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#Jinsagar18ThCentury
बलात्कारगण कारन्जा शाखाके भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति के शिष्यों में जिनसागर प्रमुख हैं। जिनसागर ने शक संवत्को १७वी शती और वि० सं० की १८वीं शती में कई रचनाएँ लिखी हैं । कवि संस्कृत और हिन्दी दोनों ही भाषाओं के विद्वान हैं, पर इनकी अधिकांश रचनाएँ हिन्दीमें पायी जाती हैं। अब तक इनकी निम्नलिखित रचनाओंकी सूचना प्राप्त है
१. आदित्यनत्तकथा ( शक संवत् १६४६ चैत्रकृष्णा पंचमी),
२. जिनकथा ( शक सं० १६४९ ) ५. भट्टा. प्रार, 14. ५. ५- ।
३. पमानतोकथा ! साक सं १६५२ आश्विन शुक्ला द्वादशी ),
४. पुष्पाञ्जलिकथा ( शक सं० १६६० },
५. लबणांकुशकथा,
६. अनन्तकथा,
७. सुगन्धदशमीकथा,
८. जीवन्धरपुराण ( क सं० १६६६ वैशाख शुक्ला द्वादशी),
९. नन्दीश्वरउद्यापन,
१०. आदिनाथस्तोत्र,
११, शान्तिनाथस्तोत्र,
१२. पाश्वनाथस्तोत्र,
१३. पपावतीस्तोत्र,
१४. क्षेत्रपालस्तोत्र,
१५. ज्येष्ठ जनवरपूजा,
१६. शान्तिनाथआरती।
गुरु | आचार्य श्री देवेन्द्रकीर्ती |
शिष्य | आचार्य श्री जिनसागर |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#Jinsagar18ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री जिनसागर 18वीं शताब्दी
आचार्य श्री देवेन्द्रकीर्ति Aacharya Shri Devendrakirti
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 14-June- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 14-June- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
बलात्कारगण कारन्जा शाखाके भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति के शिष्यों में जिनसागर प्रमुख हैं। जिनसागर ने शक संवत्को १७वी शती और वि० सं० की १८वीं शती में कई रचनाएँ लिखी हैं । कवि संस्कृत और हिन्दी दोनों ही भाषाओं के विद्वान हैं, पर इनकी अधिकांश रचनाएँ हिन्दीमें पायी जाती हैं। अब तक इनकी निम्नलिखित रचनाओंकी सूचना प्राप्त है
१. आदित्यनत्तकथा ( शक संवत् १६४६ चैत्रकृष्णा पंचमी),
२. जिनकथा ( शक सं० १६४९ ) ५. भट्टा. प्रार, 14. ५. ५- ।
३. पमानतोकथा ! साक सं १६५२ आश्विन शुक्ला द्वादशी ),
४. पुष्पाञ्जलिकथा ( शक सं० १६६० },
५. लबणांकुशकथा,
६. अनन्तकथा,
७. सुगन्धदशमीकथा,
८. जीवन्धरपुराण ( क सं० १६६६ वैशाख शुक्ला द्वादशी),
९. नन्दीश्वरउद्यापन,
१०. आदिनाथस्तोत्र,
११, शान्तिनाथस्तोत्र,
१२. पाश्वनाथस्तोत्र,
१३. पपावतीस्तोत्र,
१४. क्षेत्रपालस्तोत्र,
१५. ज्येष्ठ जनवरपूजा,
१६. शान्तिनाथआरती।
गुरु | आचार्य श्री देवेन्द्रकीर्ती |
शिष्य | आचार्य श्री जिनसागर |
प्रास्ताविक
आचार्य केवल 'स्व'का उत्थान ही नहीं करते हैं, अपितु परम्पराले वाङ्मय और संस्कृतिकी रक्षा भी करते हैं । वे अपने चतुर्दिक फैले विश्वको केवल बाह्य नेत्रोंसे ही नहीं देखते, अपितु अन्तःचक्षुद्वारा उसके सौन्दर्य एवं वास्तविक रूपका अवलोकन करते हैं। जगत्के अनुभव के साथ अपना व्यक्तित्व मिला कर धरोहरके रूपमें प्राप्त बाइ मयकी परम्पराका विकास और प्रसार करते हैं। यही कारण है कि आचार्य अपने दायित्वका निर्वाह करने के लिये अपनी मौलिक प्रतिभाका पूर्णतया उपयोग करते हैं। दायित्व निर्वाहकी भावना इतनी बलवती रहती है, जिससे कभी-कभी परम्पराका पोषण मात्र ही हो पाता है।
यह सत्य है कि वाङ्मय-निर्माणको प्रतिभा किसी भी जाति था समाजकी समान नहीं रहती है । बारम्भमें जो प्रतिभाएं अपना चमत्कार दिखलाती हैं,
Aacharya Shri Jinsagar 18th Century
आचार्य श्री देवेन्द्रकीर्ति Aacharya Shri Devendrakirti
आचार्य श्री देवेन्द्रकीर्ति Aacharya Shri Devendrakirti
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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