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#BramhaGyansagar17ThCentury
काष्ठासंघ, नन्दीतटगच्छमें विश्वसेनके पट टशिष्य विद्याभूषण हाए हैं। इन्होंने वि० सं० १६०४ में तथा वि० सं०१६३६ में दो पार्श्वनाथ मूर्तियों स्था पित की हैं। विद्याभूषणके पट्टपर श्रीभूषणभट्टारक हुए। सं० १६३४ में श्वेताम्बरोंसे इनका विवाद हुआ। जिसके परिणामस्वरूप श्वेताम्बरोंको देश
१. श्रीमद्देवगिरी मनोहरपुरे श्रीपाश्वनाथालये।
वर्षेधीपुर सैकमेयइह व श्रीविक्रमांक सरे ।। सप्तम्यां गुरुवासरे श्रवणभे वैशाखमासे सिते ।
पाश्र्वाधीशपुराणमुत्तममिदं पर्याप्त मेवोत्तरम् ।।
-पार्श्वनाथपुराणप्रशस्ति
२. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ७१० ।
३. बही, लेखांक ७२० ।
४. वही, लेखांक ७१९ ।
त्याग करना पड़ा । इन्हीं श्रीभूषणके प्रधान शिष्य ब्रह्म ज्ञानमागर हुए। इनके सम्बन्धमें इन्हींके द्वारा रचित अक्षरबावनी से ज्ञात होता है कि काष्ठासंघ नन्दितटगच्छमें रामभेन मुनि हुए और उन्हींकी परम्परामें श्रीभूषणके शिष्य ब्रह्म ज्ञानसामर हुए 1 दशलक्षणकथाकी प्रस्तिम लिखा है
भट्टारक श्रीभूषणवीर । तिनके चेला गुणगंभीर ।।
ब्रह्म ज्ञानसागर सुविचार ! कही कशा दशलक्षणसार ।।
ब्रह्म ज्ञानसागरका समय वि० सं० को १७वीं शती है ! इन्होंने निम्नलिखित रचनाएँ लिखी है
१. अक्षरबावनी।
२. नेमिधर्मोपदेश।
३. नेमिनाथपूजा।
४. गोम्मटदेवपूजा।
५. मार्जनागपूजा !
६. जिनचौबीसी।
७. द्वादशीकथा।
८. दशलक्षणकथा।
९. राखीबन्धनरास ।
१०, पल्लींविधानकथा ।
११. निःशल्याष्टमीकथा ।
१२. श्रुतस्कन्धकथा ।
१३, मौनएकादशीकया।
ये सभी रचनाएं भाषा और भावकी दृष्टिसे साधारण हैं। नेमिधर्मोपदेश हिन्दीमें तथा नेमिनाथपूजा, गोम्मटदेवपूजा और पाश्र्वनाथपूजा संस्कृतमें लिस्त्री गयो हैं । शेष सभी मन्थ हिन्दी भाषा में हैं।
गुरु | आचार्य श्री भट्टारक श्रीभूषण |
शिष्य | आचार्य श्री ब्रम्हज्ञानसागर |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#BramhaGyansagar17ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री ब्रम्हज्ञानसागर 17वीं शताब्दी
आचार्य श्री भट्टारक श्रीभूषण Aacharya Shri Bhattarak Shribhushan
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 11-June- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 11-June- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
काष्ठासंघ, नन्दीतटगच्छमें विश्वसेनके पट टशिष्य विद्याभूषण हाए हैं। इन्होंने वि० सं० १६०४ में तथा वि० सं०१६३६ में दो पार्श्वनाथ मूर्तियों स्था पित की हैं। विद्याभूषणके पट्टपर श्रीभूषणभट्टारक हुए। सं० १६३४ में श्वेताम्बरोंसे इनका विवाद हुआ। जिसके परिणामस्वरूप श्वेताम्बरोंको देश
१. श्रीमद्देवगिरी मनोहरपुरे श्रीपाश्वनाथालये।
वर्षेधीपुर सैकमेयइह व श्रीविक्रमांक सरे ।। सप्तम्यां गुरुवासरे श्रवणभे वैशाखमासे सिते ।
पाश्र्वाधीशपुराणमुत्तममिदं पर्याप्त मेवोत्तरम् ।।
-पार्श्वनाथपुराणप्रशस्ति
२. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ७१० ।
३. बही, लेखांक ७२० ।
४. वही, लेखांक ७१९ ।
त्याग करना पड़ा । इन्हीं श्रीभूषणके प्रधान शिष्य ब्रह्म ज्ञानमागर हुए। इनके सम्बन्धमें इन्हींके द्वारा रचित अक्षरबावनी से ज्ञात होता है कि काष्ठासंघ नन्दितटगच्छमें रामभेन मुनि हुए और उन्हींकी परम्परामें श्रीभूषणके शिष्य ब्रह्म ज्ञानसामर हुए 1 दशलक्षणकथाकी प्रस्तिम लिखा है
भट्टारक श्रीभूषणवीर । तिनके चेला गुणगंभीर ।।
ब्रह्म ज्ञानसागर सुविचार ! कही कशा दशलक्षणसार ।।
ब्रह्म ज्ञानसागरका समय वि० सं० को १७वीं शती है ! इन्होंने निम्नलिखित रचनाएँ लिखी है
१. अक्षरबावनी।
२. नेमिधर्मोपदेश।
३. नेमिनाथपूजा।
४. गोम्मटदेवपूजा।
५. मार्जनागपूजा !
६. जिनचौबीसी।
७. द्वादशीकथा।
८. दशलक्षणकथा।
९. राखीबन्धनरास ।
१०, पल्लींविधानकथा ।
११. निःशल्याष्टमीकथा ।
१२. श्रुतस्कन्धकथा ।
१३, मौनएकादशीकया।
ये सभी रचनाएं भाषा और भावकी दृष्टिसे साधारण हैं। नेमिधर्मोपदेश हिन्दीमें तथा नेमिनाथपूजा, गोम्मटदेवपूजा और पाश्र्वनाथपूजा संस्कृतमें लिस्त्री गयो हैं । शेष सभी मन्थ हिन्दी भाषा में हैं।
गुरु | आचार्य श्री भट्टारक श्रीभूषण |
शिष्य | आचार्य श्री ब्रम्हज्ञानसागर |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Aacharya Shri BramhaGyansagar 17th Century
आचार्य श्री भट्टारक श्रीभूषण Aacharya Shri Bhattarak Shribhushan
आचार्य श्री भट्टारक श्रीभूषण Aacharya Shri Bhattarak Shribhushan
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 11-June- 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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