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#LaghuAnantvirya12ThCentury
जैन न्याय-साहित्यमे ग्रन्धकारके रूपमें दी अनन्तबीयोंके नामो का उल्लेख मिलता है । इनमें एक अनन्तवीर्य तो वे ही हैं, जिनने अकलंकके सिद्धिवि निश्चयकी टीका लिखी है। प्रभाचन्द्रने न्यायकुमुदनन्द्रमें इनका स्मरण किया है। दूसरे अनन्तवीर्य व हैं, जिन्होंने प्रमेयरत्नमाला बनायी है। इस प्रमेयरत्नमाला मे अनन्तवीर्यने प्रभाचन्द्रका उललेख किया है । अत: उत्तरकालवर्ती होनेके कारण प्रमेयरत्नमाला रचयिता अनन्तवीर्यको लघु अनन्तवीर्य या द्वितीय अनन्तवीर्ष कहा जाता है। प्रमेयरत्नमालाक टिप्पण में इनका उल्लेख 'लघु अनन्त बीर्यदेव' के नाम किया भी गया है। इन्होंने परीक्षामुम्बके सूत्रोंकी संक्षिप्त, किन्तु विगद व्याख्या की है। माथ ही सङ्गतः चार्वाक, बौद्ध, सांख्य , न्याय, वैशेषिक और मामांगा दर्शनोंक कतिपय सिद्धान्तोंको आलोचना भी की है ।
इनकी एकमात्र कृति 'प्रमेयन्नमाला' प्राप्त है। ग्रन्थके आरम्भमें इस टीकाको इन्होंने परीक्षामुख-पत्रिका कहा है। प्रत्येक समुद्देश्यके अन्त में दी गयी पुष्पिकाओंमें इसे परोक्षामुख-लघुवृति भी कहा है।
आचार्य अनन्तवीर्यने अन्धके प्रारम्भमें तथा अन्तिम प्रशस्तिमें उल्लेख किया है कि इन्होंने इस टीकाकी रचना वैजेयके प्रिय पुत्र हीरपके अनुरोधस शान्तिषेणा के पठनार्थकी थी । प्रशस्ति में वैजेयके ग्रामादिकका कोई निर्देश नहीं है, पर उन्हें बदरीपालवंश या जातिका ओजस्वी सूर्य कहा है। उनकी पत्नीका नाम नागम्बा पा, जो अपने विशिष्ट गुणोंके कारण रेवती, प्रभावती आदि नामोंसे उस समय संसारमें प्रसिद्ध थी। उसके दानवीर हीरपके नामक पुत्र हुआ, जो सम्यक्त्वरूप आभूषणसे भूषित था और जो लोकहितकारी कार्योंको करनेके लिये प्रसिद्ध था । उसके आग्रहले संभवतः उन्हींके पुत्र शान्तिरेणके पठनार्थ इस लघवृत्तिकी रचना की गयी । यह रचना जैन न्यायके अध्येताओंके लिये विशेष उपयोगी है।
१. विशेष जानने के लिए देखिए-प्रेमयकमलमार्तण्डकी प्रस्तावना, पृ.० ७६, ७७ ।
प्रमेयरत्नमालाकी रचना प्रभाचन्द्रके 'प्रमेयकमलमार्तण्ड के पश्चात् की गयी है । प्रमेयरलमालाके आरम्भिक पद्यों में बताया है
प्रभेन्दुवचनोदारचन्द्रिका-प्रसरे सत्ति ।
मादृशाः क्व नु गण्यन्ते ज्योतिरिङ्गण-सन्निभाः ॥
अर्थात्, जब प्रभाचन्द्राचार्यकी बचनरूप उदारचन्द्रिका (प्रमेयकमल मातंण्ड ) प्रसृत है, तो खद्योतसद्दश हम सरीखे मन्दबुद्धियोंकी क्या गणना है ? इससे स्पष्ट है कि मानवीर्यमा समय बना दे. 'इचात् है और प्रभाचन्द्रका समय ई सन् की ११वीं शताब्दी है ! उधर आचार्य हेमचन्द्र ( वि० सं० ११४५-१२३० ) को 'प्रमाणमोमांसा' पर शब्द और अर्थ दोनोंकी दृष्टिसे प्रमेयरत्नमालाका पूरा-पूरा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। अतः अनन्त वीर्यका समय प्रभाचन्द्र और हेमचन्द्र के मध्य होना चाहिये । इस प्रकार अनन्तवीर्यका समय विक्रमकी १२ वीं शताब्दीका पूर्वाई प्रतिफलित होता है। डॉ ए. एन उपाध्येने भी प्रमेयरत्नमालाकार अनन्तवीर्यका यही समय अनुमानित किया है।
