप्तमी कथा,
१५. दशलाक्षणीव्रत कथा,
१६. पुष्पान्जलिव्रत कथा,
१७. ज्येष्ठाजिनवर कथा,
१८. अक्षयनिधिदशमी व्रत कथा,
१९. निःशल्याष्टमी, विधान कथा,
२०. रक्षाविधान कथा,
२१. श्रुतस्कन्ध कथा,
२२. कञ्जिकाव्रत कथा,
२३. सप्तपरमस्थान कथा,
२४. षट्ररस कथा।
परम्परापोषक आचार्योंके अन्तर्गत भट्टारकोंकी गणना की जाती है।
इन्होंने मूर्ति-मन्दिरप्रतिष्ठा, पुराण, कथा, पूजा-पाठ, स्तोत्र आदि की रचना एवं मन्त्र-तन्त्रों का चमत्कार दिखलाकर जैन संस्कृति की रक्षा की है । भट्टारकों ने अपने कला-कौशल, काव्यप्रतिभा, आध्यात्मिकता आदिके कारण तत्कालीन शासकोको भी प्रभावित किया है। ये ई सन्की ९वी , १०वी शत्ती से ही जैन साहित्य और संस्कृति का प्रचार करते रहे हैं। हमने यहाँ प्रमुख साहित्यसेवी भट्टारकोंका ही परिचय प्रस्तुत किया है, क्योंकि इनके द्वारा तीर्थंकर महावीरकी परम्परा सुरक्षित रह सकी है।
गुरु | आचार्य श्री भट्टारक जगतकीर्ति |
शिष्य | आचार्य श्री भट्टारक ललितकीर्ति |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Aacharya Shri Bhattarak Lalitkirti 19th Century
आचार्य श्री भट्टारक जगतकीर्ति Aacharya Shri Bhattarak Jagatkirti
आचार्य श्री भट्टारक जगतकीर्ति Aacharya Shri Bhattarak Jagatkirti
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 15-June- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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BhattarakLalitkirti19ThCentury
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