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#MadhavchandraTrayvidhyaPrachin
मावधचन्द्र नामके १०-११ विद्वान् दिखलाई पड़ते हैं। एक माधवचन्द्र निदेव है, जिन्होंने बिलोकसारपर संस्कृत-टीका लिखी है। ये आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीक शिष्य थे । इनका ममय ई० सन् १७५-१०० होना चाहिए।
दसरे माधन चन्द्र विद्यदेव के हैं जिनके शिष्य नागचन्द्रदेवके पुत्र मादेवसेन बोबको तोलपुरुष विक्रम शान्तरकी रानी पालियबकने अपनी माताको स्मृति में निर्मापित पालियबामति के लिए दान दिया था। लईस राईसने इस अभिलग्न का समय लगभग ५० ई० अनुमानित किया है, किन्तु स्वयं सोलपुरुष विक्रम शान्तावा शिलालेख ई० मन् ५.१.७ का प्राप्त है । अतः यह माधवचन्द्र विद्य देव, जो इस नामवे सर्वप्रथम ज्ञात आचार्य है, २०० ई० के लगभग हुए होंगे । एन मात्रचन्द्र नन्दिसंघ बलात्कारगण सरस्वतीगच्छको पटावली में महीचन्द्र पूर्व उल्लिकित है । पट्टावलोके अनुसार उनका समय ई. सन् २३३-६.६६ है ।'
१. ज्ञानमार, माणिक चन्द्र ग्रन्थमाला, गन्यांक १६, माथा ६१-६२ ।
२. बली, माथा २ ।
३. एपि वाणं० ८, नामर ४५ ।
४. एपि० कर्ण०८, नागर ६ |
५. जैनसिद्धान्त नास्कार, भाग १, किरण २, पृष्ठ १११ ।
चतुर्थ माधवचन्द्र के हैं, जिनका स्मरण दुर्गदेवने किया है । दुर्गदेवने श्रीनिवास राजाके राज्य में कुम्भनगरमें रिष्टसमुच्चयको रचना को थो । स्व० डॉ० गौरी शंकर हीराचन्द्रन श्रीनिवास या लक्ष्मीनिवासको एक साधारण सरदार माना है और कुम्भनगरको भरतपुरके निकटवाला कुम्भेशा कुम्भेशो कटा है। दुर्गदेवने अपने गुरुसंयमसेनके साथ माधवचन्द्रका भी स्मरण किया है। इन्होंने माधवचन्द्रके सम्बन्ध में लिखा है
जयउ गए जियमाणो संजमदेवो मुणीसरो इत्य ।
सहवि हु संजमसेणो माहवचन्दो गुरू सह य ।।
अर्थात् संयमदेवके गुरु संघमसेन और संयमसेनके गुरु माधवचन्द्र बताये गये हैं। दुर्गदेवके गुरुका नाम संयमदेव है और दुर्गदेवका समय ई. सन् १०३२ है। अतएव माधवचन्द्रका समय इनसे ५० वर्ष पूर्व होना चाहिए । इस प्रकार ये माधव चन्द्र नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीके शिष्य माधवचन्द्रसे अभिन्न प्रतीत होते हैं।
एक अन्य माधवचन्द्रका निर्देश देवगढ़के ई० सन् १०४२ के अभिलेख में आया है। मूलसंघ देशीयगण पुस्तकगच्छ हनसोगेबलिके आचार्यके रूपमें भी एक माधवचन्द्रका निर्देश प्राप्त होता है। विष्णुवर्धन होमसलने अपने पुत्रके जन्मोपलक्ष्य में इन्हें द्रोह घरट्ट जिनालयके लिए प्रामादि दान दिये थे। यह उल्लेख नयकीति सिद्धान्त चक्रवर्तीके शिष्य नेमिचन्द्र पण्डितदेवको उसी जिनालयके लिए वर्ष 'प्रमादिन में दिये गये शासनमें हुआ है। ल. राईसने इस अभिलेखका समय ११३३ ई० अनुमानित किया है। अतः यह माधवचन्द्र ई. सन् १९००-१२२५ के लगभग होने चाहिए।
एक अन्य माधवचन्द्र शुभचन्द्र सिद्धान्तदेवके शिष्य थे । ई० सन् १९३५ के लगभग विष्णुवर्धक प्रसिद्ध दण्डनायक गंगराजके पुत्र बोपदेव दण्डनायकाने अपने पिताके बड़े भाई बम्मदेवके पुत्र तथा अनेक बतियोंके निर्माता एच. राजकी मृत्युपर इनको निषद्या बनवाकर उन्हीं के द्वारा निर्मापित बसतियोंके लिए स्वयं एच. राजको पस्नी और माताको प्रेरणापर इन माधवचन्द्रको धारापूर्वक दान दिया था 13
हमारे अभीष्ट माधवचन्द्र नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके शिष्य माधवचन्द्र विद्य है, जिन्होंने अपने गुरुको सम्मतिसे कुछ गाथाएं यत्र-तत्र समाविष्ट की हैं । यथा
१. रिष्टसमुच्चय, गोषा जैन ग्रन्थमाला, इन्दौर, वि०सं० २००५, पृ० १६८, पद्यर५४ ।
२. एपिः कर्णः ५, बल्लूर, १२४ ।
३. जैनशिलालेखसंग्रह, प्रथम भाग, अभिलेखसंख्या १४४ ।
गुरुणेमिचंदसम्मदकदिवयगाहा जहि-तहि रइया ।
मावचंदतिविज्जेणिय मणु सदणिज्ज मज्जेहिं ।
आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार और प्रेमीजी दोनों ही गोम्मटसारमें उल्लि खित तथा त्रिलोकसारके संस्कृतटीकाकारको नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीका शिष्य मानते हैं, पर डॉ. ज्योतिप्रसादजीने क्षपणासारको प्रशस्तिके आधारपर उसका रचनास्थान दुल्लकपुर/ छल्लकपुर/ कोल्हापुर बताया है। उसमें तत्कालीन शासक प्रशस्तिमें उल्लिखित भोजराज वही शिलाहारवंशी भोजदेव प्रतीत होते हैं, जिनके राज्यमें सन् १२०५ ई० में आचार्य सोमदेवने शब्दार्णव चन्द्रिकाकी रचना की थी । इन माधवचन्द्र के प्रगुरु सिद्धान्ताधिप नेमिचन्द्रगणि गोम्मटसार त्रिलोकसारादिके कर्ता नेमिचन्द्र सिद्धान्सचक्रवर्ती नहीं, किन्तु बृहद् द्रव्यसंग्रहके कर्ता नेमिचन्द्रसे अभिन्न प्रतीत होते हैं। अतः क्षपणासारके कर्ता माधवचन्द्र विद्य आचार्य नेमिचन्द्रगणिके शिष्य माधवचन्द्र विद्यसे भिन्न हैं।
त्रिलोकसार-संस्कृतटीकाके रचयिता और मन्त्र-तत्र गाथाअंकि निर्माता माधवचन्द्र विद्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके शिष्य ही हैं, उनसे भिन्न अन्य कोई माधवचन्द्र नहीं ।
गुरु | आचार्य श्री नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती |
शिष्य | आचार्य श्री माधवचंद्र त्रैविद्य |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
#MadhavchandraTrayvidhyaPrachin
Book : Tirthankar Mahavir Aur Unki Acharya Parampara3
आचार्य श्री माधवचन्द्र त्रैविद्या (प्राचीन)
संतोष खुले जी ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 18-May- 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 18-May- 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
मावधचन्द्र नामके १०-११ विद्वान् दिखलाई पड़ते हैं। एक माधवचन्द्र निदेव है, जिन्होंने बिलोकसारपर संस्कृत-टीका लिखी है। ये आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीक शिष्य थे । इनका ममय ई० सन् १७५-१०० होना चाहिए।
दसरे माधन चन्द्र विद्यदेव के हैं जिनके शिष्य नागचन्द्रदेवके पुत्र मादेवसेन बोबको तोलपुरुष विक्रम शान्तरकी रानी पालियबकने अपनी माताको स्मृति में निर्मापित पालियबामति के लिए दान दिया था। लईस राईसने इस अभिलग्न का समय लगभग ५० ई० अनुमानित किया है, किन्तु स्वयं सोलपुरुष विक्रम शान्तावा शिलालेख ई० मन् ५.१.७ का प्राप्त है । अतः यह माधवचन्द्र विद्य देव, जो इस नामवे सर्वप्रथम ज्ञात आचार्य है, २०० ई० के लगभग हुए होंगे । एन मात्रचन्द्र नन्दिसंघ बलात्कारगण सरस्वतीगच्छको पटावली में महीचन्द्र पूर्व उल्लिकित है । पट्टावलोके अनुसार उनका समय ई. सन् २३३-६.६६ है ।'
१. ज्ञानमार, माणिक चन्द्र ग्रन्थमाला, गन्यांक १६, माथा ६१-६२ ।
२. बली, माथा २ ।
३. एपि वाणं० ८, नामर ४५ ।
४. एपि० कर्ण०८, नागर ६ |
५. जैनसिद्धान्त नास्कार, भाग १, किरण २, पृष्ठ १११ ।
चतुर्थ माधवचन्द्र के हैं, जिनका स्मरण दुर्गदेवने किया है । दुर्गदेवने श्रीनिवास राजाके राज्य में कुम्भनगरमें रिष्टसमुच्चयको रचना को थो । स्व० डॉ० गौरी शंकर हीराचन्द्रन श्रीनिवास या लक्ष्मीनिवासको एक साधारण सरदार माना है और कुम्भनगरको भरतपुरके निकटवाला कुम्भेशा कुम्भेशो कटा है। दुर्गदेवने अपने गुरुसंयमसेनके साथ माधवचन्द्रका भी स्मरण किया है। इन्होंने माधवचन्द्रके सम्बन्ध में लिखा है
जयउ गए जियमाणो संजमदेवो मुणीसरो इत्य ।
सहवि हु संजमसेणो माहवचन्दो गुरू सह य ।।
अर्थात् संयमदेवके गुरु संघमसेन और संयमसेनके गुरु माधवचन्द्र बताये गये हैं। दुर्गदेवके गुरुका नाम संयमदेव है और दुर्गदेवका समय ई. सन् १०३२ है। अतएव माधवचन्द्रका समय इनसे ५० वर्ष पूर्व होना चाहिए । इस प्रकार ये माधव चन्द्र नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीके शिष्य माधवचन्द्रसे अभिन्न प्रतीत होते हैं।