लघु अनन्तवीर्यका एकमात्र उपलब्ध रचना यही प्रमेयरलमाला है। परीक्षामुख समान प्रमेयरत्नमालाका भी विषय प्रमाण और प्रमाणाभासका प्रति पादन है। प्रमेयकमलमार्तण्डमें जिन विषयोंका विस्तारसे वर्णन है, उन्हींका संक्षेपमें स्पष्टरूपसे कथन करना प्रमेयरत्नमालाकी विशेषता है। परीक्षामुखके समान इसमें छह समुददेश्य हैं और उनमें उसीके समान प्रमाणलक्षण, प्रमाणभेद प्रमाणविषय, प्रमाणफल, प्रमाणाभास और नयका विवेचन परीक्षामुख की व्याख्याके रूपमें है । प्रतिपादनशैली बड़ी सरल, विशद और हृदयग्राही है।
गुरु | |
शिष्य | आचार्य श्री लघु अनंतविर्य |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#LaghuAnantvirya12ThCentury
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री लघु अनन्तवीर्य 12वीं शताब्दी
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 21 एप्रिल 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 21-April- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
जैन न्याय-साहित्यमे ग्रन्धकारके रूपमें दी अनन्तबीयोंके नामो का उल्लेख मिलता है । इनमें एक अनन्तवीर्य तो वे ही हैं, जिनने अकलंकके सिद्धिवि निश्चयकी टीका लिखी है। प्रभाचन्द्रने न्यायकुमुदनन्द्रमें इनका स्मरण किया है। दूसरे अनन्तवीर्य व हैं, जिन्होंने प्रमेयरत्नमाला बनायी है। इस प्रमेयरत्नमाला मे अनन्तवीर्यने प्रभाचन्द्रका उललेख किया है । अत: उत्तरकालवर्ती होनेके कारण प्रमेयरत्नमाला रचयिता अनन्तवीर्यको लघु अनन्तवीर्य या द्वितीय अनन्तवीर्ष कहा जाता है। प्रमेयरत्नमालाक टिप्पण में इनका उल्लेख 'लघु अनन्त बीर्यदेव' के नाम किया भी गया है। इन्होंने परीक्षामुम्बके सूत्रोंकी संक्षिप्त, किन्तु विगद व्याख्या की है। माथ ही सङ्गतः चार्वाक, बौद्ध, सांख्य , न्याय, वैशेषिक और मामांगा दर्शनोंक कतिपय सिद्धान्तोंको आलोचना भी की है ।
इनकी एकमात्र कृति 'प्रमेयन्नमाला' प्राप्त है। ग्रन्थके आरम्भमें इस टीकाको इन्होंने परीक्षामुख-पत्रिका कहा है। प्रत्येक समुद्देश्यके अन्त में दी गयी पुष्पिकाओंमें इसे परोक्षामुख-लघुवृति भी कहा है।
