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#BhattarakMallibhushanPrachin
विद्यानन्दिके पट्ट शिष्योंमें मल्लिभूषणको गणना की जाती है। इन्होंने वि० संवत् १५४४ की वंशाख शुक्ला तृतीयाको खम्भातमें एक निषौदिका बनवायी थो। इस निषोदिकापर जो अभिलेख प्राप्त हुआ है, उससे आयिका रश्नश्री, कल्याणी और जिनमतीका परिचय प्राप्त होता है। यह अभिलेख आर्यिकाको मूर्तिपर उत्कीर्ण है __"सं० १५४४ वर्षे वैशाख सुदी ३ सोमे श्रीमूलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कार गणे भ० श्रीविद्यानन्दिदेवाः तत्पट्टे भ. श्रीमल्लीभूषण श्रीस्तंभतीर्थे हुँबड शालेय श्रेष्ठी चांपा भार्या रूपिणी तत्पुत्री श्रीअर्जिका रलसिरी क्षुल्लिका जिनमती श्रीविद्यानंदीदीक्षिता आजिका कल्याणसिरी तत्त्वल्ली अग्रोतका ज्ञातो साहदेवा भार्या नारिंगदे पुत्री जिनमती नस्सही कारापिता प्रणति श्रेयार्थम् । ___मल्लिभूषणने गोपाचलकी यात्रा की थी और गयासुद्दीनके द्वारा सम्मान प्राप्त किया था । मल्लिभूषण पद्मावतीके उपासक थे ! पट्टाबली में इनके वादी होनेका भी निर्देश मिलता है । मल्लिभूषणने धर्मोपदेश, शास्त्रार्थ आदिके द्वारा धर्मको प्रभावना की थी । बताया है
१. सुदर्शनचरित, डा हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, सन् १९७०, श्लोक
४।१०६ ।
२. भट्टारक सम्प्रदाय, शोलापुर, लेखांक ४५८ ।।
"तत्पट्टोदयाचलबालभास्कर-प्रवरपरवादिगंजयथकेसरि-मंडपगिरिमंत्र वादसमस्याप्तचन्द्रपूर्णविकटवादि-गोपाचलदुर्गमेघाकर्षकविकजन-सस्यामस वाणिवर्षणसुरेंद्रनागेंद्रमृगेंदादिसेवितचरणारविदानां ग्यासदीन सभामध्यप्राप्त सन्मानपावत्युपासकानां श्रीमल्लिभूषणभट्टारकवर्याणाम् ॥"
स्पष्ट है कि मल्लिभूषण अपने समयके प्रसिद्ध आचार्य और धर्मप्रचारक थे । इनके पट्टशिष्य लक्ष्मीचन्द्र हुए। इसी भट्टारकशाखामें एक अन्य विद्या नन्दि भी हुए हैं। इन्होंने वि० सं० १८०५में सूरतमें एक आदिनाथमूर्ति स्थापित की थी।
गुरु | आचार्य श्री भट्टारक विद्यानंदी |
शिष्य | आचार्य श्री भट्टारक मल्लिभूषण |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#BhattarakMallibhushanPrachin
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री भट्टारक मल्लिभूषण (प्राचीन)
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 31-May- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 31-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
विद्यानन्दिके पट्ट शिष्योंमें मल्लिभूषणको गणना की जाती है। इन्होंने वि० संवत् १५४४ की वंशाख शुक्ला तृतीयाको खम्भातमें एक निषौदिका बनवायी थो। इस निषोदिकापर जो अभिलेख प्राप्त हुआ है, उससे आयिका रश्नश्री, कल्याणी और जिनमतीका परिचय प्राप्त होता है। यह अभिलेख आर्यिकाको मूर्तिपर उत्कीर्ण है __"सं० १५४४ वर्षे वैशाख सुदी ३ सोमे श्रीमूलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कार गणे भ० श्रीविद्यानन्दिदेवाः तत्पट्टे भ. श्रीमल्लीभूषण श्रीस्तंभतीर्थे हुँबड शालेय श्रेष्ठी चांपा भार्या रूपिणी तत्पुत्री श्रीअर्जिका रलसिरी क्षुल्लिका जिनमती श्रीविद्यानंदीदीक्षिता आजिका कल्याणसिरी तत्त्वल्ली अग्रोतका ज्ञातो साहदेवा भार्या नारिंगदे पुत्री जिनमती नस्सही कारापिता प्रणति श्रेयार्थम् । ___मल्लिभूषणने गोपाचलकी यात्रा की थी और गयासुद्दीनके द्वारा सम्मान प्राप्त किया था । मल्लिभूषण पद्मावतीके उपासक थे ! पट्टाबली में इनके वादी होनेका भी निर्देश मिलता है । मल्लिभूषणने धर्मोपदेश, शास्त्रार्थ आदिके द्वारा धर्मको प्रभावना की थी । बताया है
१. सुदर्शनचरित, डा हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, सन् १९७०, श्लोक
४।१०६ ।
२. भट्टारक सम्प्रदाय, शोलापुर, लेखांक ४५८ ।।
"तत्पट्टोदयाचलबालभास्कर-प्रवरपरवादिगंजयथकेसरि-मंडपगिरिमंत्र वादसमस्याप्तचन्द्रपूर्णविकटवादि-गोपाचलदुर्गमेघाकर्षकविकजन-सस्यामस वाणिवर्षणसुरेंद्रनागेंद्रमृगेंदादिसेवितचरणारविदानां ग्यासदीन सभामध्यप्राप्त सन्मानपावत्युपासकानां श्रीमल्लिभूषणभट्टारकवर्याणाम् ॥"
स्पष्ट है कि मल्लिभूषण अपने समयके प्रसिद्ध आचार्य और धर्मप्रचारक थे । इनके पट्टशिष्य लक्ष्मीचन्द्र हुए। इसी भट्टारकशाखामें एक अन्य विद्या नन्दि भी हुए हैं। इन्होंने वि० सं० १८०५में सूरतमें एक आदिनाथमूर्ति स्थापित की थी।
गुरु | आचार्य श्री भट्टारक विद्यानंदी |
शिष्य | आचार्य श्री भट्टारक मल्लिभूषण |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Aacharya Shri Bhattarak Mallibhushan ( Prachin )
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 31-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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