एक अन्य माधवचन्द्रका निर्देश देवगढ़के ई० सन् १०४२ के अभिलेख में आया है। मूलसंघ देशीयगण पुस्तकगच्छ हनसोगेबलिके आचार्यके रूपमें भी एक माधवचन्द्रका निर्देश प्राप्त होता है। विष्णुवर्धन होमसलने अपने पुत्रके जन्मोपलक्ष्य में इन्हें द्रोह घरट्ट जिनालयके लिए प्रामादि दान दिये थे। यह उल्लेख नयकीति सिद्धान्त चक्रवर्तीके शिष्य नेमिचन्द्र पण्डितदेवको उसी जिनालयके लिए वर्ष 'प्रमादिन में दिये गये शासनमें हुआ है। ल. राईसने इस अभिलेखका समय ११३३ ई० अनुमानित किया है। अतः यह माधवचन्द्र ई. सन् १९००-१२२५ के लगभग होने चाहिए।
एक अन्य माधवचन्द्र शुभचन्द्र सिद्धान्तदेवके शिष्य थे । ई० सन् १९३५ के लगभग विष्णुवर्धक प्रसिद्ध दण्डनायक गंगराजके पुत्र बोपदेव दण्डनायकाने अपने पिताके बड़े भाई बम्मदेवके पुत्र तथा अनेक बतियोंके निर्माता एच. राजकी मृत्युपर इनको निषद्या बनवाकर उन्हीं के द्वारा निर्मापित बसतियोंके लिए स्वयं एच. राजको पस्नी और माताको प्रेरणापर इन माधवचन्द्रको धारापूर्वक दान दिया था 13
हमारे अभीष्ट माधवचन्द्र नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके शिष्य माधवचन्द्र विद्य है, जिन्होंने अपने गुरुको सम्मतिसे कुछ गाथाएं यत्र-तत्र समाविष्ट की हैं । यथा
१. रिष्टसमुच्चय, गोषा जैन ग्रन्थमाला, इन्दौर, वि०सं० २००५, पृ० १६८, पद्यर५४ ।
२. एपिः कर्णः ५, बल्लूर, १२४ ।
३. जैनशिलालेखसंग्रह, प्रथम भाग, अभिलेखसंख्या १४४ ।
गुरुणेमिचंदसम्मदकदिवयगाहा जहि-तहि रइया ।
मावचंदतिविज्जेणिय मणु सदणिज्ज मज्जेहिं ।
आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार और प्रेमीजी दोनों ही गोम्मटसारमें उल्लि खित तथा त्रिलोकसारके संस्कृतटीकाकारको नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीका शिष्य मानते हैं, पर डॉ. ज्योतिप्रसादजीने क्षपणासारको प्रशस्तिके आधारपर उसका रचनास्थान दुल्लकपुर/ छल्लकपुर/ कोल्हापुर बताया है। उसमें तत्कालीन शासक प्रशस्तिमें उल्लिखित भोजराज वही शिलाहारवंशी भोजदेव प्रतीत होते हैं, जिनके राज्यमें सन् १२०५ ई० में आचार्य सोमदेवने शब्दार्णव चन्द्रिकाकी रचना की थी । इन माधवचन्द्र के प्रगुरु सिद्धान्ताधिप नेमिचन्द्रगणि गोम्मटसार त्रिलोकसारादिके कर्ता नेमिचन्द्र सिद्धान्सचक्रवर्ती नहीं, किन्तु बृहद् द्रव्यसंग्रहके कर्ता नेमिचन्द्रसे अभिन्न प्रतीत होते हैं। अतः क्षपणासारके कर्ता माधवचन्द्र विद्य आचार्य नेमिचन्द्रगणिके शिष्य माधवचन्द्र विद्यसे भिन्न हैं।
त्रिलोकसार-संस्कृतटीकाके रचयिता और मन्त्र-तत्र गाथाअंकि निर्माता माधवचन्द्र विद्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके शिष्य ही हैं, उनसे भिन्न अन्य कोई माधवचन्द्र नहीं ।
गुरु | आचार्य श्री नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती |
शिष्य | आचार्य श्री माधवचंद्र त्रैविद्य |
स्वतन्त्र-रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचायोंमें थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्योंने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन वाचायोका अपना महत्त्व है।
प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचार्योकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। किन्तु विषय-निरूपणको सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्योंमें वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्यों में पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचार्योंके व्यक्तित्व और कृति तत्वका विवेचन प्रस्तुत है।
Aacharya Shri Madhavchandra Trayvidhya ( Prachin )
Santosh Khule Created Wiki Page Maharaj ji On Date 18-May- 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#MadhavchandraTrayvidhyaPrachin
15000
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MadhavchandraTrayvidhyaPrachin
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