आचार्य अनन्तवीर्यने अन्धके प्रारम्भमें तथा अन्तिम प्रशस्तिमें उल्लेख किया है कि इन्होंने इस टीकाकी रचना वैजेयके प्रिय पुत्र हीरपके अनुरोधस शान्तिषेणा के पठनार्थकी थी । प्रशस्ति में वैजेयके ग्रामादिकका कोई निर्देश नहीं है, पर उन्हें बदरीपालवंश या जातिका ओजस्वी सूर्य कहा है। उनकी पत्नीका नाम नागम्बा पा, जो अपने विशिष्ट गुणोंके कारण रेवती, प्रभावती आदि नामोंसे उस समय संसारमें प्रसिद्ध थी। उसके दानवीर हीरपके नामक पुत्र हुआ, जो सम्यक्त्वरूप आभूषणसे भूषित था और जो लोकहितकारी कार्योंको करनेके लिये प्रसिद्ध था । उसके आग्रहले संभवतः उन्हींके पुत्र शान्तिरेणके पठनार्थ इस लघवृत्तिकी रचना की गयी । यह रचना जैन न्यायके अध्येताओंके लिये विशेष उपयोगी है।
१. विशेष जानने के लिए देखिए-प्रेमयकमलमार्तण्डकी प्रस्तावना, पृ.० ७६, ७७ ।
प्रमेयरत्नमालाकी रचना प्रभाचन्द्रके 'प्रमेयकमलमार्तण्ड के पश्चात् की गयी है । प्रमेयरलमालाके आरम्भिक पद्यों में बताया है
प्रभेन्दुवचनोदारचन्द्रिका-प्रसरे सत्ति ।
मादृशाः क्व नु गण्यन्ते ज्योतिरिङ्गण-सन्निभाः ॥
अर्थात्, जब प्रभाचन्द्राचार्यकी बचनरूप उदारचन्द्रिका (प्रमेयकमल मातंण्ड ) प्रसृत है, तो खद्योतसद्दश हम सरीखे मन्दबुद्धियोंकी क्या गणना है ? इससे स्पष्ट है कि मानवीर्यमा समय बना दे. 'इचात् है और प्रभाचन्द्रका समय ई सन् की ११वीं शताब्दी है ! उधर आचार्य हेमचन्द्र ( वि० सं० ११४५-१२३० ) को 'प्रमाणमोमांसा' पर शब्द और अर्थ दोनोंकी दृष्टिसे प्रमेयरत्नमालाका पूरा-पूरा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। अतः अनन्त वीर्यका समय प्रभाचन्द्र और हेमचन्द्र के मध्य होना चाहिये । इस प्रकार अनन्तवीर्यका समय विक्रमकी १२ वीं शताब्दीका पूर्वाई प्रतिफलित होता है। डॉ ए. एन उपाध्येने भी प्रमेयरत्नमालाकार अनन्तवीर्यका यही समय अनुमानित किया है।
लघु अनन्तवीर्यका एकमात्र उपलब्ध रचना यही प्रमेयरलमाला है। परीक्षामुख समान प्रमेयरत्नमालाका भी विषय प्रमाण और प्रमाणाभासका प्रति पादन है। प्रमेयकमलमार्तण्डमें जिन विषयोंका विस्तारसे वर्णन है, उन्हींका संक्षेपमें स्पष्टरूपसे कथन करना प्रमेयरत्नमालाकी विशेषता है। परीक्षामुखके समान इसमें छह समुददेश्य हैं और उनमें उसीके समान प्रमाणलक्षण, प्रमाणभेद प्रमाणविषय, प्रमाणफल, प्रमाणाभास और नयका विवेचन परीक्षामुख की व्याख्याके रूपमें है । प्रतिपादनशैली बड़ी सरल, विशद और हृदयग्राही है।
गुरु | |
शिष्य | आचार्य श्री लघु अनंतविर्य |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Aacharya Shri Laghu Anantvirya 12 Th Century
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 21-April- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#LaghuAnantvirya12ThCentury
15000
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LaghuAnantvirya12ThCentury
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